यों ही टाइम
पास के लिए फिल्मी पत्रिकाओं के पन्ने पलटता रहता और हीरोइनों
की अर्धनग्न तस्वीरें निहारा करता। उनके स्तनों के उभार,
जाँघों के सुडौलपन, नितंबों के कसाव और कपोलों व होठों में
समाये आमंत्रण-आकर्षण में देर तक खो सा जाता। खासकर माधुरी
दीक्षित की तिरछी हंसी और कंटीली अदा का मानो उस पर जादू छा
जाता। उसकी कोई भी फिल्म लगती, वह हॉल में जाकर जरूर देख आता।
वह माधुरी के जन्म-दिन पर बधाई कार्ड भी डालने लगा। आदमी के
पास करने के लिए कुछ न हो तो वह क्या-क्या करने लग जाता है?
शायद कुछ लोगों का यह मानना ठीक है कि देश के ऐसे ही
बेरोजगारों के वक्त-काटू शगल के कारण अपना यह बॉलीवुड ज्यादातर
अनाप-शनाप फिल्में बनाकर भी आबाद
है।
फुल्लू की दो-तीन साल पहले यह नौबत न थी। खासकर तब जब हार्ट
अटैक से मरने के पहले उसके पिता कल्लू दुकान पर बैठते रहे। कम
से कम सौ दुकानों वाले इस मार्केट में पक्की छत और दीवारों के
बीच चलने वाली चाट की यह अकेली दुकान थी, जहाँ ग्राहक बजाब्ता
अपने परिवार सहित कुर्सी-टेबल पर ठाठ से बैठकर चाट खा सकते थे।
इस दुकान के अलावा अगर कहीं चाट की उपलब्धता थी तो विभिन्न
नुक्कड़ों-चौराहों पर सड़क के किनारे ठेलों पर थी, जहाँ हाथ
में प्लेट लेकर खड़े-खड़े
खाना होता था। इस हिसाब से फुल्लू की दुकान चाट की एक्सक्लूसिव
दुकान थी।
इस दुकान पर ग्रहण लगना तब शुरू हुआ जब इसके ठीक सामने चिरंजी
शर्मा जूस वाले ने अपनी दुकान का कायाकल्प करके उसे 'ग्लोबल
स्नैक्स कॉर्नर' में तब्दील कर दिया। पहले वह गन्ने का, संतरे
का, मुसम्बी का, अनार का रस बेचा करता था, अब वह पिज्जा,
चाउमिन, हैमबर्गर, सैंडविच और हॉटडॉग बेचने लगा। पहले उसकी
दुकान में भीमसेन जोशी, शुभा मुद्गल और किशोरी अमोनकर के ऑडियो
आलाप गूँजते रहते थे, अब वहाँ माइकेल जैक्सन, मडौना,
ब्रिटनीस्पीयर्स आदि के शोर और हुल्लड़ सीडी पर दिखने-बजने
लगे। बस देखते ही देखते चाट के सारे ग्राहक उस तरफ मुड़ गये।
फुल्लू के पास ग्राहक की जगह उड़ाने के लिए सिर्फ मक्खियाँ रह
गयीं। बड़े शौक से चाट खाने वाले अपने कई परिचित ग्राहकों को
अब वह दूर से पिज्जा या नॉनवेज हैमबर्गर खाते हुए देखता रहता।
उसे दया आती कि आधुनिकता का आकर्षण लोगों को क्या-क्या खाने के
लिए मजबूर कर रहा है? उसका एक दोस्त था गोरेलाल, जो कोई काम न
मिलने के कारण अंतत: एक स्थानीय अखबार में स्ट्रिंगर बन गया
था। फुर्सत में वह अक्सर उसके पास आकर बैठ जाया करता। वह जानता
था कि एक खानदानी निष्ठा (उसके पिता कल्लू स्वदेशी जागरण मंच
के सदस्य थे) के कारण बनारसी चाट की दुकान में निहित देसीपन
में वह कोई ऐसा परिवर्तन नहीं कर सकता, जैसा चिरंजी ने कर
लिया, इसलिए इसी में कुछ गुंजाइश निकालने की जरूरत है।
इस तरह फुल्लू की खंडहर होती
हालत देखकर सोचते-सोचते एक दिन उसने कहा, "ठीक है, तुम चाट
की दुकान ही चलाना चाहते हो, चलाओ। लेकिन विज्ञापन और
प्रचार के इस जमाने में तुम्हें वो तरीके अपनाने होंगे कि
ग्राहक तुम्हारी तरफ आकर्षित हो। चाट परोसने में भी कुछ
फीचर जोड़ो। विज्ञापन का ही कमाल होता है कि एक ब्रैंड का
