मैं मानता हूँ कि, आप मेरी तकरीर से बोरियत महसूस कर रहे हैं,
लेकिन जो मौका आपने मुझे बोलने का दिया है मैं उसे गंवाना नहीं चाहता, क्योंकि ये
मेरा
पहला और सभंवत: आखरी मौका है जब मैं अपने दिल की बात कह सकूँगा और आपको मजबूरन
सुनना पड़ेगा, क्योंकि ये मैं पहले ही कह चुका हूँ कि मैं तमाम उम्र सुनता रहा हूँ,
पहले माँ-बाप की जी, माँ को तो बोलने का अधिकार, उस जमाने में होता ही नहीं था और उस
वक्त के रिवाज के मुताबिक हर घर में पिता बोलता था तथा सब उसे सुनते थे। माँ, अगर
बोलती थी तो सिर्फ हमें खाना देते हुए।
जी, खाना तब सब इकट्ठे बैठकर नहीं खाते
थे। भला पिता सामने बैठे हों तो कौर गले से कैसे उतरता? जी नहीं, पिता कोई शेर या
हिटलर तो नहीं होते थे परन्तु हर घर में, बल्कि समाज में, पिता से भयभीत रहना
मर्यादा के अन्तर्गत आता था। हाँ, तो माँ बस हमें इतना ही कहती थी, "बेटे, तुम्हारे
पिता, सारा दिन स्कूल, फिर ट्यूशन पढ़ाने जाते-जाते टूट चुके हैं, उस पर तुम्हारे
इतने कम नम्बर आना उन पर दोहरी मार है। तुम लोगों को पढऩा चाहिए।" माँ की नसीहतों
के बावजूद हम सभी भाई-बहन औसत दर्जे के ही रहे तथा छह बहिनें ब्याही गईं।
हम चारों
भाई चपरासी से लेकर मुझ तक की नौकरी पा गए। जी, मैं जो कुछ पल पहले तक, इन्कम
टैक्स विभाग में सुपरिन्टेंडेंट था। अपने परिवार में सबसे अच्छी नौकरी पर था।
मेरी इन्कम टैक्स में नौकरी ही मेरे दु:खों का कारण बनी। सभी बहनों तथा भाइयों को
मेरी नौकरी मिलने की,
इस विभाग में क्लर्क भर्ती हुआ था मैं, बड़ी खुशी हुई थी। उन्हें लगा था कि मैं
भारत का वित्तमंत्री लग गया हूँ और उनके बदहाली के दिन, अब गए समझो। मगर मैं न
उनकी, न पत्नी-बच्चों की, उम्मीद पर खरा उतर सका। मेरी पत्नी को हमेशा शिकायत रही
कि, उसके पिता ने मुझे इन्कम टैक्स में जानकर, मेरा विवाह किया था वरना एक जे.एई.
(ज्युनियर इंजीनियर) जो अब एक्स.ई.एन. हो गया है के परिवार ने तो उसका रिश्ता खुद माँगा
था। बेटे को शिकायत रही है कि मँझले ताऊजी ने तहसील में मात्र चपरासी होते हुए भी
बेटे तथा बेटी दोनों को बी.डी.एस. में करवा दिया, डोनेशन से।
मेरे विभाग में भी सहकर्मियों को, मातहतों को तथा अफसरों को भी मेरी ईमानदार तथा
पंक्चुअलिटी से काफी
तकलीफ रही है। मैं उनसे माफी माँगता हूँ। तकलीफ तो मुझे भी रही वक्तन-फवक्तन
ट्रांसफर, ए.सी.आर. में गलत एन्ट्रीज तथा प्रमोशन में रुकावटें तथा हो सकता है ये
तकलीफ पेन्शन, पी.एफ. व ग्रेच्युटी मिलने में भी हों। मगर इसकी तकलीफ घर वालों को
ज्यादा होगी, क्योंकि ज्यों-ज्यों पैसे मिलने में देरी होगी, उनकी व्याकुलता बढ़ेगी
और मेरे ढिल्लूपन और मेरी ईमानदारी को फिर कोसा जाएगा। मँझले भाई को फट से पैसा
मिलना उसकी उपलब्धि और मेरी एक और अकर्मण्यता ही समझी जाएगी। यों कहने को तो और भी बहुत कुछ है मगर मैं सिर्फ पिछले छह महीनों की बात करूँगा।
मेरे घर में अगर आप इसे
घर कह सकें तो, क्योकि इसमें मेरे बच्चे, मेरी बीवी रहते हैं इसलिए लोग इसे मेरा घर
कहते हैं, वरना मेरे लिए यह रैन- बसेरा या सराय है, तो मैं कह रहा था कि पिछले छह
महीने से, मेरे इस मकान सराय या घर में, मेरी आज हो रही रिटायरमेंट का काफी चर्चा
होता रहा है। मैं आपको बतलाता चलूँ कि मेरा एक बेटा और एक बेटी है। बेटी ब्याही जा
चुकी है। मेरे जैसे लोगों की बेटियाँ ब्याह के बाद, जैसी सुखी-दु:खी हो सकती हैं,
वैसी ही सुखी-दु:खी मेरी बेटी भी है।
मेरा बेटा बी.ए.एम.एस. (आयुर्वेदिक स्नातक) है। कुछ उसकी, कुछ मेरी नालायकी की वजह
से है। उसकी नालायकी यह कि वह पढ़ा नहीं मेरी नालायकी यह कि मैं डोनेशन देकर
एम.बी.बी.एस. में उसका दाखिला नहीं करवा सका। मेरी नालायकी की दास्तान तो कुछ और भी
लम्बी है कि मैं रिश्वत देकर उसे नौकरी भी नहीं दिलवा सका। अब तो बेचारा जे.जे.जी
एक झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनी में प्रैक्टिस करता है। अब आप समझ सकते हैं कि
झुग्गी-झोंपड़ी में क्या प्रैक्टिस हो सकती है? मैं फिर बहक गया हूँ, मुझे तो
सिर्फ छह महीने का किस्सा ब्यान करना था और मैं पुरानी बात ले बैठा।
भला हो इस सरकार का और पे-कमीशन का जिन्होंने मुझ जैसे क्लर्क को भी लाखोंपति बना
दिया। आप जानते
हैं कि मुझे आज पी.एफ. तथा ग्रॅच्युटी आदि मिलाकर दस-ग्यारह लाख रुपया मिलने वाला
है। हालाँकि मैं नहीं जानता कि वह मुझ जैसे क्लर्क बाबू की फाइल से होता हुआ कब
मिलेगा? लेकिन मेरी बीवी, मेरे बेटे और बेटे की बहू को, जल्दी मिलने की उम्मीद है।
पिछले छ: महीने से मेरी रिटायरमेंट का नहीं, इन साढ़े दस लाख रुपयों का जिक्र मेरे
घर में हो रहा है। बेटे ने इन रुपयों के मिलने की उम्मीद पर पिछले महीने बैंक से ऋण
लेकर मारूति खरीद ली है। जिसकी चाबी आज वह इस समारोह के बाद विधिवत मुझे
पकड़ाएगा। हालाँकि पिछले एक महीने में वह इसी गाड़ी में अपने ससुराल और अपने साढू पर
रोब जमा आया है। उसे बैंक लोन मुझे मिलने वाले दस लाख में से ही अदा करना है।
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