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					 कई 
					दिनों से उनके गले सूखे हुए हैं, शराब की एक बूँद उन्हें नसीब 
					नहीं हुई। पूरे बदन में बहुत तनाव है, उसे तनाव रहित करने के 
					साधन नहीं जुटा पाए वे। जेब में वेलफेयर में मिले भोजन के 
					कूपनों के अतिरिक्त एक डालर भी उनके पास नहीं है। ये कूपन 
					सरकार उन्हें खाने की सामग्री खरीदने के लिए देती है। कूपन बेच 
					कर वे शराब की बोतल और सिगरेट का पैक खरीदना चाहते हैं, पर कोई 
					खरीददार नहीं मिल रहा उन्हें। दोनों निराश हैं, परेशान हैं, 
					हलक पानी से बहल नहीं रहा। उसे बीयर चाहिए, विस्की चाहिए। ये 
					सब वे कहाँ से लाएँ ? हार कर आज उन्होंने अपना पुराना धंधा 
					अपनाया .. ..इससे कई बार अच्छी कमाई हो जाती है। यह कमाई एक 
					रात का पूर्ण सुख दे जाती है। वह रात अगले कुछ महीनों के लिए 
					उन्हें काफ़ी तुष्ट कर जाती है... 
 शाम ढलने से पहले ही उन्होंने अपनी कमाई को गिना, अभी भी मन 
					चाही रकम पूरी नहीं हुई। दोनों बेहद थक गए हैं। पसीने से भीग 
					गए हैं और उन्हें शाम से पहले ही शैल्टर होम में लौटना है। वे 
					पास के बस स्टाप की ओर चल पड़े। दोनों चुप हैं, कुछ बोल नहीं 
					रहे। डाउन टाऊन राले की बस आती देख, वे भाग कर उसमें चढ़ गए। 
					यह बस बेघर लोगों की रसोई ( सूप किचन ) के पास जा कर रूकती है, 
					वहीं मुफ्त में खाना खा कर वे साथ ही के शेल्टर होम में सोने 
					जाने की सोच रहे हैं। कई दिनों से वे यही कर रहे हैं, इस तरह 
					वे अपने कूपन बचा रहे हैं। उन्हें बेच कर वे ज़्यादा से 
					ज़्यादा पैसा बनाना चाहतें हैं।
 
 बस में बैठते ही पहली बार पीटर ने मुँह खोला--''भाई, मंदी ने 
					अमेरिका के लोगों को सचमुच मार डाला है। मुझे उन पर तरस आ रहा 
					है। उनके पास हम जैसे बेघर लोगों को देने के लिए डालर ही नहीं 
					हैं। ''
 
 सिर खुजाते हुए जेम्ज़ ने कहा---''यार, पैसे के साथ -साथ लोगों 
					के दिल भी छोटे हो गए हैं। इंसानियत तो रही नहीं। चिलचिलाती 
					धूप में बैठे भीख माँगते रहे। किसी को दया नहीं आई। पहले काफ़ी 
					पैसे मिल जाते थे..'' उस बस में अधिकतर बेरोज़गार, बेकार, बेघर 
					पिछले स्टाप से ही बैठे हुए थे, वे सब सिर हिला कर जेम्ज़ का 
					साथ देने लगे--'' हाँ-हाँ, बहुत गलत है यह। लोगों को देखना 
					चाहिए...कितनी सख्त मेहनत करते हैं हम।''
 
 ''हमारी स्थिति कोई समझता नहीं। आज दो जगह काम माँगने गया था, 
					काम मिला नहीं। पिछले दो सालों से यही हो रहा है। बस में चढ़ने 
					के लिए भी पैसे चाहिए। कहाँ से पैसा लाऊँ ?'' बस में बैठा माईक 
					रोष में बोला।
 
 ''सरकार को कुछ करना चाहिए, हम जैसे बेरोज़गार , बेघर लोगों के 
					लिए निःशुल्क बसे चलानी चाहिए..।'' जेम्ज़ बोला.
 
