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                       पहले वह शायद ही इसका स्वाद जानती हो। फिर वह इतना कैसे डूब 
					जाती है। वह उसे रोक क्यों नहीं पाता। वह उसे इस निश्चिंतता के 
					सुख में कितनी अच्छी लगती है। जब वह कहती है कि चलो हम भी मछली 
					बन जाएँ तो उसे लगता है जल ही जीवन है और उससे निकलकर शायद 
					जीवन बरकरार रखना मुश्किल होगा। पर सत्य इसके विपरीत है हम 
					जलचर नहीं हो सकते। हमारे फेफड़े जल में जाम हो जाते हैं। फिर 
					वह इस मोहजाल में क्यों फंस गई। कहीं वह ही तो उसके लिए 
					ज़िम्मेदार नहीं।... उसे लगता जहाज़ का शोर बढ़ता जा रहा है, हो 
					सकता है कुछ ही देर में उसे अपनी यह गुमशुदा आवाज़ भी सुननी 
					मुश्किल हो जाए। उसने अपने ज्यूनियर को बुलाया और कहा, "केबिन 
					में झाँक आओ। कुछ तबियत ख़राब थी।" "जी" कहकर वह चला गया। लौटा 
					तो उसने कहा, "सर, आप भी एक चक्कर लागा आएँ।" "क्यों।" वह बोला, 
						"मैंने सोचा आपके जाने से अच्छा लगेगा।"
 
 मास्टर लौटा तो परेशान था। उसने ज्यूनियर के कंधे पर हाथ रखकर 
					कहा, "थैंक्यू, यंग मैन, कीप इट अप टु यू।" वह कुछ नहीं बोला, 
					केवल गर्दन हिला दी। उस रात मास्टर टहलता रहा। उसे लगा अगर वह 
					न जाता तो हो सकता था वह अनासुरती में किधर भी चल देती। वह 
					बार–बार उसे पुकार रही थी, "चलो मास्टर समुद्र हमें बुला रहा 
					है। हम मछली बन जाएँ। वह सोच रहा था, वह यह क्यों नहीं समझती 
					कि हमारा समुद्र मछलियों वाला समुद्र नहीं। हमारा समुद्र उनके 
					समुद्र से भिन्न है। जैसे उस समुद्र के बाशिंदे हमारे इस 
					समुद्र में ज़िंदा नहीं रह सकते वैसे ही हमारे लिए उनके समुद्र 
					में जिंदा रहना मुश्किल है। हर किसी को जीवित रहने के लिए अपना 
					समुद्र चाहिए। उसने यह बात उसे बार–बार समझानी चाही थी। पर वह 
					बार–बार यही दोहराती रही, समुद्र हमें बुला रहा है, हम मछली बन 
					जाएँ। यही दोहराते–दोहराते वह उसकी गोद में सिर रखकर सो गई। इस 
					बीच जहाज का शोर अनुपस्थित रहा था। उसके सोते ही वह शोर पूरी 
					शिद्दत के साथ उभर कर सामने आ खड़ा हुआ और उसके कानों को ताशे 
					की तरह बजाने लगा। जब वह उठा तो वह गहरी नींद में थी और समुद्र 
					जहाज़ की आवाज़ में आवाज़ मिलाकर गरज रहा था। उसने बाहर से दरवाज़ा 
					बंद कर दिया और बुर्ज़ में चला गया। लेकिन वहाँ भी उसे उसकी 
					कराहती आवाज़ सुनाई पड़ रही थी। उसे लग रहा था कि वह रह–रह कर 
					मछली बन जाती है।
 
 बीच–बीच में वह झाँक आता था। सवेरे जब वह अपने केबिन में आया 
					तो वह सो रही थी। उसके चेहरे का रात वाला तनाव ख़त्म हो चुका 
					था। उसे हल्की–सी निश्चिंतता महसूस हुई। उसने जम्भाई ली। 
					धीरे–धीरे उस पर सुस्ती तारी होने लगी। वह कमर सीधी करने के 
					लिए लेट गया। उसे लगा उत्तेजना का एक भूत उस पर ज्वार की तरह 
					हावी होता जा रहा है। वह उसे अपने जहाज से भी अधिक दलनकारी 
					लगा। जैसे वह समुद्र को रौंद रहा था वैसे ही वह भुतहा दानव उसे 
					रौंद रहा था। उसके सामने उस बच्ची की माँ को बचाने की त्वरा थी 
					जिसे अभी दुनिया में आना था। वह उससे लिपट गया... ।
 
