|
आज अचानक, पहली बार, जय का मेल अपने मेलबॉक्स में
पा कर वह मुस्कराई। तो जय ने भी अब ई-मेल करना सीख लिया! ज़रूर वंदना ने ही सिखाया
होगा। अच्छा है। इस तरह वह जय से वंदना की भी ख़बर लेती रहेगी। कुछ इस तरह परेशान
है लड़की कि मेल ही नहीं लिखती। पता नहीं उसकी शादी की बात कितनी आगे बढ़ी। जय बता
सकेगा। वह भी जय को कुछ पते भेज सकेगी।
उसने एक सरसरी निगाह से सारे पते पढ़ डाले। यह उसकी पुरानी आदत है। पहले सारे पते
पढ़ेगी, फिर तय करेगी कि किस क्रम में उसे अपने ई-पत्र पढ़ने हैं। पढ़ने हैं या
बिना पढ़े मिटा देने है। लेकिन आज तो जय का मेल है। पहले उसे देख ले।
मेल खोला तो बिना किसी भूमिका, संबोधन के एक वाक्य था, 'मेरी कविता' और नीचे एक
छोटी-सी कविता की कुछ पंक्तियाँ -
एक आकाश था मेरा विश्वास
निर्दोष, खूबसूरत
अछोर, आधारहीन
मुझ ही को छलता रहा।
उसे कुछ अजीब लगा। जय कविताएँ लिखता है यह उसे
नहीं मालूम था। न वंदना ने, न ही जय ने उसे कभी बतलाया। पूरे महीने भर वह बनारस में
वंदना के घर पर रही थी।
|