मनसा के बस से उतरते ही इंदु ने गरमजोशी से उसे बाहों में भर
लिया। फिर अपने से ज़रा अलग खड़ी कर के ऊपर से नीचे तक मीठा
मुआईना करते हुए बोली,
"क्यों भाई मेरी पहाड़ी नरगिस। तुझ पर तो शादी का कोई रंग ही
नहीं चढ़ा! बस के सफ़र से थक गई है क्या? या फिर अभी से
मियाँ जी से बिछड कर कुम्हला रही है? हमें तो प्रिंसली
प्रोटोकोल नहीं आता वरना तुम्हारे कुँवर साहब हमारी होली की
दावत नामंजू़र ना करते।
मनसा ने हाथ बढ़ा कर एक अँगुली के इशारे से इंदु
को चुप करने के लिए कहा और हाथ जोड़ कर तेज को नमस्ते की।
"तेज यही हैं मेरी मिस्टीरियस रूममेट मनसा।" इंदु
ने परिचय कराया। "रात को पढ़ती थी, दिन में सोचती रहती थी कि रात को क्या पढ़ना है।
हर काम ऐसे सलीके से करती है कि मजाल है आज तक इनके हाथ से उँड़ेली चाय की केतली
में से कभी एक कतरा भी प्याली से बाहर कहीं और छलकने की जुर्रत करता हो। माँ-पापा
तो इतने कायल हैं इसके कि विनोद के लिए मुँह माँगा था। मगर इन्हें न जाने फौजियों
से कैसा परहेज़ है. . ."
"इट इज़ सेर्टनली ए ग्रेट लॉस फॉर दी आर्मी," तेज ने शालीनता से कहा और मनसा के
दोनों बैग उठा लिए,
"चलिए वहाँ वेटिंग रूम के पास खड़े होते हैं। केहर वहीं से लेगा हमें।"
इंदु बोलती गई।
"तुम्हारे आने से तो बस खूब रंग जमेगा कुँवरानी साहिबा। देयर इज़ सो मच टू कैच अप!
एक दूसरे को दुल्हन बनी देखने की हसरत ही रह गई थी, आगे पीछे शादियाँ करवा के।"
"दैट कैन भी इज़ीली टेकन केयर आफ़।"
तेज ने कहा, "आज शाम को एक ब्राईडल वेयर शो कर लेते हैं। आप अपना दुल्हन का जोड़ा
तो लाई ही होंगी, हमारी शादी की पहली होली खेलने के लिए।"
तेज ने पूरी संजीदगी से मनसा को मुख़ातिब किया।
"नहीं आज कोई आम जलसा नहीं होगा। आज की रात मनसा फिर से मेरी रूममेट होगी।" इंदु ने
मनसा को बाह में घेर लिया।
"यह हमें किस बात की सज़ा दिलवा रही हैं आप?" तेज ने पूछा, "आज तो हमें अपनी बीवी
के साथ कल की होली का ट्रायल रिहर्सल करना है।"
"आप को हर बात की बेसब्री रहती है कैप्टेन तेज वोहरा। वैसे भी आपको रिहर्सल की
ज़रूरत नहीं। हमने आप को फर्स्ट डिवीज़न में पास कर दिया।" कहते हुए इंदु के
भरे-भरे चेहरे पर सुर्खी की एक लहर बेसाख्ता उसके ओठों से निकल कर गालों के गड्ड़ों
को सहलाती हुई कानों में समा गई।
सुबह अभी इंदु के कमरे की खिड़की से बाहर उगते सूरज की पहली लाली आसमान पर छाई भी न
थी कि तेज ने उसके कानों में हल्की सी सीटी बजा कर उसे जगा दिया था।
"आप हमारे साथ होली खेलेंगी?" उसने बिना आवाज़ किए ओठों से पूछा था।
अधखुली आँखों से खिड़की के दोहरे परदों के बाहर सुबह की लौ ढूँढ़ती इंदु की नज़र
अपने काँधों पर झुके तेज के चेहरे पर टिक गई थी।
"रंग कहाँ हैं?"
"कौन-सा रंग चाहिए आपको?"
