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जाने ऐसी कितनी कहानियों से रानी गुज़र चुकी थी। अब तो उसको एक
ही धुन थी – शम्मो की शादी! बाजी रास्ते से हटे तो उसका काम
बने! रानी ने फट से शम्मो की बातें शुरू कर दीं, "बाजी के
नक़्श बहुत तीखे हैं, रंग खुलता हुआ साँवला है, लम्बी और पतली
हैं मेरी बाजी, सिलाई बहुत अच्छी करती हैं – खाना भी बहुत
स्वाद पकाती हैं! मेरे इकलौते भाई को भी उसी ने पाला है –
बच्चे अच्छे पाल लेती है। "
अंकल जी तो काली छोटी छोटी चमकती आँखों, भरे भरे मोटे मोटे
होंठ और काले काले बालों में उलझ गए थे पर वह भी तजुरबेक़ार
थे, "तुम्हारी बाजी की... उम्र क्या होगी भला ? "
"यही कोई पच्चीस साल। "
"शादी क्यों नहीं हुई अभी तक ? " डूबती हुई आवाज़ अंकल के हलक
से बाहर आई।
"अरे अंकल, अगर उसकी शादी हो जाती तो फिर भाई की देखभाल कौन
करता ? "
"भाई कितना बड़ा है ? "
"बीस का होगा ? "
"क्या करता है ? "
"बहुत अच्छे लोगों की सोहबत में पड़ गया है। उसे पढ़ा रहे हैं
और ऊपर से खर्च करने को पैसे भी देते हैं। मां.. उसके लाए
पैसों से ही हमारा दहेज बना रही है।...बाजी के लिए चार ही दिन
पहले टीन का चमकता हुआ संदूक भी आ गया है।... भाई जब पैसे
लाएगा, तो बर्तन ख़रीदेगी मां। " मिनटों में रानी ने अपनी
कैंचीदार ज़बान से घर की तमाम पोल खोल दी ; और अंकल जी को ग़ौर
से देखती रही कि कहीं खिसक न जाएँ, बदल न जाएँ। अंकल जी ने
बाजी की उम्र पर ऐतराज़ करते हुए दूसरी शादी कर लेने का अहसान
रानी के कंधों पर डाल दिया। बहुत दूर की सोच ली थी अंकल जी ने
– शादी के बाद रानी का आना जाना भी तो लगा रहेगा – कभी न कभी
तो पकड़ में आ ही जाएगी। आंटी जी को तो जैसे भूल ही गये थे।
रानी ख़ुद हैरान थी कि आंटी जी को कैसे समझाएँगे... क्या
बताएगे? ... क्या ये सचमुच की शादी करेंगे भी या यों ही कह रहे
हैं। वह बेचैन थी अम्मा को यह ख़ुशख़बरी सुनाने को... मगर
कहेगी क्या? घबरा कर बोली, "अंकल जी, आप अम्मा से ख़ुद ही बात
कर लीजिये न... !"
अंकल जी की आवाज़ जैसे किसी गहरे कुंएँ में से बाहर आई,
"अच्छा! " उन्होंने कह तो दिया, परन्तु लगा जैसे कुएँ में
झांकते हुए गहराई से आवाज़ गूँज कर बार बार कानों से टकरा रही
है, और पानी में खिचड़ी बाल, चेहरे की गहरी लकीरें भी नज़र आ
रही हैं। रंग अपने चेहरे का दिखाई नहीं दे रहा था क्यों कि कुएँ
के अंधेरे में घुलमिल गया था।
रानी को आंटी जी पर रहम आने लगा, "अंकल जी फिर आंटी जी का क्या
होगा? "
"अरे होना क्या है, पहली बीवी के तमाम हक़ तो उन्हें मिलेंगे
ही।"
"तो फिर बाजी... ? "
वह बात पूरी भी नही कर पाई थी कि अंकल जी ने ऐसे सिर को लहराया
कि उनके बालों के चमकते हुए सिर में लगे तेल से रानी की आंखे
चौंधिया गईं। रानी मुस्कुरा दी। अंकल जी शरमा गए। माथे पर आए
पसीने को रुमाल निकाल कर पोंछने लगे। रानी को जल्दी पड़ी थी
मां को ख़ुशखबरी सुनाने की। आख़िर उसने बाजी के लिये वर ढूँढ
ही लिया। जी तो चाह रहा था कि अम्मा से कहे, "बाजी के लिये
लड़का ढूँढ लिया है! " अंकल जी चाहे जैसे हैं आख़िर हैं तो
इन्सान का बच्चा। अब यह अलग बात है कि अंकल जी अपने बच्चों के
घर भी बसा चुके हैं।
आज बहुत दिनों बाद मां के मुरझाए चेहरे और सूखी आंखों में चमक
महसूस हुई। मां अंकल जी से मिलने को बेचैन सी थी। वह चाह रही
