“मैं क्या कहती सब कुछ तो उसने पहले से ही निश्चित कर रखा था।
झगड़ती भी तो क्या होता? क्या वो रुक जाता? और यदि वो रुक भी
जाता तो क्या मेरा हो पता। नहीं कभी नहीं, रिश्ते टूट चुके थे
अब तो ठहरे पानी की तरह थे यदि उनको साफ न किया गया तो बदबू के
सिवाय कुछ भी नहीं रहेगा। एक बात जरूर साल रही थी कि यही वो
व्यक्ति था जिससे मैंने इतना टूट के प्यार किया था और उस प्यार
की कीमत चन्द डॉलर जो वो मुझे मुआवजे के तौर पर दे रहा था।
क्या इतने बड़े दर्द की दवा ये मुआवजा है? मैं इन्हीं अनबुझे
सवालों का जवाब ढूँढती रही और ऐडम कब चला गया पता भी न चला। ओह
जीजस डेविड को क्या कहूँगी मैं?"
“शायद बच्चों को हम जितना छोटा
समझते है वो उतने होते नहीं क्यों कि डेविड ने मुझसे कभी कुछ
नहीं पूछा और डेविड का हाथ थामे मैं जीवन की पथरीली राहों को
सुगम और सरल बना कर जीने लगी।“
इतनी कठोर सी दिखने वाली यह महिला कितनी गहरी सोच और ऊँचे
विचारों की स्वामिनी थी। यहाँ विदेश में तो सुना था की तलाक
देना आम बात है कोई किसी की चिंता नहीं करता है पर एमी को
देखकर लगता था कि शायद जो सुना जाता है या कभी-कभी जो देखा भी
जाता है, सच नहीं होता है। एमी प्यार पर कितनी गहरी सोच रखती
थी। सच प्यार को बाँधकर नहीं रखा जा सकता वो तो बहती हवा है
झरता पानी है जो बहता रहे तो ठीक यदि आप का है वो प्यार तो आप
के पास लौट कर आएगा वरना समझ लो वो कभी आप का था ही नहीं सच है
प्यार और पाप में कुछ ज्यादा फर्क नहीं होता। जो एमी ने किया
वो तो प्यार था पर जो एडम ने किया। क्या प्यार था या पाप था? मैं
इसी सोच में थी और मेरी तंद्रा तब टूटी जब एमी ने पूछा "कुछ
पियोगी क्या।"
"नहीं कुछ नहीं" मैंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
एमी उठ के चली गई शायद शीबा ने कुछ माँगा था।
मैंने पास रखी फोटो उठा ली और ऐडम के साथ मुस्कुराते बच्चे को
देखने लगी। माँ पिता में तनाव का असर उनके बच्चे पर कितना
पड़ता है ये कोई क्यों नहीं सोचता।
एमी लौटी तो उसके हाथ में कोक की बोतल थी और दो गिलास थे उसने
एक गिलास में कोक डाली और शीबा की ओर बढ़ा दिया, दूसरा गिलास
खुद लेकर धीरे-धीरे पीने लगी। "क्या देख रही हो स्नेह, मेरा
बेटा?"
"हाँ एमी देख रही हूँ कितना प्यारा बच्चा है और ऐडम को एक बार
भी इसका ख्याल नहीं आया?"
'मेरी तो बस यही दुनिया है, जीवन से मुझको कुछ नहीं चाहिए था पर
जितना मैं ईश्वर पर विश्वास करती जाती हूँ वो उतना ही मेरी
परीक्षा लेता जाता है। "
"ऐसा क्यों कह रही हो?"