 वह उठी तो वह गहरी नींद में डूबा था। शायद रात भर की कमी को 
					पूरा कर रहा था। वह प्रसन्न और उन्मुक्त थी। उपलब्धि का अनजाना 
					अहसास उसे निरंतर आल्हादित कर रहा था। उसने जल्दी–जल्दी 
					नहाना–धोना संपन्न किया और मास्टर के जागने का इंतज़ार करने 
					लगी। उठेगा तो वह उससे क्या कहेगा। शायद यही कहे कि तुम्हें 
					पता है रात मैंने तुम्हें गोदी में उठाकर लाया था। तुम इतनी मत 
					लिया करो। मैं कहूँगी – मैंने कहाँ ली। मुझे तुम्हारा उठाकर 
						लाना अच्छा लगा। लेकिन उसने जगने पर ऐसा कुछ नहीं कहा। वह 
						कुछ देर तक सिगरेट पीता रहा। मास्टर सवेरे एक सिगरेट पीता 
						था और एक रात को खाना खाने के बाद। कभी वह भी एक आध पफ़ 
						लेती थी। उस समय जब उसने पफ़ लेने की इच्छा ज़ाहिर की तो 
						मास्टर ने अपनी सिगरेट बुझा दी। उसे विचित्र लगा। वह बोली 
						नहीं। उसने धीरे से कहा, "मैडम, 
						अब तुम ख़तरे के जोन में हो। 
						अपनी तरफ़ ध्यान दो।"
 
 वह हँसकर बोली, "तुमने आज जितना ध्यान दिया उतना पहले तो नहीं 
					दिया। अब मुझे भी देना होगा।" मास्टर के चेहरे पर सुर्खी आ गई। 
					बोला कुछ नहीं। उस दिन दोनो ही एक दूसरे से झेंपे भी रहे। उस 
					रोज़ जब मास्टर अपने टावर में जाने लगा और मैडम भी तैयार होने 
					लगी तो उसने रोक दिया। "आज नहीं, शायद हमें एहतियात बरतनी 
					चाहिए।" इतना कहकर वह टावर में चला गया।
 
 अगला बंदरगाह जहाँ जहाज़ ने लंगर डाला वह चीन का कम आबाद 
					बंदरगाह था। हैड ऑफ़िस से स्वीकृति आ गई थी कि वे अगले बंदरगाह 
					पर जहाज़ की मरम्मत करा लें। दरअसल वह जहाज़ एक टैंकर था जो माल 
					लेकर एक जगह से दूसरी जगह जाता था। इस बार वह तेल ले जा रहा 
					था। एकाएक मास्टर को पता चला कि तेल रिस रहा है। वह नीचे की 
					मंज़िल में था। उसने ग्लास विंडो से झाँककर देखा तो उसे पानी की 
					सतह पर पतली सी तैलीय रेखा बनती नज़र आई। उसने अपने नंबर दो को 
					बुलाया। वह भी मास्टर की बात से सहमत था। मास्टर उस समय जहाज़ 
					को लेकर मध्य स्ट्रीम से गुज़र रहा था। उसने तत्काल एलार्म 
					दिया। लोग इकठ्ठे हो गए। टैंकर में सवारी जहाज़ के मुकाबले कम 
					स्टाफ होता है। ज़्यादातर नये लड़के थे। मास्टर ने कहा हमें इस 
					बहते तेल को जल्दी से जल्दी प्लग करना है। कुछ लोगों को अंदर 
					उतरकर पता लगाना होगा कि तेल कहाँ से बह रहा है। जहाँ तेल भरा 
					था वह खंड इतना विशाल था कि उसमें उतरना छोटे–मोटे सागर में 
					उतरने से कम नहीं था। सब लोग खामोश खड़े थे। मास्टर ने सबके 
					चेहरों की तरफ़ देखा। किसी की 
						आँखें ऊपर नहीं उठीं।
 
