कुछ पल की खामोशी के बाद
चाँदनी कहने लगी, "हाँ यह सच है। मैं अमन से मिली, वह मुम्बई
का उभरता हुआ गायक है, उसकी आवाज़ में नयापन है। परन्तु मैं
उसकी कला से अधिक उसके स्वभाव, उसके व्यक्तित्व, उसकी भाषा
के प्रभाव में बहती चली गई। उसमें वह सब कुछ है जो मुझे
आकर्षित कर गया।" चाँदनी के शब्द सागर के हृदय में घाव पर
घाव करते जा रहे थे। परन्तु वह अपनी पीड़ा को प्यार भरे
गम्भीर चेहरे में समेटे चाँदनी के बालों को अपनी उँगलियों से
सहलाते हुए खामोशी से सुनता जा रहा था।
चाँदनी आगे कहती है, "पहली
बार मैं ऐसे भँवर में डूबी जा रही हूँ जिसमें सिर्फ़ डुबान
ही डुबान है। मैं स्वयं को रोक नहीं पा रही हूँ। अमन का
प्रवेश मेरे जीवन में, मेरे अहसास के न जाने किस अंग को छू
गया है कि मुझे तुम्हारा ख़याल क्षण भर को भी नही आया और मैं
उसकी धारा में विक्षिप्त होती गई। मैं क्या करूँ सागर? मैं
क्या करूँ? मैं जानती हूँ कि हमारे रिश्ते की बुनियाद सच्चाई
है और मैं ही उसकी दुश्मन बन गई। आई एम सॉरी, मुझे माफ़ कर
दो सागर।"
सागर अपने रूँधे गले का भार
लिए बोला, "कोई बात नहीं चाँद, तुम्हारी खुशी के लिए मैं
सिर्फ़ एक दोस्त की तरह तुम्हारे जीवन में रहूँगा। यही तो
परीक्षा की घड़ी है। प्रेम की सच्ची परीक्षा, और मुझे आता है
ऐसी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना।"
कुछ क्षण बाद सागर बोला,
"चाँद, शाम ढलने को है यदि जाना है तो निकल जाओ वरना यही
रुक जाओ।" जवाब में चाँदनी बोली, "नहीं सागर, घर पर अनु
अकेली है, जाना तो होगा ही, और झूठ नहीं आज जैसे इतने दिनों
का बोझ उतर गया। थैंक यू सागर तुम मेरे मसीहा हो। तुम्हारा
दिल तुम्हारे नाम की तरह है, विशाल सागर। मेरे जीवन का एक
सुनहरा अध्याय हो तुम। तुम्हारी पेंटिंग्ज पर मेरी कविता
सदैव बहती रहेगी।"
सागर ने चाँदनी का हाथ
थामते हुए कहा, "नहीं चाँद, मेरी हथेली में और चित्रकारी है
या नहीं इसका वायदा मैं नहीं कर सकता।"
"नहीं, नहीं, तुम तस्वीरें ज़रूर बनाओगे सागर, मैं तुम्हारी
पेंटिंग्ज़ बन्द नहीं होने दूँगी।" चाँदनी ने सागर की बात का
ज़ोरदार विरोध किया।
सागर इस बहस को आगे न बढ़ाते हुए बोला, "चाँद, मेरी
पेंटिंग्ज हमेशा दिल से बनती है और जब भी दिल कहेगा मैं अपने
हाथों को रोकूँगा नहीं।"
चाँदनी घड़ी देखते हुए बोली, "अच्छा सागर, देर हो रही है, अब
जाना होगा।"
एक तरफ़ सागर जो हर हाल में
चाँदनी को स्वीकार कर रहा है। दूसरी तरफ़ अमन जिसके
व्यक्तित्व पर चाँदनी मोहित है। कशमकश के भँवर में चाँदनी
लंदन से साउथ-हैम्पटन के मोटरवे पर सफ़र कर रही होती है कि
चाँदनी का मोबाइल आवाज़ देता है, "हैलो, अमन हियर, मेरी चंदा
रानी आज सारा दिन तुम खामोश क्यों रही? आर यू ओ.के.?"
