“कौन
सा अहसान किया था उन्होंने? मुझे पड़ोस की मनमीत आंटी ने सब
बताया है, कैसे तुम दिन-रात उनके घर में नौकरानी की तरह से
खटती थीं। उसके बदले में थोड़ा सहारा दे दिया तो कौन सा उपकार
कर दिया। एक बार कह दिया ये साग-रोटी ले कर नहीं जाना है।
हमारे घर पैसों का पेड़ नहीं लगता।“ तैश में अपनी बात कहती
निम्मो सास के हाथ से पोटली छीन बड़बड़ाती हुई अंदर चली गई।
बहू के व्यवहार पर जस्सी उसे फटी-फटी आँखों से देखती रह गई।
विरोध के शब्द मुँह से निकल ही नहीं सके। वापस अपने कमरे में
जा कर कटे पेड़ सी पलंग पर गिर पड़ी। आँखों से आँसुओं का सैलाब
बह निकला। कल भाई जी से कह आई थी, उनके लिए उनका मनपसंद साग
बनाकर ले जाएगी। वह उसका इंतज़ार कर रहे होंगे। अमरीकन बहू से
तो दो फुल्कों का भी सहारा नहीं है। बे्टा भी उसी के रंग में
रंग गया है। जब तक अमिया थी भाई जी को गरम-गरम फुल्के सेंक कर
खिलाती थी। आज अमिया को दुनिया छोड़े बीस दिन बीत चुके हैं।
कैसे अचानक सबको छोड़ कर सोते-सोते चली गई। एक बार भी नहीं
सोचा, उसके बाद भाई जी क्या करेंगे? उनका चश्मा, दवाइयाँ, कपड़े
कौन सहेजेगा। अपनी हर बात
के लिए तो भाई जी अमिया पर निर्भर थे।
आँसुओं से धुँधली आँखो में से अतीत की खिड़कियाँ एक-एक करके
खुलने लगीं।
जस्सी और अमृत के घर पास- पास थे। दोनो घरों में बहुत
मेल-मिलाप था। तीन बरस की जस्सी पांच बरस की अमृत के पीछे-पीछे
घूमती। जस्सी अमृत नहीं कह पाती इसलिए उसे अमिया पुकारती। सबको
जस्सी का दिया नाम इतना पसंद आया कि अमृत को अमिया ही पुकारा
जाने लगा। दोनो का प्यार देख कर सब यही समझते कि वे दोनो बहने
हैं। पास के बाग से कच्चे आम- अमरूद तोड़ने पर अमिया अपने ऊपर
सारा दोष लेकर, माली की डांट खा, जस्सी को बचा लेती।
नन्ही जस्सी समझ नहीं
पाती उसके घर उसके पापा क्यों नहीं हैं। माँ दिन- रात मशीन पर
दूसरों के लिए कपड़े सिलती, कढाई-बुनाई करती, पर उसके लिए
दूसरों की सिलाई के बाद बचे टुकड़े जोड़ कर फ़्राक सिल देती। हाँ
अमिया वाली आंटी जी उसे हर त्योहार और जन्म-दिन के अलावा जब भी
अमिया को कपड़े खरीदतीं तो जस्सी के लिए भी नई फ़्राक ज़रूर
देतीं। अमिया के छोटे होगए कपड़ों को तो वह बड़े शौक से पहनती।
अमिया के पापा भी उसे प्यार करते, पर उसके अपने पापा कहाँ थे?