 वह बोला – हम सब मरने से डरते हैं। अगर सुराख प्लग नहीं किया 
					गया तो पानी हमारे न चाहते हुए भी अंदर घुस आएगा। तब हमारे पास 
					मरने के सिवाए कोई रास्ता नहीं होगा। पानी आक्रमण नहीं करता 
					नाक मुँह जहाँ से भी रास्ता मिलता है अंदर घुसता चला जाता है। 
					अगर हम उस सुराख को ढूँढकर प्लग कर पाए तो हमें दुहरी खुशी 
					मयस्सर होगी। अपने बचने की शायद पहली खुशी हो, दूसरी इस जहाज़ 
					को बचाकर हम उन बेगुनाह साथियों की जान तो बचाएँगे ही जो हमारी 
					सेवा में रात दिन लगे रहते हैं, देश की करोड़ों रुपये की 
					संपत्ति भी बचा लेंगे। शायद यह खुशी मेरे लिए पहली खुशी होगी। 
					मान लो इस सुराख को तलाश करने और उसे ठीक करने में हम लोग असफल 
					रहे तो हमारा मरना अपनी इच्छा से होगा। हमें पानी आकर ज़बरदस्ती 
					नहीं डुबाएगा। वह थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला – मैं तो इस जहाज़ 
					का मास्टर हूँ, मुझे तो हर हाल में अंत तक कोशिश करते रहना है 
					कि किसी तरह जहाज बच जाए। अगर न बचा पाया तो कोशिश करना है कि 
					आप सब बच जाएँ। और अंत में इस जहाज के साथ ही जल समाधि ले लेना 
					मेरा सबसे बड़ा नैतिक कर्तव्य होगा। कहकर मास्टर कपड़े बदलकर उस 
					गह्वर में उतरने के लिए तैयार होने चला गया।
 
 जब वह लौटा तो एक सैनिक की तरह जहाज को बचाने के सब आयुधों 
						से लैस था। उसने उन सब को बाय–बाय किया और उतर गया। लगभग 
						दो–तीन घंटे तक कहीं कोई संकेत नहीं मिला कि वह कहाँ है या 
						क्या कर रहा है। बस घड़ी टिक–टिक कर रही थी जिससे पता चल 
						रहा था कि मास्टर काम में लगा है। हालाँकि वे लोग अंदर 
						नहीं उतरे थे। लेकिन उनमें से किसी की भी हिम्मत अपने–अपने 
						ठिकानों पर लौट जाने की नहीं हुई थी। शायद वे प्रार्थना कर 
						रहे थे, मास्टर सही 
						सलामत लौट आए। हो सकता था वे मास्टर को यह मौका न देना 
						चाहते हों कि वह बाद में यह कहे कि मैं अंदर तुम सबकी 
						संभावित मौत से लड़ रहा था और तुम अपने–अपने बिस्तरों में छुपे थे।
 
 जब वह निकला तो उसे पहचानना मुश्किल था। तेल उसके रोम–रोम से 
					चू रहा था। आँखें उस चिड़िया की आँखो सी पलट गई थीं जो इराक 
					पहली लड़ाई के दौरान समुद्र में तेल छोड़ दिए जाने के कारण 
					सीएनएन द्वारा तेल में डूबी हुई दिखाई गई थी। वह आते ही ऐसे 
					लेट गया जैसे लंबी जल यात्रा के बाद उसे धरती मिली हो और लेटकर 
					सिजदा कर रहा हो। तत्काल बाहर इंतज़ार कर रहे लोगों ने उसके 
					शरीर को पोंछना और मसाज करना शुरू कर दिया। हर कोई चाहता था कि 
					मास्टर उसे सेवा करते हुए देख ले। कुछ लोग ज़ोर–ज़ोर से बोल रहे 
					थे। लेकिन मास्टर बेसुध था। उसकी पत्नी यही समझी थी कि वह टावर 
					में बैठा जहाज का संचालन कर रहा है। जब उसे होश आया तो वह 
					बुदबुदाया – समुद्र में मत जाओ, वहाँ मछलियां अपनों को भी खा 
					जाती हैं। सब लोग चकित थे, मास्टर यह क्या कह रहा है। लेकिन वह 
					लड़का चुपचाप खड़ा उस वाक्य के बारे में सोच रहा था। मास्टर मैडम 
					की रात वाली बात का जवाब तो नहीं दे रहे हैं। उसके 
						इस कथन का 
					जवाब वही जान सकता था जिसने पहली रात मैडम का वह निमंत्रण सुना 
					था कि समुद्र बुला रहा है चलो हम मछली बन जाएँ।
 