 ''अरे सरकार कुछ नहीं करेगी, यू .एस. ए की इकॉनोमी का बुरा हाल 
					है। देखते नहीं लोगों के पास हम गरीबों को देने के लिए पैसे 
					नहीं।'' पीटर बोला।
 
 बातें करते -करते डाउन टाऊन राले के शैल्टर होम के केन्द्रीय 
					ऑफिस का बस स्टाप आ गया, सब लोग यहीं उतर गए। रसोई इसी ऑफिस 
					में है।
 
 शाम होते ही सूप किचन में होमलेस लोग भोजन के लिए इकट्ठे होने 
					शुरू हो जाते हैं, बाद में ये लोग सोने के लिए किसी न किसी 
					शैल्टर होम में जगह पा लेते हैं। इस रसोई घर में शहर के कुछ 
					रेस्टोरेंट अपना बचा हुआ खाना और बहुत से ग्रोसरी स्टोर्स अपनी 
					सब्जियाँ भेजते हैं। स्कूलों में बच्चों को इनकी मदद करना 
					सिखाया जाता है और वे कैन फ़ूड इकठ्ठा करके यहाँ भेजते हैं। 
					निश्चित समय पर यहाँ लंच और डिनर दिया जाता है। इसलिए सब 
					होमलेस समय पर यहाँ खाना खाने पहुँच जाते हैं। इस रसोई में 
					अक्सर कोई न कोई समाज सेवी संस्था के स्वयं सेवी खाना दे जाते 
					हैं, कई बार वे उसी रसोई में खाना बना कर इन लोगों को खिलाते 
					हैं। भारतीय मूल के लोग तो उत्सवों और बच्चों के जन्म दिन पर 
					यहाँ स्वादिष्ट व्यंजन दे जाते हैं।
 
 आज रात्रि के भोजन में स्थानीय संस्था के स्वयं सेवकों ने 
					अमरीकी व्यंजन परोसे--एंजला ने मुँह बनाया--''नो टेस्ट..।'' 
					पीटर ने फिर कहा --''अमरीका ग़रीब हो रहा है। सरकार को कुछ 
					करना चाहिए। मंदी ने खाना भी बेकार कर दिया..'' आस- पास बैठे 
					सभी होमेलेस बोले --'' तुम बिल्कुल सही कह रहे हो 
					दोस्त....बिल्कुल सही।'' स्वयं सेवी चुपचाप खाना परोसते रहे..।
 
 मुफ्त में खाना खा कर जेम्ज़ और पीटर ने अपनी फ़ूड स्टैम्प्स 
					यानि कूपन फिर बचा लिए। अमरीकी सरकार सोचती है कि, ग़रीबी रेखा 
					से नीचे के लोगों को फ़ूड स्टैम्प्स देकर वह उनका भला कर रही 
					है, इससे वे भूखे नहीं रहेंगे और खाना ही खाएँगे, अगर पैसा 
					देंगे तो शराब व सिगरेट खरीद लेंगे, पर निकालने वाले तो यहाँ 
					भी रास्ता निकाल लेते हैं। खाना खाने के बाद वे सोने के लिए 
					शैल्टर होम की ओर चल पड़े.......।
 
 शैल्टर होम के सामने एक लम्बी लाईन लगी है। उसमें तरह -तरह के 
					लोग खड़े हैं। कई, दिनों से नहाए हुए नहीं हैं, गंदे, कुछ 
					नशेड़ी, कुछ सचमुच में समय के हाथों पिटे हुए, कई जो जीवन में 
					काम नहीं करना चाहते, बस सरकारी सेवा का जी भर कर आंनद लेना 
					चाहते हैं, पीटर और जेम्ज़ की तरह। अधिकतर ये लोग उन्मुक्त, 
					बेपरवाह, जीवन की चुनौतियों से परे अपनी दुनिया में डूबे रहते 
					हैं। उदासी, घुटन और बदबू वातावरण में समाई हुई है। पंक्ति में 
					खड़े यूजीन ने अपने अगले वाले साथी को धीरे से बताया- '' 
					ब्रदर, हाईवे ४० के पास हैरिटेज इन् मोटल वाले आधी कीमत पर 
					कूपन ले रहे हैं..।'' उन दोनों ने सुन लिया। एक दूसरे की ओर 
					देखा। दोनों की आँखों में चमक आ गई। बिना बोले वे एक दूसरे की 
					बात समझ गए। लाईन को छोड़ कर वे भाग गए।
 
 आज का दिन अच्छा है उनके लिए, हैरिटेज इन् मोटल के पास वाले बस 
					स्टाप पर रुकने वाली बस आकर सूप किचन के सामने रुक ही रही थी। 
					वे जल्दी से उस में चढ़ गए। कुछ घंटों के बाद होने वाले सुखद 
					अनुभवों की कल्पना से ही उनके रूखे- सूखे चेहरों पर रौनक आ गई। 
					वे हैरिटेज इन् मोटल में गए और अपने कूपन आधे में बेच दिए। कई 
					मोटल वाले फ़ूड स्टैम्प्स आधी कीमत पर ले कर, अपने मोटल के लिए 
					खाद्य सामग्री खरीद लेते हैं। उससे उन्हें काफ़ी बचत हो जाती 
					है।
 
