''इतनी पर्दादारी किस लिए ? ''मनु कुछ नहीं बोलते। मैं चिढ़
जाती हूँ। टी.वी लगाती हूँ। कौन बनेगा करोड़पति आ रहा है। कुछ
देर देखती हूँ। वहाँ से उठ जाती हूँ। मन कहीं भी स्थिर नहीं हो
रहा। एक अजीब सा सूनापन भीतर- बाहर महसूस हो रहा है। चित्रा-
रमेश की कमी खल रही है।
''ऐसे पड़ोसी से क्या सुख मिलेगा ? जिसके आने से पहले ही
बेचैनी हो गई। '' सोचते हुए फिर खिड़की के पास खड़ी हो जाती
हूँ। इस खिड़की से साथ वाले घर का अग्रिम भाग नज़र आ रहा है।
सारे घर की बत्तियाँ जल गईं हैं। खिड़कियाँ - दरवाज़ों को पूरी
तरह से ढक दिया गया है, रौशनी फिर भी छन कर बाहर आ रही है। कई
लोगों के हँसने की आवाज़ आई। उनका घर और हमारा घर बंद होने पर
भी भीनीं - भीनीं सी आवाज़ हमारे तक पहुँची। इसका मतलब बड़ा
परिवार है। मनु भी अपनी किताब छोड़ कर मेरे साथ आ कर खड़े हो
जाते हैं। साथ वाले घर में अब कोई नहीं बोल रहा। हँसते-हँसते
सब चुप हो गए हैं। कौन सी भाषा वे बोल रहे थे उसका पता नहीं
चला। मन उचाट हो गया। बोरियत ने घेर लिया। मैं सोने चली जाती
हूँ। थोड़ी देर बाद मनु भी सोने के लिए आ जाते है।
दोनों के मन में एक ही भाव धूम रहा है कि इतने गोपनीय पड़ोसी
कौन हैं ?
रविवार की सुबह प्रतिदिन की अपेक्षा हम देर से उठते हैं। पूरे
सप्ताह की थकान दूर करने के लिए एक ही दिन मिलता है। पर आज तो
फ़ोन की लहराती स्वर लहरी ने उठा दिया। बिस्तर पर अलसाये से
मनु बोले --''पारू यार, लोग क्यों भूल जाते हैं कि आज इतवार है
?'' मेरा भी उठने का मन नहीं था। संदेश मशीन पर सन्देश शुरू
होने दिया। ज़ीवा बोल रही थी --''उठो, आज सोने का दिन नहीं है।
देखो, बाहर क्या हो रहा है। "हम ने उसके सन्देश पर ध्यान नहीं
दिया और बिस्तर पर करवट बदल कर सोने की चेष्टा करने लगे। उसका
सन्देश कानों में गूँजता रहा, बाहर की जिज्ञासा बनी रही। हम
करवटें बदल-बदल कर सोने की कोशिश में आलसय से लिप्त बिस्तर पर
लोटते रहे।
तभी फिर फ़ोन की घंटी बजी, कानों के पर्दे फाड़ती महसूस हुई।
ज़ीवा की आवाज़ थी--''अरे आलसियों! उठो। रॉक गार्डन में चाय
नाश्ता लगा दिया है। देखो बाहर बाड़ बन रही है।''
''बाड़'' शब्द ने शरीर में स्फूर्ति भर दी। हम बिस्तर से उठ कर
सीधे शौचालय की ओर भागे। ज़ीवा और रुबिन पड़ोसी नहीं घर के
सदस्यों की तरह हो गए हैं। दोनों परिवारों ने एक दूसरे को काफी
अधिकार दिये हुए हैं। छुट्टी वाले दिन हम एक दूसरे को लंच या
डिनर खिला कर ख़ुशी महसूस करते हैं। 'बाड़' के बारे में
सोचते-सोचते मैं तैयार होने लगी।
दस मिनट में तैयार हो कर हम घर के मुख्य दरवाज़े से बाहर निकले।
बरामदे से रॉक गार्डन की ओर जाते हुए हमने देखा नेचर्ज़
क्रिएशन नर्सरी का बहुत बड़ा ट्रक खड़ा है और उसके कामगार
फुर्ती से बड़े-बड़े गमले जिनमें मध्यम कद वाले फाइकस के वृक्ष
लगे हुए थे, साथ वाले घर की हद के भीतर कतार में दस-दस फुट की
दूरी पर रख रहे थे। हमारी तरफ से ड्राईवे पर बाड़ बना दी गई थी
और आहाते की तरफ काम जारी है। एक जैसे गमले और एक जैसे वृक्ष।
दृश्य देख कर स्तब्ध रह गए। इतनी जल्दी कैसे सब इंतजाम किया?
