इस तरह जब काफी दिन गुज़र गए और
इस गुड्डे के बाद आने वाले बहुत से गुड्डे दुकान से बच्चों के
पास चले गए, तो धीरे-धीरे इस गुड्डे के मन में यह अहसास गहरा
हो गया कि अब वह किसी काम का नहीं। फिर एक दिन वह भी आया, जब
दुकानदार ने यह सोच कर कि यह बिकने लायक नहीं है, रात को दुकान
बन्द करने से पहले, इस गुड्डे को कचरे के ढेर पर फेंक दिया।
दुकान से बाहर फेंके जाने से, गुड्डा पहले से ज़्यादा उदास और
मायूस हो गया। जैसे-जैसे रात का अंधेरा गहराता जा रहा था,
गुड्डे के मन में बेचैनी पैदा हो रही थी। अब वह क्या करेगा।
कहाँ जाएगा अब तो उसके पास रहने को भी जगह नहीं है। धीरे-धीरे
कचरे के ढेर के चारों तरफ़ से चूहे बाहर निकलने लगे थे। दुकान
के कुछ चूहे उसे कचरे के ढेर पर पड़ा देखकर मुँह बिचका रहे थे,
मानों चिढ़ा रहे हों कि देखो, आखिर फेंक दिए गए ना बाहर। तुम
किसी काम के नहीं, किसी के लायक नहीं, तुम्हें कोई पसंद नहीं
कर सकता। तुम्हारे बदले में कोई कुछ नहीं दे सकता।
कचरे के ढेर पर मौजूद चूहे
काफी बड़े आकार के थे। कचरे के अलावा वे शहर के जल-मल निकासी
के लिए जमीन में दबाए गए बड़े-बड़े पाइपों और उसकी टूटी हुई
दीवारों में बिल बना कर रहते थे। चूँकि नालियाँ अक्सर बजबजाती
रहती थीं, इसलिए जगह-जगह बनाए गए मैनहोलों की हालत भी उन चूहों
रहने के लिए आदर्श थी। ये चूहे खूब तन कर चलते और किसी से न
डरते। बिल्ली भी उनकी दबंगता और बड़े आकार से सहमी हुई पास न
आती। रात के अंधेरे में वे बड़े इत्मीनान से कचरे के उस ढेर पर
इधर से उधर मँडराते और अपना भोजन तलाशते। उन्हें मानों किसी का
डर ही नहीं था। वे अक्सर एक दूसरे से झगड़ते हुए चीं... ची...
की भयानक आवाज़ करते और लड़ते-लड़ते एक दूसरे को लहूलुहान कर
देते।
आधी रात से ज़्यादा गुज़र
चुकी थी। गुड्डा दम साधे कचरे के ढेर पर पड़ा था। दुकान के
अन्दर चूहों से बचना कहीं आसान था, लेकिन यहाँ के चूहों की
दहशत ही काफी थी। अचानक दो भारी भरकम चूहे एक दूसरे से लड़ने
लगे। लड़ते-लड़ते वे गुड्डे के पास तक आ पहुँचे तो डर के मारे
गुड्डा उठा और भागा। भागा तो ऐसा भागा कि आगे-पीछे का कुछ होश
नहीं। सड़क पर इक्का-दुक्का वाहन दिखा तो गुड्डा एक गली में
घुस गया। वहाँ गलियों में भी छोटे-मोटे बहुत से चूहे यहाँ-वहाँ
सरपट भाग रहे थे। भागते-भागते गुड्डा हाँफने लगा। थक गया और थक
कर निढाल हो गया। ज़रा सांस लेकर पहचानने की कोशिश की, कि वह
कहाँ आ गया है। लेकिन एक तो उसे शहर की गलियों और इलाकों का
पता नहीं था, दूसरे भागते हुए भी उसे ध्यान नहीं रहा कि वह किन
रास्तों से यहाँ तक पहुँचा है। फिर वापस दुकान की तरफ़ जाने का