"जानना चाहती हो तो सुनो नवम्बर का महिना था। थैंक्स गिविंग की
छुटियाँ थी डेविड कहीं घूमने चलने को कह रहा था पर लैब में
बहुत काम था मैं जा नहीं सकती थी डेविड थोड़ा अपसेट था पर क्या
करती। शाम को हम जरूर घर से बाहर जाते यदि न जा पाएँ तो डेविड
अपने एक मित्र से साथ यहीं पार्किंग में खेलता और मैं किनारे
बैठी उनको खेलते देखती।
“उस दिन भी वह खेल रहा था कि एक कार तेजी से अपार्टमेन्ट में
घुसी। चीं...ई...ई... की एक जोरदार आवाज हुई साथ में सुनाई दी
डेविड की दर्द भरी चीख। जब तक मैं कुछ कर पाती, मैंने देखा कि
मेरा बच्चा कार के नीचे था और उसके दोनों पैरों पर कार के पहिए
थे। एक पल के लिए तो मुझे लगा कि मेरी दुनिया अँधेरी हो गई।
उसकी वो चीख आज भी मुझे सुनाई देती है। मैं सामने खड़ी थी और
मेरा बच्चा दर्द में छटपटा रहा था। उस के खून से पास की ज़मीन
लाल होने लगी थी। मैंने अपनी हिम्मत बटोरी और मैंने ९११ कॉल
किया, पुलिस आई, उसने कार को उठाया तो ही डेविड को मैं निकाल
पाई। उस के पैर बुरी तरह घायल हो चुके थे। आनन फानन में
अम्बुलेंस आ गई और हम उसको लेकर अस्पताल भागे। उसको खून चढाया
गया और पैरों पर पट्टी की गई पर बाद में एक्स रे से पता चला कि
उस की हड्डिया बुरी तरह टूट चुकी हैं।
“डाक्टर ने उसको विशेषज्ञ के पास ले जाने को कहा। ओक्लाहोमा
सिटी में एक ओर्थोपरडिक्स से समय लेकर मैं उनके पास पहुँची सब
देखने के बाद उसने कहा कोई आशा नहीं है पैर बिल्कुल बेकार हो
चुके है अब इन में कोई जान नहीं है मैं कोशिश कर सकता हूँ
पर... डाक्टर की लाख कोशिश के बाद भी डेविड के पैरों को जान
नहीं लौटाई जा सकी। सॉकर का इतना अच्छा खिलाड़ी मेरा बेटा अब
कभी चल भी नहीं पाएगा, यह सोचकर मैं उद्विग्न हो उठी। जिस
व्यक्ति ने एक्सीडेंट किया था उसको अदालत ले जाया गया। उसे
सजा मिली और मुझे मिला मेरा मुआवजा। मेरा दिल चीख उठा जब ऐडम
छोड़ गया उसने भी मुआवजा दिया आज मेरे बेटे का पूरा जीवन तबाह
हो गया और फिर वही मुआवजा! क्या पैसे देकर हर उत्तरदायित्व से
मुक्त हुआ जा सकता है? कुछ भी करो और चन्द पैसे दे के छुटकारा
पा लो। क्या ये मुआवज़ा मेरा प्यार लौटा सकता था, क्या वह मेरे
बेटे के पैरों की शक्ति वापस दे सकता था? इस मुआवजा शब्द से
नफरत सी हो गई है मुझे।" उसकी आँखें छलक उठीं।
शीबा और मैं निशब्द से एक दूसरे को देख रहे थे। कमरे में दर्द
के अलावा कुछ नहीं था पीड़ा की रेखाएँ एमी के चेहरे पर साफ़ दिख
रही थीं।
आज समझ आया कि वो बच्चों को पार्किंग में खेलने से क्यों मना
करती थी। उसके लिए कहे गए अपशब्द और गलत भावनाओं से आज मैं
शर्मिंदा हो रही थी। एमी ने यहाँ की औरतों के बारे में मेरी
धारणा को गलत साबित कर दिया था दया, ममता, त्याग सारी भावनाएँ
तो थीं एमी में। इसके जैसे बहुत से लोग होंगे यहाँ अमेरिका
में। बिना मिले, बिना जाने, किसी भी जगह और वहाँ के लोगों के
बारे में धारणा बना लेना कितना ग़लत होता है आज जाना।
मैं और शीबा जाने के लिए उठे। बिना कुछ कहे हम बाहर आए। एमी
दरवाजे पर खड़ी थी पता नहीं मुझे क्या हुआ मैं लौटी और एमी को
गले लगा लिया। एमी और मैं अब बहुत अच्छे दोस्त हैं। अक्सर शाम
को जब सूरज ढलने को होता है और एमी काम से लौट चुकी होती है तो
हम सब यहीं सामने के पार्क में खेलने जाते हैं। डेविड भी अपनी
व्हील चेयर पर बैठकर देर तक मेरे बच्चों के साथ खेलता रहता। एक
शाम हम सब यहीं पार्क में बैठे थे, अचानक हमने देखा कि हमारे
अपार्टमेन्ट की पार्किंग में कुछ बच्चे खेल रहे हैं। मैं कुछ
कहती, उस से पहले ही शीबा ने कहा, ये हमारे नए पड़ोसी हैं।
मैंने और एमी ने एक दूसरे को देखा और पार्किंग की ओर चल दिए। |