नाम देकर चमकदार रैपर में पैक किया हुआ मामूली आटा, लाल
मिर्च, आलू चिप्स, नमक, पानी आदि राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित
होकर गैरमामूली तरीके से बिकने लगता है। स्वदेशी रैपर में
भी हम अच्छी पैकिंग कर सकते हैं।" गोरेलाल को सुनते हुए
जैसे फुल्लू के दिमाग की कोई खिड़की धीरे-धीरे खुलने लगी।
गोरेलाल ने आगे कहा, "चलो, हम एक काम करते हैं, अगले महीने
१५ मई को माधुरी दीक्षित का जन्म दिन है, हम उसे भारी
धूमधाम से मनाते हैं। इससे माधुरी के प्रति तुम्हारे
दीवानेपन की तुष्टि भी हो जायेगी। उस दिन जो भी दुकान में
आएगा, उसके लिए मुफ्त की चाट और मुफ्त का एक लॉटरी टिकट।
लॉटरी में प्रथम पुरस्कार एक मारूति कार रख दो। इस मद में
तुम्हें चालीस-पचास हजार खर्च करना पड़े, कर दो। अपने पास
न हो तो इसे एक जरूरी निवेश समझकर कर्ज ले लो।"
फुल्लू ने हिसाब लगाते हुए
पूछा, "चालीस हजार में कैसे होगा कम से कम ढ़ाई लाख तो
मारूति कार के लिए ही चाहिए।"
गोरेलाल ने उसे असली बनियागिरी सिखाते हुए समझाया, "अरे
लॉटरी का ड्रॉ करना किसे है कोई पूछे तो ड्रॉ की तारीख
बढ़ाते जाना है। यही तो करते हैं ज्यादातर धंधेबाज। एनाउंस
होनेवाली तीन-चार प्रतिशत लॉटरी ही ड्रॉ के परिणाम तक
पहुँचती है। भला फुर्सत भी किसे है इतना पीछे पड़ने की।
जिसका टिकट मुफ्त में मिला हो उसके लिए पूछने का आदमी के
पास मॉरल भी कहाँ होता है।"
फुल्लू सहमत हो गया बात बिल्कुल ठीक है। उसे ऐसी दर्जनों
लॉटरियों का खयाल आ गया जिनमें उसने इंट्री भेजी थी, मगर
आज तक उनका परिणाम नहीं आया।
दोनों इस विषय पर कई
दिनों तक बातचीत करते रहें। हर कोण से इसके नफा-नुकसान को
टटोलते रहें और प्रारूप तय करते रहें।
एक दिन लोगों ने देखा - फुल्लू की दुकान के साईनबोर्ड के
ऊपर एक बड़ा-सा बैनर लगा है - "प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री
माधुरी दीक्षित का जन्म दिन समारोह। आप सभी नि:शुल्क
स्पेशल माधुरी चाट और नि:शुल्क लॉटरी ड्रॉ के कूपन के लिए
आमंत्रित हैं।" ग्लोबल स्नैक्स कॉर्नर के मालिक चिरंजी का
तो जैसे माथा ही ठनक गया। उसने सामने से ही देख लिया -
दुकान की दीवारों पर माधुरी की कई मुद्राओं में मुस्कुराती
आलीशान फ्रेमों में मढ़ी हुई बड़ी-बड़ी तस्वीरें टांग दी
गयी हैं और बड़े-बड़े कट आउट लगा दिये गये हैं। एक बोर्ड
पर उसकी तमाम फिल्मों के नाम और झलकियाँ उसके विभिन्न
यादगार किरदारों की कैश काउंटर पर रखे म्यूजिक सिस्टम
द्वारा पर्दे पर माधुरी द्वारा गाये गीतों की मंद-मंद
स्वरलहरियाँ पीछे की दीवार पर लगे साउंडबॉक्सों से झरती
हुई एक रंगीन पोस्टर माधुरी लकी ड्रॉ का, जिस पर अंकित -
"प्रथम पुरस्कार -
मारूति ८००, इसके अलावा दस-दस हजार के पचास अन्य पुरस्कार
एक कूपन माधुरी चाट खाने पर फ्री।" इस तरह पूरी दुकान
माधुरीमय।
१५ मई को सबने देखा कि वहाँ स्वप्नलोक जैसा एक मनोहारी
दृष्य उतार दिया गया। मार्केट के मुहाने पर एक भव्य
तोरण-द्वार बनाया गया जिस पर लिखा था - लांग लाइव माधुरी।
युवा दिलों पर बिजली गिराने वाली माधुरी के दो हसीन कट आऊट
