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                     अभी-अभी 
                    बहुमत जीती सरकार की तरह फ़ैसले की खुशी धीरज के चेहरे पर आ गई 
                    और इस खुशी के साथ जैसे ही अपनी बात कहने के लिये वो पल्टा, 
                    उल्टा लड़की ही उससे बोल पड़ी – ''अपना फोन देना एक मिनट, एक ज़रूरी फोन करना है।''
 ''ज...जी।'' - अपने शब्द लड़की के मुँह से सुनकर धीरज चौंक 
                    गया।
 ''फोन, मोबाइल फोन। मोबाइल रखते हो ना।''
 ''जी। है मेरे पास।''
 ''तो दो ना। मेरे फोन की बैट्री खत्म हो गई है। एक ज़रूरी फोन 
                    करना है। जितने का भी कॉल हो उसका पैसा ले लेना।''
 ''नहीं, पैसों की तो कोई बात नहीं है।'' – लड़की को फोन देता 
                    हुआ धीरज बोला।
 इसने सुन लिया था क्या? – नंबर डायल करती हुई लड़की को देखकर 
                    धीरज सोचने लगा।
 ''हैलो। हैलो विकास।''
 भाई होगा – धीरज ने सोचा। सुनने में तो भाई का ही नाम लग रहा 
                    है।
 ''तुमने मेरे भाई को फोन किया था क्या।''
 ''भाई नहीं है?... बायफ्रैंड है क्या? मुझसे मेरा फोन लेकर अपने 
                    बायफ्रैंड को फोन कर रही है। ये क्या किया तूने धीरज। अपने 
                    पैरों पर अपना ही फोन मार दिया। ओ लड़की, मेरा फोन वापस कर।''
 ''सुनो, ये किसी और का फोन है। तुम मुझे इस नंबर पर वापस फोन 
                    करो। ठीक है।'' - कहकर लड़की ने फोन काट दिया।
 ''तुम्हारे पैसे ना खर्च हों इसलिए इनकमिंग करा रही हूँ। थोड़ा 
                    वेट करो।''  धीरज को मोबाइल वापस लेने के लिये हाथ बढ़ाते देख 
                    लड़की बोली। हिचकिचाते हुए धीरज ने हाथ वापस खींच लिया।
 इनतमिंद तला 
                    लही हूँ (इनकमिंग करा रही हूँ) धीरज ने उससे चिढ़ते हुए मन ही 
                    मन दोहराया। जैसे मेरा फोन यूज़ करके मुझपे कोई एहसान कर रही हो। 
                    ये फोन तो वैसे ही रोमिंग में है। अब तो दुगना खर्चा पड़ेगा और 
                    उसमें ये बैठ कर अपने बायफ्रैंड से रोमांस करेगी। धीरज बेटा 
                    फोन वापस ले ले, नहीं तो ये तेरा भट्टा बैठा देगी।''तुझे दूल्हा किसे बनाया, भूतनी...''  अभी धीरज सोच ही रहा था 
                    कि फोन की सिंगटोन बज उठी।
 लड़की गाना सुनकर हल्का-सा मुस्कुराई और फिर मेरा है कहकर फोन 
                    उठा लिया।
 ''हैलो विकास। या आरती हीयर। तुमने भैया को क्यों फोन किया।''
 ''भैय्या को फोन क्यों किया – भैय्या को फोन क्यों किया। क्या 
                    गँवारों की तरह एक ही बात घिसे जा रही है। जल्दी से फोन काटो 
                    मिस, मेरा बिल बढ़ रहा है।'' धीरज एक-एक सैकिंड काउन्ट करते 
                    हुए सोचने लगा।
 ''नहीं, मेरी बात सुनो। मुझसे फिर मिलने की कोशिश मतर करना।''
 ''हीयर यू आर'' – लड़की ने फोन काटकर गुस्से में धीरज की तरफ़ 
                    बढ़ा दिया।
 ''ज......जी'' – गँवार सी दिखने वाली लड़की के मुँह से 
                    अंग्रेज़ी सुनकर धीरज की आँखें आश्चर्य से फट
 गईं।
 ''फोन। याद है या नहीं यह फोन तुम्हारा है तुमने मुझे दिया था।''
 ''याद है याद है।''
 ''रियली? फिर इसे वापस ले लो।''  लड़की झुंझलाहट भरी आवाज़ 
                    में बोली।
 गुस्से में 
                    कहीं फोन ही ना पटक दे सोचकर धीरज ने फोन वापस लिया और चुपचाप 
                    सामने देखने लगा। धीरज अब तक पूरी तरह चकरा चुका था। देखने में तो गँवार लगती है पर बड़ी फर्राटेदार इंग्लिश बोल 
                    रही है। इंडिया शाइनिंग। नोयडा के किसी कॉल सेंटर में काम करती 
                    होगी।
 कॉल-सेंटर का विचार आते ही, हल्की-सी व्यंग्यात्मक मुस्कान 
                    अनजाने में ही उसके होंठो पर आ गई।
 ''पैसे कितने हुए तुम्हारे?''  धीरज की मुस्कारते हुए देख 
                    लड़की बोली।
 ''जाने दीजिए।''
 ''जाने दूँ। जाने क्यों दूँ? एहसान करना चाहते हो क्या मुझपर? 
