आने
जाने वाले लोग अक्सर उसे वहाँ नमाज पढ़ते देखते। वह पाँचों वक्त
की नमाज समय की पाबंदी के साथ पढ़ता था। अधिकारी उसे एक
परिश्रमी कर्मचारी मानते थे। कोई अधिकारी यह नहीं जानता था कि
यहाँ पर रहने के कमरे किस ने बनाये हैं और खेती बाड़ी कौन करता
है। जब कभी कोई छोटा मोटा अधिकारी वहाँ से निकलता तो वह उसकी
भरपूर सेवा करता। ताजी साग सब्जी उसकी गाड़ी में रखवा देता।
अभी खुदाबख्श किशोर वय का ही था कि बंगलादेश के एक गाँव से भाग
निकला था। मुश्किल से उसने आठवीं तक की पढ़ाई गाँव में रह कर की
थी। पढ़ाई में उसका मन कतई नहीं लगता था। उसके गाँव के बहुत से
युवक किसी तरह जोड़ तोड़ करके अवैध रूप से भारत में आ बसे थे। आम
बंगलादेशवासियों को लगता था कि भारत ही उनके सपनों का देश है।
बंगलादेश की सीमा लाँघ कर भारत में प्रवेश करना उनके लिए सपना
ही नहीं उज्ज्वल भविश्य का पासपोर्ट था। जिसको जब अवसर मिला वह
वहाँ से निकल भागा। फिर उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
प्रारम्भ में भारत भाग कर गए लोग स्वयं वापिस नहीं आते थे। कभी
कभार जब वे भारत की पुलिस द्वारा पकड़ कर वापिस भेज दिए जाते तो
आते ही पुनः भारत लौटने की तरकीबें लगाने में जुट जाते। कितने
ही लोग ऐसे थे जिन्होंने अपने नाम तक बदल लिए थे। उसे बताया
गया था कि हिन्दुस्तान में हिन्दू नाम रखना सुविधाजनक रहता है।
हिन्दुस्तान में भी बहुत से मुस्लिम अपने दो दो नाम रखने लगे
हैं। घरों में काम करने वाली मुस्लिम महिलाएँ भी अपने हिन्दू
नामों के आधार पर काम पाने का प्रयास करती हैं। एक बार नाम बदल
कर राशन कार्ड बन गया तो फिर कोई समस्या नहीं। जिन लोगों ने
नाम नहीं भी बदले थे उन्होंने भी किसी न किसी तरह से जुगाड़
करके अपने राशन कार्ड और परिचय पत्र बनवा रखे थे और बकायदा
भारत के नागरिक बन कर वहाँ मतदान तक करने लगे थे। कईयों के पास
भारतीय पासपोर्ट थे तो कई अभी तक अवैध रास्ते से ही घर आने
जाने का जोखिम उठाते थे।
ऐसे ही एक जत्थे के साथ पन्द्रह वर्ष पूर्व खुदाबख्श ने
बंगलादेश की सीमा लाँघ कर भारत में प्रवेश किया था। जत्थे के
नेता ने कई हजार रुपए प्रति व्यक्ति सीमा सुरक्षा बल के
अधिकारियों को दिए थे। इस धंधे में दोनों ही देशों के अधिकारी
शामिल थे। हिन्दुस्तान पहुँचने पर उनके रहने की व्यवस्था भी
उन्हीं लोगों ने की थी। समय समय पर वे उनके लिए काम धन्धों का
प्रबंध भी करते थे क्योंकि उन्हें अपने पैसे वसूलने होते थे।
इसके लिए उनकी आधी कमाई वे लोग ले लेते थे। आधी से वे लोग अपना
गुजारा करते और कुछ बचा कर घर भेज देते। खुदाबख्श ने पाँच वर्ष
की अवधि इसी प्रकार यहाँ वहाँ काम करते हुए व्यतीत की थी। उसी
नेता ने खुदाबख्श का राशन कार्ड भी बनवा दिया था और एक स्कूल
से नौंवी फेल होने का प्रमाण पत्र भी दिलवा दिया था।
युवा होते होते खुदाबख्श यहाँ के वातावरण में पूरी तरह से रच
