बस
मन में हीन भावना मत लाना।''
दीप ने मुस्कुराने की चेष्टा करते हुए कहा, ''ठीक है न माँ!
याद रखूँगा।''
''लेकिन तेरे चेहरे पर बड़ी मायूसी है! तू हँस कर तो जा।''
दीप ने आँखें बंद की और भरसक अपने चेहरे पर रौनक और खुशी लाने
की चेष्टा करते हुए कहा, ''परेशान मत हो तुम। मैं दुखी या
मायूस नहीं हूँ। काम तो मैं मन लगाकर करूँगा, आज तक बिना मन से
किया है कोई काम? बस दिल ज़रा खाली है। हँसी-खुशी, दुःख-दर्द,
अच्छा-भला या गंदा-खराब कोई भाव नहीं है मेरे दिल में। इसी से
तो इतना सपाट और शांत दिख रहा है मेरे चेहरा।''
''कुल मिलाकर
बात तो वही हुई न, तुम फिलहाल ऑटो को ही अपने सपने की तरह खुशी
से स्वीकार करो। हमारे पास पैसे का अभाव है और उसके अलावा कोई
अन्य अभाव तुम मत लाओ।'' जाने क्यों दीप मुस्कुरा उठा।
''अच्छा माँ। नहीं लाऊँगा। कभी सोचा नहीं था न, ऐसे काम के
बारे में इसलिए...!''
''अच्छा चलो अब जाओ, देर मत करो। नौ बज रहे हैं, दस बजे
तुम्हें अपनी गाड़ी लेकर चौक तक पहुँच जाना है।'' माँ ने बीच
में ही उसकी बात काटी और बढ़कर उसके कपाल पर कुमकुम का टीका
लगा दिया। जब वह घर से निकला तो काफी प्रसन्न था।
करीम भाई के
घर पहुँचने में उसे पंद्रह मिनट ही लगे। वे घर के बाहर ऑटो में
ही बैठकर अखबार पढ़ रहे थे। दीप को देखकर जोश भरे लहजे में
कहा, ''आओ दीप मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था।'' फिर दीप
को ऑटो की चाभी देते हुए कहा, ''पूरी तरह से तैयार गाड़ी है
यह। कहीं कोई खराबी नहीं है। इससे पहले वाले ड्राइवर ने जब काम
छोड़ा तो ऑटो के सारे पुर्जे बनवाए हैं। कोई दिक्कत नहीं आएगी।
तुम अपनी गाड़ी समझ कर ले जाओ। रोज़ शाम को मुझे २५० रुपए दे
देना। बाकी पैसों का तुम जो करो, तेल आदि भराते रहना और हाँ
गाड़ी में छोटी मोटी खराबी हो जैसे हवा कम होना पंचर होना आदि
तो उसे तुम सुधरवा लेना वैसे अभी ऐसा कुछ नहीं होगा।'' ''जी,''
कहते हुए दीप ने चाभी ले ली। जाने क्यों उसे आज करीम भाई का
लहजा अच्छा नहीं लगा। एक बेचैनी-सी उसके मन में छा गई और इच्छा
हुई कि जितनी जल्दी हो सके यहाँ से निकला जाए।
माढ़ोताल चौक
पर जब वो आया तो वहाँ दो ऑटो खड़े थे। उनमें कोई बैठा है या
नहीं, यह उसने नहीं देखा। उसने वहीं से ऑटो घुमाया और सबसे आगे
खड़ा कर लिया। एक मिनट के अंदर ही दोनों ऑटो के चालक आ गए। अबे
साले! पीछे जाता है या नहीं!'' दोनों एक साथ गरजे। एक ने उसका
कॉलर खींचते हुए मारने को हाथ उपर उठा लिया। सब कुछ काफी जल्दी
में हुआ। दीप की समझ में नहीं आया कि क्या और क्यों हो रहा है
और उसने गलती क्या कर दी, वो भी तो उन्हीं की तरह यहाँ ऑटो
लेकर आया है।
उसने भर्राये गले से पूछा, ''क्या हुआ?''
पहले वाले चालक ने, दूसरे का हाथ दीप के कालर से हटाते हुए
कहा, ''पहले हमारा नं. है तो तुने आगे ऑटो कैसे लगाया साले?''
