'चलो चाय
पीकर आते हैं। इस यात्रा ने तो शुरू में ही बोर कर दिया। पूरे
दो घंटे लेट हो गए। अच्छा होता सड़क के रास्ते चले जाते, पर राहुल
मास्टर को तो पानी के जहाज़ में आने की जिद थी न?'' मनीष
मुस्करा दिए।
चारों ओर बिखरी खुशी और उमंग में मनीष का परिचित चेहरा भी उस
भीड़ का अंग बन, सौम्या को नितान्त अपरिचित लग रहा था।
''नहीं-नहीं, मेरा तो जी मितला रहा है। लगता है मेरी
तबियत ठीक नहीं। तुम तो जानते ही हो...''
''हाँ-हाँ, सब जानता हूँ। चलो राहुल, हम चलें। तुम्हारी माँ
खुश होना जानती ही कहाँ है।'' मनीष का स्वर नाराज़ था।
उमड़ रहे
आँसुओं को जबरन रोक केबिन के पलंग पर सौम्या कटे पेड़-सी गिर गई
थी। क्या मनीष सचमुच भूल गए थे? इसी जहाज़ पर तो कभी सौम्या ने
अपना सर्वस्व खो दिया था। उन दस वर्षों का अन्तराल क्यों बस
पन्द्रह दिनों का लग रहा था? इतने वर्षों से अंतर में बन्द वो
दस वर्ष पूर्व की घटना क्यों इस जहाज़ पर उस पर हावी हो उठी
थी? तब की सौम्या किस उमंग से लन्दन जाने को आतुर थी!
आशू को गोद
में लिए जैसे ही जहाज़ पर चढ़ने लगी थी, अचानक पीछे से आशू को
खींच, खिलखिलाते रोहित ने उसे कितना चैंका दिया था-
''ये तुम्हारा काम नहीं है सौम्या! अजी अपनी बेटी लादने को तो
ये खच्चर ही ठीक है। हाँ, जरा अपनी साड़ी का पल्ला सम्हाल के
रखना, कहीं लोगों की नजर न लग जाए!''
''ओह रोहित!'' सौम्या लजा उठी थी। साड़ी पर दृष्टि डाल के देखा
था। लाल कांजीवरम की साड़ी सास जी ने जबरदस्ती पहना दी थी। उनकी
लाडली इकलौती पुत्रवधू विदेश जो जा रही थी। सच उस साड़ी को
नन्ही आशू के साथ सम्हाल पाना कितना कठिन था! पर माँ की जिद के
आगे रोहित को भी चुप रहना पड़ा, वर्ना उन्हें तो बस सौम्या की
सूनी पाड़वाली साड़ियाँ ही प्रिय थीं।
रोहित आशू को
गोद में लिए कितने उल्लसित और गर्वित थे! मात्र आठ मास की आशू
को लन्दन ले-जाने का साहस सौम्या में कहाँ था! पर रोहित ही थे
कि अड़ गए कि बेटी साथ ही जाएगी।
''तीन साल बाहर रहूँगा तो आकर पापा से बेटी का नया परिचय कराना
होगा। वैसे भी 'मैडम मम्मी' आप अकेले क्या करेंगी? मैं व्यस्त
रहूँगा अपनी पढ़ाई में, ये गुड़िया ही आपका मन बहलाएगी न?''
रोहित जोर से हँस दिए थे।
सच रोहित आशू
के प्यार में दीवाने बने रहते थे। सोते में करवट बदलते हुए
कुनमुनाती आशू की तुरन्त उठ नब्ज देखने लगते थे। सौम्या उनकी
इस उतावली पर मुस्करा देती थी- 'डॉक्टर हो न, घर में भी
पेशेन्ट ही खोजते हो।'
छह फ़ीट के रोहित के हृदय में छह वर्ष के कोमल शिशु का हृदय था।
बात-बात में उन्मुक्त निश्छल हास्य से गम्भीर बात भी कभी रोहित
हँसी में उड़ा देते थे। कई बार रोहित की इस बात पर सौम्या नाराज
भी हो उठती थी-
''भगवान के लिए कभी तो सीरियस हो जाया करें! हर बात मजाक में
ही ले लेते हैं।''
सास जी को सौम्या माँ ही कहती थी। वही कहती थीं-
''रोहित तो बचपन से ही ऐसा रहा है बहू! तेरे ससुर जी के न रहने
पर इसने मुझे एक दिन भी रोने नहीं दिया था।'' पुत्र-स्नेह से
माँ का मुख चमक उठता था।
घर में अपार
धन-सम्पत्ति के एकमात्र स्वामी रोहित ने कभी किसी से ऊँचे स्वर
में बात नहीं की थी। पिता की अन्तिम इच्छा रोहित को डॉक्टर रूप
में देखने की थी- हार्ट-सर्जन के रूप में। रोहित पिता की इच्छा
उनके जीते जी पूर्ण न कर सके, इसका रोहित को दुःख रह गया था।
रोहित के साथ सौम्या इन्द्राणी-सी सजती थी। रंगीन कल्पना के
सपने देखती सौम्या को रोहित अचानक जैसे नींद से जगा देते थे।
सौम्या की खीज पर तुरन्त कोई बहाना उन्हें मिल जाता था-
''सौम्या! मैं सोच रहा था अपनी आशू को डॉक्टर नहीं बनाएँगे, बस
वह तुम्हारी जैसी बनेगी।''
''बस इतनी-सी बात कहने के लिए मुझे डिस्टर्ब किया था? जानते
नहीं इतना अच्छा कहानी का प्लॉट मिला था।''
''वाह, अपनी बिटिया के भविष्य-निर्माण से भी अच्छा क्या कोई
काम हो सकता है देवी जी?''
