चाँदनी थोड़ा गंभीर होते
हुए बोली, "रहने दो सागर, वो पेंटिंग्ज जिसके लिए बनी है उसी
को याद रखो, मैं तो बस..."
सागर बीच में चाँदनी को रोकते हुए कहता है, "उनमें अस्मिता
की आकृति ज़रूर है लेकिन इन चित्रों को देखने का न कभी उसे
समय मिला और न ही उसने समझने की कोशिश की। पेंटिंग्ज का उसे
शौक नहीं है, लेकिन तुमने, चाँद, इन कैनवस पर बनी आकृतियों
को जिस निगाह से देखा है, महसूस किया है, लगता है जैसे इनका
निर्माण तुम्हारे लिए ही हुआ था।"
"नहीं" चाँदनी बोली, "मेरा
निर्माण तुम्हारी पेंटिंग्ज है, तुम्हारे चित्र में मैं
प्रेम की उस धारा को देखती हूँ जिसकी बूँद बूँद पर समर्पण
लिखा है, लेकिन सागर!" चाँदनी कुछ अचरज से बोली, "क्या
अस्मिता ने कभी तुमसे तुम्हारी पेंटिंग्ज का ज़िक्र तक नहीं
किया।"
सागर निगाह नीचे करते हुए
कहता है, "कुछ ऐसा नहीं जो याद हो। लेकिन मुझे कोई चिंता
नहीं। अस्मिता मेरी पेंटिंग्ज की प्रेरणा थी। उसका मेरी
ज़िंदगी में आना ही मेरी कला का कारण है।"
"बहुत प्यार करते हो उससे न
सागर?" चाँदनी सागर के सीने पर अर्ध-सफ़ेद बालों को छेड़ते
हुए कहती है, "अस्मिता की शादी के पहले और बाद में बनी
तुम्हारी पेंटिंग्ज तुम्हारे अहसास को आइने की तरह मुझे
दिखाती है। अच्छा लगता है मुझे।" चाँदनी अपना सिर सागर के
सीने पर रखते हुए आगे कहती है, "तुम्हारा हर अहसास बाँट लेना
मुझे बहुत अच्छा लगता है, मुझे तुम्हारे करीब और करीब लाता
है।"
"जानता हूँ चाँद" सागर अपने
हाथों से चाँदनी के गालों को सहलाते हुए कहता है, "पता नहीं
कैसे अपने जीवन का हर पृष्ठ मैंने तुम्हारे सामने खोल कर रख
दिया है। उससे ज़्यादा, एक्चुअली किसी समय अस्मिता का ख्याल
भी आता है तो मैं तुमसे साफ कह देता हूँ। मुझे तो
यहाँ तक पता रहता है कि तुम्हारे किस कविता की कौन सी पंक्ति
लिखते समय तुम्हारे तसव्वुर में किसका चेहरा था।"
"सागर!" चाँदनी शर्माते हुए
कहती है, "कैसा रिश्ता है हमारा, इतना सच! इतना खुलापन क्या
किसी रिश्ते में होता होगा? कहीं इतनी अधिक ईमानदारी हमें
कभी दूर तो नहीं कर देगी?"