"हाँ अमन, सागर के साथ थी
पूरा समय उसे हमारे बारे में पता चल गया है।" चाँदनी अमन से
अपनी पीड़ा बाँटने लगी।
"ओह। क्या झगड़ रहा है वो? तुम तो ठीक हो न चँदा? क्या कहा
तुमने उससे?" अमन ने प्रश्नों की बौछार कर दी।
चाँदनी उतर देती है, "नहीं नहीं अमन, सागर वाज सो नाइस टू
मी। उसने हम दोनों के सम्बन्ध को स्वीकार कर लिया और मुझे
माफ भी कर दिया। तुमसे मिलना भी चाहता है।"
अमन आश्चर्यचकित हो बोला, "अच्छा त़ुम लोग कितना करीब रहे आई
मीन डिड यू मेक।"
"अमन" चाँदनी को अमन की यह बात अच्छी नहीं लगी, वह बोली,
"मुझे नही मालूम कि तुम्हारी निगाह में शारीरिक सम्बन्ध की
परिभाषा क्या है, परन्तु मेरी निगाह में तुम्हारे प्रश्न का
उत्तर है "हाँ" मैं तन और मन दोनो से आज सागर के साथ ही रही
हूँ।"
टेलिफोन पर आवाज़ कुछ कटने सी लगी। अमन संवाद को विराम देते
हुए बोला, "चलो कल बात करते हैं, गुड नाइट चंदा।"
घर पहुँचते ही चाँदनी ने
सागर को फोन लगाया, "हाय सागर, हाउ आर यू नाऊ?"
"तन्हा" सागर ने एक शब्द में अपना जवाब दिया।
"नेवर, जब तक मैं ज़िन्दा हूँ खबरदार जो तुमने कभी ऐसा कहा।"
चाँदनी ने सागर की सोच पर अपनी असहमति जतायी।
सागर विषय बदलता हुआ बोला, "और तुम बताओ, चाँद तुम कैसी हो,
अमन के भविष्य में क्या प्लान्स है? मैं किसी काम आ सकूँ तो
ज़रूर बताना।"
"सागर" चाँदनी बोली, "तुम मुझसे अपनी बात करो मेरी ज़िंदगी
तो मुझे कहाँ ले जाएगी मैं स्वयं ही नहीं जानती।"
"उसी की बात तो कर रहा हूँ।" सागर कहने लगा, "तुम्ही तो हो
मेरी ज़िंदगी।"
"हेई सागर तुम्हारी इन्ही बातों पर तो मैं फिदा हूँ। एक बात
बताओ क्या कोई इंसान एक ही समय में दो लोगों से प्यार कर
सकता है?" चाँदनी ने प्रश्न किया।
"हाँ, बिल्कुल" सागर ने उत्तर दिया, "अगर उसमें दो नावों पर
पाँव रखने की शक्ति है, तो वह ज़रूर दो लोगों के साथ एक समय
में कुछ भी कर सकता है।"
चाँदनी बहस करती है, "लेकिन नाँव चलती तो दो पतवारों से ही
है?"
"चाँद" सागर ने हथियार डाले, "एक लेखिका से संवाद में कौन
जीत सकता है? मेरा ख़याल है अब हालात को वक्त पर छोड़ दिया
जाए।"
चाँदनी हँसते हुए बाय कर
देती है। रात तीनों की ही करवटों में बीती। सागर, चाँदनी और
अमन, तीनों वक्त और जज़्बात के शिकार।
सुबह-सुबह चाँदनी अमन को मुम्बई फोन करती है, "हैलो अमन गुड
मॉर्निंग।"
"गुड मॉर्निंग चँदा मिसिंग यू बैडली कयामत ढा कर गई हो तुम
यहाँ वापस आ जाओ प्लीज़।" अमन चाँदनी को अपना प्यार जताने
लगा।
"मैं बहुत कशमकश में हूँ
अमन, कल सागर की हालत मुझसे देखी नहीं गई। उसकी पेंटिंग्ज,
उसकी प्रेरणा, उसका जीवन मेरे ही नाम में गूँजता है। वह तो
मेरे जीवन मे प्यार की वो परिभाषा बन गया है जो सिर्फ़
किताबों में ही मिलती है।" चाँदनी अपने भाव अमन को कहने लगी।
"हा चँदा कह तो तुम ठीक रही
हो मैं ही तुम दो प्रेमियों के बीच में आ गया तुम सुखी रहो
बस यही कामना है मैं सारा जीवन तुम्हारी याद में गुज़ार सकता
हूँ, या यूँ कहो दो दिन का जो समय तुमने मुझे दिया है उसकी
याद बहुत है मेरे लिए, जस्ट डोन्ट वरी।" अमन भी चाँदनी के
प्रति अपनी निष्ठा जताने लगा।
"नहीं अमन, मैं तुम दोनों
में से किसी को नहीं छोड़ सकती। लेकिन यह भी सच है कि अपनी
इस चाहत से तुम दोनों को मैं दुख ही दूँगी।" चाँदनी अपनी
उलझन अमन को बताने लगती है, "मेरा हृदय बहुत विशाल है, उसमें
तुम दोनों समा सकते हो, लेकिन जानती हूँ कि कभी कोई पुरुष
ऐसी परिस्थिति को स्वीकार नहीं करेगा और वह गलत भी नही। मैं
जानती हूँ कि गलत मैं ही हूँ। बोलो अमन मैं क्या करूँ?"