नए पड़ोसी की चालाकी और बुद्धिमत्ता को दाद देने को मन किया।
हमारे परगना की नियमावली अनुसार आप को बाड़ बनाने के लिए
बकायदा हमारे सब-डवीज़न के निर्देशक मंडल से लिखित अनुमति लेनी
पड़ती है, वह भी पड़ोसियों की स्वीकृति के हस्ताक्षरित पत्र पर।
यह मंडल चुनाव पद्धति से चुना गया होता है और बिना कारण के
किसी भी तरह की बाड़ बनाने की इजाज़त नहीं देता। जिनके घरों में
पालतू जानवर होते हैं, वे ग्रिल (लोहे की ) बाड़ की बजाए बिजली
की अदृश्य बाड़ लगवाने लगे हैं। पालतू जानवर के गले में एक
पट्टा सा बाँध दिया जाता है और जब वह उस बाड़ की सीमा रेखा के
पास जाता है तो हल्का सा उसे झटका लगता है। उसे अपनी हद का पता
चल जाता है और वह फिर आगे नहीं जाता। इस तरह से घरों की
सुन्दरता नहीं बिगड़ती। अमेरिका में घरों की बाहरी सुन्दरता का
बहुत ध्यान रखा जाता है। हाँ आप अपनी निजता के लिए अपने घर की
सीमा में जितने चाहें पेड़, फूल -पौधे लगा लें। यही साथ वाले
पड़ोसी ने किया। बाड़ भी बना ली और किसी कानून का उल्लंघन भी
नहीं किया।
हम नाश्ते के लिए रॉक गार्डन में जा बैठे। ज़ीवा और रुबिन
इंतज़ार कर रहे थे। मौन अभिवादन के बाद चाय, कॉफ़ी का प्याला और
फ्रेंच टोस्ट पकड़ कर सब की आँखें बाड़ बनाने वालों पर ही स्थिर
हो गईं।
''क्या दादागिरी है। साथ वाले अभी कल आए हैं। किसी से मिले
नहीं, किसी ने उनकी सूरत नहीं देखी। पड़ोसियों से कोई आदान-
प्रदान नहीं हुआ, वे अच्छे हैं या बुरे, जानने की कोशिश तक
नहीं की और निजता के लिए बाड़ बनवा ली। '' ज़ीवा बड़े रोष से एक
ही साँस में बोली।
''ज़ीवा मुझे तुम्हारी बात सही लगती है। माफिया का ही व्यक्ति
है जिसे किसी की कोई परवाह नहीं।'' मैं भी गुस्से से बोली।
''पर ऐसे कैसे चलेगा ? कोई भी हो, पड़ोसियों से तो मिल- जुल कर
चलना चाहिए। '' रुबिन ने कहा।
''कम्पनियों ने अपना पैसा बचाने के लिए जब से लोगों को घर से
काम करने की इजाज़त दी है, लोग अन्तर्मुखी हो गए हैं। मिलना-
जुलना कम हो गया है। अंतरजाल पर तो अनजानों से दोस्ती करेंगे
और फेस बुक पर अपना भीतर-बाहर उड़ेल देंगे पर अपनों और पड़ोसियों
से परे रहेंगे, उनके लिए समय नहीं। उनसे प्राईवेसी चाहिए।''
ज़ीवा रुष्टता से बोली।
''कम्पनियों को क्यों दोषी ठहराती हो? अंतरजाल ने लोगों को
कम्प्यूटर से बाँध दिया है। हर चीज़ वहाँ उपलब्ध हो जाती है।
लोग घर बैठे शौपिंग करने लगे हैं।'' रुबिन बोला।