चाँदनी के चेहरे पर डर का
अहसास पढ़ते हुए सागर बोला, "ऐसा फिर कभी मत कहना चाँद,
सच्चाई और ईमानदारी हमारे रिश्ते की, दोस्ती की बुनियाद है।
याद है तुम्हें हमें एक दूसरे के करीब कौन लाया है? मेरी
पेंटिंग्ज की सच्चाई और उन पेंटिंग्ज पर तुम्हारी पंक्तियों
की ईमानदारी। नेहरू केन्द्र में मेरी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी
में तुम्हारा आना मेरे लिए जीवन का सब से बड़ा वरदान बन
गया।" सागर यादों में खोते हुए कहने लगा, "याद है चाँदनी,
जैसे ही मैंने किसी को टैक्सी बुलाने को कहा, तुमने
पेंटिंग्ज को मेरे घर तक पहुँचाने में मदद करने का प्रस्ताव
दे डाला। मैं स्वभाव से बहुत संकोची हूँ, लेकिन न जाने
तुम्हारे प्रस्ताव में कौन-सी कशिश थी कि मैंने तुरन्त हाँ
कर दी।" सागर की मदहोशी उसके वाक्यों के साथ हल्की पड़ती जा
रही थी।
चाँदनी भी सागर के साथ
यादों में खोने लगी, "फिर कॉफी के बहाने पूरी रात तुमने मुझे
बातों में फँसाया नहीं नहीं जानम, मैं स्वयं ही तुम्हारे
चित्रकारी के समन्दर में बहती गई और इस बहाव को कभी रोकना भी
नहीं चाहती।"
"कोशिश भी न करना चाँद,
मेरे पहले प्यार ने जिस तरह इस कला को जन्म दिया है उसी
प्रकार तुम्हारे प्यार तक ही इसका जीवन सीमित है। आज मेरी
आकृति तुम्हारी पंक्तियों के लिए ही बनती है। कैनवस पर मेरे
ब्रुश के स्पर्श को तुम्हारी कविता का इंतज़ार रहता है। जिस
दिन यह इंतज़ार खत्म हो गया, मेरा ब्रुश दम तोड़ देगा।"
"नहीं नही सागर, ऐसा कभी
नहीं होना चाहिए।" चाँदनी एकदम उठ कर बैठ जाती है। "तुम्हे
तो मालूम है मेरी कोई मंज़िल नहीं है। रजनी दीदी की मौत,
उनकी पीड़ा को मैने जिस करीबी से देखा है, मैंने कभी शादी न
करने की कसम खाई है और यह मैंने तुम्हे पहले दिन ही बता दिया
था। तुम्हारे सामने सारा जीवन पड़ा है सागर, तुम्हें कहीं न
कहीं घर बसाना ही है। मैं तो तुम्हारी ज़िन्दगी की एक ऐसी
साथी हूँ, जो न रहते हुए भी हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी।"
सागर मायूसी से चाँदनी की
ओर देखता है। शब्दों को जैसे तलाशते हुए कहता है, "मैं जानता
हूँ रजनी दीदी की पुत्री अनु तुम्हारी ही ज़िम्मेदारी है।
मैं साथ हूँ, तुम्हारी हर सोच के साथ हूँ मैं, एक अच्छे
दोस्त और प्रेमी का कर्तव्य निभाता रहूँ यही तमन्ना है, किसी
और के बारे में सोचना मेरे बस में कहाँ चाँदनी? हर पल मैं
तुम्हारा हूँ हर पहर इसी सोच में रहता हूँ कब और कैसे तुमसे
मिलूँ और जब तुम साथ रहती हो तो उन कुछ पलों में डूब कर जीवन
गुज़ार देने को जी चाहता है।"
"कैसा प्यार है तुम्हारा
सागर, एक तरफ़ तुम्हारे मन का कोई कोना अस्मिता का कैदी है
तो दूसरी तरफ़ मुझे तुमने अपनी भावनाओं में इतनी मज़बूती से
गिरफ्तार कर रखा है?" चाँदनी प्रश्न करती है।
सागर चाँदनी की आँखों में
डूबता हुआ कहता है, "मैं जीवन में हर रिश्ते का सम्मान करना
चाहता हूँ। किसी का ज़िन्दगी में आना और अपनी जगह बनाना उसके
लिए इत्तफाक हो सकता है लेकिन मेरे लिए, मेरे मन में उस जगह
का महत्व कभी किसी और के आने से कम नहीं होता। मैं इतना
कमज़ोर कभी नहीं होना चाहता कि बीते हुए लम्हों की दोस्ती
भूल जाऊँ।"
सागर के हाथ सिगरेट के