अमन ने अपनी बात दोहरायी,
"मैं तुम्हारी बात समझता हूँ चँदा, लेकिन तुम्हें प्लीज मेरी
फिक्र करने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं। तुम मेरे साए में बसती
हो और कही भी मुझसे दूर नहीं हो।"
चाँदनी को कुछ शांति मिलती
है। इतने में घर में कॉलबेल की ध्वनि गूँजती है, चाँदनी अमन
को बाय कह कर द्वार पर आती है। दरवाज़ा खुलते ही आश्चर्य से
चाँदनी स्तब्ध रह जाती है। "सागर व्हॉट ए प्लेजेन्ट
सरप्राईज।" सामने पीले फूलों को बड़ा-सा गुलदस्ता लिए सागर
खड़ा था।
"नहीं रहा गया पूरी रात
बेचैनी रही, आई लव यू चाँद बाई हार्ट।" पंक्ति पूरी
करते-करते सागर की आँखें बन्द हो गई और चाँदनी सागर से लिपट
गई।
आज चाँदनी को सागर के
स्पर्श में नई कविता महसूस हो रही थी। सागर के होठ चाँदनी के
होठों पर महाकाव्य लिख रहे थे। सागर और चाँदनी आलिंगनबद्ध
घण्टो तक एक दूसरे में खोये रहे।
शाम को सागर के जाते ही
चाँदनी की अमन से फिर बात हुई। यह सिलसिला कुछ दिनों तक चलता
रहा। कभी-कभी चाँदनी स्वयं अपने आप से परेशान होने लगती।
भावनाओं का सैलाब चाँदनी के दिल दिमाग को शून्य सा करता जा
रहा था। सागर से चाँदनी का मिलन अमन को खलता तो अमन से रात
देर-देर तक बात करते समय बीच-बीच में सागर का फोन आ जाता,
चाँदनी अपनी ही बनाई भावनाओं की चक्की में पिसती जा रही थी।
चाँदनी अमन और सागर दोनों
को चाहती थी। दोनों की दोस्ती उसके जीवन का सुख बन चुकी थी।
फिर समाज की बनाई इस मानसिकता से वह स्वयं क्यों नहीं निकल
पा रही थी कि एक समय में दो लोगों से प्यार का सम्बन्ध रखना
अनुचित है। अगर समाज की चिन्ता न करे तो भी उसका मन उसको इस
बात की इजाज़त और नहीं दे रहा था। एक तरफ़ सागर की मासूमियत,
हर परिस्थिति में चाँदनी के साथ चट्टान की तरह खड़े रहने का
विश्वास तो दूसती तरफ़ अमन की आवाज़ और उसका व्यक्तित्व।
प्यार की कमी कहीं भी नहीं। अगर तौलने चले तो तराजू का काँटा
दम तोड़ दे लेकिन दोनों के प्यार का वजन कमज़ोर नहीं पड़े।
चाँदनी कभी शादी नहीं करना
चाहती थी। वह हमेशा एक स्वतंत्र नारी के रूप में जीवन
गुजारना चाहती थी। साहित्य के क्षेत्र में कुछ कर गुज़रने की
उसकी महत्वाकांक्षा रही थी। उसे हमेशा ऐसा लगता कि गृहस्थी
में पड़ने के बाद घर की चार दीवारें कुछ और करने का समय ही
नहीं देती। ससुराल वालों की अपेक्षायें, पति के प्रति नारी
के कर्तव्य और बच्चों की ज़िम्मेदारियाँ, यही जीवन हो जाता
है नारी का शादी के बाद। उसके बाद भी पति का सुख मिले न
मिले, कोई गारण्टी नहीं। रजनी दीदी के जीवन की ट्रैजिडी