"गुलाबी। गुलाल का रंग पिंक।"
"आई थिंक आई कैन अरेंज दैट।"
एक दिन पुरानी दाढ़ी और हाल ही में तराशी मूछों की
कूची फिरा दी तेज ने इंदु के खुले बदन पर। काँधों से अँगुलियों के पोर तक। गर्दन से
नाभि के गड्डे तक। पलकों से गालों के छोर तक।
"इट टिक्कलज़।" इंदु सिमट-सिमट कर बिखरी थी।
"डज़ इट टिक्कल पिंक?" तेज के कसरती बाजुओं ने साँस लेने भर के लिए एक पल इंदु को
आज़ाद करके फिर से जकड़ लिया था। खिड़की के परदों से बाहर की हल्की गुलाबी सुबह जब गहरे
गुलाल की परतें बन कर उगती धूप में नहा गई तो तेज ने इंदु के ओठों से पूछा था,
"एक कप गरम चाय मिलेगी?"
................
पीछे वाले लान में एक गोल तिपाई पर गेंदा और गुलाब
की पंखुड़ियों से भरी दो टोकरियों के बीच इत्र और केसर छिड़कने की छोटी-छोटी
सुराहियाँ। पास ही एक लंबी मेज़ पर चमचमाती स्टेनलैस स्टील की थालियों में अबरक,
गुलाल की लाल, नीली, पीली, हरी ढेरियाँ। कुछ दूरी पर अमरूद के पेड़ के तने को घेरे
बालटी नुमा टबों में ऊदे, काशनी, जामुनी रंगों का घोल। सामने बरामदे में जाली से
ढकी मोतीचूर के लड्डुओं और कलाकंद बर्फी की प्लेटों के साथ शीशे के जगों में खसखस,
इलायची, बादाम वाली दूधिया ठंडाई। और इन सब से अलग घने बरगद की छाँव में खड़ी
अंगीठी के उपर गोभी, पालक के ताज़ा पकौड़े बनाने की कढ़ाही।
कर्नल कपूर ने तड़के उठकर खुद सारा इंतज़ाम होते
देखा था और अब अपने उजले पजामे कुरते के सलवट निकालते यहाँ वहाँ घूम रहे थे। बरामदे
में लाल पाड़ वाली सादा साड़ी पहने मिसेज़ कपूर को देखा तो उनके पास जाकर निहायत
अफसराना आवाज़ में पूछा,
"कहिए जरनैल साहिबा, आपको हमारा बंदोबस्त पसंद आया?"
मिसेज़ कपूर का हँसमुख चेहरा और खिल उठा।
"केहर बस अड्डे गया है। मनसा के ससुराल वालों से कोई आ रहा है। बस उनके आते ही तेज
और इंदु को बुला कर शगुन दे देंगे। फिर यह 'यंग' लोगों की फौज जाने और आपके
इंतज़ामात। देखिएगा शाम तक क्या गुल खिलते हैं यहाँ।"
..............
इंदु की भाभी कमला ने तेज का हाथ पकड़ कर उसे
फूलों की पंखुड़ियों वाली गोल तिपाई और अबरक-गुलाल की थालियों से सजी लंबी मेज़ के
बीचों-बीच खड़ा कर दिया और कहा,
"लो तेज, आज अपने मनपसंद रंगों और महक से ऐसी होली खेलो हमारी ननद के साथ कि सारी
उम्र याद कर-कर के वो गुलाबी होती रहे।"
एक हाथ में गुलाब की पंखुड़ियाँ और दूसरे में केशर
वाली इतरदानी पकड़ कर तेज बादामी सलवार, कमीज़, दुपट्टा पहने अपने भाई विनोद के पास
खड़ी इंदु के सामने जा खड़ा हुआ। फूलों वाली हथेली को इंदु की ठोड़ी के नीचे
टिकाकर, उसपर लंबी ज़ोरदार फूँक देते हुए, गुलाब की
पंखुड़ियाँ उसके चेहरे पर उड़ाता तेज दूसरे हाथ को इंदु के सिर को ऊपर उठा कर केशर
की हल्की-हल्की फुहार छिड़कने लगा। शोख, बातूनी इंदु पहले कुछ कहने को हुई। फिर
आँखे मूँद कर उभरती बिखरती मुस्कान को सँभालती उसने अपना चेहरा बिलकुल नामालूम हरकत
से तेज की तरफ़ उठा दिया जैसे कि सावन में बरखा की पहली बंदों को समेटती सोंधी