''हाँ तभी तो समुदाय की भावना समाप्त होती जा रही है। अवसाद
बड़ों के साथ -साथ युवा वर्ग को भी घेरने लगा है। दुःख -सुख में
कंम्प्यूटर काम नहीं आता। अपने आते हैं, पड़ोसी आते हैं। लोग
उन्हीं से दूर होते जा रहे हैं।'' ज़ीवा अपनी धुन में बोलती गई।
मैं दोनों की नोंक-झोंक सुनते हुए चाय पी रही थी। अभी तारो-
ताज़ा नहीं हुई थी।
''बाड़ बनाने का कोई कारण तो हो, हमें सुबह उठ कर गमले देखने
पड़ेंगे। पिछवाड़े का सारा प्राकृतिक दृश्य खराब कर दिया। ''मनु
बुदबुदाये।
''कारण तो वे दे देंगे, दो कुत्ते, तीन बिल्लियाँ। " रुबिन ने
कहा।
''फिर अदृश्य बाड़ बनवाते। वृक्षों और गमलों वाली क्यों ? ''
मैं बिफर गई।
नेचर्ज़ क्रिएशन नर्सरी के मालिक अनिल गाँधी की कार हमारे
ड्राईव के पास आ कर रुकी। हमें बाहर बैठे और बातें करते देख कर
वह हमारे पास आ गया। हमारे कई घरों के अग्रिम भाग और पिछवाड़े
की बागवानी अनिल ने की है और हमारा रॉक गार्डन भी उसी ने बनाया
है।
''हेलो अनिल, तुम साथवाले घर के मालिक से मिले हो, कौन है वह
?'' मैंने उसके पास आते ही प्रश्न किया।
''मैं नहीं मिला, उसके प्रतिनिधि से ही बात हुई है।"
''प्रतिनिधि ! " हम तीनों के मुँह से निकला।
''हाँ, आप हैरान क्यों हुए ?'' अनिल ने पूछा।
बात को बदलते हुए मैंने कहा '' हैरानगी की बात तो है, इतनी
जल्दी एक जैसे गमले और पेड़ तुमने कैसे इकट्ठे कर लिए ? अभी तो
घर ख़रीदा है साथ वालों ने। ''
''जी जब कोई पैसा पानी की तरह बहाए तो कौन काम नहीं करेगा।
उन्होंने अग्रिम राशि ही बहुत दे दी थी।''
हम चारों ने एक दूसरे की ओर देखा। सब के मन में एक ही भाव आया
--माफिया।
''आप ऐसे क्यों देख रहे हैं ? कोई बात तो है। "
''अनिल गमलों को रखते समय तुम्हें हमारा ध्यान नहीं आया।
सुन्दर प्राकृतिक दृश्य ख़राब कर दिया है।'' मैंने बात को टालते
हुए गिला सा किया।
''मैडम, आपको बचा लिया है। ये लोग तो मैग्नोलिया अपनी सीमा में
लगवाना चाहते थे। मुझे पता है कि एक दो सालों में मैग्नोलिया
की जड़ें और पूरा का पूरा वृक्ष आप की हद में आ जाता।
आप व्यू तो लेतीं पर सारी उम्र कुढ़ती रहतीं। अच्छा मैं चलूँ ,
मिलूं नए पड़ोसी से बाकि पैसों का हिसाब करना है।''
''हमने तो अभी तक नए पड़ोसी को
देखा नहीं, उसके बारे में कुछ पता भी नहीं चला। एक रहस्य बना
हुआ है। '' ज़ीवा ने मुँह बिचकाते हुए कहा।
''सड़क पार वालों ने भी यही कहा है। मैं अभी राज़ जान कर आता