 चीन का वह बंदरगाह जहाँ जहाज की मरम्मत होनी थी अधसोया यार्ड 
					था। वहाँ खर्चा कम आता था समय ज़्यादा लगता था। दिन में लंच के 
					बाद लोग झपकी लेते थे। कुछ लोग ताश खेलते रहते थे। लगता था वह 
					आधुनिक चीन से बाहर है। वे लोग वहाँ लगभग एक महीने जहाज की 
					मरम्मत का इंतज़ार करते रहे। चूँकि जहाज पर मैडम अकेली थी इसलिए 
					कभी–कभी उन्हें घबराहट होने लगती थी। मास्टर कभी एजेंट के साथ 
					उन्हें शॉपिंग के लिए भेज देता था। कभी जब समय होता था तब 
					स्वयं भी चला जाता। जब वह जाता था तो मैडम लेती थीं। एजेंट ने 
					उन्हें बताया था कि एक शराब जो साँप से तैयार की जाती है वह 
					यहाँ पर सबसे अच्छी मानी जाती है। उस रोज़ जब वह मास्टर के साथ 
					गई तो उसने उससे उस शराब का ज़िक्र किया – मैं उस शराब को चखना 
					चाहती हूँ। मैं नहीं चाहती कि मैं देश–देश घूमूँ और वहाँ की 
					विशेष शराब न चखूँ। लोग कहते हैं कि जहाजी हर देश का खून चखे 
					होने में गौरव समझता है, मैं अगर कहूँ कि जहाजी की पत्नी हर 
					देश की शराब का ज़ायका जानती है तो क्या डियर यह ग़लत होगा।
 
 मास्टर ने कहा, वह बहुत बदज़ायका होती है, जो उसके आदी नहीं 
					होते उन पर घातक प्रहार भी कर सकती है।
 
 वह ज़िद करती रही। उस रात उसने उस सर्पीली शराब के दो पैग लिए। 
					जब तक वे लोग खाना खाकर बाहर निकले तब तक मैडम का शरीर ठंडा हो 
					गया था। मास्टर जल्दी उसे लेकर उस होटल में पहुँचा जहाँ वे उस 
					रात ठहरे थे। उसने उसे रजाइयों से ढक दिया और खुद भी उसके शरीर 
					से सटकर लेट गया। कमरे का तापमान भी बढ़ा दिया। वह जल से 
					निष्कासित मछली की तरह पलंग से चिपकी पड़ी थी। आधी रात के बाद 
					उसने करवट ली। तब जाकर मास्टर ने अपने को रिलेक्स करने की 
					स्थिति में पाया। सवेरे वह नार्मल थी। उसे साफ़ तौर पर यह याद 
					नहीं था कि रात क्या हुआ था। सब धुँधला–धुँधला था। मास्टर को 
					वह सब कम पसंद आया था। यह पहली बार हुआ था। अक्सर वह उसके साथ 
					पीने में और उसे पिलाकर खुश होता था। उस रोज़ उसे विचित्र महसूस 
					हुआ था। इस बात को मैडम भी समझ गई थी। उसने कहा कि क्या तुम 
					इसलिए नाराज़ हो कि रात मैंने तुम्हारी मर्ज़ी से न लेकर अपने मन 
					से ली। इस बात पर पहली बार उनकी कहा सुनी हुई थी जो कुछ देर तक 
					जारी रही थी। मैडम ने विषय बदलने के लिए उसके सामने अपना एक 
					राज़ खोला था। उसने सोचा था कि इस खबर को पाकर वह खुश हो जाएगा 
					पर हुआ उसका उलटा।
 
