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इसी बीच रेलगाड़ी के गुजरने की आवाज बालेसर को सुनाई पड़ी। रोज पांच बजे सुबह को यह रेलगाड़ी इस बस्ती से गुजरती है। इसी समय बालेसर की आँखें खुल जाया करती हैं। और दिन तो वह लेटा ही रहता है, लेकिन आज वह मड़ई का दरवाजा खोलकर चुपचाप तालाब की तरफ निकल गया। रास्ते में पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ था। चिड़िया-चुनगुन की आवाज भी सुनाई नहीं पड़ रही थी। हाँ, जाड़ा हाड़ कंपाने वाला जरुर लगा। एक बार तो बालेसर के मन में आया कि वह लौट जाए। मगर उसने सोचा कि जब घर से निकलना हो ही गया है तो अब लौटना ठीक नहीं होगा। उसने चादर को जरा कसकर बदन से लपेट लिया। तालाब के किनारे वाले मंदिर के चबूतरे पर कुछ लोग बैठकर आग ताप रहे थे। बालेसर भी उनके बीच बैठ गया। सब बस्ती के ही लोग थे। न तो किसी ने उससे कुछ पूछा और न उसने ही किसी से कोई बात की। उसका ध्यान पूरब की तरफ ही लगा हुआ था। आज वह अपनी आँखों से यह देखना चाहता है कि नया साल में सुरुज कैसे निकलता है और आज उसके उगने में नयापन क्या है। लोग आपस में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। बालेसर की उनकी बातों में कोई रुचि नहीं थी। एक आदमी ने उसे टोका भी कि वह रह-रह कर पूरब की तरफ क्यों देख रहा है? बालेसर ने हँसकर कह दिया-'अइसने।'

बालेसर ने देखा कि आकाश का रंग धीरे-धीरे बदलने लगा है। वह जरा सावधान होकर बैठ गया। पूरब की तरफ आकाश में लाली छाने लग गई। लाली धीरे-धीरे घटने लग गई और सुरुज की किरणें फूटती हुई दिखाई पड़ने लग गयीं। आखिर सुरुज पूरी तरह उग गया और चारों ओर उजाला फैल गया। बालेसर जिस सूरज के उगने की व्यग्रता के साथ प्रतीक्षा कर रहा था, उसके उगने पर उसे बहुत निराशा हुई। आज जिस ढंग से सूरज उगा है, उसके उगने में उसे कोई नयापन नहीं दिखा। जब सूरज के उगने में ही कोई नयी बात नहीं है तो कल और आज में क्या अंतर हुआ? कल का दिन जैसा था, आज का दिन भी वैसा ही रहेगा तो फिर आज नया साल कैसे हो गया? इन्हीं बातों को सोचता हुआ बालेसर तालाब के उस पार जाने लग गया।

बालेसर अपना रिक्शा लेकर चौक के अपने पुराने अड्डे पर आ गया। गाँव से आते हुए उसने देखा कि लोग कारों, ट्रकों, बसों, जीपों, मोटर साइकलों, स्कूटरों तथा आटो में सवार होकर गाते-बजाते कहीं चले जा रहे हैं। ट्रकों और बसों पर तो लाउड स्पीकर भी बज रहे थे। मगर रास्ते में एक तरह का सन्नाटा ही दिखाई दे रहा था। अब तक तो प्राय: सभी दूकानें खुल भी जाया करती थीं, पर आज दस बज जाने के बावजूद दुकानें बंद ही नजर आ रही थीं।

बालेसर अब तक बोहनी भी नहीं कर सका था। अपने अड्डे पर बैठा-बैठा जब वह ऊबने लगा तो वह रिक्शा लेकर नगर के इधर-उधर ही काटने लग गया। शायद कहीं कोई सवारी मिल जाए। मेन रोड का पूरा चक्कर लगा लेने पर भी जब उसे कहीं कोई यात्री नहीं मिला तो वह बादल के ठेले के पास आ गया। जैसे ही उसने अपना रिक्शा खड़ा किया एक लड़के ने आकर उससे कहा-'जरा जल्दी चलो। मेरी माँ की हालत बहुत खराब है। उसे अस्पताल पहुँचाना है।'
बालेसर ने उस लड़के से कुछ भी नहीं पूछा। उसने केवल इतना कहा-आइए, बैठिए।