पैकेट की ओर बढ़ते है। चाँदनी अपने हाथ आगे बढ़ाते हुए सागर
की मदद करती है। सिगरेट सुलगाते हुए सागर आगे कहता है, "यह
सच है कि अस्मिता के पिता को घर जमाई चाहिए था और मेरा
स्वाभिमान इस बात को स्वीकार नहीं कर पाया। अस्मिता परिवार
को नहीं छोड़ पाई और मैं अपने आदर्श को। लेकिन जिन भावनाओं
को, प्यार के जिन क्षणों को मैंने महसूस किया है, उनका अपमान
होगा यदि मैं उन्हें अपने मन से निकाल दूँ। और यह हमारे
रिश्ते का भी अपमान होगा यदि मैं अपने मन में कुछ और रखूँ,
और जुबान पर कुछ और।" सागर चाँदनी को अपने आलिंगन में समेटते
हुए कहता है, "चाँदनी, तुम मेरा आज हो और मैं तुम्हारा। आओ
हम अपने इस वर्तमान को सुनहरा बनाए। अपने प्रेम की ऊँचाई पर
किसी संकीर्णता की छाया न पड़ने दे। ज़िन्दगी जीने का नाम है
और हम जिएँ। पूरी आज़ादी से, पूरे सम्मान से, पूरे प्यार
से।"
"तुम्हारा मन किसी और पर आ गया तो" चाँदनी सागर की बाहों में
और सिमटते हुए बोली।
"सबसे पहले तुम्हें ही बताऊँगा" सागर हँसते हुए बोला।
"चल हट गुण्डे" चाँदनी सागर को धक्का देते हुए कहने लगी।
"मेरी चाँद" सागर फिर गम्भीरता की ओर मुड़ते हुए कहने लगा।
"देखो तुम और मैं, दोनों ही अपने-अपने कामों में सफ़र करते
हैं। कितने ही लोगों से रोज़ मिलते हैं। तुम प्रमोशन कम्पनी
चलाती हो, नए-नए कलाकारों के सम्पर्क में भी आती हो, एक
प्रकार से शो बिननेस में हो, और मैं भी एक कलाकार होने के
साथ-साथ एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट की कम्पनी में काम करता हूँ। कभी
किसी और की ओर आकर्षित होना, अपने पसन्द के व्यक्तियों से
दोस्ती करना, किसी के लिए स्वाभाविक है। हिप्पोक्रेसी से ऊपर
उठना ही हम दोनों की सोच है, मगर हाँ, एक दूसरे की भावनाओं
और प्यार के सम्मान पर आँच आना गलत होगा।"
चाँदनी सागर की इस धारणा
में सहमति जताते हुए उसके माथे पर अपने होठ रख देती है। कुछ
पलों की खामोशी के बाद उठते हुए सागर कहता है, "चलो चाँद
देखते ही देखते सुबह के सात बज गए हैं, जाने की तैयारी करते
हैं।"
सागर चाँदनी को तब तक
निहारता रहा जब तक वह उसकी आँखों से ओझल नही हो गई। सागर
अपनी धुँधली आँखों के साथ घर की ओर लौट पड़ा। पहली बार सागर
के ब्रुश से चाँदनी की तस्वीर बहने लगी और सागर की आँखों से
चाँदनी का ओझल होता दृश्य उसके कैनवस में कैद होने लगा।
फोन पर सागर और चाँदनी का
संवाद चलता रहा। समय की रफ़्तार सागर को जीवन में पहली बार
धीमी लग रही थी। चाँदनी के लंदन लौटने के दो दिन पूर्व सागर
ने चाँदनी को फोन किया, "हाय चाँद," उधर से आवाज़ आई, "हाय
सागर मैं तुम्हें अभी फोन करती हूँ, ज़रा बिज़ी हूँ।"
सागर ने ओ.के. कह कर फोन रख
दिया। आज सागर चाँदनी को बताना चाहता था कि उसने चाँदनी की
तस्वीर बनाई है। पूरी शाम बीत गई और चाँदनी का फोन नहीं आया।
सागर चिंतित हो उठा। उसने दो-चार बार चाँदनी को फोन करने का
प्रयास किया परन्तु चाँदनी होटल के कमरे में नहीं थी।
सागर ने रात होते होते फिर
फोन किया, यह सोच कर कि अब हिन्दुस्तान में रात के दो बज
चुके होंगे और चाँदनी अवश्य ही कमरे में होगी। उसकी सोच सच
निकली, चाँदनी की आवाज़ सुनते ही सागर खुशी से उछल पड़ा,
"चाँद कहाँ हो तुम ?"
