अचानक गाड़ी चरमरा कर रुक गई, वह
सँभलता नहीं तो सामने सिटी बस से भिड़ जाता, भीड़ का बड़ा-सा
रेला भागता हुआ वहाँ से जा रहा था, देखते-देखते दुकानों के शटर
गिरने लगे, लोग बदहवास से भागे जा रहे थे, रोड पर पुलिस की
गाड़ियाँ सायरन बजाते दौड़ने लगीं, अफरा-तफरी मची थी, बड़ी
मुश्किल से एक आटोरिक्शा वाले को रोककर उसने पूछा, 'माजरा क्या
है?'
''नंदलाल पुरा में दंगे हो गए हैं।
ये तो ... ये तो उसी का मोहल्ला
है, वह चारों तरफ़ यातायात
से घिर चुका था, आगे चक्का जाम था, वह कुछ सोच ही रहा था कि एक
बोतल बम कहीं से आकर उसकी कार की छत पर गिरा और... बड़ी
मुश्किल से वह गाड़ी से बाहर निकल पाया।
उसकी कार धूँ-धूँ कर जल रही थी साथ ही बच्चों के खिलौने भी।
बड़ी मुश्किल से पुलिस वैन
में बैठकर वह अपने मोहल्ले तक पहुँच पाया। वहाँ की दशा देखकर
उसकी आँखें पथरा गई, उसके कई दोस्तों की लाशें सड़क पर सूखे
पत्तों-सी बिछी थी, किसी का जिस्म जला था, किसी की गर्दन कटी,
हाथ कटे कई बेहोश पड़े थे... तो कई तकलीफ़ से कराह रहे थे।
पूरा मोहल्ला धूँ-धूँ कर जल
रहा था। धुएँ से लोगों की आँखें जल रहीं थी, और खाँस-खाँस के
लोग दोहरे हो रहे थे।
बदहवास-सा मोहन कभी एक को सीधा करता कभी दूसरे की नब्ज़
टटोलता, उसके अपने यार-दोस्त, कोई बुआ तो कोई भाभी जिनके साथ
बचपन से गिल्ली-डंडा और अंटी खेली... आज सब लाशों में तब्दील।
कुछ ही पलों में हँसता-खेलता शहर आग और राख में तब्दील हो चुका था।
वह तेज़ी से घर की तरफ़ लपका,
अंदर घुसते ही उसकी नज़र रजनी पर पड़ी, उसकी मासूम छ: साल की
प्यारी नाजुक-सी बेटी, जिसे वह अपनी जान से भी अधिक प्यार करता
है कभी जिसे उसने गर्म हवा भी नहीं लगने दी थी, उसके जिस्म पर
हैवानियत की परिभाषा लिखी जा चुकी थी, जिस्म के ऊपर कपड़ों के
नाम पर एक चिंदी तक नहीं थी, और वह खून से लथपथ पड़ी थी।
लपक कर मोहन ने एक कपड़ा अपनी मासूम बच्ची पर लपेटा और रजनी...
रजनी कहते हुए उसे झकझोर डाला, लेकिन वह मासूम जापानी गुड़िया
गहरे सदमे में जा चुकी थी। मोहन के मुँह से दिल दहला देने
वाली चीख निकल गई...जो गर्व से सीना ताने खड़े हिमालय की
कंदराओं को भी कंपा गई, आज रजनी का जन्मदिन था, क्या-क्या सपने
सजाए थे उसने...।
वह तेज़ी से अंदर के कमरे में
लपका उसकी पत्नी विमला अधजली बेहोश पड़ी थी। पानी के छींटे
मार-मार कर उसे होश में लाया... हकलाते हुए उसने पूछा ''आशा...
कहाँ है?''
''बाथरूम में।''
वाक्य पूरा होने से पहले ही वह फिर बेहोश हो गई। बाथरूम बाहर
से बंद था, दरवाज़ा खोलते ही आशा लपककर पापा-पापा करते मोहन से
लिपट गई, वह डर से बुरी तरह काँप रही थी। शायद विमला ने आशा
को बाथरूम में बंद कर दिया था, जिससे वह बच गई, आशा को प्यार
से पुचकारते हुए मोहन ने कहा, ''पापा आ गए हैं, घबराओ नहीं...
जल्दी चलो माँ और रजनी को अस्पताल ले जाना होगा।''
लेकिन कैसे? पूरे शहर में दंगे
फैले हैं, दूर-दूर तक लाशों के ढेर, खून और कराहों के सिवा कुछ
नज़र ही नहीं आ रहा था, वह सवारी का इंतज़ाम करे तो कैसे,
विमला के साथ ही मोहल्ले भर के पचासों औरतें, मर्द, बुढ़े,
बच्चे कराह रहे थे, कोई जल गया था, किसी के पेट में कुल्हाड़ी
घुसी थी और खून रिस रहा था, किसी की छाती चाकुओं से गुदी पड़ी
थी, कई बार अस्पताल एंबुलेंस के लिए फोन लगाए, लेकिन वहाँ
सारे इंतज़ाम भी फेल होते से लगते थे।
मोहन ने चोलाराम नेता जी को
फ़ोन लगाया, उन्होने पहले तो कुछ ना-नुकुर की, लेकिन जब मोहन
ने उन्हें अपनी सेवाओं का हवाला दिया तो कुछ ही देर में वे
अपने लावलश्कर और कारों के लंबे-चौड़े काफिले के साथ वहाँ
पहुँच गए। और मरीज़ों को उठा-उठा कर गाड़ियों में भरकर
अस्पताल ले गए। |