प्रियंवदा सम्मोहन को तोड़ने
की कोशिश करते हुए बोली,
''इस रौद्र रूप में कितना सम्मोहन है।
इसे लकीरों में बाँधा नहीं जा
सकता। इस स्वच्छंद चीत्कार का गांभीर्य
मुझे सहमा रहा है।''
''प्यारे प्यारे बच्चे जो बकरियों के साथ दुबके बैठे है इन्हें
तो बाँधा जा सकता है?''
''हाँ पर मेरे पास कैनवस नहीं है।
लगता है यह शिव-मंदिर है। पहाड़ियों और गुफ़ाओं
में वही रहते है। चारों ओर ये कलात्मक खंभे जिन पर यह छत
टिकी है। बड़े
पुराने लग रहे है। बीच में बना यह यज्ञकुंड कितना विलक्षण है।
लगता है यहाँ हवन होता है। किन्तु यह आँगन
कितना वीराना लगता है?''
बच्चे उसके पास आ गए। एक बच्चा बोला,
''यहाँ पर इसी कुंड में सती माता भस्म हुई थी।''
दूसरा बच्चा उसकी बात काटते हुए बोला,
''अरे पागल सती माता यहाँ नहीं भस्म
हुई थी यहाँ तो उनकी भस्म गिरी थी।''
तीसरे बच्चे ने गहन गंभीरता से सिर हिला कर अधिकारपूर्वक दोनों
की बात काटी, ''नहीं। यहाँ पर तो अमृत
घट से अमृत की बूँद गिरी थी।''
बच्चे बहस करने लगे। सभी की कहानियाँ
सैकड़ों साल पीछे जाती थी। सभी की नानियाँ दादियाँ इतनी पुरानी
थी। किसी की कहानी झूठी नहीं हो सकती।
कई कहानियाँ... कहानियों में कितनी
सच्चाई है? प्रियंवदा सोचने लगी।
एरिक ने बच्चों को पैसे दिए। जबकि उसे
एक भी कहानी समझ में नहीं आई थी। एरिक
ने बच्चों के कई फोटो खींचे। कैमरे के
व्यूफाईन्डर में आँख लगाए
एरिक कई कोणों से फोटो खींचता रहा।
प्रियंवदा ने सोचा कितना अच्छा होता है कैमरे का
व्यूफाइन्डर। संयोजना को सुंदर बनाने
के लिए आँख पर कैमरा लगाए
ढूँढ़ते रहो। पर
उसके लिए भी आँख
होना चाहिए जो देख सके कि क्या चुनना
है?
एरिक ने प्रियंवदा से कहा कि बारिश बंद हो गई है उसका क्या
कार्यक्रम है?
वह अभी वही रुकना चाहती थी।
बारिश बंद हो चुकी किंतु घाटी में चल रही हवाओं
और नदियों के गिरते पानी की आवाज़ के
सम्मोहन ने प्रियंवदा को अवश कर
दिया था।
एरिक को कल वापस लौटना था। वह
कुछ और जगह भी देखना चाहता था। अत:
उसने वापस सिटी जाने का निश्चय किया।
एरिक ने देखा प्रियंवदा सिगरेट का पैकेट टटोल रही थी।
उसने प्रियंवदा को अपना सिगरेट का पैकेट दिया,
''प्रिया पैकेट रख लो। बीड़ी मत पीना। बी सेफ।'' कहकर वह अपनी छतरी उठा कर निकल गया।
प्रियंवदा की सिगरेट खत्म हो चुकी थी और वह अपनी उँगली
व अंगूठे को मिलाकर व्युफाइनडर की तरह
बना कर निरुद्देश्य
फ़्रेम बना कर देख रही थी। आड़ी टेढ़ी
शाखाएँ कभी त्रिभुज कभी चतुर्भुज बनाती।
कभी खुली शाखों के बीच दूर के पेड़, पास
के पेड़, पहाड़ों को देखती।
हाँ यह सब कुछ फ़ोटोजेनिक है पर कैनवस में मैं
इस सम्मोहन को कैद नहीं कर सकती।
उसने व्यापक दृष्टि वाले
प्रोफ़ेसर रसेल के बारे में सोचा। सिर पूरा गोल गंजा, लंबी सफेद
दाढ़ी, उन्हें इस उम्र में भी चश्मा नहीं
लगता था। वो कई बार आश्चर्य करती इस आदमी के बाल कैसे उड़
गए? जबकि आँखें
एकदम २०।२० नामी चित्रकार सस्ती जीन पर बहुत महँगा
शर्ट पहनने वाले। एक हाथ की आस्तीन चढ़ी
हुई। जैसे सरदार
जी साफ़े के साथ टाई मैच करते प्रोफ़ेसर शर्ट के साथ
मोज़े मैच करते। प्रोफ़ेसर की अंगूठियाँ महँगी मेहनत से चुनी
हुई होती थी। सबसे हटकर।
एक
दिन वह काफे फसेट की बुनाई के नमूने की किताब देख रही थी