उधर से चाँदनी बोली, "सॉरी
सागर बहुत थक गई और होटल आते ही सो गयी सुबह बात करते हैं।"
चाँदनी ने बिना बाय किए ही फोन रख दिया।
सागर को बहुत अच्छा नहीं
लगा। फिर भी कुछ सोच कर वह हसीन लम्हों में डूब गया जो उसने
चाँदनी की आगोश में बिताए थे।
इंतज़ार खत्म हुआ और सागर
एयरपोर्ट फूलों का गुलदस्ता ले कर पहुँचा, पीले फूलों का जो
चाँदनी को बहुत पसन्द थे। कार में बैठते ही चाँदनी सागर से
बोली, "मुझे विक्टोरिया स्टेशन छोड़ दो, मेरा सीधे
साउथहैम्प्टन जाना ज़रूरी है।"
सागर ने आश्चर्य से पूछा,
"चाँद? आर यू ओ.के.? मैंने घर पर तुम्हारे स्वागत में जानती
हो क्या बनाया है? तुम्हारी तस्वीर, जिसका तुम्हें कितने समय
से इंतज़ार था और मैं कहता था न, मेरा ब्रुश तस्वीर बनाने के
लिए नहीं उठता, उससे तस्वीर स्वयं बन जाती है। मेरे मन ने
पिछले दिनों अभूतपूर्व अहसास का अनुभव किया है जिसका परिणाम
है तुम्हारा यह चित्र। मेरी पेंटिंग्स को मेरे हाथ नहीं,
मेरा मन रंगता है।"
चाँदनी मुस्कुराई जरूर
लेकिन बिना किसी विशेष उल्लास के बोली, "वो तो तुम्हारा पेशा
है पर मुझे अभी अपने घर ही जाना है, अनु की तबियत ठीक नहीं
है एण्ड आई मस्ट गो होम।"
"अरे क्या हुआ बेटी को..." सागर ने आश्चर्य से पूछा।
"बस यूँ ही फ्लू में है। मुझे प्लीज स्टेशन छोड़ दो, ट्रेन
ले लूँगी।" चाँदनी ने फिर दरख़्वास्त की। सागर के इस आग्रह
को भी अस्वीकार कर दिया कि वह उसे साउथहैम्प्टन छोड़ देगा।
सागर मायूस होता जा रहा था
फिर भी उसके व्यवहार में कुछ बदलाव नहीं आया। आज सागर के दिल
पर तब अचानक वार हुआ जब चाँदनी स्टेशन पर उतर गई और सागर के
दिए फूल उसकी कार में ही छोड़ गई। सागर के संजोए सपनों पर
जैसे रेलगाड़ी गुज़र गई। घर उसे काटने को दौड़ने लगा। चाँदनी
के चित्र पर उसकी ओझल होती तस्वीर उसे सत्य सी लगने लगी। वह
आर्मचेयर पर बैठ गया।
कुछ ही देर में फोन की
घण्टी बजी, "हाय सागर" चाँदनी की आवाज़ से सागर को नई
ज़िन्दगी मिली। "आई एम सॉरी, फूल कार में ही रह गए, मैं
जल्दी ही आऊँगी तुम्हारा बनाया चित्र देखने।" सागर की