माटी। घर, परिवार, दोस्त, मेहमान पल भर के लिए बुत बन गए जैसे कि ज़रा-सा शोर भी
तेज और इंदु के ख़ामोश लमहे की मुकम्मिल खुशी में खलल बनता हो।
विनोद ने तेज का काँधा छू कर कहा,
"कप्तान साहब! ये आप होली खेल रहे हैं या शायरी कर रहे हैं। हुजूर कुछ फौजी जवानों
वाली जानदार रंगबाजी कीजिए।"
हाथ में बची हुई बाकी पंखुड़ियाँ विनोद की पत्नी
कमला की तरफ़ उड़ा कर तेज ने इतरदानी मनसा को पकड़ा दी।
"उसके लिए तो साले मेजर साहब आपको हमें रैंक
तोड़ने की इजाज़त देनी होगी।" कहते हुए तेज ने फुरती से अमरूद के पेड़ से टिकी एक
जामुनी रंग के घोल की बालटी उठा कर पूरी की पूरी विनोद के सर पर बरसा दी।
फिर क्या था? पूरे लॉन में धमा चौकड़ी।
चाची करमदेई के सफ़ेद बालों में गुलाल की लकीरें!
महराजन तारो की सीधे पल्ले वाली धोती पर रंगीन हथेलियों के छापे!
आबनूसी चेहरे से दूधिया दाँत निपोरती जमादारन शामो
के सूप वाले घाघरे की सलवटों में ऊदे रंग का घोल।
कद्दावर गवाले की धारीदार तहमद और बिस्कुटी खादी के कुरते पर बहते रंगों के बारीक
बूटे!
सीकिया सुकडू बिहारी डाकिये की मटमैली खाकी वरदी पर अबीर मिले हरे रंग का जमघटा!
कर्नल साहब की पुरानी पैंट और कमीज़ में मुश्किल से समाते अधेड़ केहर सिंह के
खिचड़ी बालों में ताजा फोड़े कच्चे अंडों का लेप!
कर्नल साहब ने इशारे से मिसेज कपूर को अपने पास बुलाकर कहा,
"मैं समझता हूँ, अच्छा मौका है। चुपचाप कपड़े बदल कर क्लब चलते हैं, वहाँ आने का
वादा कर चुके हैं हम!"
माँ और पापा को इकठ्ठा बरामदे की तरफ़ जाते हुए
देखकर इंदु भागती हुई आई और बोली,
"एक मिनट पापा!"
फिर उसने पुरज़ोर आवाज़ में बड़े रौब से हुक्म दिया।
"कंपनी अटैंशन।"
हुडदंग मचाते, यहाँ वहाँ एक दूसरे से लिपटते जूझते सभी रंग के खिलाड़ी यकायक एक
लाइन में खड़े हो गए।
"अटैक।" इंदु ने फिर हुक्म जारी किया। अब कर्नल कपूर और मिसेज़ कपूर दो टोलियों के
काँधों पर सवार कर दिए गए और ऐलान हुआ,
"रंगों की कबड्डी में जीतने वाले को पाँच सौ रुपए इनाम। हमारी ख़ास मेहमान कुँवरानी
मनसा के हाथों से।"
अब तक मनसा को रँगने के लिए उठा एक भी हाथ ऐसा न था जिसे उसका नाज़ुक बदन और
ज़र्द-सा चेहरा छूने में ज़रा-सी हिचक न हुई हो। सिवाय उसकी ननद के बेटे टिक्का साब
के।
केहर के साथ बस अड्डे से बँगले पर पहुँचते ही उसने
कर्नल साहब और मिसेज कपूर को प्रणाम करने के बाद जोश-ओ-खरोश से सब को रँगा था। लिपे
पुते चेहरों की भीड़ में से भींगता रंगता जब तक वह मनसा तक पहुँचा तो उसकी पीली
रेशमी साड़ी और सुनहरी कन्नी वाला ब्लाउज़ उसके बदन से चिपक कर एक खुदरंगी सजीली
ढाल बन चुके थे जिसके पार उठती नज़र भी पैनी तीखी होकर चुभ जाए।
पीछे से जाकर एक हाथ से मनसा की आँखें ढापते हुए टिक्का साब ने उसके कान में धीरे
से कहा,
"आपकी भी तो शादी के बाद यह पहली होली है न मामी कुँवरानी। कहिए हम आपको कहाँ से
रँगना शुरू करें जहाँ अब तक किसी और ने न रँगा हो?"