बालेसर उस लड़के की माँ को अस्पताल पहुँचाकर लौट रहा था। मेन रोड में टेलीविजन की जो बड़ी दुकान है, उसके सामने बहुत भीड़ लगी हुई थी। बालेसर की इच्छा हुई कि वह भी अपना रिक्शा एक किनारे खड़ा कर दे और देखे कि यहाँ पर क्यों इतनी भीड़ लगी हुई है। उसने अपना रिक्शा रास्ते के किनारे नाली से सटाकर खड़ा कर दिया। अब बालेसर भीड़ में शामिल होकर धीरे-धीरे आगे सरकने की कोशिश करने लग गया। थोड़ी मशक्कत के बाद वह सामने पहुँच गया। आज टीवी की दूकान के मालिक ने सबसे बड़े पर्देवाला टेलीविजन चालू कर रखा था।

पर्दे पर एक जवान औरत नाच रही थी। उसके पूरे बदन पर पाव भर भी कपड़ा नहीं था। वह स्टेज पर नाच रही थी। स्टेज के सामने लोग बैठे थे। मजे की बात तो यह थी कि उनके साथ औरतें भी थीं। टेलीविजन में समाचार सुनाने वाला बार-बार यह बता रहा था कि मुम्बई के एक होटल में एक अभिनेत्री ने यह नाच दिखाया। उसने सत्तर लाख अपने इन ठुमकों के लिए लिए। कल आधी रात को यह नाच चालू हुआ था और रात भर चलता रहा था। अभिनेत्री के साथ-साथ नाच देखने वाले भी नाच रहे थे। अब समाचार वाचक ने कहा-'अभी आपने सत्तर लाख के ठुमके देखे। अभिनेत्री खुद तो खूब नाची ही, उसने अपने दर्शकों को भी खूब नचाया। अब इनकम टैक्स विभाग उसके पीछे पड़ गया है। एक बुरी खबर यह भी है कि एक औरत ने उसके ऊपर अश्लील नृत्य करने के आरोप में एक मुकदमा दायर कर दिया है। सत्तर लाख का नाच तो आपने देख लिया। अब इनकम टैक्स विभाग तथा अदालत दोनों अभिनेत्री को कैसे-कैसे नाच नचायेंगे, इसकी जानकारी भी हम आपको बराबर देते रहेंगे।' बालेसर ने सत्तर लाख की बात सुनकर यह तय किया कि वह किसी से यह जरुर पूछकर पता लगाएगा कि सत्तर लाख रुपिया कितना होता है।

अब टेलीविजन में समाचार सुनाने वाले ने एक नया दृश्य दिखाना शुरु कर दिया। यह बनारस के एक मंदिर का दृश्य था। इसमें गोरे-गोरे साहेब तथा गोरी-गोरी मेमों को दिखाया जा रहा था। सब लोग ओम नम: शिवाय बोल रहे थे और शिवजी की मूर्ति के सामने नाच-नाच कर नया साल मना रहे हैं। यूरोप के लोग नये साल का स्वागत इसी भारत में कैसे कर रहे हैं, हम जिसे अपना रहे हैं, उसे यूरोप छोड़ रहा है और हम जिसे छोड़ रहे हैं, उसे यूरोप के लोग अपना रहे हैं। 'यह देख-सुनकर बालेसर को बड़ा अचरज हुआ। समाचार वाचक ने अब कहा-' 'अब मैं आपको पुण्यभूमि ऋषिकेश लिए चल रहा हूँ। यह देखिए यहाँ गंगा मइया किस प्रकार कल-कल करती हुई बह रही हैं। गंगा के ऊपर यह लक्ष्मण झूला है। देखिए, इस ऋषिकेश में क्या हो रहा है। गंगा के किनारे नया साल का जश्न मनाने के लिए एक होटल ने यहाँ विशेष इंतजाम किया है। लोग शराब भी पी रहे हैं और माँस भी खा रहे हैं। कोई शराब पी ले और नाचने का उसका मन न हो, यह कैसे हो सकता है! तो यह भी देख लीजिए कि युवक और युवतियाँ किस अंदाज में डांस कर रहे हैं।'