उसे याद है जब अमिया को स्कूल में दाखिला दिलाया गया तो वह भी
स्कूल जाने को मचल गई थी। बड़ी मुश्किल से उसे समझाया गया था,
स्कूल में दाखिले के लिए उसकी उम्र कम थी। पाँच साल की होते ही
अमिया के पापा उसे खुद ले कर स्कूल में उसका नाम लिखा आए थे।
पीठ पर बस्ता लादे दोनो साथ-साथ स्कूल जाने लगीं। अमिया जस्सी
की पूरी जिम्मेदारी अपनी समझती। समय के साथ जस्सी की समझ में आ
गया उसके पापा एक ऐक्सीडेंट में उसे और उसकी माँ को हमेशा के
लिए छोड़ कर भगवान के पास चले गए थे। पापा के घरवालों ने जायदाद
से माँ का हिस्सा भी छीन कर उसे बेघर कर दिया था। गाँव वापस
लौटी माँ और नन्ही जस्सी को अमिया के पापा और मां ने अपने
रिश्तेदारों से बढ़ कर अपना लिया।
गाँव जैसे उस छोटे कस्बे में लड़कियों के लिए दसवीं तक का स्कूल
खुल जाना उनका सौभाग्य ही था। अमिया दसवीं पास कर चुकी थी। उसे
शहर भेजते उसकी माँ को डर लगता था। ये अमिया की किस्मत ही थी
कि स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा शुरू कर दी गई। अमिया की पढ़ाई
बंद हो जाने की कल्पना से जस्सी उदास थी। अब वह भी खुशी से चहक
उठी।
“अब कितना मज़ा आएगा हम
दोनो साथ-साथ जाएँगे।“
अचानक इस खुशी में एक दुखद घटना घटी। अमिया की मां की आकस्मिक
मृत्यु ने सबको स्तब्ध कर दिया। उस कठिन समय में अमिया को
जस्सी की माँ और जस्सी ने सम्हाला था। पत्नी की मृत्यु के बाद
अमिया के पापा जीवन के प्रति उदासीन होगए। अमिया का अधिकांश
समय जस्सी के घर ही बीतने लगा। जीवन से विरक्त अमिया के पापा
ने एक तरह से सन्यास ही ले लिया था। इसी बीच उनके एक घनिष्ठ
मित्र की की भी मृत्यु हो गई मित्र की पत्नी पहले ही यह संसार
छोड़कर जा चुकी थीं। मित्र का बेटा कुंदन अनाथ हो गया वह
सौम्य-सुशील और शिक्षित युवक था। अमिया के पापा को कुन्दन अपनी
बेटी के लिए हर तरह से योग्य वर लगा था। बेटी के दायित्व से
मुक्त होने के लिए एक शुभ मुहूर्त में अमिया और कुन्दन का
विवाह हो गया। शादी में जस्सी की माँ ने दिन रात काम करके
अमिया को माँ की कमी महसूस नहीं होने दी।
कुन्दन और अमिया की शादी में जस्सी के उत्साह का अन्त नहीं था।
शादी पर पहनने के लिए अमिया ने जस्सी के लिए भी नए सूट सिलवाए
थे। धानी सलवार सूट पर टिशू की चुन्नी के साथ गले में मोती की
माला और कान में मैचिंग झुमके पहने जस्सी खूब सज रही थी। साथ
की लड़कियाँ कुन्दन को छेड़ रही थीं। जस्सी को कुन्दन से
सहानुभूति हो आई। प्यार से पूछा-
“हम आपको जीजू नहीं कहेंगे, भाई जी कहें तो कैसा रहेगा?’