थी कि शम्मो आज जल्दी सो जाए तो वह रानी से पूरी कथा सुन सके।
अगर शम्मो ने साफ़ मना कर दिया तो मुश्किल हो जाएगी। किन्तु
शम्मो आज किसी और वजह से परेशान है, "अम्मा, मुझे नहीं पसंद
भैया का व्यवहार। अचानक इतनी देर रात तक ग़ायब रहने लगा है।
ठीक है लोग अच्छे हैं पैसे भी देते हैं, मगर मां परिवार को
भुला तो नहीं देना चाहिये न! "
अम्मा उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं देती। उसको तो जल्दी पड़ी
है कि शम्मो सो जाए तो वह रानी से कानाफूसी शुरू कर सके। तीनों
छोटी लड़कियाँ अपने हालात से बेख़बर पड़ी सो रही थीं। सोने में
हँसती भी थीं और रोती भी। अभी रानी की तरह उनको फ़िक्र नहीं
होती थी हाथ पीले कराने की। बस एक ही तमन्ना थी – अच्छा पहनने
को मिल जाए और पेट भर खाना नसीब हो जाए।
अम्मा ने मौक़ा ढूंढ कर रानी से अंकल जी के बारे में मालूम
किया और पेशानी की लकीरें कुछ और गहरी हो गईं। सोच कर बोलीं,
"अगर अलग घर ले कर रखें तो क्या बुरा है? बेचारी शम्मो कब तक
झिलंगे पलंग की बाँध तोड़ती रहेगी। शम्मो निकले तो तेरा रास्ता
खुले। मैं भला कब तक बैठी रखवाली करती रहूँगी जवान बेटियों
की?... तुम बहने अपने अपने घर जाओ तो बहू घर लाने की सोचूँ।
... और फिर नये रिश्ते बनते हैं तो नये नये चेहरे भी सामने
दिखाई देने लगते हैं। अब तो गुड्डू भी जवान है, भला कब तक
बहनों की ख़िदमत करता रहेगा बेचारा।"
"कैसी ख़िदमत! ", सोच रही थी रानी। कल तक तो उसे गुसलख़ाने
जाने की तमीज़ नहीं थी। बस दो सालों से ही तो कहीं से पैसे
लाने लगा है।.. वैसे अजीब सा बद-तहज़ीब भी हो गया है। जब देखो
बहनों को भाषण देना शुरू कर देता है। अम्मा ख़ुश है। उनका बेटा
कमाऊ जो हो गया है। "रहने दो अम्मा, अभी तक किताबें कहाँ ठीक
से पढ़ पाता है।" रानी बीच में टपक ही पड़ी। अम्मा भला गुड्डू
के विरुद्ध कहाँ कुछ सुन सकती थीं। बस एक हत्थड़ पड़ा रानी की
पीठ पर – चटपटा सा!
अंकल जी की बेचैनी उनके नियन्त्रण से बाहर होती जा रही थी।
शम्मो ने भी हाँ कर दी थी। वह भी जीवन की पगडंडी बदलने को
तैयार थी। थक गई थी अपनी बदरंग ज़िन्दगी से – बस एक ही काम था,
सेवा, सेवा, सेवा........
घर में अचनाक उजाला फैल गया था। इसका दुःख किसी को नहीं था कि
उन सबका धयान रखने वाली बहन अपने से दोगुनी उम्र वाले अंकल जी
की आंटी नम्बर दो बनने जा रही थी। अभी से सोचा जाने लगा कि
शम्मो के पलंग पर कौन सोयेगा।
अम्मा को भी यह ख़्याल नहीं आया था कि घर का चूल्हा चौका,
सिलाई बुनाई, सफ़ाई धुलाई और टूटे हुए ट्रांज़िस्टर से घर में
संगीत का वातावरण कौन बनाएगा। शम्मो की साँवली सलोनी रंगत, घने
काले बाल, बड़ी बड़ी सोचती आँखें – सब कुछ यहाँ इस छोटी
चार-दीवारी के घर से उठ कर 'अंकल जी' के आँगन में जा बसेगी।
'अंकल जी' को जवानी भी मिलेगी और एक ट्रेंड नौकरानी भी। एक
मज़बूत बदन नौकरानी जो सोचती अधिक है और बोलती कम।
शम्मो का किसी को भी ध्यान नहीं आया कि उसके दिल के भीतर क्या
कुछ घटित हो रहा है। उसे सबसे अधिक चिन्ता अपने पुत्र-समान भाई
की हो रही थी। चिन्ता तो उसके जीवन का एक अहम हिस्सा थी। अगर
शम्मो इस घर को मां बन कर न सम्भालती, तो अम्मा तो बस बच्चे
पैदा करने की मशीन ही बनी रहती। वो तो ऊपर वाले का भला हो
जिसने अब्बा को याद कर लिया।
शम्मो गुड्डू के लिये बेचैन रहती। जब से बाहर निकलना शुरू किया