''भविष्य-निर्माण क्या इसी पल करना है? और फिर ये डॉक्टर क्यों
नहीं बनेगी?'' सौम्या कौतूहल में पूछ बैठती।
''सोचता हूँ ये डॉक्टर नहीं, डॉक्टर की पत्नी बन अपनी
मन्द-मन्द मुस्कान से उसका इलाज करेगी... यानी अपनी मम्मी की
प्रतिछाया बनकर रहे, वही ठीक रहेगा न?'' शैतान मुस्कान रोहित
के अधरों पर तैर आती थी।
हार्ट-सर्जरी
में विशेषज्ञ रोहित को जब तीन वर्ष के लिए लन्दन के एक अस्पताल
से आमन्त्रित किया गया तो रोहित पुलक उठे थे। माँ के मुख पर
अचानक छा गया विषाद देख उन्हें अपना निर्णय बदलते देर नहीं लगी
थी।
''नहीं माँ, मैं विदेश नहीं आऊँगा। पापा का स्वप्न यहीं इसी
शहर में साकार करूँगा।'' रोहित ने प्यार से माँ का कंधा पकड़
उन्हें सांत्वना देनी चाही थी।
''छीः, पागल हो गया है क्या? ऐसे अवसर भला क्या बार-बार मिलते
हैं? तू बड़ा सर्जन बनकर आएगा तो कितनी खुशी होगी उनकी आत्मा
को?'' अपने विषाद को माँ ने एक पल में पोंछ डाला था।
फिर माँ ने
ही जिद की थी सौम्या को साथ भेजने की। सौम्या और आशू को साथ
ले-जाते रोहित माँ को अकेला छोड़ते अपराधी-सा महसूस कर रहे थे।
रोहित का संकोच देख माँ ने ही मीठी झिड़की दी थी-
''ना बाबा, तुम्हारे पीछे मैं इन दोनों का बन्धन कहाँ पालूँगी?
अकेली जान ठहरी, जहाँ जी चाहा चली जाऊँगी। अपनी गृहस्थी अब तू
ही देख।''
कृतज्ञतापूर्ण दृष्टि से रोहित माँ को ताकते रह गए थे। अकले
में सौम्या से कहा था, ''देखा सौम्या, ये मेरी माँ हैं, मेरे
मन को किस आसानी से पढ लेती हैं! पिताजी के न रहने पर मैं ही
उनका सहारा हूँ! आज किस आसानी से उन्होंने मुझे मोह-मुक्त कर
दिया न?''
पानी के जहाज से यात्रा का प्रस्ताव रोहित का था, ''पूरे एक
महीने का समय है, लहरों पर पन्द्रह दिन तारों की छाँव में...एक
अनुभव होगा सौम्या!''
रोहित ने सचमुच सौम्या के स्वप्न साकार कर दिए थे। डेक पर खड़े
दोनों लहरें गिनने का कम्पीटीशन करते अचानक जोर से हँस पड़ते
थे। अचानक हँसी से आसपास के लोग किस कदर चौंक उठते थे पर उन
दोनों के संसार मे किसी और के लिए स्थान ही कहाँ था? रात में
तारों की छाँव में भविष्य के सपने बुनना, आशू का नन्हा मुख चूम
उसे सोते से जगा देना रोहित को कितना अच्छा लगता था।
''सौमी! लगता
है अब मैं भी कहानीकार बनता जा रहा हूँ। जी चाहता है इस यात्रा
का कभी अन्त न हो। इन तारों की छाँव में अनन्त निद्रा में सो
जाने का मन करता है न?''