“मुझे बहुत अच्छा लगेगा।
मेरी कोई बहिन नहीं है, तुम जैसी बहिन पाकर तो हर त्योहार की
खुशी दुगनी हो जाएगी।‘’मुस्करा कर कुन्दन ने कहा था।
शादी में अमिया को माँ की कमी खल रही थी, पर जस्सी और उसकी
सहेलियों ने नाच-गा कर रौनक कर दी। जस्सी का नाच तो देख कर सब
तालियाँ बजाते नहीं थक रहे थे।
अमिया की शादी के बाद उसके पापा कुन्दन पर सारी ज़िम्मेदारी छोड़
कर हरिद्वार चले गए। कुन्दन ने अमिया के पापा का काम बड़ी अच्छी
तरह से सम्हाल लिया और वह उसमें व्यस्त हो गया। घर में उसके न
रहने पर जस्सी और अमिया की बातों का पिटारा खुल जाता। कभी-कभी
कुंदन का एक मित्र मेहर भी उनकी बातों में शामिल हो जाता।
जस्सी पर उसकी मुग्ध दृष्टि अमिया से छिपी नहीं थी। मेहर की
मज़ेदार बातें जस्सी को भी हँसा देतीं। कभी-कभी दोनो की आँखें
मिल जाने पर जस्सी शर्मा जाती। मेहर का जस्सी के प्रति अनुराग
देखकर एक दिन अमिया ने उससे पूछ ही लिया-“सच कहो, मेहर भाई
तुम्हें जस्सी पसंद है न?” उत्तर में मेहर मुस्कुरा दिया।
राखी के दिन जस्सी बहुत उत्साहित थी। अपने हाथों से मिठाई बना
कर पूजा की थाली सजाई। कुन्दन को राखी बांधती जस्सी का चेहरा
चमक रहा था। कुन्दन की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। जस्सी को
उपहार दे कर कहा-
“आज मेरी जिंदगी की सबसे बड़ा खुशी का दिन है। मुझे राखी बांधने
वाली बहिन मिल गई है।“
“और हमे एक प्यारा भाई मिला है, पर अमिया को हम भाभी नहीं
कहेंगे। हमारे लिए वो अमिया ही रहेगी, मेरी बड़ी बहिन।“
इस अवसर पर मेहर भी उपस्थित था, उसने अपने मन की बात खोल दी,
वह जस्सी से शादी करना चाहता था। अमिया ने जस्सी की माँ के
सामने मेहर का प्रस्ताव रख दिया।
“मेहर हर तरह से जस्सी के लिए अच्छा पति साबित होगा। गाँव में
उसकी ज़मीन जायदाद है। मेहर का बड़ा भाई कहने को तो सौतेला है,
पर वही खेती सम्हालता है और मेहर अल्मूनियम बनाने वाली फ़ैक्टरी
में काम करता है।“
जस्सी की माँ को भला क्या ऐतराज़ होता। उसे भी जस्सी के लिये एक
सुयोग्य वर की तलाश थी। जस्सी ने सहमति जताई तो शादी की
तैयारियाँ शुरू हो गईं।
जस्सी की शादी में अमिया और भाई जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
जस्सी की माँ कम खर्चे की बात करती तो भाई जी कहते-
“ये मेरी बहिन की शादी है, कोई कमी कैसे रह सकती है।“
अमिया के कंधे पर सिर धर कर रोने के बाद जस्सी विदा हो गई।
शादी के बाद मेहर ने जस्सी को अपने प्यार से अमिया और माँ का
अभाव भुला दिया। एक-एक साल के अन्तर पर जस्सी का बेटा और उसके
बाद बेटी का जनम हुआ था। दोनो बच्चों के जनम पर अमिया बड़ी बहिन
होने के नाते ढेर सारी सौगातें लेकर आई थी। सब कुछ कितना अच्छा
चल रहा था कि मेहर अचानक बीमार पड़ गया। भयानक खाँसी के साथ
साँस लेने में तकलीफ़ होने लगी। आराम न आने पर शहर के बड़े
डाक्टर को दिखाया गया। जाँच में पता चला उसके दोनो फेफड़ों में
कैंसर ने घर बना लिया था। देर होने
की वजह से कैंसर बहुत फैल चुका था।