                    धर्मखाता खोल...''
 ''दस रुपए।''  धीरज ने लड़की को बीच में ही काटते हुए कहा।
 बीच में ही 
                    बात कटने से लड़की इस बार थोड़ी-सी असहज हो गई।''दस रुपए। दस कैसे हो गए। एक ही मिनट तो बात की थी मैंने 
                    आउटगोइंग पर।''
 ''जी, दरअसल ये फोन रोमिंग पर है।''
 ''तो पहले क्यों नहीं बताया? मैं किसी और से ले लेती।''
 ''माफ़ कीजिए। अगली बार बता दूँगा।''  धीरज ने अपनी गलती मान ली।
 ''अगली बार क्या? मैं क्या फोन ही करती रहूँगी? ये लो दस 
                    रुपए।''
 धीरज ने बिना कुछ बोले ही दस रुपए रखने में ही भलाई समझी।
 ''करते क्या हो?''  लड़की ने बात शुरू की।
 बसों मे पी.सी.ओ. चला रखा है मैंने। लड़कियों को फोन लेंड करता 
                    हूँ और फिर उनकी झाड़ खाता हूँ। - धीरज सोचने लगा।
 ''बेरोजगार हो क्या?''  लड़की ने धीरज की चुप्पी का मतलब 
                    निकालते हुए पूछा।
 धीरज ने एक पल को अपनी एम.बी.ए. की ग्लैमरस डिग्री के बारे में 
                    सोचा और फिर हाँ कर दी।
 ''पढ़े-लिखे हो?''
 ''जी, थोड़ा-बहुत।''
 ''थोड़ा या बहुत?''
 ''थोड़ा।''  बहुत सारे एम.बी.ए. में थोड़ी ही तो पढ़ाई की थी 
                    धीरज ने।
 ''हुम्म..., देखने में तो शरीफ़ खानदान के लगते हो।''
 ''जी शुक्रिया।''
 काश! होता भी शरीफ़ खानदान से ही। धीरज ने मन ही मन सोचा।
 ''कॉल सेंटर में जॉब करना चाहोगे?''
 मरीन 
                    इंजीनियरिंग फ्रॉम जाधवपुर यूनिवर्सिटी, एम.बी.ए. फ्रॉम एन. 
                    एम. आई.एम.एस.। अब बस कॉल सेंटर में ही जॉब करना बाकी रह गया 
                    है। ''पैसे कितने मिल जाएँगे?'' धीरज एक पल सोचकर बोला।
 ''अरे! पहले नौकरी तो मिले, पैसे तो बाद में मिलेंगे। अपना 
                    पर्सनल रिकमेंडेशन पर तुम्हें लगवा सकती हूँ, पर काम ठीक से 
                    करना होगा।''
 बस ज़रा देर के लिए एक बस स्टैण्ड पर रुकी तो दीवार पर लगे 
                    'प्यासा आशिक' के उत्तेजक पोस्टर को देखकर धीरज कुछ असहज हो 
                    गया। नज़र पोस्टर से हटाते हुए उसने लड़की के स्वर में हामी 
                    भरी तो लड़की को स्थिति समझते देर न लगी।
 ''पोस्टर देखकर शर्मा रहे हो?''  लड़की मुस्कुसाते हुए बोली।
 ''जी ... जी..।''
 ''हा हा..., संस्कार तो अच्छे हैं तुम्हारे।''
 ''शुक्रिया।''  धीरज को अपने संस्कारों के बारे में जानकर खुशी 
                    हुई।
 ''शुक्रिया तो अपने माँ-बाप का करो जिन्होनें तुम्हारे अंदर 
                    इतने अच्छे संस्कार डाले।''
 ''जी आज ही जाकर करता हूँ।''
 बस अब चल दी थी।
 ''अंग्रेज़ी बोल लेते हो ना?'' लड़की ने खिड़की से बाहर झाँकते 
                    हुए पूछा।
 ''जी थोड़ी बहुत।''
 ''थोड़ी या...''