किनारे में चस्पां कर दिये गये थे। इस द्वार से लेकर उसकी
दुकान तक मिनी बल्वों की अद्भुत साज-सज्जा थी। दुकान के
सामने २५ पौंड का एक विशाल बर्थ डे केक सजा हुआ था। केक
काटने के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर जिले के एस पी
आमंत्रित थे। स्ट्रिंगर गोरेलाल आखिर कब काम आता, इतनी
पहुँच तो उसकी थी ही। अपने उद्देश्य को व्यक्तिगत से
सामाजिक रंग देने लिए उसने शहर में स्थित यतीम और विकलांग
बच्चों के शरणस्थल चेशायर होम में एक माधुरी मेला आयोजित
कर दिया, जिसमें बच्चों के लिए मुफ्त में चाट, गोलगप्पे,
आइसक्रीम, जलेबी आदि खाने की व्यवस्था कर दी गयी। उसमें
दो-तीन किस्म के झूले भी लगा दिये गये। बच्चों ने माधुरी
को कम और फुल्लू को ज्यादा दुआएँ दीं।
शहर में धूम मच गयी।
अगले दिन हर स्थानीय अखबार में फुल्लू छाया हुआ था।
गोरेलाल का सब एडीटर कहा करता था - एक हीरो की तलाश करो,
एक स्टोरी बनाओ उ़से हीरो और स्टोरी दोनों ही मिल गयी थी।
लोगों ने उसकी इस दीवानगी का खूब आनंद लिया, कुछ अखबार
पढ़कर और कुछ दुकान में चाट खाकर।
फुल्लू अब विदूषकीय कौतूहल और विस्मय का एक चर्चित किरदार
हो गया था। लोग उसे एक बार देखना चाहते थे। अत: दुकान में
आमद-रफ्त बढ़ गयी। आनेवाले चाट भी खाने लगे। चाट के कुछ
पुराने परंपरागत ग्राहकों का आकर्षण फिर लौट आया। उसकी
इश्कमिजाजी से प्रोत्साहित होकर कुछ नयी उम्र के प्रेमी
जोड़े मिलने और गपियाने की दृष्टि से इस दुकान को एक
निरापद जगह समझने लगे। अब चाट में उसने कई नये फीचर जोड़
दिये थे। पकौड़ी चाट, टिकिया चाट,
सिंगाड़ा चाट, चाट बत्तीसी,
चाट छप्पन भोग चाट में गठिया तथा टोमॅटो और चिल्ली सॉस आदि
भी मिलाया जाने लगा। साथ में खट्टा, मीठा और झाल के अलग से
द्रवीय घोल अपनी रुचि के अनुसार जितना जो चाहे मिला लें।
मतलब चाट में चाट कम और ठाठ ज्यादा हो गया।
अब फुल्लू माधुरी के प्रति दीवानगी दिखाने का हर अवसर लपक
लेने लगा। हॉल में माधुरी की कोई फिल्म लगती तो बाहर खड़े
होकर वह अंदर जानेवाले दर्शकों में टॉफियाँ या आईसक्रीम
बँटवा देता। माधुरी ने अमेरिका के डॉक्टर राम नेने से शादी
कर ली तो लोगों ने समझा कि फुल्लू बड़ा मायूस होगा, लेकिन
उसने खुश होकर शिशु निकेतन के बच्चों में एक महीने तक दूध
वितरण करवाया। गोरेलाल ने इसकी रिपोर्ट देते हुए अखबार में
लिखा, "फुल्लू ने साबित कर दिया है कि उसके प्रेम में कोई
स्थूल माँसल आकांक्षा नहीं हैं, बल्कि वह सात्विक किस्म के
आनंद का रसिया है। माधुरी की खुशी में
वह अपनी खुशी देखता है, अन्यथा तो घर में उसकी पत्नी पिंकी
है जो उसे हर तरह से पसंद हैं और माधुरी से उसके प्रेम में
कोई बाधक नहीं बल्कि मददगार है।"
स्थानीय पत्रकारों की अड्डेबाजी उसकी दुकान में काफी बढ़
गयी। इनके लिए अघोषित रूप से यहाँ खाना-पीना नि:शुल्क था।
भुगतान में, यह अनकहा समझौता था कि उसे वे खबरों में बनाये
रखेंगे। खबरों में बने रहते-रहते जैसे उस पर सचमुच ही एक
नायकत्व की खब्त सवार होने लगी। महज दुकान चलाने के लिए
जिसे फिड़के के तौर पर इस्तेमाल किया गया था, उसमें वह
बहुत गहराई से संलिप्त होने लगा। दुकान चलने लगी थी, पत्नी