खुशियाँ वापस लौटने लगी। दो-चार दिनों तक सागर और चाँदनी का
संवाद फोन पर ही चलता रहा। फिर भी कहीं न कहीं सागर को कोई
कमी खल रही थी।
करीब एक सप्ताह बाद सागर ने
स्वयं चाँदनी से मिलने की इच्छा जतायी जिसका चाँदनी ने
स्वागत किया और सागर साउथहैम्प्टन की ओर ड्राइव करने लगा।
कुछ देर दोनों लॉन में बैठे
बाते करते रहे, फिर चाँदनी उठ कर चाय लेने अन्दर चली गई।
सागर की नज़र चाँदनी के मोबाइल पर पड़ी जिसके स्क्रीन पर
किसी का पैगाम पड़ा था। सागर फोन उठा कर उसे पढ़ने लगा जिस
पर लिखा था, "जानेमन, नींद चुरा कर साथ ले गई हो।"
सागर स्तब्ध रह गया। उसकी ज़िंदगी का सारा बहाव ठहर गया।
इतने में अनु लॉन में आ गई। सागर अपनी परेशानी छुपाते हुए
अनु से बोला, "हाउ आर यू अनु, तुम्हारी तबियत कैसी है?" जवाब
में अनु बोली, "मुझे क्या हुआ? मैं तो दस रोज़ से स्कूल की
तरफ़ से कैम्पिंग पर औस्ट्रिया गई थी, परसों ही लौटी हूँ।"
"तो इसका मतलब चाँद ने मुझसे झूठ कहा था कि अनु बीमार है।"
सागर को एक के बाद एक वार मिल रहा था। वह अन्दर ही अन्दर
टूटने लगा। उससे रहा नहीं गया और वह चाँदनी से बिना कुछ कहे
निकल पड़ा। बाहर लॉन में सागर को न देख चाँदनी घबरा गई। सागर
के मोबाइल पर फोन करने लगी परन्तु व्यर्थ फोन ऑफ था। चाँदनी
विचलित होने लगी। उससे रहा न गया और वह भी अपनी कार ले कर
लंदन की ओर चल दी।
इधर सागर गहरी सोच में,
आँसुओं के समन्दर को समेटे हुए अपने घर पहुँचा। अपनी ज़िंदगी
की सारी तस्वीर उसके सामने घूम रही थी, चाँदनी के वायदे,
उसकी प्यार भरी आवाज़ उसकी परिधि में गूँज रही थी। उसने सीधे
एक पैग बनाया, सिगरेट जलाई और आर्मचेयर पर बैठ पीड़ा के घूँट
निगलने लगा। इतने में कॉलबेल बजी, उसने द्वार खोला सामने
चाँदनी खड़ी थी।
सागर ने व्यंग किया,
"आश्चर्य है, तुम कैसे मेरे पीछे-पीछे चली आई?"
"सागर..." चाँदनी बोली, "आश्चर्य तो तुम्हे तब होना चाहिए था
कि जब मैं तुम्हारे इस तरह से बिना बताए आने पर पीछे-पीछे ना
आती।"
सागर चुप रहा और इस संवाद को आगे बढ़ाते हुए बोला, "चाँद,
क्या तुम्हारी ज़िंदगी में कोई और आ गया है?"