हूँ। मेरे लिए भी चाय बना लें। सुबह से चाय नहीं पी।" अनिल घास
फलांगता सा साथ वाले घर की तरफ चला गया।
ज़ीवा चाय, कॉफ़ी और नाश्ते के बर्तन इकट्ठे करने लगी।
''अनिल के लौट कर आने तक मैं बेगल और क्रीम चीज़ ले कर आता
हूँ। मनु तुम मसाला चाय बना लाओ। " रुबिन ने बर्तन उठाते हुए
कहा। मनु और रुबिन रॉक गार्डन को छोड़ अपने -अपने घरों की ओर
बढ़ गए।
मैं और ज़ीवा वहीं कुर्सियों में ढीली -ढाली हो कर धँस गईं।
सामने वाले और सड़क पार के घरों के लोगों की जिज्ञासु आँखें काम
करते हुए भी इधर साथ वाले घर पर ही टिकी हैं । किटी पर्ल फूलों
को पानी देते हुए बार-बार बन रही बाड़ को देख रही है। डैनियल
और मारग्रेट के बच्चे सड़क पर खेल रहे हैं, वे उनके साथ खेलते
हुए, कई बार खड़े हो कर बाड़ को देखने लगते हैं।
रविवार के दिन हमारे परगना की मुख्य सड़क पर बहुत रौनक रहती है।
हमारा रॉक गार्डन और साथ वाले घर का अग्रिम भाग मुख्य सड़क पर
पड़ता है। सैर कर रहे दम्पत्ति और जॉगिंग कर रहे लोग बाड़ को
देखने के लिए रुक जाते हैं।
मैं आकाश को देख रही हूँ। बादलों ने चक्रव्यूह बना कर आज दिनकर
को घेर लिया है। एक किरण बाहर नहीं निकलने दे रहे। वह अभिमन्यु
सा चक्रव्यूह में रास्ता बनाने की कोशिश कर रहा है। बादल उसे
पूरी तरह से ढक कर रोके हुए हैं। काले स्लेटी बादलों ने दिन को
तक़रीबन गोधूली वेला में बदल दिया है। हवा घुट गई है। वृक्षों
से बने छाते की ओट में बैठे हमारा दम घुटना शुरू हो गया। मनु
एक खड़ा पंखा लगा गए हैं। उसकी हवा से थोड़ी राहत मिल रही है।
बाड़ तेज़ी से बनती जा रही है। आस- पास के बगीचों की घास भी
गर्मीं में तड़पती महसूस हो रही है सिर्फ कुछेक घरों की घास को
छोड़ कर। डेमी और माईकल के यहाँ ज़ोईशिया घास लगी है, वह कड़कती
गर्मीं में हरी होती है और सर्दियों में पीली। उसे पानी भी कम
चाहिए होता है, बाकि सब के अहातों में घास प्यास से, गर्मीं से
सूख रही है। घास को पानी दिया जा रहा है। स्प्रिंकलर चल रहे
हैं..छुक-छुक .. शाँ..शाँ की आवाज़ बड़ी भली लग रही है। ज़ीवा
और हमारे यहाँ भी स्प्रिंकलर चल पड़े हैं। उनकी हल्की -हल्की
फुहारों से कुछ छींटें हम पर भी पड़ रहे हैं। बड़ा सुखद लग रहा
है। डैनियल के बच्चे स्प्रिंकलर की फुहारों के साथ खेल रहे
हैं, उसके छमाछम पानी में कूद रहे हैं।
उनका पानी में कूदना मुझे भारत अपने मायके के वेहड़े ( आँगन )
में ले गया। छम छम बरसात में भीगती, कूदती हुई नन्हीं बच्ची बन