 पैसे गिनते हुए जेम्ज़ ने कहा-''भाई, महँगाई बहुत हो गई है, 
					सस्ती से सस्ती लड़की भी पचास डालर से कम में साथ नहीं चलती, 
					अभी और डालर चाहिए..।''
 
 ''नहीं आज हमें इसी से काम चलाना है, अब और इंतज़ार नहीं 
					होता--'' पीटर बेचैन सा होता हुआ बोला।
 
 मोटल के बाहर से ही उन्होंने फिर डाउन टाऊन राले वाली बस अपने 
					पुश्तैनी घर जाने के लिए पकड़ी। यह घर उनके नाना -नानी का है, 
					जिसमें वे जन्में- पले हैं और अब वह खस्ता हालत में है, किसी 
					के पास उसे ठीक करवाने के लिए पैसे नहीं। इस घर में उनकी दो 
					बहनें अपने बच्चों के साथ रहतीं हैं और बाकी के भाई कभी- कभार 
					इस घर में थोड़ी देर के लिए रुक लेते हैं, पर रहता कोई नहीं, 
					हाँ, वे दोनों अक्सर आते हैं, उनका कुछ सामान पड़ा रहता है 
					यहाँ। माँ तो कई साल पहले इस दुनिया से चली गई।
 
 टैरी नाम की महिला उनकी माँ थी। उसके लिए माँ शब्द सही नहीं, 
					उसे माँ कहना उचित भी नहीं , यूँ कह सकते हैं कि वह बच्चे पैदा 
					करने वाली मशीन थी। माँ क्या होती है, बच्चों को पता नहीं और 
					ममता क्या होती है, टैरी को पता नहीं। बस उसने तो बच्चों को 
					जन्म दिया, ग़रीबी रेखा से नीचे वालों की सरकारी सहायता 
					वेल्फेयर लेने के लिए। हर बच्चे के बाद नए बच्चे के पालन -पोषण 
					हेतु वेल्फेयर से उसे और पैसा मिल जाता था।
 
 उसकी माँ अक्सर गुस्सा होती--''टैरी तुम अब और ख़ाली नहीं 
					बैठोगी, कुछ काम धंधा करो, नहीं तो मैं घर से निकाल दूँगी। हर 
					साल पेट में बच्चा डाल लेती हो। तुझे तो यह भी पता नहीं कि 
					किसका बाप कौन है।''
 टैरी माँ के गले में बाँहें डाल कर कहती- '' माँ तुम मुझे घर 
					से नहीं निकाल सकती, मैं तुम्हारी अकेली संतान हूँ और तुम्हारा 
					वंश बढ़ा रही हूँ। क्या तुम ग्रैंड चिल्ड्रन नहीं चाहती।''
 '' टैरी मुझे नाते-नातियाँ पसन्द हैं। पर तुम कोई काम तो करो। 
					बच्चे हम पालते हैं और तुम सारा दिन पुरुष मित्रों के साथ 
					सिगरेट फूँकती हो और शराब में मस्त रहती हो। रात को तुझे 
					क्लबों से फुर्सत नहीं मिलती। तुझे पता भी है कि बच्चे कैसे पल 
					रहे हैं ? बहुत कामचोर हो गई हो। तुम्हारी हड्डियों में आराम 
					बस गया है। ऐसे कैसे चलेगा? '' माँ झगड़ा करती।
 ''चलेगा माँ..चलेगा देखती रहो। मुझे पता है, बच्चे अच्छे पल 
					रहे हैं, तुम लोग अच्छे नाना नानी हो। '' वह हँस कर कहती '' 
					वैसे मैं काम क्यों करूं? हमारे बज़ुर्गों ने वर्षों इन लोगों 
					की गुलामी की है, अब सरकार का फ़र्ज़ बनता है कि हमारा ध्यान 
					रखे।''
 
