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बच्चों के
लिये कॉरपोरेशन का स्कूल नजदीक ही, बगल की सँकरी और गन्दी गली
से आगे था। मदन के दोनो बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते और अपने
साथियों से रोज नई नई गालियाँ सीख कर अपने घर लौटते थे। यह सब
देख-सुन और अनुभव कर मनोरमा को बड़ा दुख होता था और वह अक्सर
सोचा करती कि उसके बच्चों को ऐसा नहीं होना चाहिये था।
कभी कभी उसकी
इच्छी होती कि उसकी इस टीस में उसका पति मदन भी भागीदार बने पर
मदन को जैसे इस भागीदारी से गहरी नफरत थी। जब कभी मनोरमा यह
देखती कि उसके दो लड़के उसके संतान सुख के सुनहले सपने को सूखे
हुए सरोवर में तड़पती हुई मछली का रूप देने की तैयारी कर रहे
हैं तो उसका हृदय संभल नहीं पाता और तब यदि मदन घर में होता,
वह उसके पास आकर बुझते हुए स्वर में कहती, "देखो चुन्नू या
मुन्नू दोनो में से एक भी ठीक नहीं चल रहे हैं। बड़े होकर
तुम्हें ही नोच नोच कर खाएँगे।"
"हूँ..." और तब यों ही एक हुँकारी भरकर मदन बड़े निश्चिंत भाव
से, बिना मनोरमा की ओर ध्यान से देखे, कह उठता तुम्हें झींखने
की आदत है और शायद जिंदगी भर यों ही झींखती रहोगी, अरे भाई,
चुन्नू मुन्नू की अभी उम्र ही क्या है? इस उम्र में शायद ही
कोई लड़का शैतान या नटखट न होता हो। उमर पाकर दोनो अपने आप सही
रास्ते पर आ जाएँगे। मैंने तो चाइल्ड साइकोलॉजी पढ़ी है। देखो |