 दरअसल वह उसे किसी सही अवसर पर सरप्राइज देना चाहती थी। लेकिन 
					उसकी नाराज़गी को ख़त्म करने के लिए उसे राज़ खोलना पड़ा। उसके यह 
					कहते ही कि वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली है वह बलबलाने लगा। 
					तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया। मैं हरगिज़ तुम्हे वह शराब न 
					पीने देता। कौना जाने उस ज़हर का उस बच्चे पर क्या असर होगा। उस 
					समय वह बच्चा पैदा हुए बिना भी पैदा हो गया था। बिना नमूद हुए 
					भी उसकी उपस्थिति लगातार बनी रहने लगी थी। अक्सर इस बात को 
					दोहराता था कि तुमने बच्चे के बारे में छिपाकर मुझ पर ही 
					अत्याचार नहीं किया बल्कि उस बच्चे पर भी किया है जो अभी 
					दुनिया में नहीं आया। अगर कुछ हो गया तो मैं तुम्हें और अपने 
					को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगा। मैडम के मन में भी बच्चे को लेकर 
					तरह–तरह की आशंकाएँ होने लगती थीं। कभी वे आशंकाएँ आत्मग्लानि 
					में बदल जाती थीं तब वह और ज़्यादा पी लेती थी। ये सब बातें एक 
					तरह की दूरी का निर्माण कर रही थीं। वे अपने देश लौटे तो उतने 
					सहज नहीं रहे थे जितने यात्रा पर जाते समय थे। एक मानसिक भार 
					था। हालाँकि वे बराबर जाँच कराते रहे थे और उन्हें यही रिपोर्ट 
					मिलती रही थी कि बच्चे का विकास सुचारू रूप से हो रहा है। पर 
					मास्टर के मन की आशंका मैडम के मन को भटका देती थी और वह 
					अनहोनी की कल्पना मात्र से विकल हो उठती थी। फिर वही राग शुरू  
						हो जाता था।
 
 जब बच्चा हुआ तो वह पूरी तरह स्वस्थ था। पैदा होते ही मास्टर 
					ने उसके हाथ पैर हिलाकर देखे। जब तक बच्चा चलने फिरने लायक 
					नहीं हुआ तब तक वह उसके चलने फिरने को लेकर शंकित ही बना रहा। 
					उसके बाद उसके बोलने–चालने को लेकर बहस चलती रही। अगर बच्चा 
					गूँगा बहरा हुआ तो क्या करोगी। माँ को रह–रहकर गुस्सा आता 'तुम 
					मेरे बच्चे को तब से कोस रहे हो जब से वह गर्भ में आया। जब 
					चलने–फिरने लगा तो तुमने उसे गूँगा बहरा करार देना शुरू कर 
					दिया। आख़िरकार तुम मेरी उस एक ग़लती की कब तक सजा देते रहोगे। 
					तुम्हारा मर्दाना अहंकार अपना बदला किस–किस तरह ले रहा है। 
					मर्द की बात पत्नी एक बार मानने में कोताही कर दे तो वह रूप 
					बदल–बदल कर उसे डसता है। ईश्वर के लिए तुम मेरे बच्चे के लिए 
					कुछ मत कहा करो, मुझे जो कहना चाहो कह लो। वह इतनी आहत हो जाती 
					कि उस पर कुछ कहते न बनता तो अपनी बात पर कुछ कहते न बनता तो 
					अपनी बात पर उतर आती। बच्चा कई बार 
						रोता रह जाता।
 
 धीरे–धीरे बोलने और सुनने के बारे में मास्टर की आशंकाएँ 
					निराधार हो गईं। वह जब बोलने लायक हुआ तो उसकी वाणी खुलती चली 
					गई। मास्टर जब उसे इस तरह उन्मुक्त बोलते सुनता तो प्रसन्नता 
					से भर उठता लेकिन जब उसे ध्यान आता कि हो सकता था वह बोल ही न 
					पाता या चल ही न पाता तो क्या होता, यह सवाल उसे उद्विग्न कर 
					देता। कई बार बिना किसी संदर्भ के मैडम को कहता कि उस हालत में 
					वह उसे कभी माफ़ न करता। तक्षक फिर जाग उठता। वह कहती तुमने 
					मुझे या मेरे बच्चे को माफ़ ही कहाँ किया है। जहाँ मौका मिलता 
					है तुम मुझे और मेरे बच्चे को कटघरे में खड़ा कर देते हो। क्या 
					तुम्हें यह नहीं लगता कि काश यह बच्चा तुम्हारी आशंकाओं को सही 
					साबित कर देता तो तुम मुझे मनमाना दंड दे सकते थे। इस बात का 
					तुम्हें मलाल है, क्यों? यह बात उसे असह्य लगती। उन लोगों की 
					बात कभी ज़बानी जमा खर्च से आगे नहीं बढ़ी। लेकिन ज़बान की मार कई 
					बार हज़ारो मैगाटन की मिसाइल से भी भारी पड़ती है। वही हुआ एक 
					रोज़ बातों की मिसाइल फटी और दो रास्ते बन गए। न आवाज़ हुई और न 
					विस्फोट हुआ। उसकी आवाज़ न मास्टर को सुनाई पड़ी और न मैडम को। 
					बच्चे ने अवश्य अपने नाजुक और कोमल पर्दे वाले कानों से 
						उस 
					विध्वंसकारी आवाज़ को सुना।
 