''क्यों नहीं... आशू के साथ पूरे दिन रहना पड़े तो पता लगेगा
जनाब! मेरी कहानी तो बस यही बन गई है। जब रोना शुरू करती है तो
चुपने का नाम ही नहीं लेती है।''
''तुम इस मामले में अनाड़ी हो ए...सौम्या! देखा नहीं मेरी गोद
में आते ही चुप हो जाती है मेरी बेटी। वह भी जानती है उसे कौन
ज्यादा प्यार करता है। क्यों, ठीक कहा न बिटिया?'' आशू का लाड़
करने रोहित उसे चिढ़ाते जाते थे।
जहाज़ के स्वेज नहर में प्रवेश करते ही रोहित उत्साहित हो उठे
थे-
''कुछ ही घंटों में हम भूमध्यसागर में होगे सौम्या, ग्रीस-इटली
सबको छूते चलेंगे। लौटते समय कम-से-कम चार दिन रोम में
रुकेंगे।''
''रोम में क्यों, पेरिस में क्यों नहीं?'' सौम्या को पेरिस के
रात्रि-जीवन में अधिक आकर्षण था।
''क्यों भई, क्या इरादे हैं... कहीं मॉडेलिंग का इरादा तो नहीं
है? वहाँ इंडियन मॉडेल्स बहुत डिमांड में है। आप पर तो हजारों
फ्रेंच मर मिटेंगे जनाब!'' रोहित सौम्या को चिढ़ाने के मूड में
आ गए थे।
''ऐनी ऑब्जेक्शन?'' सौम्या ने तिरछी दृष्टि से रोहित को उत्तर
दिया था।
''क्यों नहीं, आप पर कोई नजर डाले...भला सह सकूँगा मैं? हाथ
लगाने की बात कोई सोचकर तो देखे, कच्चा खा जाऊँगा उसे।'' रोहित
प्यार से मुस्करा दिए थे।
''माँ को लिख दूँगी, यूरोप की धरती पर पाँव धरने के पहले ही
उनका शाकाहारी बेटा नर-भक्षी बनने की तैयारी कर रहा हैं।''
''वो अपने बेटे को जानती हैं सौम्या!'' माँ के प्रति अनन्य
विश्वास रोहित का गौरव था।
उस पल डेक से
हटकर सौम्या केबिन में आई थी। आशू को फ़ीडिंग बोतल दे सौम्या
अधलेटी किसी पत्रिका के पृष्ठ पलटने लगी थी। थोड़ी दूर पर रोहित
ईजी-चेयर में बैठे कोई मैप ध्यान से देख रहे थे। अचानक रोहित
की आवाज पर सौम्या चैंक उठी थी-
''सौ...मी...ई...काल दि डॉक्टर!'' सौम्या सिर नीचा किए
मुस्कराती रही थी। यह रोहित का प्रिय परिहास था- सौम्या का हाथ
सीने पर रख रोहित हमेशा कहा करते-
''लुक, आई एम डाइंग, अपने प्यार की दवा देके इस मरीज को बचा लो
सौमी!''
कुछ ही
क्षणों बाद अजीब-सा अस्फुट क्रंदन सुन सौम्या ने रोहित की ओर
दृष्टि डाली थी। मुस्कान अधर पर जम गई। क्या वो एक्टिंग थी?
मृत्यु की पीड़ा से मुख काला पड़ा जा रहा था। सौम्या ने झटके से
उठ रोहित को थामना चाहा था, पर रोहित अस्फुट स्वर में
बुदबुदा-भर सके थे, ''डॉक्...टर...'' स्वर में मानो प्राण
बिंधे आ रहे थे।
और फिर रोहित के प्राणों से प्रिय हाथों को झटके से छुड़ा
सौम्या पागल-सी केबिन के बाहर भागी थी। किसी केबिन के खुले
द्वार में प्रवेश कर रो पड़ी थी-
''मेरे हस्बेंड को कुछ हो रहा है...ही इज वेरी सिक... प्लीज
कॉल दि डॉक्टर! एक व्यक्ति को तत्परता से उठता देख सौम्या वहीं
गिर मूर्छित हो गई थी।
आँख खोलते ही
सब-कुछ भयावह सपना-सा लगा था। अपरिचित केबिन में पूर्ण
स्तब्धता थी। नर्स के प्रवेश करते ही वह यथार्थ में लौट आई थी-
''कैसे हैं मेरे पति सिस्टर?'' स्वर की व्यग्रता पर नर्स ने
उदास दृष्टि से सौम्या को ताक कुछ नहीं कहा था। सौम्या व्याकुल
हो उठी थी-
''सिस्टर, प्लीज सच बताइए, कैसे हैं रोहित? उन्हें आप अकेला
क्यों छोड़ आई हैं? और मेरी बेबी?''