जिसमें फासेट ने कलाकृतियों को बुन दिया था।
उसे देखकर प्रोफ़ेसर ने कहा,
''जब मैनी और मैं अपने पहले बच्चे का इंतज़ार
कर रहे थे तब हम दोनों ने मिलकर बड़ा-सा
मोटा-सा अफगान बच्चे के लिए
बुना था। हमने अपनी ज़िंदगी भी इसी तरह बुनी है।'' उनकी आवाज़ और
आँख में स्वयं के वैवाहिक जीवन के लिए
गहरा आदर था। प्रियंवदा ने उसे महसूस
किया जबकि उसे विवाह में कोई विश्वास न था।
उन्हें अपनी पत्नी के साठवें जन्मदिन पर कुछ विशेष उपहार
देना था इसलिए वे उसके पास सुझाव लेने
आए थे।
''पशमीना की शाल बहुत अच्छी गिफ़्ट है।
हम उन रंगों का संयोजन ढूँढ सकते हैं
जिस तरह का अफगान आप दोनों ने बुना था।''
प्रोफ़ेसर को सुझाव बहुत अच्छा लगा। वे प्रियंवदा को अपने साथ
माल ले गए।
प्रियंवदा के दिमाग में पशमीना शाल के रंग व संयोजन का जो
चित्र था उसे ढूँढ़ने
के लिए उन्हें कई दुकानों में जाना पड़ा।
प्रोफ़ेसर का धैर्य ग़ज़ब का था। माल मे हर छोटे बड़े
सुपर स्टोर में सस्ते, महँगे,
प्राकृतिक आदि-आदि प्रसाधनों के काउंटरों
पर काले ऐप्रन पहने सजीधजी लड़कियाँ रंगों प्रसाधनों से भरी
ट्रे और ब्रश लिए खड़ी
थी। उनके पास सुन्दर महक थी। उनकी ट्रे
में रंग अलग-अलग थे। सबकी आँखों
के और पलकों के रंग अलग-अलग थे। पर
भाषा एक जैसी थी। सबकी हँसी एक जैसी
थी।
प्रोफ़ेसर ने कहा था, ''कुछ नहीं है यह
सिर्फ़ गुड़िया बनाने का काम है।
प्रिया तुम
मेकअप नहीं पहनती। अच्छा है।''
प्रियंवदा ने जवाब दिया, ''माल की रोशनी बडी बनावटी होती है। लडकियाँ
उस चौंधियाती रौशनी में मेकअप करवाती है वैसा ही सीखती हैं।
जब वे सूर्य की रोशनी में होती है वे बेरूप हो जाती
है।''
प्रोफ़ेसर ने सराहना से देख कर कहा, ''बहुत पैनी नज़र है
तुम्हारी।''
अन्ततः प्रियंवदा ने अपनी कल्पना में बसी शाल ढूँढ़
ही दी वैसी ही जैसा अफगान प्रोफ़ेसर व उनकी पत्नी ने बुना था।
प्रोफ़ेसर रंगों में सराबोर हो गए।
पूरी क्लास अपनी-अपनी
अंतिम पेंटिंग पर काम कर रही थी।
वह कैनवस से कुछ दूर खड़ी हो
कर कलाकृति का आकलन कर रही थी। प्रोफ़ेसर
कब से उसके पीछे खड़े देख रहे थे वह
जान नहीं पाई, उनकी आवाज़
सुनकर वह चौकी।
''प्रिया, तुम्हारी पेंटिंग की सब तारीफ़
कर रहे है। तुम सोच रही हो आर्ट के सभी
नियम संयोजन, विस्तार, प्रवाह, भाव, सबकुछ तो है। प्रोफ़ेसर ने उसका
केनवास देखकर दुख और अफ़सोस से प्रतिक्रिया की, 'गुड़िया मत
बनाओ' कम से कम तुमसे मैं
ये उम्मीद नहीं करता।''
प्रोफ़ेसर की आलोचना की गंभीरता को समझते ही उसका चेहरा उतर गया
और आँखे भर आई। निराश आँखों
में आँसू भरे हुए वह बोली,
''मुझे अभी तक देखना नहीं आया।''
''तुम्हें देखना तो आ गया
तुम्हें जानना सीखना पड़ेगा।
कलाकृति अमूर्त है ये कई चीज़ें प्रदर्शित
करती है। तुम अभी तक जानना नहीं सीखीं।
एक बार अपने को कहीं खो दो तुम
जानना सीख जाओगी। मुझे विश्वास है। सभी
जानते है सच्चा और दुर्लभ मोती ढूँढ़ने
के लिए समुद्र में गोता लगाना पड़ता
है जो आसान नहीं। आसान रास्ता है नकली मोती, प्रयोगशाला में
तैयार किए गए पत्थर। आंतरिक सौंदर्य का आह्वान करना कठिन काम
है। सौंदर्य की अपनी भाषा होती है, ऐसी भाषा जिसमें न शब्द
होते हैं न आवाज़।
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