 उस आवाज़ ने न उसे रुलाया और न डराया। लेकिन सहमा ज़रूर दिया। 
					माँ को अपना ठिकाना खोजना पड़ा। बेटी बीचोंबीच अकेली थी। बाप 
					पास था। लेकिन बच्चे के लिए पिता कितना भी बड़ा हो कितना भी 
					शक्तिशाली हो माँ के मुकाबले तब तक नगण्य रहता है जब तक इतर 
					कारणों से वह पिता की विशिष्टता को स्वीकार करने लायक नहीं 
					होता। बच्चा कहता था मुझे माँ चाहिए। पिता कहता था माँ बीमार 
					है। उसकी समझ में नहीं आता था कौन बीमार है। धीरे–धीरे बच्चे 
					ने अपने अंदर दो घर बना लिए। अंदर वाला माँ को दे दिया। बाहर 
					वाला पिता के लिए रख लिया। जब पिता आते तो बच्चा पूछता, "पापा, 
					तुमने आफ़िस में क्या खाया। खाया या नहीं। या कहता पापा तुम 
					जल्दी आया करो हमें डर लगता है।" या फिर कहता हम अपने घर में 
					क्यों नहीं रहते क्या हमारा अपना घर अब कभी नहीं बनेगा माँ कभी 
					नहीं आएगी, क्या माँ के जाने पर घर बंद हो जाता है। मास्टर 
					बड़े–बड़े जहाजों को गहन समुद्रों से निकाल ले जाता था। बड़े–बड़े 
					सुराखों को बंद करके वह बहुमंज़िले जहाज को डूबने से बचा सकता 
					था लेकिन बच्चे के सवालों के ये टारपीडो उसकी संपूर्ण संरक्षण 
					सामथ्र्य को क्षत–विक्षत कर देते थे। वह झुंझलाता था 'तुम बहुत 
					बे सिर–पैर के सवाल करने लगे हो।' बच्चा सहम जाता और बिसुरता 
					हुआ कहता अब नहीं करूँगा पापा। पिता गुस्से को संभालकर मूड 
					बदलने के लिए पूछते तुम स्कूल में भी जब करूँगा, खाऊँगा, 
					बैठूँगा कहते हो बच्चे हँसते नहीं। वह जवाब न देता तो वह फिर 
					कहता मुझसे लोग पूछते हैं तुम्हारा यह बेटा है या बेटी। वह 
					बिगड़ जाता– मैं बेटी नहीं हूँ। मैं मम्मी नहीं बनूँगा। मास्टर 
					को लगता बात गंभीर हो गई। वह मन ही मन बुदबुदाता मैं क्या 
					करूँ। यह सवाल उसके दिमाग़ में इतने विशाल जहाजों के संदर्भ
						में कभी नहीं आया था।
 
 उसे एक रोज़ स्कूल में मम्मी, पापा और बच्चे पर एक प्रोजेक्ट 
					बनाने को कहा गया। उसने कार्डबोर्ड पर सुंदर सी अबरी चढ़ाई। 
					बीचोबीच समान दूरी पर अपने पापा और अपना पासपोर्ट साइज फ़ोटो 
					चिपकाए। पूरे कार्ड पर रंग–बिरंगे सितारे चिपकाए। हर एक पर माँ 
					लिखा था। सितारे बहुत छोटे थे और दोनो चित्र बड़े–बड़े। लेकिन वह 
					पूरी सतह माँ के रंग–बिरंगे सितारों से जगमग कर रही थी। उस पर 
					उसने लिखा 'मेरा आकाश'।
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