शान्त सधे स्वर में नर्स ने कहा था, ''मिसेज रोहित, हमें दुःख
है डॉक्टर रोहित अब नहीं हैं। उन्हें बहुत मैसिव हार्ट अटैक हुआ
था। डॉक्टर के पहुँचने के पूर्व ही...।''
''नहीं...नहीं...ये सच नहीं है! वह मुझे अकेला छोड़कर नहीं जा
सकते! कहाँ हैं रोहित? मैं जाऊँगी उनके पास।''
''उनकी बॉडी केबिन में सील कर दी गई है मैडम!''
शान्त,
निर्वाक सौम्या नर्स को फटी-फटी आँखों से ताकती रह गई थी। इतने
बड़े भूमध्यसागर के वक्ष पर रोहित उसे कितना असहाय छोड़ गए थे।
कैप्टन, डॉक्टर और कुछेक भारतीय उसके पास संवेदना के लिए आ खड़े
हुए थे। नर्स तब तक नन्हीं आशू को स्तब्ध बैठी सौम्या की गोद
में डाल गई थी। रोहित के आकस्मिक निधन पर शोक प्रकट करते
कैप्टन ने अत्यन्त शालीनता के साथ रोहित के शरीर को जल-समाधि
देने की सौम्या से अनुमति माँगी थी। जहाज़ में मृतक शरीर रखने
के स्थान पर जल-समाधि देना उन्हें अधिक उपयुक्त लगा था। कैप्टन
की बात ने सौम्या को चैतन्य कर दिया था-
''नहीं-नहीं...जितना भी पैसा चाहिए ले लीजिए, मैं उनका संस्कार
विधिवत कराऊँगी।''
''पर...ये जहाज़ तो अभी रोम रुकेगा। वहाँ की व्यवस्था...''
कैप्टन की बात काट सौम्या ने कहा था, ''रोम के भारतीय राजदूत
से सम्पर्क कीजिए, वे हमारे परिचित हैं। मैं रोहित को यों नहीं
छोड़ सकती। सौम्या के नयनों से टप-टप आँसू झर रहे थे।
अपने केबिन
को सील लगा देख सौम्या की प्रश्नवाचक दृष्टि के उत्तर में
कैप्टन ने ही बताया था कि उसका सामान दूसरे केबिन में शिफ्ट कर
दिया गया था। एक ब्लैंक चेक पर साइन कर सौम्या ने कैप्टन को
थमाना चाहा तो वह पीछे हट गया था-
''हम रोम के एम्बेसेडर से सम्पर्क करेंगे, आप परेशान न हों
मैडम! हम पूरी कोशिश करेंगे! हमें इस घटना का हार्दिक दुःख
है।''
बहुत चाहकर
भी सौम्या केबिन में रोहित के निश्चल शरीर को देखने न जा सकी
थी। उस जीवन्त रोहित के स्थान पर उसके शान्त स्वरूप की कल्पना
भी असंभव थी। कितनी दूर चले गए थे रोहित! आवाज देकर सौम्या उसे
बुला नहीं सकती थी। कितनी बार सौम्या रोहित की तेज चाल पर
झुँझला उठती थी।
''ये क्या दौड़ लगाते हैं आप? आगे से कभी साथ आई तो सौम्या नाम
नहीं मेरा।''
सौम्या के मुख पर आई लालिमा और पसीने की नन्हीं बूँदों को
मुग्ध ताकते रोहित हँस पड़ते थे।
''ठीक है, आप कार में आया करें, ये बन्दा कार के पीछे दौड़ा
करेगा।''
उस दिन रोहित
को पुकार सौम्या पूछ भी नहीं सकी थी,
''मुझे यों अकेला छोड़ तुम इतनी दूर क्यों चले गए रोहित? तुमने
तो हमेशा साथ देने का वादा किया था न?''
कभी-कभी एक आकुल शंका सौम्या को आज भी सहमा देती थी- कहीं उससे
मिलने को रोहित कुछेक क्षणों को उस अकेले केबिन में वापस तो
नहीं आए थे? |