भी क्या फ़ायदा था। दुकान से तो वह फेंका ही जा चुका था। सो इस
बड़े और अनजान शहर में कहाँ और किस तरफ़ जाए, यह तय नहीं कर पा
रहा था।
उसने थम कर इधर-उधर देखना
शुरू किया। चारों तरफ़ सन्नाटा था और थके-माँदे लोग गहरी नींद
में सोए हुए थे। गली के बीच इधर-उधर कहीं कुत्ते लेटे हुए थे
और कही भयानक आवाज़ में भौंक रहे थे। हर चीज़ अजनबी नज़र आ रही
थी। पहचान का कोई चिन्ह ही नहीं था। कहाँ जाए यह सोच कर गुड्डे
ने धीमे-धीमे चलना शुरू किया, तो कुछ दूरी पर सबसे अलग-थलग एक
घर दिखाई दिया, जहाँ रोशनी थी। यह इस आबादी का आखिरी मकान था।
उसके बाद एक बहुत बड़ा बंजर मैदान था। थका-मांदा गुड्डा उस घर
की तरफ़ चल पड़ा। घर के सामने जाकर देखा तो पाया दरवाज़ा खुला
था और मामूली रोशनी में फ़र्श पर बैठी एक बूढ़ी औरत गुड्डा
बनाने में व्यस्त थी। उसके दाहिने हाथ में एक सूई थी जिससे वह
गुड्डे के शरीर से बाजू को जोड़ रही थी। गोलाई में धागे की
सहायता से टांके लगाते हुए वह न जाने किन ख़यालों में डूबी थी।
गुड्डा उस दरवाज़े से प्रवेश
कर गया और उस बूढ़ी औरत के पास पहुँच कर थकान से ढह गया। बूढ़ी
की तंद्रा अचानक भंग हुई। उसने हैरानी से इस गुड्डे को देखा।
उसे याद आया कि काफी समय पहले उसने इस गुड्डे को बना कर
दुकानदार को कुछ पैसे के बदले दिया था। कितने प्यार से उसने
इसे बनाया था। और बेच कर आने के बाद कितनी ज़्यादा उदास हो गई
थी। उसकी सूनी आंखों में चमक आ गई। इसका मतलब यह कि यह गुड्डा
अब दुनिया के लोगों के किसी काम का न रहा। ठीक। अब यह मेरा
है...सिर्फ़ मेरा। मैं इसे दोबारा से ठीक करूँगी। इसके जूते,
इसकी सीवन। बूढ़े हाथों में फिर से फुर्ती आ गई थी। औरत ने सूई
में से पुराने रंग का धागा निकाल कर, इस गुड्डे के रंग से
मिलता जुलता धागा डाला और शुरू कर दिया सीना। धीरे-धीरे गुड्डे
का रूप रंग सुधर रहा था। उसकी थकान मिटती जा रही थी। उसे याद आ
गया था कि इसी घर में, इसी बूढ़ी औरत ने अपने हाथों से उसे
बनाया था और उसे बेचने से पहले बहुत ज़्यादा उदास हो गई थी।
गुड्डे को लग रहा था कि वह अपने असली घर में वापस आ गया है। यह
सोच कर उसके मन को असीम शांति मिल रही थी। इधर बूढ़ी औरत को भी
यह सोच कर शांति मिल रही थी कि आखिर उसका बनाया हुआ गुड्डा उसे
वापस मिल गया है। औरत ने गौर से देखा, गुड्डे पर हालाँकि
दाग-धब्बों के निशान पड़ गए हैं, लेकिन उससे उसे कुछ फ़र्क
नहीं पड़ता। रात का शेष समय उसने उस गुड्डे को ठीक करने में
लगाया और फिर उसे अपनी छाती से लगा कर सो गई। उसे लग रहा था,
सदियों जैसे लम्बे अकेलेपन के सालों के बाद आज उसके साथ कोई
था, जिसे वह प्यार करती थी। |