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एक नेता ने बकरी को समझाया, ''दुग्धेश्वरी, अपने असंतोष पर संयम रखो। तुम जो कह रही है, वह विषय दूसरा है। उस पर विचार करने और एजेंडा में शामिल करने के लिए आम सहमति और सर्वानुमति की ज़रूरत पड़ेगी। इस बड़े देश में इससे भी बड़े-बड़े विषय अभी लटके हुए हैं।''
बकरी ने फिर कान फटकारे, छींक मारकर नाक को साफ़ किया। क्षणभर के लिए मुँह आकाश की ओर किया और जनसमूह की ओर देखकर बोली, ''मेरा हस्तक्षेप आप लोग क्षमा करें। आप लोग मनुष्य हैं। पशुओं से ज़्यादा बुद्धिमान और कुशल हैं। आप कोई ऐसा षड्यंत्र रचें कि ये बड़े-बड़े सांड, भैंसे चारों खाने चित्त हो जाएँ। हमें निर्भय बना दीजिए तो हम अपना भविष्य स्वयं सुधार लेंगे।''
''क्या बात करती हो बकरी? बिना हमारे सहयोग के तुम लोग सुधर नहीं सकते। तुम लोगों में सुधार लाने के लिए हमें पशु तक बनना पड़ सकता है।''
बकरी को हँसी आ गई, ''आपकी बात पर मुझे सांड और कसाई दोनों याद आ रहे हैं।''

बकरी की बात पर कुछ लोग गंभीर हो गए। एक आदमी ज़ोर से बोला, ''हमने पहले ही मना किया था कि बकरी को मंच पर मत बुलाओ। देखो, कैसी जुबान लड़ा रही है। घास-पात चबाने वाली जीभ से बहस सुना मुझे तनिक पसंद नहीं। समस्त सभ्य समाज पर उसने कीचड़ उछाला है।''
बकरी बोली, ''जब मेरे विचार सुनने की आप में सहनशक्ति नहीं है तो हमें इंडिया गेट क्यों लाया गया? रास्ता आपने ही दिखाया। या हमारे भविष्य पर विचार करने के बहाने आप कोई और सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं?''

सभा में मतभेद गरम दूध की तरह उफना और वातावरण अशांत हो उठा। कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं था।
मंच पर से कोई बोला, ''हमारा नम्र निवेदन सुनें।'' ऐसा उसने आठ-दस बार कहा और अंत में आज़िज़ आकर बोला, ''हमारे भी अपने आदमी यहाँ मौजूद हैं। ज़रा-सा इशारा पाते ही वे शांति स्थापित कर देंगे।'' तभी एक डंडा आकर मंच पर गिरा। कई डंडे और ईंट-पत्थर के टुकड़े आ गए। पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। बकरी भी पकड़ी गई। माना गया कि सारे फसाद की ज़ड़ यह बकरी है।

बकरी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। सवाल पूछा गया, ''तू क्यों गई इंडिया गेट?''
''हमें वहाँ बुलाया गया था। तभी हंगामा शुरू हो गया।''
''फिर तुम वहाँ से हटी क्यों नहीं?''
''मैं हट गई थी हुजूर! लेकिन ये पुलिस वाले हटे को ही पकड़ लेते हैं। डटे को छूते नहीं।''
''मनुष्यों की सभा में तुम्हें सोच-समझकर जाना चाहिए था।''
''ऐसा मत कहिए सर, वहाँ सभी मनुष्य नहीं थे।''
''मतलब?''
उनमें अनेक मेरी ही जाति के थे। वे भी मिमियाने और पूँछ हिलाने आए थे। अब वहाँ लोग भाड़े पर भी पहुँचने लगे हैं।''
''यही करने तू भी आई थी?''
''जी नहीं, मुझे बुलाकर लाया गया था। मैं तो आना ही नहीं चाहती थी। मुझे मालूम था कि बोट-क्लब पर मिमियाने से काम नहीं बनेगा। मेरा बाप मिमियाते-मिमियाते मर गया। यहाँ काम उसका बना जिसने सींग लड़ाए या दोलत्ती झाड़ी और सर सच्चाई यह है कि यहाँ जो भी आता है, उसकी दशा बकरी की ही हो जाती है। दिल्ली की हरी घास का स्वाद ही कुछ और है।''
''किंतु तुम्हारा मुँह कहाँ बंद हुआ? अब तक बोलती चली जा रही है।''
''मेरी गलती वही है हुजूर मैं मंच पर आकर बोल पड़ी।''
मजिस्ट्रेट हँसने लगा। बकरी बाइज़्ज़त छोड़ दी गई।
जाते-जाते बकरी ने आग्रह किया, ''सर, क्या इंडिया गेट का नाम बदला नहीं जा सकता?''
''यह कैसे संभव है? यह ऐतिहासिक इमारत है। अंग्रेज़ शासक के स्वागत में बनाया गया था।''
''लेकिन अब यहाँ अंग्रेज़ कहाँ आते हैं? बकरियाँ आती हैं।''
''आखिर तू चाहती क्या है?''
''मैं चाहती हूँ कि इंडिया गेट का नाम बकरिया गेट रख दिया जाए।''

मजिस्ट्रेट रंज हो गया। अर्दली से बोला, ''बकरी को कोर्ट से फौरन बाहर करो।''

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१० अगस्त २००९

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