ससुराल में उसका बोझ उठानेवाला कोई न था। जस्सी बेसहारा हो गई।
और एक बार फिर उसी घर में वापस आ गई जहाँ से उसकी डोली उठी थी।
अमिया उसे सीने से लिपटा कितना रोई थी। भाई जी ने स्नेह से सिर
पर हाथ धर कर कहा था-
“जब तक तेरा भाई जिंदा है, तू और तेरे बच्चे मेरी जिम्मेदारी
हैं।“
जस्सी और उसके बच्चे अमिया और भाई जी के संरक्षण में शान्त और
सुखी ज़िंदगी बिताने लगे। उन्होंने अपने इकलौते बेटे और जस्सी
के बच्चों में कोई भेद नहीं रखा था। जस्सी को पास के प्राइमरी
स्कूल में अध्यापिका की नौकरी मिल गई और गाड़ी एक बार फिर पटरी
पर आ गई।
अमिया के बेटे कमल को अमरीका पढाई के लिए जाने का मन था। उसके
साथ भाई जी ने जस्सी के बेटे अमर को भी भेजने का प्रस्ताव रखा
लेकिन अमर हिंदुस्तान में ही पढाई और नौकरी का फ़ैसला लिया। चार
साल बीत गए। उस बीच जस्सी की बेटी की शादी एक अच्छे घर-वर के
साथ धूमधाम से हो गई। कन्या दान भी अमिया और भाई जी ने ही किया
था। कमल ने विदेश में चुपचाप शादी कर ली। जिस दिन कमल अमरीका
से अमरीकी लड़की के साथ ब्याह करके घर वापस आया। अमिया टूट गई।
जस्सी के सामने फूट पड़ी-
“मेरे तो सपने तो टूट गए, जस्सी। अमरीकी बहू के साथ चार बात भी
तो नहीं कर सकती।
उसकी गिटपिट बोली कैसे
समझूँ। यही दिन दिखाने के लिए कमल को अमरीका भेजा था।“
कमल के लौटने के बाद उसकी शादी के सपने देखती अमिया ने न जाने
कितने कीमती जोड़े खरीद कर रख रखे थे। विदेशी परिधान पहनने वाली
बहू को वो भारी ज़री के कामदार कपड़े ज़रा भी नहीं भाए। अमर की
शादी में वो कीमती कपड़े जस्सी की बहू निम्मो की किस्मत में आए।
आज वही निम्मो भाई जी के लिए चार रोटी और साग ले जाने पर क्या
कुछ नहीं सुना गई। नहीं जस्सी अब तुझे दिल पर पत्थर रखने
होंगे। आँसू पोंछ जस्सी उठ गई। भाई जी से सब कुछ कहना ही होगा।
जिस निम्मो पर अमिया जान छिड़कती थी आज उसके खिलाफ़ बोलते उसकी
ज़ुबांन ज़रा नहीं हिचकी।
सब सुन कर भाई जी सोच में पड़ गए। सहज हो कर कहा-
“परेशान मत हो, मेरी बहना। जब से अमिया गई है तभी से मेरा दिल
यहाँ नहीं लगता। मैंने एक आश्रम में जाने का पक्का निश्चय कर
लिया है। वहाँ मेरे पास आने में तुझे कोई नहीं रोक सकेगा। वहाँ
तेरे लिए मेरी मन पसंद रोटी-साग बनाने का पूरा इंतज़ाम है। ‘भाई
जी मुस्कराए।
“हाय, भाई जी, इतना बड़ा घर छोड़ कर आश्रम में रहोगे? नहीं आप
कहीं नहीं जाओगे।“
‘घर तो घरवाली से बनता
है, जब घरवाली ही नहीं रही तो कैसा घर? एक बात याद रख, जब तक
मैं ज़िंदा हूँ, जहाँ भी मैं रहू, वो जगह तेरा मायका है। जब जी
चाहे अपने भाई जी के पास आ जाना। खर्चे की परवाह मत करना। तेरे
भाई के पास अपनी बहिन को आराम से रखने के लिए पैसों की कमी
नहीं है।“
‘भाई जी, शायद मेरा सगा भाई भी होता उससे भी इतना प्यार नहीं
मिलता।“ जस्सी की आँखें भर आईं ।
“क्या मैं तेरा सगा भाई नहीं हूँ? जिस दिन बेटे-बहू से न बने
बेहिचक भाई के पास चली आना।“ प्यार से जस्सी के सिर पर आशीष का
हाथ धरते भाई जी की आँखें नम थीं। |