बस गया। एक मोटी रकम दे कर उसने रेलवे में नौकरी भी प्राप्त कर
ली थी। इससे पहले उसे कई बार रिक्शा चलाना पड़ा तो कभी मजदूरी
करनी पड़ी। कभी किसी ढाबे में काम किया तो कभी किसी घटिया से
होटल में। होटल में काम करने का उसे बहुत लाभ हुआ था। वहाँ पर
खाने और रहने की व्यवस्था बहुत आसानी से हो जाती थी। वेतन और
टिप के पैसे जमा पूँजी बनने लगे थे। होटल में उसने अनेक प्रकार
के गैर कानूनी धंधे होते देखे थे इसलिए वह उनमें पूरी तरह से
पारंगत होता गया था।
एक होटल में काम करते हुए उसने देखा कि नकली शराब बनाना और
बेचना बहुत ही लाभ का धंधा है। इतना ही नहीं उसे इस बात की
पूरी जानकारी हो चुकी थी कि भारत की सरकार अल्पसंख्यकों के
प्रति बहुत ही नरम रवैया रखती है। उन्हें प्रसन्न रखने का हर
प्रयास करती है। यहाँ आने से पहले वह एक झुग्गी झोंपड़ी बस्ती
में रहता था। वहाँ बहुत बड़ी संख्या में बंगलादेशी रहते थे।
थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा होने के कारण वह उनका स्वाभाविक नेता बन
गया था। सरकारी नौकरी मिलने के बाद उसे हीरो जैसा सम्मान मिलने
लगा था। झुग्गी झोंपड़ियों में नेता क्या क्या काले कारनामे
करते और करवाते हैं किसी प्रकार की मुसीबत में फँसने पर
स्थानीय नेता कैसे उनकी मदद करते हैं यह सब वह जान चुका था।
नेताओं की पुलिस से कैसे साठ गाँठ और भागीदारी होती है इसका
उसे ज्ञान था।
धीरे धीरे उसके पंख उगने लगे थे। उसने देखा भारत में धर्म से
बडा दूसरा कोई व्यवसाय नहीं है। धर्म से जुड़े किसी भी स्थान
को, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों की ओर तो कोई
नजर उठा कर देखने का साहस भी नहीं जुटा पाता था। यदि कभी कहीं
कोई गड़बड़ हो जाती तो तुरन्त पूरा मामला अन्तरराष्ट्रीय हो
जाता। धर्म के नाम पर होने वाले छोटे मोटे झगड़ों का भरपूर लाभ
उठाने में वह नहीं चूकता था। जब भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती
इन्दिरा गाँधी की हत्या हुई तब उसके बाद सिखों का कत्लेआम हुआ।
उनके घर परिवारों की लूट मार हुई तो ऐसी बहती गंगा में उसने जी
भर कर हाथ धोए थे। इन्दिरा गाँधी उसकी प्रिय नेता थी। उन्हीं
के कारण ही तो उसके देश को पाकिस्तान की गुलामी से आजादी मिली
थी। इसलिए उसने स्थानीय नेताओं और पुलिस के संरक्षण में जम कर
लूट पाट की थी। बाद में धीरे धीरे उसने उन वस्तुओं को बेच कर
अच्छा खासा धन जमा कर लिया था। स्थानीय नेताओं ने भी उसे इस
काम के लिए अच्छी खासी रकम दी थी।
इसी बीच उसकी डयूटी इस क्रासिंग पर लग गई। वह अपने आप को
व्यवस्थित करने के जुगाड़ में लग गया। बीच में एक बार वह
बंगलादेश हो आया था। वहाँ पर उसने विवाह करके एक मकान बना लिया
था। उसकी एक बीबी गाँव में रहती थी और दूसरी पुरानी वाली झोपड़ी
में। इन दिनों वह तीसरा विवाह करने की जुगत बिठा रहा था।