यह सब देखकर बालेसर का मन घिनघिना उठा। वह भीड़ से निकलकर अपने रिक्शा के पास आ गया। रिक्शा पर छोटे-छोटे तीन-चार लड़के खड़ा होकर टीवी का प्रोग्राम टकटकी लगाकर देख रहे थे। बालेसर के जी में आया कि वह उन लड़कों को एक-एक चपत जड़ दे, पर उसने अपने को ऐसा करने से रोक लिया। बालेसर ने बादल के ठेले के समीप आकर अपना रिक्शा एक किनारे खड़ा कर दिया। वहाँ पहले से ही तीन रिक्शे और भी खड़े थे। एक रिक्शा पर धरमू बैठा अखबार पढ़ रहा था। उसे देखकर बालेसर ने उससे पूछा-'का धरमू भाई, का हाल-चाल है? तुमरा भाई तो अखबार में काम करता है न। उससे नया समाचार का मिला?' धरमू ने अखबार समेटते हुए कहा-'उससे पता चला कि शहर में आज तीस करोड़ रुपिया का कारोबार होने का अंदाज है।' 'तीस करोड़! बाप रे!! तीस करोड़ रुपिया केतना होता है, धरमू भाई?' 'बालेसर, इ तो हमहू नहीं जानते हैं।'
'पंद्रह करोड़ रुपिया का खाली अंगरेजी दारु बिका है।'
'मुर्गा, चिकेन और खस्सी केतना का बिका है?'-बालेसर ने पूछा।
'पच्चीस लाख रुपिया का।'
'बाप रे! एतना-एतना दारु और माँस आज इ नगर का आदमी लोग नया साल मनाने के वास्ते खा जाएगा। एतना दारु और माँस तो रावन का राकस लोग भी एक दिन में नहीं खाता होगा।'-बालेसर ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा-और कोई नया समाचार है? 'अब नया समाचार कल सबेरे बतायेंगे कि दारु पीके और एक्सीडेंट में केतना लोग मर गया और केतना लोग फौल में डूबके मर गया।' 'आज खाली समाचारे सुनना है कि चाह भी पीना है?'-बादल ने एक चाय बालेसर को देते हुए कहा।
बालेसर ने मुसकुराते हुए चाय का गिलास थाम लिया।

बालेसर का रिक्शा तो बस्ती की तरफ बढ़ा जा रहा था, लेकिन बालेसर के दिमाग में आज वह सब घूम रहा था, जो उसने टीवी में देखा था। उसे आज भी याद है कि जब उसके माँ-बाप अपने बदन पर पूरे कपड़े नहीं पहन पाते थे तो शहरी लोग कहा करते थे कि ये आदिवासी लोग असभ्य है। हमारे समाज में आज भी लोग दारु-हड़िया पीते हैं, तो उनको पियक्कड़ कहा जाता है। हम लोग अखरा में जनी-मरद मिलके नाचते हैं तो हम लोगों को पिछड़ा माना जाता है। मगर अब इ शहरी लोगों को का कहना चाहिए?
यही सब सोचता हुआ बालेसर अपनी बस्ती में पहुँच गया। उसने अपना रिक्शा भोला साव की दूकान के सामने रोक दिया। दूकान बंद देखकर उसे ताज्जुब हुआ। उसने भोला साव की माँ से पूछा-
'माय, दूकान काहे बंद है? सावजी कहाँ गेलयँ?'
'भोलवा आपन छउवा-पूता कर संगे पिकनिक मनाएक ले आपन सोसराइर जायहे। अब उ काल्हे घुरी।'-भोला साव की माँ ने बताया।

यह उत्तर सुनकर बालेसर अचानक परेशान हो उठा। अब वह क्या करे? वह रोज साँझ को भोला साव की दूकान से दो रुपिया का मिट्टी तेल लेकर घर जाता था, तब उसकी मड़ई में ढिबरी जलती थी। आज भोला साव की दूकान बंद है, तो उसकी मड़ई में ढिबरी कैसे बरेगी? इस समस्या ने उसे परेशान कर दिया। अब वह क्या करे? इस बस्ती में और कहीं से भी तेल नहीं मिल सकता। मिट्टी तेल नहीं मिला तो किसी तरह आज की रात बालेसर और उसके परिवार के लोग गुजार ही लेंगे। उसे आज की उतनी चिंता नहीं है। उसे सबसे अधिक यह चिंता सता रही थी कि उसने किसी खूब पढ़े-लिखे आदमी के मुँह से यह सुना था कि यदि नया साल का पहला दिन अच्छा गुजरता है, तो साल के बाकी दिन भी पहले दिन की तरह ही अच्छे गुजरते हैं। मगर, नया साल के पहले ही दिन आज बालेसर को मिट्टी तेल नहीं मिल सका है, इसलिए उसकी मड़ई में ढिबरी नहीं जल पाएगी। बालेसर अपना मुँह लटकाए रिक्शा की सीट पर आकर बैठ गया। वह धीरे-धीरे पैडल मारने लग गया। बालेसर सोच रहा था कि जिन-जिन लोगों ने आज खूब का-पी कर और नाच-गा कर नया साल मनाया है, उनका तो साल का बाकी समय भी खूब अच्छा बीतेगा। लेकिन आज तो उसकी मड़ई में भी रात भर अंधेरा ही रहेगा, तो क्या साल भर उसकी मड़ई में आज जैसा अंधेरा ही फैला रहेगा?

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२९ दिसंबर २००८

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