 ''थोड़ी...थोड़ी, कामचलाऊ।'' धीरज ने आगे के प्रश्न का अंदाज़ा 
                    लगाते हुए उत्तर दिया।
 ''हूँ..ऊँ...ऊँ अपना परिचय तैयार करो एक, इंग्लिश में, 
                    बढ़िया-सा, कॉल सेंटर में क्यों काम करना चाहते हो जैसे 
                    प्रश्न पूछेंगे वो लोग। फंडे दे देना कुछ। मैं बता दूँगी। 
                    बाकी देखने में तो ठीक ही हो। कपड़े थोड़े ढंग के पहना करो।''
 कपड़ों की 
                    बात सुनकर धीरज थोड़ा खीझ गया और फ्लोटर के खुले भाग से फटी 
                    जुराब से बाहर झाँकते अपने अँगूठे को अंदर खींच लिया।''लेकिन तुम्हें अपने उच्चारण को बेहतर करना होगा। बिलकुल 
                    भारतीय उच्चारण है तुम्हारा। ये नहीं चलेगा।''
 ''जी।''
 ''ये जी जी क्या लगा रखा है। क्या मैं तुम्हारी जीजी हूँ? ''
 ''जी...जी नहीं।''
 धीरज की आवाज़ की बेचैनी सुनकर लड़की के होंठो पर हल्की-सी 
                    मुस्कान आ गई।
 ''फोन के लिए शुक्रिया।''
 ''कोई बात नहीं।'' कह धीरज ने मोबाइल फोन के साथ छेड़खानी शुरू 
                    कर दी। आज पहली बार वह किसी लड़की के साथ बस में आया था।
 खिड़की से बाहर झाँकती हुई लड़की को देख धीरज सोचने लगा – जब 
                    वी मेट की करीना कपूर टाइप लग रही है। उतनी सुंदर तो नहीं है 
                    पर सुंदरता का क्या है, सुंदरता तो देखने वाले की आँखों में 
                    होती है। बोलती बहुत है। मुझसे भी ज़्यादा। आज पहली बार किसी 
                    बातचीत में सामने वाले ने मुझसे ज़्यादा बात की होगी। कुछ 
                    ज़्यादा ही तेज़ है। धीरज बेटा यहाँ तेरी दाल गलने से रही। 
                    तुझसे तो सीधी-साधी लड़कियाँ भी नहीं पटतीं फिर ये तो अच्छी 
                    भली तेज़-तर्राट है। लेकिन  एक कोशिस करने में क्या बुराई है? नाम 
                    पूछ ल,। बता दे तो नंबर माँग लेना, नहीं तो तू अपनी गली, मैं 
                    अपनी गली। ठीक है नाम पूछता हूँ।
 नाम पूछने के लिए जैसे ही धीरज ने 'न' बोला कि बस रुक गई।
 ''बाबूगढ़ आ गया है। बस इससे आगे नहीं जाएगी। सारी सवारियाँ 
                    यहीं उतर लें।'' कंडक्टर चिल्ला रहा था।
 ''बक साला! इस बाबूगढ़ को भी अभी आना था। हर बार तो दो घंटे 
                    लगते हैं, आज डेढ़ घंटे में ही पहुँचा दिया।'' धीरज ने बस 
                    ड्राइवर को कोसा।
 ''कुछ कह रहे थे क्या तुम?'' लड़की ने धीरज से पूछा।
 ''न..नहीं...नहीं तो।''
 ''तो उतरो, आ तो गया बाबूगढ़। अब क्या यहीं बैठे रहने का इरादा 
                    है?''
 हाँ कहकर धीरज उतरने लगा। बस से उतरकर धीरज ने सामने लगे रब ने 
                    बना दी जोड़ी के पोस्टर को देखा और हमेशा की तरह अपनी किस्मत 
                    को कोसने लगा कि तभी पीछे से आती एक पतली आवाज़ ने उसका ध्यान 
                    तोड़ा। ये वही लड़की थी जो अब रिक्शा मे बैठ चुकी थी और उसे ही 
                    बुला रही थी।
 ''धीरज, यही नाम है ना तुम्हारा? ''
 ''हाँ..!'' धीरज ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।
 ''तुम्हारे मोबाइल में लिखा था। मेरा नाम आरती है। ये मेरा 
                    कार्ड है। इस पर दिये पते पर अपना सी.वी. लेकर सोमवार को आ 
                    जाना। तुम्हें नौकरी मिल जाएगी।''
 ''जी बहुत अच्छा।''
 ''आरती। मुझे आरती कह सकते हो। बाय।''
 ''बाय।''
 आरती के 
                    आँखों से ओझल होने तक, धीरज वहीँ खड़ा रिक्शा को जाते देखता 
                    रहा। एक बार मन में आया कि भाग कर आरती को रोक ले पर फिर पता 
                    नहीं क्या सोचकर उसने मन को रोक लिया। आरती का दिया कार्ड अभी 
                    भी उसके हाथ में था। धीरज ने पीठ पर अपना बैग लादा और आरती का 
                    दिया कार्ड पढ़ता हुआ अपनी राह चल पड़ा।  आरती शर्मा,बिज़नेस डेवलपमेंट मैनेजर
 आस्क योर क्वेरी इंडिया लिमिटेड
 सेक्टर 50- नोयडा
 
 बिज़निस डवलैपमेंट मैनेजर! क्या बात है! पर इस कार्ड का क्या 
                    करूँ नौकरी तो मुझे चाहिए नहीं और नंबर इस पर लिखा नहीं है। 
                    कॉल क्या धंतु करूँगा। झुँझलाहट में आकर धीरज कार्ड को फेंकने 
                    ही वाला था कि उसने देखा- कार्ड के पीछे लाल स्याही में एक फोन 
                    नम्बर लिखा था - धीरज ने एक बार फिर रब ने बना दी जोड़ी के 
                    पोस्टर पर नज़र डाली और कार्ड को चूमकर अपनी जेब में रख 
                    लिया।
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