इसीलिए उसने यहाँ पर दो कमरे और मजार के साथ एक कोठरी बना ली
थी। उसे इस बात का कोई अनुमान नहीं था कि अचानक यह बिजली उस पर
आ गिरेगी।
वह चिन्ता के सागर में गोते लगा ही रहा था कि रेलवे का एक
वरिष्ठ अधिकारी उधर आ निकला। अपने स्वभाव के विपरीत खुदाबख्श
ने बहुत ठंडे व्यवहार के साथ उसका स्वागत किया। अधिकारी का
चौंकना स्वाभाविक था। बहुत कुरेदने पर खुदाबख्श ने अपनी समस्या
बताई और संकेत से यह भी समझाने का प्रयास किया कि वह किसी भी
कीमत पर यहीं पर बने रहना चाहता है। जब उसने इस काम के लिए दस
लाख रुपए की रिश्वत तक देने का प्रस्ताव किया तो अधिकारी के
कान खड़े हो गये। उसे समझ नहीं आया कि एक कैबिन मैन अपनी बदली
को रुकवाने के लिए इतनी बड़ी रिश्वत देने के लिए कैसे तैयार हो
सकता है। इससे भी आश्चर्य की बात यह थी कि बदली एक अच्छे
स्टेशन पर की जा रही थी, जहाँ पर काम करने के लिए हर कोई
लालायित रहता है। आखिर इस स्थान में ऐसा क्या है जो खुदाबख्श
यहीं पर बने रहने पर आमादा है।
अधिकारी ने कहा,‘‘यदि तुम्हारे पास देने को इतने रुपए हैं तो
मैं रेलवे बोर्ड के किसी सदस्य से तुम्हारी बदली रुकवाने का
प्रयास करता हूँ। इतनी बड़ी राशि में से कुछ मेरे हिस्से भी
आयेगा ही।’’
अधिकारी के रूप में खुदाबख्श को कोई फरिश्ता दिखाई देने लगा।
उसने लपक कर उसके पाँव थाम लिए। हाथ जोड़ कर बोला,‘‘ जैसे भी हो
मुझे यहाँ से हटना न पड़े। मैं आपकी भी यथासंभव भेंट पूजा कर
दूँगा।’’
अधिकारी ने पूछा,‘‘ परन्तु तुम इतनी भारी राशि लाओगे कहाँ से
और फिर तुम यहीं पर क्यों रहना चाहते हो। तुम्हें तो अच्छी जगह
पर भेजा जा रहा है। इतनी पूंजी से तो तुम अपना कोई काम धंधा भी
जमा सकते हो।’’
‘‘वह सब आप रहने दो सरकार। आप तो मेरा काम करवाओ और भेंट
स्वीकार करो। बाकी किसी मामले से आप लोगों को कोई सरोकार नहीं
होना चाहिए।’’ उसने कहा।
‘‘फिर भी जब तक बात समझ में न आये मैं ऊपर किसी से बात कैसे कर
सकता हूँ। तुम्हीं बताओ यदि मैं किसी बड़े अधिकारी को कहूँ कि
कोई कैबिन मैन अपनी बदली रुकवाने के लिए दस लाख रुपए देने को
तैयार है तो कौन विश्वास करेगा।’’ अधिकारी ने अपनी चिन्ता
व्यक्त की।
‘‘आपको दस लाख कहने की आवश्यकता ही क्या है । आप तो उतना ही
कहो जितने से काम बन जाये। शेष आप रख लेना। ’’खुदाबख्श ने
सुझाया।
अब अधिकारी को भी मजा आने लगा। दिमाग में अनेक ऐसे नाम घूमने
लगे जो अक्सर इस प्रकार के काम करवाते थे और जिन की रेलवे
मंत्री तक सीधे पहुँच थी।
ऐसे ही रेलवे बोर्ड के एक सदस्य से जब उस अधिकारी ने बात की तो
उसे लगा यह कोई बड़ा काम तो है नहीं, परन्तु उसके दिमाग में
घंटियाँ अवश्य बजने लगीं।
उसने पूछा,‘‘ कोई कैबिन मैन इतनी बड़ी रकम इतने छोटे से काम के
लिए क्यों देगा और कहाँ से देगा। काम होने के बाद दे पायेगा
अथवा नहीं इसकी क्या गारंटी है।’’