''तो आप लोग गुस्सा क्यों कर रहे हैं। मैं तो आज पहली बार यहाँ
आया हूँ। मुझे रूल-रेग्युलेशन मालुम नहीं हैं। और जो कुछ भी है
आप हमें बता दीजिए। मैं वैसा ही कर लूँगा।'' दीप ने बेचारगी से
जवाब दिया।
''जा बे, पहले ऑटो पीछ कर। जब तक हमारी ऑटो यहाँ से निकल न जाए
एक भी सवारी मत बिठाना और याद रखना यहाँ नं. से ऑटो चलते हैं।
पहले आओ, पहले जाओ। पीछे आओ पीछे जाओ और हाँ दूसरे की सवारी
लपकने की कोशिश मत करना,'' दूसरा वाला गुस्से से चीख रहा था।
दीप ने तेज़ी
से ऑटो घुमाया और सबसे पीछे लगा लिया। दोनों ऑटो भरकर जाने में
आधा घंटा लगा। बीच में कई औरतें उसका खाली ऑटो देख सीट की लालच
में आईं। पर उसने शालीनता से बता दिया कि आगे वाले ऑटो में चली
जाए वह अभी नहीं जाएगा।
अब उस चौराहे
पर वह अकेला था। पौने ग्यारह बज गए थे। ऑफिस जाने वाले लोग
लगभग जा चुके थे। अब कोई छूटा हो या किसी को और कहीं रूटीन से
अलग जाना हो वैसे लोग ही आ सकते थे। धीरे-धीरे उसके ऑटो में दो
सवारी बैठी। दोनों जल्दी चलने के लिए हल्ला मचा रही थी।
आखिरकार उसने ऑटो स्टार्ट किया। सोचा चलो भाग्य में होगा तो
रास्ते में सवारी मिल जाएगी। जिस रूट पर उसे ऑटो चलाना था वह
था माढ़ोताल चौक से बस स्टैंड तक का। बस स्टैंड से स्टेशन और
दूसरे रास्ते के ऑटो मिलते थे। उसे रास्ते में तिराहे के पास
एक सवारी मिली। तीन सवारी के साथ ही वह बस स्टैंड आया। पंद्रह
रुपए हुए सोचने लगा चलो और कुछ नहीं तो आज करीम भाई के पैसे तो
पूरे हो ही जाएँगे।
अपने आप उसने
समझ लिया जिस प्रकार आते समय नं. सिस्टम था उसी प्रकार जाते
समय भी अपनाना होगा। बस स्टैंड में चौक से ऑटो घुमाकर वह
स्टैंड आया। वहाँ पहले से ऑटो खड़े थे। उसके जाने के बाद उसने
अपना ऑटो स्टार्ट किया और थोड़ा आगे ले आया। आज के पहले जब वह
ऑटो चलाता नहीं था, बस एक सवारी के रूप में उसमें कभी-कभी सफ़र
करता था। तब कभी ऑटो वाले, उनकी ज़िंदगी की तरफ़ कभी उसने
झाँकने की कोशिश कहाँ की थी? पर उस समय यह भी तो मालुम नहीं था
कि वह भी कभी ऑटो चलाएगा।
जैसी प्रभु
की इच्छा। सोचता हुआ वह परेशान हो उठा। आते समय तो खुद-ब-खुद
सवारियाँ उससे बस स्टैंड का पता पूछ-पूछ कर बैठ गई थी पर अभी
तो उसे दूसरे ऑटो वालों की तरह माढ़ोताल-माढ़ोताल की हाँक
लगानी होगी। यहाँ तो हर जगह के ऑटो मिलते हैं। सभी ऑटो वाले
खुद आवाज़ तो नहीं लगा रहे थे पर उनके साथ कंडक्टरी करने वाले
लड़के ज़रूर हाँक लगा रहे थे। दूर-दूर तक जाकर सवारियों को
पकड़ कर अपने ऑटो तक ले आ रहे थे। कुछ ऑटो वाले भी अपने
कंडक्टरों के साथ हाँक लगा रहे थे। क्या उसे भी अपने लिए
कंडक्टरी करने के लिए छोटे बच्चे को रखना होगा। पर छोटे बच्चों
के भविष्य के साथ खिलवाड़ उससे तो नहीं किया जाएगा। पता नहीं
लोगों की कैसी मजबूरी होती है कि अपने आठ-नौ साल के बच्चों को
भी कंडक्टरी में लगा देते हैं। चालीस-पचास रुपए के लिए पूरा
भविष्य पूरा जीवन बर्बाद करा देते हैं।
ऑटो से बाहर
निकल कर उसने चारो तरफ़ देखा। आस-पास कितने ही लोग थे। कोई
खड़ा हो ऑटो का इंतज़ार कर रहा था कोई जल्दी-जल्दी कहीं जाने
की तैयारी में था। उसके कानों में आवाज़ आई रेल्वे स्टेशन -
रेल्वे स्टेशन। थोड़ी हिम्मत जुटाकर उसने भी पुकारा माढ़ोताल -
माढ़ोताल। दो-चार बार आवाज़ लगाकर वह ऐसे चुप हो गया जैसे चोरी
कर रहा हो। उसकी आवाज़ उसकी नहीं थी। उसकी आवाज़ ऑटोवाले-सी भी
नहीं थी। फिर कैसी थी उसकी आवाज़? उसने दूसरे ऑटो वालों की
आवाज़ सुनने की कोशिश की और फिर भरसक अपने आप को समेट कर उसी
सूर, लय और ताल में आवाज़ लगाने की कोशश की- माढोताल -
माढोताल।
बात
कुछ बनी नहीं पर पाँच लड़कों का
ग्रुप आकर ऑटो में बैठा। उसने फिर हाँक लगाई और दस मिनट में ही
ऑटो भर गया। वह अपने गंतव्य की ओर चला। ५-५ करके ५० रुपए आ गए
एक ही बार में। उसे आंतरिक खुशी हुई, उसने हिसाब लगाया ५० और
२५ मिलाकर ७५ हो गए। तीन चक्कर या दो ही चक्कर में करीम भाई के
लिए पैसे पूरे हो जाएँगे। फिर वह आराम से अपने लिए पैसे बना
लेगा। पर लौटते समय आधे घंटे में दो सवारी मिली। दोनों हल्ला
मचाने लगी कि जल्दी चलों। वह अनमना-सा चल पड़ा। रास्ते में तीन
सवारी और मिली। बस स्टैंड चौक पर जब उसने सवारियों को उतारा तो
दो बज रहे थे। उसे भूख लग आई थी। खाने की इच्छा थी। पर क्या
खाए, कहाँ खाए वह समझ नहीं पाया। थक-हार कर उसने दो समोसे
ख़रीदे और ऑटो में बैठकर ही खाने लगा। दोपहर के सन्नाटे में
तीन ऑटो वाले पास ही अपने-अपने ऑटो में बैठे-बैठे एक दूसरे से
गप्प मार रहे थे। चाह कर भी वह इस गप्प में हिस्सा नहीं ले
सका। |