उस
सुनसान जगह पर एक मित्सुबीशी ग्रेंडीस गाडी पहले से ही मौजूद
थी, लेकिन अब उस गाडी का हॉर्न बजा तथा बत्तियाँ जल पड़ीं।
हासन मुझे उस गाड़ी की दिशा में ले गया। गाडी के अंदर एक अरब
आदमी, शायद ३०-३२ उम्र का होगा, मौजूद था। उसने सफेद कंदूरा
(अरबी पोशाक) पहन रखा था। गाडी की पिछली सीट पर एक लडकी ठंड
में सिकुडाई हुई अवस्था में बैठी थी।
''रशिद, तुम उतर जाओ, गाडी मुझे दे दो। दोनों बकरे सीधे और नेक
हैं, फिक्र की कोई बात नहीं।''
वहीं पर एक मोटर साइकल थी, जिसपर सवार हो राशिद चला गया। अब हम
थे, ड्राइविंग सीट पर हासन, बगलवाली सीट पर मैं और पिछली सीट
पर वह लडकी। हासन ने उसे सख्ती से कहा, ''हाय, तुम सुंदर हो!''
लडकी ने अपनी आँखें बंद कर ली और शायद ईश्वर से प्रार्थना करने
लगी। हे ऊपरवाले, जल्दी उठा ले, मरते वक्त इतनी परेशानी क्यों,
तकलीफ क्यों! तरस खा, कुछ तो तरस खा। मैं रास्ते की दूरी नाप
रहा था। अगर बच निकलने का मौका मिला तो वापसी के रास्ते का पता
होना आवश्यक है। थोडी देर के लिए मैंने भी अपनी आँखें बंद कर
ली और सोचने लगा।
इतने में गाडी आकर एक बडे गेट पर रुकी। भरपूर रोशनी हमारा
स्वागत कर रही थी। मेन गेट खुला और हम अंदर पहुँचे तो लगा
इंसानों की बस्ती में हमने कदम रखा है। खजूर के बगीचे, हरी-भरी
घास, फूल-पत्ते और उन पर ओस की हलकी-हलकी बूँदे। इन सभी के बीच
था एक छोटा-सा पर पुरानी इस्लामी वास्तुवाला देहाती बंगला।
हासन ने गाडी को उस बंगले के पीछे लाकर खड़ा किया। मुझसे उतरने
को कहा। मैं उतरा देखा तो सामने था एक तैरने का तालाब। सफेद,
लाल, काले, मोटी-मोटी खालवाले चूहे इधर-उधर दौड़ रहे थे। डर के
मारे मेरे पूरे बदन में सनसनी फैल गई और मैं मेनगेट की ओर
भागने लगा। अपनी जेब से छोटी-सी रिवॉल्वर निकालकर हासन ने हवा
में गोलीबारी की और अंग्रेजी में बोला, '' मज़ाक बंद करो, मुझे
मजाक पसंद नहीं है।"
मैं
जहाँ था वहीं रुक गया। उसने गाडी का पिछला दरवाजा खोला और उस
लडकी को बाहर निकालकर अपनी बाँह के अंदर दबोच लिया, लडकी
अब रोने लगी थी। वह सर्दी के मारे काँप रही थी, सिसकियाँ
दे-देकर रो रही थी। गला सूख गया था। मैं हैरान था, सोच रहा था
कि वह कैसे जिंदा थी अबतक इस हालत में जबकि मेरे सारे होश उड़
गए थे उसकी और अपनी हालत देखकर। हमें लेकर हासन ने बंगले के
मुख्य द्वार पर घंटी बजाई। दरवाजा खुला। काले रंग का अबाया
(अरबी गाउन) पहने सिर से पाँव तक ढकी हुई एक खूबसूरत हसीना ने
दरवाजा खोला। लंबा कद सुडौल बदन, सुंदर आँखें नाक-नक्श।
हासन ने कहा, ''सकीना, ये लो आज की कमाई- वाहिद राजुल (एक
आदमी) वाहिद बेंत (एक लडकी) और ये पुलुस (पैसे) सब तुम्हारे
नाम, तुम्हारे हवाले।
सकीना पहले तो हँस पडी, ''वाह खूब, बहुत खूब, खाने-पीने का
सामान और सामान हवस का, वासना का, तुम्हारा तो दिन बन गया
हासन, पर मेरा क्या? मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ?'' कहकर वह
चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगी। इन सवालों के जवाब हासन के पास नहीं
थे। उसने सकीना को हुक्म देते हुए कहा, ''जाओ तीन कप कॉफी लाओ,
जल्दी। और सुनो बिस्तर भी तैयार करो।''
सकीना ने नकारात्मक जवाब देते हुए कहा, ''कब तक, आखिर कब तक ये
दरिंदगी का गंदा खेल तू खेलेगा? अरे इन बेचारों ने क्या बिगाडा
है तेरा?''