है, पैसे को कमाकर लाने लगा है। ईमान भी पुख़्ता हो गया है।
बहनों पर नज़र रखने लगा है – ख़ास तौर पर रानी की चंचलता पर।
शम्मो की शादी के भी पक्ष मे था, "तो क्या हुआ अगर अंकलजी की
दूसरी पत्नी बन रही है। इसकी तो पूरी इजाज़त है हमारे मज़हब
में।" शम्मो हैरान! जिस बच्चे को अपने हाथो से खिलाया, नहलाया,
धुलाया, समझाया आज वही उसकी क़िस्मत का फ़ैसला करने बैठ गया
क्यों कि मज़हबी हो गया था।
गुड्डू ने शम्मो के हाथ में रुपयों की गड्डी देते हुए कहा,
"बाजी, यह सारा पैसा सिर्फ़ शादी के कामों में ही ख़र्च
होगा।.. हाँ मैं आज रात ज़रा घर आने में लेट हो जाऊँगा।"
शम्मो ने अपने जीवन में कभी इतने रुपए हाथ में नहीं पकड़े थे।
उस नोटों की गड्डी का स्पर्श ही उसको 'अंकल जी' के आँगन में ले
उड़ा। दुल्हन बन गई वह। अपनी आखों में आप ही अपने को 'अंकल जी'
की बाहों में समर्पित कर दिया। बार बार सोचती कि वह रुपए अम्मा
के हाथों में दे दे या सिर्फ़ शादी के कामों के लिए रख ले।
सोचते सोचते आँख लग गई और आज वही झिलंगा पलंग उसके लिये दुल्हन
की सेज बन गया।
सारी रात दुल्हन की सेज पर पड़ी शम्मो आज सूरज चढ़ने के बाद
जागी तो घर में सभी चलते फिरते नज़र आए। रानी सवेरे ही अपनी
इंस्पेक्शन ड्यूटी निभाने जा चुकी थी। शम्मो सोच रही थी - काश!
मैं भी रानी की तरह दूसरे नम्बर पर जन्म लेती तो मेरा जीवन भी
ऐसा चंचल, लापरवाह सा होता। रानी कितनी भाग्यवान है उस पर कोई
रोक टोक नहीं ; जो चाहे जैसा चाहे वही हो जाता है। रानी है भी
तो इतनी प्यारी बहन। और फिर आज उसी के कारण मेरा भी तो घर बसने
वाला है। मैं दुल्हन बनूंगी... अंकल जी के आँगन में जा
बसूंगी... साफ़ सुथरा घर होगा मेरा.... सबको वहीं बुला कर मिल
लिया करूँगी... अंकल जी के पास, उन्हीं के साथ, उन्हीं के
चरणों में जीवन बिता दूंगी... बस।
आज शम्मो का घर के काम में दिल नहीं लग रहा। बेदिली से रसोई
में काम कर रही है। हर आहट पर चौंक चौंक जाती है। कभी
मुस्कुराती है तो कभी पेशानी पर बल से पड़ जाते हैं। झुंझला कर
छलनी हुई ओढ़नी सिर पर खींच कर डाल लेती है। सोचने लगती है...
शरमा जाती है... जब रसोई में अंकल जी के लिए नाश्ता बनाएगी तो
वह स्वयं आकर रसोई में उसका हाथ बंटाएँगे। हाथ पकड़ कर कमरे
में चलने को कहेंगे... सारा काम छोड़ कर उनसे लिपट जाएगी....
उसके हाथ में पकड़ी पतीली धड़ाम से गिरती है और जैसे सारे
बर्तन इकट्ठा चिल्लाने लगते हैं... शोर मचाने लगते हैं।...
क्या हुआ ?... क्या हुआ ?... शम्मो शरमा जाती है... कैसे बताए
कि वह उनकी बाहों में गई और यह हादसा हो गया।
दरवाज़े पर पड़ती थाप सबको चौकन्ना कर देती है। अम्मा जानती है
कौन होगा। अंकल को देखने की चाह में जल्दी से दरवाज़ा खोलती
है। कुछ समझ में नहीं आता। पलट कर रसोई की तरफ़ देखती है।
शम्मो तो वहीं खड़ी है। फिर अंकल जी के साथ घूंघट काढे़ कौन
खड़ी है ? अंकल जी बोस्की का कुर्ता और सफ़ेद पाजामा पहने सहन
के बीचो बीच आ खड़े होते हैं... पसीने से सराबोर... घबराई
आवाज़ में अम्मा से आशीर्वाद देने को कहते हैं।
हमेशा की तरह मां कुछ भी सोच नहीं पा रही। शम्मो सब समझ जाती
है। एक बार फिर वही अम्मा की ड्यूटी अंजाम देती है। घूंघट उठा
कर रानी के सिर पर हाथ फेरते हुए घुटी आवाज़ में कहती है,
“हमेशा ख़ुश रहो। ” |