अम्मा का
झगड़ा शुरू हो गया है। अपने आप से। दियासलाई की डिब्बिया से।
ढिबरी से। चूल्हे में उपलों के बीच ठुँसी आग से और बाहर–भीतर
दौड़ती बिल्लियों से।
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यही सब होता
है जब अम्मा उठती है। वह चार बजे के आसपास जागती है। ओबरे में
पशु भी अम्मा के साथ ही उठ जाते हैं। आँगन में चिड़िया को भी
इसी समय चहकते सुना जा सकता है और बिल्लियों की भगदड़ भी अम्मा
के साथ शुरू हो जाती है। यह नहीं मालूम कि अम्मा पहले जागती है
या कि अम्मा की गायें या
कि चिड़िया या फिर बिल्लियाँ।
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कई बार अम्मा उठते ही अँधेरे से लड़ पड़ती है। हाथ अँधेरे की
परतों पर तैरते रहते हैं। हाथ सिरहाने के नीचे जाता है पर
दियासलाई नहीं मिलती। कई बार रात को अम्मा बीड़ी सुलगाती है तो
दियासलाई नीचे गिर जाती है। ऊँघ में वह बीड़ी तो पी जाती हैं पर
दियासलाई को ऊपर उठाने की हिम्मत नहीं हो पाती और आँख लग जाती
है। इस समय याद नहीं आती। अम्मा खूब गालियाँ बकती है। ढिबरी
उसी से जलनी है। काफी देर बाद याद आता है। बिस्तर से आधी
चारपाई के नीचे झुक कर उँगलियों से फर्श सहलाती अम्मा के हाथ
देर बाद लगती है दियासलाई। अपने को सहेजती है। एक तिल्ली निकाल
मसाले पर रगड़ती है पर वह नहीं जलती। चिढ़ जाती है अम्मा।
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