मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
यू.एस.ए. से इला प्रसाद की कहानी मुआवज़ा


"सब साले काले - पीले हैं!"
श्रुति और इन्द्र की आँखों में सीधा देखते हुए उसने एक जोर का ठहाका लगाया। सामने से आ रहे एक चीनी और एक काले मित्र के अभिवादन पर दी गई प्रतिक्रिया थी यह। वे हँसे, एक नासमझ हँसी, एक खुली, निश्छल हँसी - उसका साथ देने के लिए- बिना यह जाने कि वह कमेन्ट उन्हीं के लिए है। वह चाह कर भी साथ नहीं दे पाई। मुस्करा कर रह गई। एक उदास मुस्कराहट, जो जबरन ओठों के कोरों तक फैलती है और आँखों में कोई अहसास नहीं उपजता। उसकी हँसी भी तो कैसी थी! अन्दर का सारा खालीपन मूर्त हो उठा था एकबारगी। मैनहट्टन में सब-वे के उस सूने प्लेटफ़ार्म पर वे खड़े थे जहाँ से उस दिन कोई ट्रेन नहीं जानी थी। वह यही समझा रहा था उन्हें। सप्ताहांत में ट्रेनों के रूट बदल जाते हैं और वे दोनों घूम-फिर कर उसी प्लेटफ़ार्म पर वापस आ गए थे, जहाँ से कुछ ही मिनट पहले उसने उन्हें वापस भेजा था।

सम्मेलन तो सिर्फ़ तीन दिनों का था! लौटते वक्त सारा ने हाथ पकड़ कर रोका था - "जा रही है। जरा मेरी डायरी में अपने कुछ अनुभव लिख जा।"
"अनुभव को पकने और जमने में समय लगता है, दोस्त।"
"अच्छा जा, बाद में बतलाना।"

पृष्ठ : . . .

आगे-

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।