‘‘वह सब आप मुझ पर छोड़ दें सर। वह तो सारी राशि अग्रिम ही देने
को तैयार है।’’
‘‘तो ठीक है। मैं देखता हूँ कि इस सारे मामले में कहीं कोई
टेढ़ा पेच तो नहीं। किसी प्रकार का जाल तो नहीं बिछाया जा
रहा।’’
दोनों ने मिल कर पूरे मामले की जाँच पड़ताल की तो कहीं कुछ गड़बड़
दिखाई नहीं दी। यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण करने
का साधारण सा मामला था। खुदाबख्श का रिकार्ड एकदम साफ था। वह
बहुत लंबे समय से एक ही स्थान पर काम कर रहा था। उस बड़े स्टेशन
पर किसी परिश्रमी और डयूटी के प्रति सचेत व्यक्ति की आवश्यकता
थी इसलिए उसकी बदली वहाँ पर की जा रही थी।
साधारण स्थानांतरण का मामला होने के वावजूद उसके लिए दी जाने
वाली राशि का प्रस्ताव उस सदस्य के गले नहीं उतर रहा था। उसे
लग रहा था कि कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है।
बात एक से दूसरे कान में पहुँचते पहुँचते मंत्री महोदय के
कानों तक भी जा पहुँची। वह सदस्य वैसे भी मंत्रीजी के मुँह लगा
था। मंत्रीजी ने तत्काल उसे बुलवा भेजा। वास्तव में वह इस बात
की गहराई तक जाना चाहते थे। राजनीतिक क्षेत्रों में रेलवे
मंत्री रेत से भी तेल निकाल लाने वाले व्यक्ति माने जाते थे।
उनकी रुचि यह जानने में थी कि ऐसा कैसे हो सकता है। तबादला तो
निहायत ही मामूली बात थी। वह जानते थे कि तबादलों में कैसे
पैसा लिया जाता है। राजनीति भी की जाती है। अब वह यह जानना
चाहते थे कि जब इसमें कोई राजनीति नहीं है तो पैसा कहाँ है।
रेल मंत्री ने उस सदस्य को बुलाया। दोनों की बातचीत में जब कुछ
भी निकलता दिखाई नहीं दिया तो उस अधिकारी को भी बुला लिया गया।
अधिकारी ने अपनी और खुदाबख्श की पूरी बातचीत रेलमंत्री के
सामने रख दी। परन्तु अभी भी इस गुत्थी का कोई सिरा दिखाई नहीं
दे रहा था। तय पाया गया कि खुदाबख्श को मंत्रीजी से मिलवाया
जाये। इस बीच उसकी पूरी जन्मकुंडली बनवा कर मंत्रीजी के सामने
प्रस्तुत की जाये।
आनन फानन में खुदाबख्श के जन्म से ले कर भारत में नौकरी करने
तक की पूरी सूचना उनके सामने धर दी गई । अब योजना के अनुसार
खुदाबख्श को मंत्रीजी के पास लाया गया। थर थर काँपते हुए
खुदाबख्श को पूरी तरह से आश्वस्त कर दिया गया था कि उसका बाल
बाँका भी नहीं होगा। केवल मंत्रीजी उससे मिलना भर चाहते हैं।
परन्तु खुदाबख्श को तो सब कुछ हाथ से फिसलता हुआ दिखाई दे रहा
था। उसे मंत्रीजी की इच्छा के अनुसार उनके कमरे में अकेला छोड़
दिया गया।
मंत्रीजी ने उसे अपने पास बिठाते हुए स्नेह भरे शब्दों में
पूछा, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा। हाँ! खुदाबख्श तुम्हारा तबादला
तो समझो अभी से रद्द हो गया और उसके लिए तुम्हें कोई पैसा भी
नहीं देना पड़ेगा परन्तु तुम्हें इतना अवश्य बताना पड़ेगा कि
आखिर इतना पैसा तुम देने के लिए तैयार क्यों हो गए और यह पैसा
तुम देते कहाँ से?’’
