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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से मनोरमा जफ़ा की कहानी— 'गौरांगिनी'


कीथ हॉल में कत्थक नृत्य देखकर जूली बौरा गई।
नृत्य में तबले व सारंगी की लय के साथ घुंघरू की आवाज़ ने जूली के ह्रदय में ऐसा घर किया कि जूली भीड़ चीरती हुई ग्रीनरूम में पहुँच गई व नाचनेवाली मानसी देवी के बगल में खड़ी हो गई। उसने अपनी पर्स-डायरी में दिल्ली के नृत्य केंद्र का पता नोट कर लिया और मन में तय कर लिया कि वह शीघ्र से शीघ्र कत्थक नृत्य सीखने भारत जाएगी और वह भी मानसी देवी के बताए पशुपति महाराज से।

जूली हारवर्ड में मास्टर्स कर रही थी। अवकाश के समय लाइब्रेरी में जाकर भारत की नृत्य शैलियों का अध्ययन करने लगी। पैसे बचाने के लिए केवल एक ही समय खाना शुरू कर दिया व रहने के लिए सस्ता-सा कमरा ले लिया। हर समय चहचहानेवाली जूली रातों-रात बदल गई। भारत में नृत्य सीखने के संकल्प ने उसे एक शांत व्यक्तित्व प्रदान किया। दो वर्ष की कठिन तपस्या कर जूली ने सात हज़ार डालर जमा कर लिए। भारतीय रुपयों का हिसाब लगाया। एक लाख से ऊपर रुपए। मानसी देवी से पत्र व्यवहार करने से उसे अंदाज़ हो गया था कि इतने रुपए, भारत के कुछ वर्ष बिताने के लिए काफी हैं। भारत के दूतावास वीजा बनवाकर आखिर जूली दिल्ली आ ही गई। पालम हवाई अड्डे पर मानसी देवी स्वयं खड़ी थीं। उन्होंने जूली को गले लगाया और जूली फूली नहीं समायी।

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