टीकम हाँफता हुआ घर के नीचे के
खेत की मुँडेर पर पहुँचा और ज़ोर से हाँक दी,
'पिता! दादा! ताऊ! बाहर निकलो। नदी ग़ायब हो गई है।
हाँक इतने ज़ोर की थी कि जिस
किसी के कान में पड़ी वह बाहर दौड़ा आया था।
टीकम अब खेत की पगडंडी से ऊपर चढ़ कर आँगन में पहुँच गया था।
उसका माथा और चेहरा पसीने से भीगा हुआ था। चेहरे पर उग आई नर्म
दाढ़ी के बीच से पसीने की बूँदें गले की तरफ़ सरक रही थी। आँखों
में भय और आश्चर्य पसरा हुआ था जिससे आँखों का रंग गहरा लाल
दिखाई दे रहा था।
उसका पिता और दादा सबसे पहले
बाहर निकले और पास पहुँच कर आश्चर्य से पूछने लगे,
"टीकू बेटा क्या हुआ? तू ऐसे क्यों
चिल्ला रहा है? सुबह-सुबह क्या ग़ायब हो गया?"
उसकी साँस फूल रही थी। होंठ सूख रहे थे। जबान जैसे तालू
में चिपक गई हो। कोशिश करने के बाद भी वह कुछ बोल नहीं पा रहा
बस होंठ हिल रहे थे। तभी उसकी अम्मा हाथ में पानी का लोटा लिए
उसके पास पहुँच गई। स्नेह से उसके बाल सहलाते हुए लोटा उसकी
तरफ़ बढ़ा दिया। टीकम ने झपट कर ऐसे लोटा छीनकर पूरा पानी गटक
गया मानों बरसों का प्यासा हो। कुछ जान में जान आई थी। अब तक
कुछ और घरों के लोग भी आँगन में इकट्ठे हो गए थे और पूरी बात
जानना चाहते थे। |