चाहती थी कि घर में सुख-मौज के कुछ सामान आ जायें
एयरकंडीशनर, माइक्रोवेव ओवन, म्यूजिक सिस्टम, वाशिंग मशीन,
कोई पुरानी कार, ताकि जीवनस्तर कुछ बेहतर लगने लगे। लेकिन
फुल्लू था कि इससे ज्यादा जरूरी समझता था ओल्डएज होम में
कंबल वितरण करना,
शिशु निकेतन में दूध वितरण करना, चेशायर होम में फल, मिठाई
और दवाई वितरण करना और १५ मई को पिछले से बड़ी धूमधाम,
बड़ा केक, बड़ी साज-सज्जा।
ऐश्वर्य और विलासिता के सामान तो बहुत लोगों के पास होते
हैं, उन्हें कोई नहीं जानता, लेकिन वह पाँच हजार का ही
कंबल बाँट देता है, दस हजार खर्च करके केक कटवा देता है,
चाट खिला देता है तो पूरे शहर में उसकी चर्चा हो जाती है,
कितने गरीबों की दुआएँ मिल जाती हैं। पत्नी को लगता कि यह
सब लफ्फाजी और बकवास है। इस सस्ती लोकप्रियता से वह आराम
नहीं हासिल हो जाता जो कार दे सकती है, एयरकंडीशनर दे सकता
है। ऐसे दर्जनों लोग हैं इस शहर में जिनके पास करोड़ों की
सम्पत्ति हैं, समाज-सेवा पर वे लाख-दो लाख खर्च कर दें तो
उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़नेवाला, फिर भी उन पर कोई
जूँ नहीं रेंगती, फिर हमें ही क्या पागल कुत्ते ने काटा
है? पत्नी उसकी खब्त, सनक और झख से परेशान होने लगी। उसे
लगने लगा कि अपने बीवी-बच्चों से ज्यादा इसके लिए माधुरी
की अमूर्त और निराकार
दीवानगी की अहमियत है।
फुल्लू ने अपनी पत्नी पिंकी के व्यावसायिक अविवेक को कोसते
हुए कहा, "तुम औरतों को सिर्फ ईर्ष्या करना आता है तह में
जाकर समझना नहीं आता। आज का जमाना निवेश पर आधारित है ह़म
माधुरी के नाम से जो भी करते हैं उसे तुम एक निवेश मानकर
गले से उतारना सीखो।"
पिंकी ने झुँझलाते हुए कहा, "निवेश तो हो गया लोगबाग जान
गये कि एक दुकान है जहाँ हर चीज पर माधुरी दीक्षित के नाम
की मुहर है अब और क्या करोगे, माधुरी के नाम से ताजमहल
बनाओगे?"
"काश, मैं ताजमहल बना पाता लेकिन तुम्हें शायद पता नहीं
हैं कि ताजमहल सिर्फ इश्क करने से नहीं बन जाता। उसके लिए
शहंशाह भी होना पड़ता है और दौलतमंद भी। प्यार में ताजमहल
आज भी दुनिया का सबसे बड़ा इन्वेस्टमेंट है। शहंशाह इस
दुनिया में नहीं है फिर भी लाभांश उन्हें आज भी मिल रहा
है।"
"जिसे दुनिया सात्विक और शुद्ध प्यार का इज़हार मानती है
उसे तुम निवेश कह रहे हो? प्यारके लिए यही जगह है तुम्हारे
मन में?"
"प्यार का इजहार मन में अमूर्त हो तो वह ताजमहल से भी बड़ी
चीज बनकर रहता है। लेकिन जब उसे कोई भौतिक आकार देता है तो
वह न चाहते हुए भी एक निवेश की शक्ल अख्तियार कर लेता है।
निवेश जरा वाणिज्यिक शब्दावली हो जाता है अन्यथा ध्यान से
देखो तो घर-परिवार में दायित्व-निर्वाह के नाम पर जो हो
रहा है वह एक प्रकार का निवेश ही तो है!"
"मुझे लगता है तुम पूरी तरह बनिया हो गये हो जो हर चीज को
नफा-नुकसान के तराजू पर तौलने लगे हो। माँ-बाप अपने बच्चों
के लिए जो करता है, पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए जो समर्पण
भाव रखते हैं, बहन भाई में जो एक रिश्ते की पवित्रता होती
है, क्या यह सब कुछ निवेश पर टिका है?" |