 उसने सरकार से अपना ध्यान रखवा लिया और ग्याहरवें बच्चे तक वह 
					आर्थिक रूप से सुरक्षित हो गई। उसके माँ -बाप कुछ बच्चों तक तो 
					खूब लड़ते रहे। फिर उन्होंने भी परिस्थितियों के साथ समझौता कर 
					लिया। आर्थिक सुदृड़ता ने उन्हें चुप करवा दिया। वेल्फेयर के 
					अनुसार पैसा बच्चे के अठारह वर्ष के होने तक दिया जाता है और 
					ऐसे में बच्चों को स्कूल भेजना ज़रूरी होता है। उसने उन्हें 
					स्कूल भेजा, पर वे पढ़ते हैं या नहीं, यह जानना कभी ज़रूरी 
					नहीं समझा। हाई स्कूल किसी ने पास नहीं किया और अठारह वर्ष के 
					होते ही, वे बिना कुछ सीखे स्कूल छोड़ गए।
 
 माँ के स्वभाव, रहन- सहन और आदतों का परिणाम यह निकला कि 
					बेटियाँ माँ के ही नक़्शे क़दमों पर चलती हुईं, रोज़ पुरुष 
					बदलती हैं और तीन -तीन बच्चों की अविवाहिता माँएं बन कर सरकारी 
					भत्ता ले रही हैं। दो बेटे नशा बेचने वाले गिरोह में शामिल हो 
					कर न्यूयार्क चले गए, दो चोरी- डकैती में जेल में हैं, उनका 
					जेल में आना -जाना लगा रहता है। एक बेटा किसी बिल्डर के साथ 
					काम करता है और वह ही सही ढंग का निकला है। एक बेटे ने मैरुआना 
					के पौधे घर के पिछवाड़े में उगा लिए थे और उसे स्कूल के बच्चों 
					को बेचने लगा था। अमेरिका में मैरुआना गैरकानूनी है, सिर्फ 
					कैलिफोर्निया में सरकार ने अत्यधिक पीड़ा के रोगियों के लिए, 
					थोड़ी सी खेती करने और कुछ स्टोरों पर बेचने की इजाज़त दी हुई 
					है। ऍफ़.बी.आई की नारकाटिक्स ब्रांच ने कई दिन उसका पीछा करके, 
					छापा मार कर पकड़ लिया और वह भी जेल में है।
 
 पीटर और जेम्स सबसे छोटे और जुड़वां हैं। दोनों में बहुत 
					दोस्ती है, एक नंबर के पाज़ी हैं। किसी काम में मन नहीं लगता 
					इनका, फ्री में खाना चाहते हैं। माँ की तरह वेल्फेयर का भरपूर 
					फायदा उठा रहे हैं। ज़रूरतें पूरी करने के लिए भीख माँग लेते 
					हैं, पर मेहनत का कोई काम नहीं करना चाहते। बड़े भाई जार्ज ने 
					उन्हें बिल्डर के पास नौकरी दिलवाई, पर वे छोड़-छाड़ कर आ गए 
					कि वहाँ बहुत कठिन काम करना पड़ता है।
 
 '' हमारे शरीर बहुत नाज़ुक हैं, ये भारी -भरकम काम नहीं कर 
					सकते। हम भी इन शरीरों को वैसे ही रखेंगे जैसे ये रहना चाहते 
					हैं। कोई काम नहीं करेंगे।'' बड़ी बेशर्मी से हँसते हुए दोनों 
					ने कहा।
 