चाँदनी भूल नहीं पा रही थी।
लेकिन आज वही चाँदनी
समर्पित हो जाना चाहती थी किसी एक जीवन के लिए। हस्ताक्षर
करवाना चाहती थी अपने माथे पर सिन्दूर से। स्वतंत्रता और
आधुनिकता की सोच ही कारण थी जो चाँदनी आज भावनाओं के ऐसे
चक्रव्यूह में फँस गई। उसे महसूस हो रहा था कि भावनात्मक मन
के लिए स्वतंत्रता नहीं समर्पण चाहिए, आज़ादी नहीं प्यार का
बन्धन चाहिए, आधुनिकता उतनी ही अच्छी है जितने पर अपना वश
हो।
अमन या सागर, कशमकश! चाँदनी
कुछ समय एकान्त में गुज़ारना चाहती थी। स्वयं से संवाद,
संवाद और संवाद करना चाहती थी। अमन और सागर, दोनों से एक
फासले के साथ कुछ वक्त व्यतीत करना चाहती थी। उसकी इस इच्छा
को दोनों ने स्वीकार कर लिया।
चार दिनों तक पूरी खामोशी
छाई रही। चाँदनी घर में ही रही। अनु भी अपनी परीक्षाओं के
कारण व्यस्त रही। पाँचवे दिन की सुबह सागर की आवाज़ फोन पर
गूँजने लगी, चाँदनी बोली, "सागर हैव पेशन्स मैंने कहा था न
कि मुझे एक सप्ताह एकान्त चाहिए, बिल्कुल एकान्त।"
"हाँ बाबा जानता हूँ" सागर
बड़ी मासूमियत से बोला"लेकिन क्या मैं इनसान नहीं हूँ, नहीं
रहा गया मुझसे इम्तिहान तुम्हारा है सज़ा मुझे क्यों? चाँद
मैं आ रहा हूँ प्लीज।"
चाँदनी सागर की बात सुन कर हँसने लगी, बोली, "आ जाओ लेकिन
जल्दी। मैं भी तुम्हें मिस कर रही हूँ।"
दस मिनट के भीतर ही सागर
चाँदनी के दरवाज़े पर खड़ा था। "सागर यू चीट" चाँदनी
चिल्लाई।
सागर ने अपने होंठ चाँदनी
के होठों पर रख दिए, जेब से एक अंगूठी निकाली और चाँदनी की
उँगली में पहना दी।
"यह क्या?" चाँदनी ने आश्चर्य से कहा।
"आज हमारे मिलन की सालगिरह है चाँद पिछले वर्ष आज ही के दिन
आप से नेहरू केन्द्र में मेरी मुलाक़ात दर्ज़ हुई थी और आप
मेरे जीवन में महक बन कर आई थी।" सागर बड़े शायराने अंदाज़
में बोला।
"व्हॉट अ जेस्चर तुम्हारे प्यार जताने का अंदाज़ भी निराला
है सागर तुम साउथाहैम्पटन कब आए?" चाँदनी ने अपनी खुशी का
इज़हार करते हुए सागर से प्रश्न किया।
निगाह नीचे किए सागर बोला,
"सच बताऊँ, दो दिनों से तुम्हारे घर के सामने वाली गली के
होटल में हूँ। रोज़ सुबह और दोपहर अनु के स्कूल तुम्हें आते
जाते देखता हूँ। संवाद न सही कम से कम तुम्हारा दीदार ही
सही, उस पर तो तुम्हारा प्रतिबन्ध नहीं था?"
"लव यू सागर, रियेली लव
यू।" चाँदनी सागर की बाहों में समा गई।
दो सप्ताह गुज़र गए लेकिन
अमन का कोई फोन नहीं आया। चाँदनी थोड़ी चिन्तित हुई, उसने
मुम्बई फोन लगाया, "हाय अमन, कहाँ हो? इतनी चुप्पी!"