खुदाबख्श ने उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया। वह चुपचाप नजरें
नीची किए बैठा रहा। मंत्री जी के बार बार आश्वस्त करने के
पश्चात जब उसे लगा कि वास्तव में उस पर कोई आँच नहीं आने वाली
तो बोला,‘‘ सरकार यह मेरे धंधे का मामला है। इसमें आपकी क्या
दिलचस्पी हो सकती है। आप चाहें तो मैं इस राशि के साथ साथ
प्रति माह आपको एक निश्चित रकम पहुँचा दिया करुँगा परन्तु इसके
बारे में अधिक पूछताछ न करें। मैं आपके सामने झूठ बोलने का
साहस कर नहीं सकता और सत्य बता कर अपनी गर्दन भी फँसाना नहीं
चाहता।’’
रेलमंत्री ने कहा देखो तुम्हारे गाँव से लेकर भारत आने,यहाँ पर
रहने और नौकरी पाने तक का पूरा इतिहास हमारे पास है। हमने
तुम्हारे जैसे लाखों बंगलादेशियों को अपने चुनाव क्षेत्रों में
बसा रखा है । तुम्हारी गर्दन फँसाने में हमारी कोई दिलचस्पी
नहीं है। हम तो केवल इतना जानना चाहते हैं कि आखिर यह पैसा आता
कहाँ से। ’’
कोई दूसरा चारा न देखते हुए खुदाबख्श उठ कर मंत्री जी के पैरों
के पास फर्ष पर बैठ गया। बोला,‘‘ हजूर मैं सारी बात आपको साफ
साफ बताता हूँ परन्तु आपको इतना वायदा करना पड़ेगा कि आप बात
अपने तक ही रखेंगे और मुझे वहाँ से नहीं हटायेंगे। एक प्रकार
से यह मेरा ट्रेड सीक्रेट है।’’
‘‘ऐसा ही होगा। तुम निश्चिंत रहो,’’ मंत्री जी ने आश्वासन
दिया।
‘‘सरकार जिस रेलवे क्रासिंग पर मैं डयूटी करता हूँ वहाँ दिन भर
थोड़ी थोड़ी देर में ढेर सारी रेलगाड़ियाँ आती जाती रहती हैं। रात
में वह प्रायः सुनसान रहता है। शहर के समीप होने के कारण बहुत
बड़ी संख्या में लोग इधर से उधर और उधर से इधर आते जाते रहते
हैं। बार बार रेलवे फाटक बंद होने के कारण वाहनों को दोंनों ओर
रुकना पड़ता है। दोनों ओर बहुत से रेहडी और खोंमचे वाले अपना
अपना सामान बेचते हैं। बड़ी संख्या में भिखारी वहाँ भीख माँगने
के लिए सुबह से एकत्र हो जाते हैं। रेल के बैरियर पर खड़े खड़े
लोग उनसे सामान खरीदते रहते हैं। यदि मैं हर बार बैरियर उठाने
और गिराने में दो दो मिनट का समय अधिक लगाऊँ तो उनकी बिक्री
में काफी इजाफा हो जाता है। मैं मौका देख कर कई बार पाँच पाँच
मिनट पहले ही बैरियर नीचे कर देता हूँ और रेलगाड़ी के निकल जाने
के बाद भी तुरन्त ही उसे नहीं उठाता। इसके लिए सभी रेहड़ी और
खोमचे वाले यहाँ तक कि भीख माँगने वाले भी मुझे हफ्ता देते
हैं। इस प्रकार हर महीने मेरे पास अच्छी खासी राशि जमा हो जाती
है।’’ इतना कह कर वह चुप हो गया।
‘‘ परन्तु यह राशि तो इतनी अधिक नहीं हो सकती कि तुम वहाँ टिके
रहने के लिए लाखों रुपए देने के लिए तैयार हो जाओ।’’ मंत्रीजी
ने जिज्ञासा व्यक्त की।
‘‘ नहीं हजूर बहुत पैसा हो जाता है और सालों से मेरा यह
कारोबार चल रहा है। मैं सच कह रहा हूँ।’’ उसने उत्तर दिया।
‘‘ तुम कहते हो तो मान लेता हूँ। पर जानता हूँ कि बात इतनी
साधारण नहीं हो सकती। आखिर मैं मंत्री हूँ। दिन भर हजारों
लोगों से मेरा पाला पड़ता है। जब यह तय हो गया है कि तुम हर बात
सच सच बताओगे तो अब झिझक क्यों रहे हो। निडर हो कर पूरी बात
बताओ। तुम्हें किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा यह मेरा वायदा
