मुकदमा दर्ज
कराया गया। पति ने पत्नी की चरित्रहीनता का तो पत्नी ने दहेज
उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया। छह साल तक शादीशुदा जीवन बीताने
और एक बच्ची के माता-पिता होने के बाद आज दोनों में तलाक हो
गया। पति-पत्नी के हाथ में तलाक के काग़ज़ों की प्रति थी।
दोनों चुप थे। दोनों शांत। दोनों निर्विकार।
मुकदमा दो
साल तक चला था। दो साल से पत्नी अलग रह रही थी और पति अलग,
मुकदमे की सुनवाई पर दोनों को आना होता। दोनों एक दूसरे को
देखते जैसे चकमक पत्थर आपस में रगड़ खा गए हों। दोनों गुस्से
में होते। दोनों में बदले की भावना का आवेश होता। दोनों के साथ
रिश्तेदार होते जिनकी हमदर्दियों में ज़रा-ज़रा विस्फोटक
पदार्थ भी छुपा होता।
लेकिन कुछ
महीने पहले जब पति-पत्नी कोर्ट में दाखिल होते तो एक-दूसरे को
देख कर मुँह फेर लेते। जैसे जानबूझ कर एक-दूसरे की उपेक्षा कर
रहे हों। वकील औऱ रिश्तेदार दोनों के साथ होते। दोनों को
अच्छा-खासा सबक सिखाया जाता कि उन्हें क्या कहना है। दोनों वही
कहते। कई बार दोनों के वक्तव्य बदलने लगते। वो फिर सँभल जाते।
अंत में वही हुआ जो सब चाहते थे यानी तलाक।
पहले रिश्तेदारों की फौज साथ होती थी। आज थोड़े से रिश्तेदार
साथ थे। दोनों तरफ के रिश्तेदार खुश थे। वकील खुश थे।
माता-पिता भी खुश थे।
तलाकशुदा
पत्नी चुप थी और पति खामोश था। यह महज़ इत्तेफाक ही था कि
दोनों पक्षों के रिश्तेदार एक ही टी-स्टॉल पर बैठे। कोल्ड
ड्रिंक्स लिया। यह भी महज़ इत्तेफाक ही था कि तलाकशुदा
पति-पत्नी एक ही मेज़ के आमने-सामने जा बैठे। लकड़ी की बेंच और
वो दोनों।
''कांग्रेच्यूलेशन!... आप जो चाहते थे वही हुआ।'' स्त्री ने
कहा।
''तुम्हें भी बधाई। तुमने भी तो तलाक दे कर जीत हासिल की।''
पुरुष बोला।
''तलाक क्या जीत का प्रतीक होता है?'' स्त्री ने पूछा।
''तुम बताओ?''
पुरुष के पूछने पर स्त्री ने जवाब नहीं दिया। वो चुपचाप बैठी
रही। फिर बोली, ''तुमने मुझे चरित्रहीन कहा था। अच्छा हुआ। अब
तुम्हारा चरित्रहीन स्त्री से पिंड छूटा।''
''वो मेरी गलती थी। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।'' पुरुष
बोला।
''मैंने बहुत मानसिक तनाव झेला।'' स्त्री की आवाज़ सपाट थी। न
दुःख, न गुस्सा।
''जानता हूँ। पुरुष इसी हथियार से स्त्री पर वार करता है, जो
स्त्री के मन और आत्मा को लहू-लुहान कर देता है... तुम बहुत
उज्ज्वल हो। मुझे तुम्हारे बारे में ऐसी गंदी बात नहीं करनी
चाहिए थी। मुझे बेहद अफ़सोस है, '' पुरुष ने कहा।
स्त्री चुप
रही। उसने एक बार पुरुष को देखा। कुछ पल चुप रहने के बाद पुरुष
ने गहरी साँस ली। कहा, ''तुमने भी तो मुझे दहेज का लोभी कहा
था।''
''गलत कहा था।'' पुरुष की ओऱ देखती हुई स्त्री बोली। कुछ देर
चुप रही फिर बोली, ''मैं कोई और आरोप लगाती लेकिन मैं
नहीं...'' प्लास्टिक के कप में चाय आ गई। स्त्री ने चाय उठाई।
चाय ज़रा-सी छलकी। गर्म चाय स्त्री के हाथ पर गिरी। स्सी... की
आवाज़ निकली। पुरुष के गले में उसी क्षण 'ओह' की आवाज़ निकली।
स्त्री ने पुरुष को देखा। पुरुष स्त्री को देखे जा रहा था।
''तुम्हारा
कमर दर्द कैसा है?''
''ऐसा ही है। कभी वोवरॉन तो कभी काम्बीफ्लेम,'' स्त्री ने बात
खत्म करनी चाही।
''तुम एक्सरसाइज भी तो नहीं करती।'' पुरुष ने कहा तो स्त्री
फीकी हँसी हँस दी।
''तुम्हारे अस्थमा की क्या कंडीशन है... फिर अटैक तो नहीं
पड़े?'' स्त्री ने पूछा।
''अस्थमा। डॉक्टर सूरी ने स्ट्रेन... मेंटल स्ट्रेस कम करने को
कहा है, '' पुरुष ने जानकारी दी। |