गर्दन पीछे घुमा कर मनसा ने देखा। क्रिकेट और
फुटबाल का खिलाड़ी, दिल्ली के इंडियन इन्स्टीट्यूट आफ़ टैक्नालॉजी के आखरी साल का
होनहार स्टूडैंट, दिद्दा कुँवरानी का बड़ा बेटा उसके सामने खड़ा था। इम्तहानों की
वजह से शादी पर नहीं आ सका था। अब होली की छुट्टी पर आना चाहा तो दाजू कुँवर ने कहा
कि वह अपनी मामी कुँवरानी को जालंधर जाकर मिल आए।
"आपने बताया नहीं मामी कुँवरानी।" टिक्का साब ने फिर पूछा।
अपनी गीली साड़ी का पल्ला सँभाल के लपेटती मनसा
सोच रही थी बेटा बिल्कुल माँ पर गया है। सधे-तराशे नैन-नक्श, गठा गंदमी बदन। दिद्दा
कुँवरानी और दाजू कुँवर की तो शकलें बिलकुल नहीं मिलती थी। कोई बताए न कि भाई बहन
हैं तो लगे ही न कि कोई रिश्ता है दोनों में।
मुठ्ठी भर गुलाल ब्लाउज़ के उपर छिड़कने के लिए
उठा टिक्का साब का हाथ अब मनसा की साड़ी के पल्ले से ढ़का उसकी गर्दन से नीचे एक
छोटी-सी खाई में टिक गया था। गुलाल की नरम चुभन दोनों ओर फैल कर नन्हीं-नन्हीं
पहाड़ियों को रंग रही थी। मनसा का सारा शरीर एक खाली तश्तरी बनकर भरी हुई मुठि्ठयों
से गुलाल माँगना चाहता था।
उस रात खाने के बाद कर्नल साहब का पूरा
बँगला जहाँ
तहाँ सोए मुसाफ़िरों का प्लेटफ़ार्म बन गया। पंद्रह लोगों के रात की ठहरने की बात
थी। पचीस से ज़्यादा टिक गए थे। रात को जब चार घंटे के लिए पूरे शहर की बिजली चली
गई तो मोमबत्ती की रोशनी में तकिए चादरें ढूँढ़ते कौन कहाँ सो गया किसी ने नहीं
देखा।
सिवाय चाची करमदेई के। अपनी चुन्नी उतार कर
उन्होंने एक ही चादर में लिपट कर सोए हुए दो सायों के खुले चेहरे ढक दिए, फिर वे
चुपचाप बाहर बरामदे में पड़ी आरामकुर्सी से टिक गई थी।
...................
परबतिया में आज दाजू कुँवर और देई कुँवरानी की पहली
संतान का अन्नप्राशन है। पूरी हीरा मंडी में छोटी-छोटी रंग बिरंगी झंडियों के
चँदोवे तने हैं। बाजे गाजे के साथ दाजू कुँवर ने नन्हें कुँवर को दिद्दा कुँवरानी
की गोद में डाल कर उनके हाथों से दूध खीर की छोटी-सी बूँद अपने बेटे के मुँह में
डलवाई है।
"आपने देख लिया ना दाजू कुँवर। हम न कहते थे
रजवाड़ों से बाहर निकलकर ही परबतियाँ वालों की नई नसल बेटे से शुरू होगी।" दिद्दा
कुँवरानी ने नए भतीजे के सर से मुठ्ठी भर अठ्ठन्नियाँ वार कर सेहन में फेंकते हुए
कहा।
मनसा जानती है, परबतिया वालों की नई नसल अब भी बेटे से नहीं शुरू हुई।
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