 जार्ज चिल्ला पड़ा था--'' इस घर में आप लोग काम क्यों करना 
					नहीं चाहते, काम करने से आप सब कतराते क्यों हैं? क्या तुम 
					लोगों के मन में दूसरों को देख कर कोई उमंग नहीं उठती। उनकी 
					तरह जीने की चाह नहीं होती। सारे डल-डफ्फ़र से बैठे रहते हैं, 
					हरामी सब निकम्में हो गए हैं, निठ्ठले खाली बैठ कर मुफ्त की 
					खाने के आदी हो गए हैं। अबे सालो, मैं तुम दोनों की ज़िन्दगी 
					बदलना चाहता हूँ और तुम हो की इस गन्दगी में पड़े रहना चाहते 
					हो...।''
 '' जहाँ जन्मे- पले वहाँ तुझे गन्दगी लगती है.. छि ..छि .. 
					बड़े ही शर्म की बात है..। यह घर हमें बहुत प्यारा लगता है। 
					तुम जो भी ज़िन्दगी जीना चाहते हो, जियो, हमें इस स्वर्ग को 
					छोड़ने को मजबूर क्यों कर रहे हो। हमें दूसरे लोगों की तरह दो 
					वक्त के खाने के लिए काम कर- कर के मरना- खपना नहीं है। वह तो 
					हमें बिना काम किए ही मिल जाता है।'' ढिठाई से मुँह बनाता हुआ 
					जेम्ज़ बोला था।
 '' कोकरोचिज़ ( तिलचट्टे) तो अपने ऊपर से हटा लो, तुम्हारे बदन 
					खेल का मैदान बने हुए हैं उनके लिए। गधो, थोड़े-बहुत हाथ- पाँव 
					हिला लोगे तो तुम्हारे बदन की नाज़ुकता को कुछ नहीं होगा।''
 '' जार्ज तुम क्यों परेशान होते हो। इस घर में हम सब इकट्ठे 
					रहते हैं। ना वे हमें कुछ कहते हैं ना हम उन्हें।''
 जार्ज की गुस्से और निराशा से आँखें लाल हो गईं थीं --'' ठीक 
					है पड़े रहो इस गटर रुपी स्वर्ग में, गन्दी नाली के कीड़ो 
					..बास्टर्ड..मैं आज अभी इसी वक्त से आप सब को और यह घर छोड़ता 
					हूँ।'' और..... वह चला गया। फिर कभी लौट कर नहीं आया। ना ही 
					उसे किसी ने याद किया। उस दिन के बाद पीटर और जेम्ज़ ने कभी- 
					कभार भीख ज़रूर माँगी, जिसे वे धंधा कहते हैं, पर बाकायदा कोई 
					काम नहीं किया। वे वेल्फेयर लेने लगे, अलग -अलग शेल्टर में 
					सोते हैं, घर में दो बहने और छह बच्चों के साथ सोने की उन्हें 
					असुविधा होती है पर इस स्वर्ग का चक्कर ज़रूर लगा लेते हैं।
 आज भी वे घर आए हैं...
 घर में घुसते ही उन्होंने भाग -भाग कर काम किया। अलमारी में से 
					आयरिश स्प्रिंग साबुन की टिक्की निकाली, जो उन्होंने ख़ास 
					मौकों के लिए सम्भाल कर रखी हुई है, उसे मल -मल कर उन्होंने 
					अपने शरीर की गन्दगी साफ की, राईट गार्ड डीओडोरेंट पूरे बदन पर 
					स्प्रे किया। खूब रगड़ - रगड़ कर दाँत साफ किये। फिर माउथ 
					फ्रेशनर से कुल्ला किया। बहुत दिनों बाद शेव बनाई। साफ -सुथरे 
					अधोवस्त्र पहने। प्रैस किये हुए कपड़े निकाले, जो उन्होंने 
					विशेष रातों के लिए रखे हुए हैं। उन्हें पहन कर उन्होंने अपने 
					आप को शीशे में देखा, मूस लगा कर अपने घुँघराले बाल सैट किये। 
					अंत में फिर ब्लैक सुऐड कलोन की शीशी निकाल कर उन्होंने अपनी 
					बगलों, जांघों और कानों के पीछे उसे लगाया। सज- धज कर तैयार हो 
					कर उन्होंने अपनी सारी चीजें वापिस अलमारी में रख कर ताला 
					लगाया। केमार्ट स्टोर से क्रिसमस के दिनों में सेल पर उन्होंने 
					ये सारी चीजें खरीदी थीं। जिन्हें वे बड़े प्यार से सम्भाल कर, 
					सहेज कर ताले में रखते हैं। पर यह ताला कई बार टूटा भी है, 
					बहनों के बच्चे ताला तोड़ कर इन प्रसाधनों का प्रयोग कर चुकें 
					हैं, गाली- गलौच, लड़ाई -झगड़े के बाद नया ताला लगा दिया जाता 
					है। चाबी लेकर वे जल्दी -जल्दी से बाहर निकले..।
 
 बाहर निकलते ही ये दोनों, सड़क पर आ गए और क्लब की तरफ चल 
					पड़े। दोनों ने पैसे आधे -आधे बाँट कर, अपनी जेबों में रख लिए। 
					राले के डाउन टाऊन के जिस इलाके में इनका घर है, वह इस एरिया 
					की क्लब से ज़्यादा दूर नहीं है। बहुत ही पुराना इलाका है और 
					मकान भी टूटे- फूटे हैं। कई घर थोड़े ठीक कर लिए गए हैं और कई 
					घरों की खिड़कियों के शीशे टूट चुके हैं और उन पर लकड़ी लगा कर 
					ढका गया है और कई घर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं।
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