हासन ने कड़ककर कहा, ''जल्दी कर, वर्ना गोली दाग दूँगा तेरे
सीने में।'' सकीना अंदर चली गई रसोई-घर की ओर पर जाते-जाते
बडबडा रही थी वह- ''मरेगा, तू मरेगा, कुत्ते की मौत मरेगा।
अल्लाह रहम कर मुझपर। मुझे छुटकारा दे इस नर्क से।'' हासन भी
अंदर चला गया।
कुछ
देर के लिए मैं और वह लड़की ही उस कमरे में थे। मैंने, वह
बत्तानिया (कंबल) जो मुझे हासन ने ओढने को दी थी, उस लड़की पर
ओढा दी। लड़की की आँखों में अचानक एक जिंदगी की लहर दौड गई।
मैंने कमरे का निरीक्षण किया। बडे-बडे दिग्गज शेखों की
तस्वीरें दीवारों पर मौजूद थी। मरे हुए, शिकार हुए बाजों की,
हिरनों की आदि जानवरों की अनेक खालें, मुखौटे-चेहरे टँगे हुए
थे। लडकी एकटक मुझे देखी जा रही थी। मुझसे पूछ बैठी, ''अंकल,
आप इंडियन हैं? मैंने कहा, ''हाँ बेटा और आप?"
''मैं ज़रीना, पाकिस्तान से।''
''यहाँ, कहाँ रहती हो?''
''शारजहा में।''
''ये दरिंदा तुम्हें कहाँ मिला?''
उसने कहा, ''अंकल, मैं अपनी कुछ सहेलियों के साथ घूमने निकली
थी। लेकिन अकेली छूट गई। चलते चलते न जाने कहाँ पहुँच गई। लंबी
सड़क और इधर उधर बहुत कम घर। मैं थक गई थी और डर के कारण रो भी
रही थी। उसी समय यह व्यक्ति कार लेकर निकला और बोला कि कार में
आ जाओ मैं तुम्हें घर छोड़ दूँगा। लेकिन उसने मेरा पर्स और
मोबाइल छीन लिया। लड़की फिर से रोने लगी थी। मैंने ध्यान से
देखा तो लड़की बहुत कम उम्र की मालूम होती थी। इतने में हासन
आया और उसके पीछे थी सकीना कॉफी के तीन प्याले लेकर। हम तीनों
ने कॉफी पी। सकीना अब बाहर की तरफ चली गई थी। कॉफी पीने के बाद
क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं क्योंकि मैं बेहोश हो गया था।
जब
मुझे होश आया तो मैं अपनी गाडी की पिछली सीट पर लेटा हुआ था।
जोसेफ तेज-रफ्तार से गाडी भगा रहा था। मैंने होश में आते ही
जोसेफ को पुकारा। उसने गाडी की गति धीमी कर एक रेस्तराँ के
सामने लाकर खडी कर दी और पिछली सीट का दरवाजा खोलकर मुझसे
पूछा, ''सर, आप ठीक तो हैं ना?''
मैंने कहा, ''हाँ जोसेफ़, जान बच गई।''
मगर
मैं बचा कैसे और वह लडकी?
जोसेफ ने कहा, ''सर कुछ मत पूछिए। इमारात पंप पर आपकी
प्रतीक्षा करते-करते मैं थक गया था। आपका मोबाइल फोन भी बंद
था। मैं घबरा गया था। पहले तो मुझे शक हुआ फिर शक यकीन में बदल
गया- जरूर कोई हादसा हुआ है आपके साथ वर्ना सर लेट होना तो
आपकी फितरत में नहीं है। मैंने फुजैराह पुलिस स्टेशन पर शिकायत
दर्ज कराई तो पता चला कि शारजाह की कोई लड़की भी गायब है।
सीआईडी और पुलिस की मदद से मैं वहाँ पहुँच गया। वहाँ पता चला
कि उस लड़की पर बलात्कार कर हासन ने उसे खंजर मार दिया था।
हासन और उसका भाई राशिद दोनों ही पकडे गए हैं और अब जेल में
बंद हैं। सकीना वहाँ से भाग खडी हुई थी और लापता थी। मैंने
फुर्सत की साँस ली तो जोसेफ पूछ बैठा, ''सर कॉफी पिओगे?''
मैंने कहा, ''कॉफी नहीं सुलेमानी चाय बिना शक्कर, बिना दूध के।
हो सके तो नींबू मार के। मेरा सिर भारी था और आँखें थकी हुई।
मैं
गाडी से नीचे उतरा। देखा सुबह हो गई थी। कलाई पर घडी नहीं थी,
गले की चेन गायब थी। अंगूठी भी खो चुका था मैं।
लगभग आधे घंटे का सफर बाकी था। हम दुबई के करीब थे। दुबई
पहुँचे तो फुजैराह को भुलाने की बहुत कोशिश की। जब भी फुजैराह
जाने की बात होती तो मैं टाल देता। देखते ही देखते पाँच साल
गुजर गए। और आज कंपनी के एक प्रोजेक्ट की वजह से फुजैराह आना
पडा। जोसेफ भी मेरे साथ था। उसी जगह पर जोसेफ ने गाडी
रोकी। आज गाडी बिगडी नहीं थी, आज बरसात नहीं थी, शाम का वक्त
था। मैं गाडी से उतरा, जोसेफ भी उतरा। थोडी देर तक चलने के बाद
अउद की आवाज सुनाई दी। एक जानी-पहचानी धुन। किसी लड़की की
आवाज थी। बोल वही थे-
हर कोई चाहता है अपने जीवन में
एक पल हो प्यार का, एक प्यार का पल हो
मैंने उस युवती से पूछा, ''तुम्हारा नाम?''
वह बोली, ''सकीना...''
हाँ वह वही सकीना थी, हासन की बीवी
मैंने उसे पहचाना था, उसने नहीं।
मैंने जोसेफ से कहा, ''वापस चलो जोसेफ़''
और हम वापस लौट आए।
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