एक क्षण की खामोशी के बाद चाँदनी बोली, "नहीं, यह तुम्हारा
भ्रम है, तुम बहुत शक्की हो।"
सागर ने जवाब दिया, "मैं सच की ही राह पर चल रहा हूँ, इसलिए
जो मन में था कह दिया।" जवाब में चाँदनी भी बोली, "तुम अपनी
राह कभी मत बदलना सागर, तुम्हारी राह ही मेरे प्यार की शक्ति
है।"
"और तुम चाँद?" सागर की बात काटते हुए चाँदनी बोली, "मैं
जैसी भी हूँ, पागल हूँ, भटक सकती हूँ लेकिन तुम सागर तुम
मेरा विश्वास हो, प्रेरणा हो, प्लीज़ जो कुछ भी मन में है वो
कहो प्लीज़।"
सागर चाँद को उसकी ओझल होती
तस्वीर दिखाते हुए बोला, "प्रत्येक चित्र मेरे जीवन का
स्वप्न रहा है, यह देखो मेरी ज़िंदगी की हकीकत।"
चाँदनी की आँखों मे पानी छलक आया, वह बोली, "कुछ भी हो जाए,
मैं तुम्हारे जीवन से न कहीं जाउँगी और न ही तुम्हें जाने
दूँगी।
"परन्तु मैं तुम्हारा भविष्य तो नहीं हूँ चाँद?" सागर ने
प्रश्न किया।
चाँदनी सागर की कमीज पकड़ती हुई बोली, "लेकिन मेरा वर्तमान
तो तुम्हीं हो और तुम्ही रहोगे।"
सागर अजीब असमंजस में पड़
गया। क्या कहे और क्या न कहे। उसने पैग उठाया और एक घूँट में
खत्म कर दिया। चाँदनी का हाथ छुड़ाते हुए वापस आर्मचेयर पर
बैठ गया। चाँदनी वही कालीन पर बैठ कर सागर के घुटनों पर सर
रखते हुए बोली, "सागर, मैं स्वयं को खोज रही हूँ। मैं क्या
हूँ? मैं कौन हूँ? मैं क्यों हूँ? मेरा चरित्र, मेरा
अस्तित्व क्या है? मैं पिछले कुछ दिनों से स्वयं से दूर होती
जा रही हूँ। कुछ पल मैं स्वयं के साथ गुज़ारना चाहती हूँ
शायद इसलिए जाने-अनजाने तुम्हें चोट पहुँचा रही हूँ। तुम
मेरे सबसे करीबी दोस्त हो। तुम्हारा मेरी ज़िंदगी में रहना
बहुत ज़रूरी है। तुम्हारा रूठना मुझसे बर्दाश्त नहीं हो पा
रहा है। आई रियेली केयर फार यू, आई लव यू सागर।"
सागर मौन बिलकुल मौन आँखें
बन्द किए बैठा रहा। चाँदनी के नाखून सागर के पाँव में गड़ने
लगे। वह सागर के आलिंगन में सिमटने लगी। सागर ने चाँदनी की
इस हरकत का विरोध अपनी खामोशी को तोड़ते हुए किया,"चाँद,
क्या यह सच नहीं है कि तुमने अनु की बीमारी का बहाना बनाया?
क्या यह भी सच नहीं कि आज कल मुझसे अधिक तुम्हारे करीब कोई
और आ गया है? क्या यह भी सच नहीं कि तुम झूठ का सहारा लेकर
मुझे गुमराह कर रही हो?" इससे पूर्व चाँदनी कुछ और कहे, सागर
चाँदनी के गालों पर अपना हाथ रखते हुए कहने लगा, "चाँद, किसी
और का जीवन में प्रवेश ग़लत नहीं हैं, मनपसन्द साथियों का
जीवन में आना कोई पाप नहीं है। ज़िंदगी में नई खुशियों के
आगमन पर पुरानी खुशियों से नाता तोड़ने में भी कोई बुराई
नहीं है। मैं तुम्हारे साथ हूँ और तुम्हारे साथ ही रहूँगा।
जब तक तुम साथ रखोगी।"
चाँदनी अचानक टूट गई और फूट
फूट कर रोने लगी। चाँदनी का माथा चूमते हुए सागर बोला, "मैं
स्वागत करता हूँ तुम्हारे उस नए साथी का। तुम्हें प्यार करने
वाले हर शख्स से मुझे प्यार है। क्यों कि मुझे तुमसे सच्चा
प्यार है। तुम्हारा बुरा तो मैं सोच ही नहीं सकता।"
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