है।’’ मंत्रीजी ने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा।
‘‘हजूर। रात में वह इलाका पूरी तरह से सुनसान हो जाता है। रात
में अधिक गाड़ियाँ भी नहीं चलती। रात के सन्नाटे में शहर के
लड़के लड़कियाँ थोड़ी बहुत तफरी करने के लिए वहाँ आ जाते हैं।
वहाँ पर वे बिना किसी डर के मौज मस्ती करते हैं और मेरी दोनों
मुट्ठियाँ गरम करते रहते हैं। ऐसे कितने ही जोड़े प्रतिदिन घंटे
दो घंटे के लिए वहाँ आते हैं और हजारों रुपए दे जाते हैं। उनके
लिए दवा दारू का प्रबंध भी मैं ही करता हूँ उससे अतिरिक्त
आमदनी हो जाती है।’’ खुदाबख्श ने हकलाते हुए बताया।
‘‘एक प्रकार से तुम वेश्यालय चलाते हो और शराब का धंधा भी करते
हो।’’ मंत्री जी ने अपनी बाईं आँख दबाते हुए कहा,‘‘ कभी किसी
को हमारे यहाँ भी भिजवाने की व्यवस्था करो।’’
‘‘ तौबा तौबा हजूर। मैं तो पाँच टाइम नमाज पढ़ने वाला हूँ। मैं
जिन्दा गोश्त किसी को नहीं परोसता। लड़के तो अपने साथ ही
लड़कियों को लाते हैं। वे लोग अपनी मरजी से वहाँ आते हैं और मौज
मस्ती करके लौट जाते हैं। बहुतों को तो मैं जानता तक नहीं। एक
दूसरे से सुन कर कभी एक दूसरे के साथ चले आते हैं। ऐसे मौके पर
मैं तो उन कमरों में झाँकता तक नहीं। उन्हें जो कुछ चाहिए होता
है वह मैं मजार वाली कोठरी में रख देता हूँ। वे पूरी ईमानदारी
से सामान उठाते हैं और वहीं मजार पर पैसा चढ़ा देते हैं।’’ उसने
सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा।
‘‘और यह मजार का क्या चक्कर है।’’ मंत्री जी ने पूछा।
‘‘कुछ नहीं सरकार। वह किसी पीर की बहुत ही करामती जगह है। जिस
औरत को औलाद नहीं होती वह वहाँ पर रात में चादर चढ़ाने आती है
तो पीर साहब के करम से जल्दी ही उसकी गोद भर जाती है। खुश हो
कर वह पीर साहब को भरपूर दान दक्षिणा दे जाती है।’’ खुदाबख्श
ने बताया।
‘‘और पीर साहब गोद भरने स्वयं आते होगें मजार से निकल कर।’’
मंत्री जी ने हल्का सा मजाक करते हुए कहा।
‘‘तौबा तौबा सरकार। वह तो मैंने दो चार पहलवान पाल रखे हुए हैं
वहाँ पर जो रात में उस जगह की रखवाली करते हैं और जरूरतमंद
औरतों की जरूरतें भी पूरी कर देते हैं। इस प्रकार मुझे भी वहाँ
दो चार लोगों का साथ मिल जाता है। हम मिल बैठ कर खा पी लेते
हैं। नहीं तो रात में अकेले रहते रहते उस सुनसान इलाके में तो
अब तक दम घुट गया होता। यदि आपकी मेहरबानी बनी रही तो जल्दी ही
तीसरी शादी करके एक बीवी को वहाँ बसाने का ख्याल है। यदि हजूर
चाहें तो वहाँ पर रेलवे की बेकार पड़ी जमीन उसके नाम लीज कर
देंगे तो उसका भी गुजारा चल जायेगा।’’ खुदाबख्श ने मंत्री के
दोस्ताना व्यवहार का फायदा उठाते हुए एक नई माँग पेश कर दी।
‘‘ठीक है यह भी हो जायेगा। इसके लिए तुम आवेदन पत्र दे देना।
मैं देखता हूँ कि इस मामले में क्या कर सकता हूँ।’’ मंत्रीजी
ने उसे जाने का इशारा किया और बोले,‘‘ आज तुम ने कमाई का एक
नया रास्ता दिखाया है इसके लिए शुक्रिया।’’
खुदाबख्श के बाहर जाते ही मंत्रीजी ने उस सदस्य को भीतर बुलाया
और जल्दी से जल्दी देश भर में फैले ऐसे ही रेलवे क्रासिंग्स का
ब्लू प्रिंट तैयार करने का आदेश दे दिया। |