गई थी। पता नहीं चला, कब मनु और रुबिन आ गए। ज़ीवा के फ़ोन ने
ध्यान तोड़ा। वह नैंसी से बातें कर रही थी ''बस थोड़ी ही देर
में पता चल जायेगा कि कौन आया है इस घर में।''
अनिल को आते देख सब सचेत हो गए। ज़ीवा ने फ़ोन बंद कर दिया।
अनिल चुप-चाप कुर्सी पर आकर बैठ गया। मनु ने चाय कप में डाल
दी। रुबिन ने क्रीम चीज़ लगा बेगल उसके आगे बढ़ा दिया। बेगल का
टुकड़ा मुँह में डालते हुए, चाय के घूँट के साथ वह बोला -''
मालिक से तो नहीं मिला। सेक्रेटरी किमर्ली ने हिसाब कर दिया
है। बस इतना जान पाया हूँ कि भारतीय है और बहुत बड़ा व्यापारी
है। घर पर कम रहता है। अधिकतर देश- विदेश घूमता रहता है।
व्यक्तिगत और अन्तर्मुखी है। किसी से मिलना-जुलना पसंद नहीं
करता। इसीलिए घर में आने से पहले अपनी निजता की सुरक्षा के लिए
सिक्यूरिटी सिस्टम, ब्लाईंड, पर्दे और बाड़ लगवा रहा है। ''
''इतना ही व्यक्तिगत है तो परिवारों वाले इलाके में घर क्यों
लिया ? किसी जंगल बियाबान में लेता तो प्राईवेसी ही होती।
कितने लोग निजता ढूँढते उजाड़ पहाड़ों पर रहते हैं । चला जाता
वहीं पर। हमारा पड़ोस क्यों खराब किया ? यहाँ क्या चोर- उच्चके
रहते हैं जिनसे सुरक्षा चाहिए।'' मैं अपने भावों को रोक नहीं
पाई और बरस पड़ी .....
''मैं कितनी उत्साहित थी कि अब अगर फिर भारतीय पड़ोसी मिला तो
जीवन में दोबारा से रस आ जायेगा। विदेशी धरती पर देसी पड़ोसी,
सोच कर ही भीतरी भावनाएँ तरंगित हो रहीं थीं। सारी उमंगों पर
पानी फेर दिया। यह भारतीय तो अमेरिकी लोगों से भी दस कदम आगे
निकला।''
मनु मेरे मन की व्यथा को समझ गए, सांत्वना देते हुए उन्होंने
कहा '' पारुल कई भारतीय अमेरिकी लोगों को समझे बिना उनकी तरह
बनने की कोशिश करते हैं, वे अमेरिकी बन नहीं पाते और भारतीय वे
रहते नहीं। संभ्रमित हो कर रह जाते हैं। जो वे हैं नहीं वही
बनने की कोशिश में सीमाओं का उल्लंघन कर जाते हैं। हमारा नया
पड़ोसी भी उनमें से एक है।"
''परिवार तो है या वह भी नहीं।''
''इसका मुझे पता नहीं चला...|'' अनिल चाय समाप्त करता हुआ
बोला।
इतने दिनों का गुप्त राज़ खुल गया, नया पड़ोसी माफ़िया सरगना
नहीं भारतीय है। पर माफ़िया से भी अधिक रहस्यमयी निकला। भारतीय
पड़ोसी हो इसकी चाह, मोह और स्वप्नों का संसार चूरमूर हो गया।
वृक्ष से टूटी हुई टहनी सा लुंजपुंज महसूस कर रही हूँ मैं।
वहाँ बैठना अब मुश्किल हो रहा है और..... हमारे देखते ही देखते
बाड़ बन गई... |