जवाब में अमन बोला, "वेल तुमने फोन नहीं किया तो मैं भी चुप
रहा। तुम्हें वक्त जो चाहिए था। वैसे मैं आज कल में तुम्हें
फोन करने ही वाला था।"
''और कैसा कटा वक्त, सब ठीक है न?" चाँदनी ने प्रश्न किया।
उधर से अमन बोला, "वेरी बिजी, कुछ नए कॉन्ट्रेक्ट्स मिले
हैं। ज़्यादातर समय रिकॉर्डिंग में ही गया।"
संवाद लम्बा नहीं रहा।
चाँदनी को अमन के संवाद में कुछ फासला महसूस हुआ। लेकिन
चाँदनी के हृदय में इस बात का कोई गहरा असर नही हुआ। वह बाहर
गार्डन में टहलने निकल गई। मौसम बदल रहा था। कलियों का दिखना
और वृक्षों पर आती हरियाली संदेश दे रही थी कि गर्मियाँ आने
वाली है। गर्मियों का अर्थ है कि इग्लैण्ड में मेहमानों का
आना, म्युजिकल कार्यक्रमों के आयोजन। चाँदनी की प्रोमोशन
कम्पनी ने इस वर्ष गर्मियों में आठ कार्यक्रम बुक किए हुए
थे। लंदन, बर्मिंगम, मैनचेस्टर सभी महानगरों में शो होने है।
भारत, अमेरिका, योरोप के कई कलाकारों का आवागमन रहेगा।
चाँदनी इन्ही ख़यालों में
खोई थी कि सागर का संदेश आया, वह अमरीका जा रहा है दस दिनों
के लिए। चाँदनी ने एक पल के लिए स्वयं को असहाय महसूस किया।
शायद वह भी सागर के साथ जाना चाहती थी। अमरीका जाने के पहले
सागर ने पूरी शाम चाँदनी के साथ बिताई। चाँदनी को सागर का
साथ पहले से कहीं अधिक सुख पहुँचा रहा था। वह चाँदनी की पहले
से कही अधिक केयर करता, अनु का ख़याल रखता। अनु तो जैसे सागर
को अपना दोस्त समझने लगी थी। जब दोनों बैठते तो सागर बिल्कुल
अनु की उम्र का हो जाता और दोनों बच्चों-सी हरकतें करते।
सागर की फ्लाइट अभी अमरीका
पहुँची ही नहीं होगी और चाँदनी दो फोन उस होटल में कर चुकी
थी जहाँ सागर को ठहरना था। सागर के बिना चाँदनी को अपने
विचलित होने पर खुद ही आश्चर्य हो रहा था। उसने सागर के
प्रति ऐसा आकर्षण पहले कभी महसूस नहीं किया था।
इधर अमन से चाँदनी की
बातचीत कम हो गई थी। चाँदनी ने महसूस किया कि अमन अपनी ओर से
चाँदनी के करीब आने का कोई विशेष प्रयास नहीं कर रहा है। या
तो वह स्वयं चाँदनी की ज़िंदगी से दूर होने की कोशिश कर रहा
है या फिर वह चाँदनी और सागर के रिश्ते को व्यवहारिक रूप में
स्वीकार नहीं कर पा रहा है और कहीं न कहीं उसका अहं उसे
परेशान कर रहा है।
उधर सागर भी दस दिन की जगह
सात दिनों में ही अमरीका से लौट आया। हीथ्रो एयरपोर्ट से
सीधे साउथहैम्प्टन पहुँच कर उसने एक बार फिर चाँदनी का मन
मोह लिया। अब सागर ज़्यादा अमन की बात भी नहीं करता।
चाँदनी ने ही छेड़ा, "सागर
मैं बहुत तन्हा हो जाती हूँ, बहुत याद किया मैंने।"
सागर ने व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ प्रश्न किया, "अच्छा
किसे?"
चाँदनी सागर के प्रश्न में डूब कर बोली, "तुम्हें सिर्फ़
तुम्हें।"
सागर को एक पल में उन लाखों
प्रश्नात्मक लम्हों के उत्तर मिल गए जिनका निर्माण उसके
वर्तमान को अन्दर ही अन्दर खोखला करता जा रहा था। अस्मिता के
बाद अब जीवन में दूसरी बार वह उसी दौर से गुज़रने से कितना
घबरा रहा था, इसका अनुमान वह स्वयं ही नहीं लगा पा रहा था।
उसे खुशी थी तो बस अपने धैर्य पर जिसके द्वारा उसने चाँदनी
के मन में प्रथम स्थान अपने प्रेम के द्वारा ग्रहण कर लिया।
सागर ने चाँदनी से फिर
प्रश्न किया, "क्या मैं तुम्हारी माँग में अपना नाम लिख सकता
हूँ?"
चाँदनी ने अपनी आँखें बन्द कर अपना माथा सागर के होठों पर रख
दिया।
वक्त को शायद अभी एक और
इम्तिहान लेना था। फोन की घण्टी बजी, उधर से अमन चाँदनी से
कह रहा था कि वह इंग्लैण्ड आना चाहता है। जवाब में चाँदनी
चुप रही।
अमन फिर बोला, "क्या तुम इंग्लैंण्ड में मेरा कोई म्युजिकल
प्रोग्राम आयोजित कर सकती हो?"
चाँदनी ने उत्तर दिया, "इस 'समर' में तो नहीं, बहुत व्यस्त
हूँ।"
"क्या मुझसे मिलने का वक्त भी नहीं होगा तुम्हारे पास?" अमन
ने प्रश्न किया।
"पता नहीं हम दोनों अब साथ ही रह रहे हैं।" चाँदनी ने सागर
की ओर इशारा करते हुए कहा।
चन्द लम्हों की खामोशी के बाद अमन बोला, "खुश रहो, सुखी
रहो।"
चाँदनी सागर की बाहों में खुद को पूरी तरह समर्पित करते हुए
अपनी कशमकश को अंतिम संवाद दे देती है। |