घर
के बढ़ते खर्चो और तेजी से बढ़ती महँगाई के कारण बचपन से ही
सुगना को अपनी सहेलियों के साथ खेलने की बजाए पास के एक गाँव
में मजदूरी करने के लिये मजबूर होना पड़ा। कड़कती धूप में सुगना
सारा दिन खेतों में नंगे पाँव काम करती रहती तो षाम को मुश्किल
से उसे पाँच रुपये की मजदूरी ही मिल पाती थी। सुगना खुशी-खुशी
अपनी मेहनत के यह पैसे अपनी माँ को देती।
सुगना की
कमाई आने से अब इनके घर में सूखी रोटी के साथ कभी-कभी तरकारी
भी बनने लगी थी। तेजी से भागते समय ने न जाने कब करवट ली और
सुगना छोटी बच्ची से जवान हो गई। अब सुगना ने खेतो में मजदूरी
छोड़ कर एक कारखाने में काम करना शुरू कर दिया था। सारा दिन रबड़
के कारखाने में मन-मसोस कर काम करते वक्त यही सोचती रहती कि इस
बार पगार मिलने पर अपने पैरों के लिये अच्छी सी चप्पल जरूर
लेगी।
जिस दिन पगार
मिलने का दिन आया उस दिन सुबह से ही सुगना बहुत खुष थी। उसी
दिन गाँव में हाट-बाजार भी लगता था जहाँ गाँव वाले अपनी जरूरत
की सभी चीजे खरीदते थे। सुगना भी पगार लेकर जल्दी से अपनी एक
सहेली के साथ हाट की और चली गई। कुछ देर इधर-उधर घूमने के बाद
उसे एक बहुत ही सुंदर चप्पल पंसद आई जिसे उसने झट से खरीद
लिया। आज अपने लिये चप्पल खरीद कर सुगना को ऐसे महसूस हो रहा
था जैसे सारे जहाँ की दौलत उसे मिल गई हो। आज बरसों बाद सुगना
का एक अधूरा ख्वाब पूरा हुआ था। इसकी झलक उसके चेहरे पर साफ
दिखाई दे रही थी। सुगना
बार-बार चप्पल को पैरो में पहनती, दो-चार कदम चल कर फिर उसे
थैले में डाल देती कि कही यह खराब न हो जाये।
घर पहुँचते ही उसका सामना अपनी माँ से हुआ। इससे पहले कि वो
उसे देरी से आने के कुछ कहती सुगना ने खुशी-खुशी थैले से चप्पल
निकाल कर माँ की और बढ़ा दी। चप्पल देखते ही माँ की आखों से
आँसओं का झरना बह निकला और सुगना को गले से लगा कर बोली कि
मेरी प्यारी बेटी को मेरा कितना ख्याल है। आज पहली तनख्वाह
मिलते ही अपनी माँ के लिये इतनी सुंदर चप्पल खरीद कर ले आई है।
माँ सुगना के सिर पर हाथ फेरने के साथ उसे ढेरों आशीर्वाद दे
रही थी लेकिन एक दौरान एक बार भी माँ का ध्यान बेटी के नंगे
पैरो की और नही गया। इससे पहले कि सुगना की सहेली उसकी माँ को
सच्चाई बताती, सुगना ने इशारे से उसे चुप रहने के लिये कहा।
माँ के चेहरे पर बरसों
बाद पहली बार इतनी खुशी देख कर सुगना इतना साहस ही नही जुटा
पाई कि एक बार उससे कह सके कि माँ यह चप्पल तो मैं अपने लिये
लेकर आई थी। आज एक बार फिर से सुगना का पाँव में चप्पल पहनने
का सपना चूर-चूर हो गया था।
जब से सुगना ने कारखाने में काम करना शुरू किया था तभी से उसकी
बिरादरी वालों की ओर से उसके लिये कई रिश्ते आने शुरू हो गये
थे। चंद ही दिनों बाद सुगना के माँ-बाप ने उसका विवाह तय कर
दिया। सुगना की सहेलियाँ उससे हँसी-ठिठोली करती कि अब तो
नये-नये कपड़े और गहने पहनने को मिलेगे। अपनी सहेलियों की बात
को अनसुना करके उसका मन तो यही कह रहा था कि कपड़े-गहने चाहे
मिले या न मिले लेकिन शादी होते ही एक-दो जोड़ी चप्पल तो जरूर
नसीब हो जायेगी। जैसे ही शादी की सारी रस्में पूरी हुई और
सुगना एक सुंदर सी चप्पल पहनने लगी तो सुगना की किस्मत ने एक
बार फिर से उसे धोखा दे दिया।
उसकी सास ने
उसे रोकते हुए कहा कि हमारे यहाँ नवविाहिता बहू एक साल तक
पैरों सिर्फ महावर लगा कर रखती है और चप्पल नही पहनती। बरसों
से चप्पल पहनने की आस मन में पालने वाली सुगना आज फिर पैरों
में चप्पल नही पहन पाई। उसकी चप्पल पहनने का सपना हकीकत बनने
के करीब आकर फिर से चकनाचूर हो गया था। जैसे तैसे सुगना का
सुसराल में एक-एक दिन एक-एक साल की तरह बीत रहा था। जैसे ही
साल पूरा होने में कुछ दिन बचे थे
सुगना गाँव में फैली एक महामारी
की शिकार हो गई। गाँव में ठीक समय पर इलाज न मिल पाने के कारण
सुगना इस दुनियाँ को नंगे पाँव ही अलविदा कहना पड़ा।
सुगना सारी जिंदगी अपने पैर में एक चप्पल का सपना देखती रही
लेकिन उसे अपनी सारी जिंदगी में एक जोड़ी चप्पल नसीब नही हो
पाई। सारा गाँव सुगना के अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहा था।
गाँव की औरतो
ने सुगना का सुहागिनों की तरह अच्छे से शृंगार किया और सुसराल
वालों ने उसके पैरो में एक जौड़ी चप्पल रख दी। यह सब कुछ इसलिये
किया जा रहा था क्योंकि उसके गाँव वालो का यह रिवाज था कि किसी
भी सुहागन को नंगे पाँव इस दुनियाँ से बिदाई नही दी जाती।
जैसे ही
सुगना की अर्थी उठा कर अंतिम संस्कार के लिये जाने लगे तो उसके
नंगे पाव को देख कर उसकी प्यारी सहेली के मन से यह आवाज उठी कि
आज तक यही सुना था कि आदमी उम्र और रूतबे से बड़ा होता है लेकिन
आज सुगना के इस देवी जैसी रूप को देख कर यह एहसास हो रहा है कि
कोई भी इंसान उम्र से बड़ा नही बनता, बल्कि बड़ाई तो उसकी
ईमानदारी और सादगी के मिश्रण से बनती है फिर चाहे किसी के
पैरों में मंहगी चप्पल हो या कोई नंगे पाँव ही क्यों न हो। |