मुझे सर्कसों
में काम करते करीब बीस वर्ष हो गए। सर्कस में ही मैंने सायकल
चलाना सीखा और करतब दिखाना भी। उस समय मैं अपनी रिश्तेदारी के
ही एक छोटे सर्कस में काम करता था। उसमें मैं करीब पाँच वर्ष
रहा। फिर दूसरे बड़े सर्कस में आ गया। इस तरह ये मेरा आठवाँ और
आखिरी सर्कस है, क्योंकि भारत का ये ही सबसे बड़ा सर्कस है। इस
सर्कस में मुझे पाँच वर्ष हो गए हैं।
मेरे घर में
माँ, पत्नी और सत्यम के अलावा दो बहनें व एक भाई भी है। तीनों
मुझसे छोटे हैं। भाई तो यहीं मेरे साथ इसी सर्कस में
'स्केटिंग` वाला आइटम पेश करता है। एक बहन भी सर्कस में है,
लेकिन इसमें नहीं। वह सर्कस मेरी रिश्तेदारी वालों का है।
उसमें वह सायकल के करतब दिखाना सीख रही है। उसी सर्कस में
मैंने सीखा था।
मेरी शादी को
करीब पाँच वर्ष होने को आये हैं, लेकिन शायद ही मैं पाँच महीने
अपनी बीबी के पास रहा होऊँ। सत्यम मेरा तीन वर्ष का लड़का है,
जिसकी याद आते ही आज मैं अचानक सायकल से स्लिप हो गया था।
''बाबू साहब
मालिस हो गया।'' दादा ने कहा।
''थैंक्स दादा'' मैं पाँव देखता हूँ। फिर उठकर खड़ा हो जाता
हूँ और धीरे-धीरे चलकर अपने टेंट में पहुँचता हूँ। घड़ी देखता
हूँ, अभी अगले शो में काफी समय है। मैं वहीं बिछे बिस्तर पर
चित होकर लेट जाता हूँ। मेरी आँखें स्वत: ही मुँदने लगती हैं।
आज न जाने क्यों फिर मुझे उदासी घेरने लगती है। मैं अपनी
ज़िन्दगी के बारे में सोचने लगता हूँ। ये ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी
है। आज यहाँ तो कल वहाँ। न सुख, न चैन। हमेशा चिंताएँ ही
चिंताएँ। घर की। बीबी-बच्चों की।
आज मैं
बयालीस वर्ष का हो गया। लेकिन इतनी लम्बी ज़िन्दगी में शायद ही
मेरे मन को कभी शांति मिली हो। सोचता हूँ क्यों न ये ज़िन्दगी
छोड़ घर चला जाऊँ और वहीं पर कोई छोटा-मोटा काम शुरू कर दूँ।
कम से कम अपने परिवार के साथ तो रह सकूँगा। लेकिन फिर मेरे
सामने मेरी जवान बहनों का मासूम चेहरा घूमने लगता है। उनकी
शादी के लिए भी तो पैसों का इंतज़ाम करना है। ढेर सारे पैसों
का इंतज़ाम। और...और फिर क्या छोटा-मोटा काम यों ही बिना पैसों
के शुरू हो जाता है, उसके लिए भी तो कुछ पूँजी चाहिए। और फिर
मैं काम भी क्या कर सकता हूँ, मुझे तो सायकल पर करतब दिखाने के
सिवाय कुछ आता ही नहीं। यहाँ कम से कम इतना तो है कि कुछ पैसा
इकट्ठा हो जाता है।
लेकिन...लेकिन मैं ये काम कब तक और कर सकूँगा, ज़्यादा से
ज़्यादा दस वर्ष तक और। क्योंकि मुझे पता है उसके बाद मैं ये
काम करने लायक नहीं रहूँगा। कमर और कंधों में तो अभी से दर्द
ने स्थायी रूप ले लिया है।
कभी-कभी तो
मुझे ऐसा लगता है कि जैसे मैं अंदर ही अंदर से टूटता जा रहा
हूँ। मेरी चिंताएँ मुझे खाये जा रही हैं। मेरा भविष्य, मेरे
बच्चे का भविष्य, परिवार का भविष्य आदि...आदि अनेक प्रश्न मेरे
मस्तिष्क में प्रश्न-चिन्ह बनकर रह जाते हैं। और उन
प्रश्न-चिन्हों से घिरा मैं। अकेला बिलकुल अकेला।
''विजयन बाबू
चाय'' लड़का आवाज़ लगा चाय स्टूल पर रखकर चला जाता है। मैं
उठकर बैठ जाता हूँ। घड़ी देखता हूँ। अरे दूसरा शो शुरू हो गया।
मैं जल्दी-जल्दी चाय पीता हूँ और हाथ-मुँह धोने बाहर निकल जाता
हूँ। मुझे पेशाब की इच्छा होती है। पहले मैं पेशाब करने जाता
हूँ और फिर हाथ-मुँह धोकर टेंट में वापस लौट आता हूँ।
टॉवल से अपने
हाथ-मुँह पौंछकर जल्दी-जल्दी कपड़े पहनने लगता हूँ। अपने बालों
को कंघी से सँवारता हूँ। भूल जाता हूँ कि अभी थोड़ी देर पहले
मेरे पाँव में मोच थी, दर्द था। जूते पहन टेंट से बाहर निकल
अपने नियत स्थान पर पहुँचकर देखता हूँ, जिम्नास्टिक का आइटम
पेश किया जा रहा है। और फिर सायकल के पास खड़ा हो प्रतीक्षा
करने लगता हूँ ''आइटम नंबर दस'' आवाज़ की। |