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					बौद्ध-ग्रन्थ 
					'उदयन परिदिपित-उदयेनिवत्थु' एवं 'कथा सरित्सागर' के अनुसार 
					गस्र्णवंशी कुमार ने वत्स पर आक्रमण कर शतानीक को हरा दिया। 
					उनकी गर्भवती महारानी ने कौशांबी से लगे सघन वन में शरण ली। 
					वहाँ एक ऋषि कुमार ने उनकी रक्षा एवं देखभाल की। विष्णु पुराण लिखता है, 'प्रिय रानी के वियोग में 'विषय 
						विरक्त चित्तो' शतानीक सन्यासी हो गए। कुछ समय बाद 'निर्वाणमाप्यस्ति', उनका निधन हो गया। इधर आश्रम उदयन की 
						जन्मस्थली बना। एक अन्य सूत्र के अनुसार महारानी का अपहरण 
						कर गरुणवंशी कुमार जब उन्हें ले जा रहा था, तभी उसपर वन 
					में आदिवासी शबर भिल्लों ने आक्रमण कर दिया। संघर्ष की 
					अव्यवस्था का लाभ ले महारानी भाग खड़ी हुयीं। ऋषिकुमार ने उन्हें संरक्षण में 
					ले लिया। कालांतर में रानी ऋषिकुमार के पुत्र उदयन की माँ बनी।
					
 उदयन की युवाराजोचित शिक्षा का प्रबंध ऋषिकुमार ने किया। 
						ऋषिकुमार सिद्ध हस्त वीणा वादक थे। अस्त्र-शस्त्र, 
						राजनीति, प्रशासन के साथ ही उदयन ने वीणा वादन में ऐसी 
						श्रेष्ठता प्राप्त कर ली कि जंगली हाथी भी उसके वशीभूत हो 
						जाते थे। तब वे उन्हें पकड़ कर पालतू बना लेते थे। ऋषिकुमार 
						ने उन्हें हाथी दाँत से निर्मित घोषवती वीणा भेंट दी थी।
 
 वयस्क होते ही ऋषिकुमार के निर्देश में शबरों भिल्लों और 
						हाथी की सेना के साथ उदयन ने वत्स पर आक्रमण किया। 
						गरुणवंशी नरेशों के अत्याचार से नाराज़ वत्स की प्रजा ने 
						अपने युवराज का साथ दिया। गरुणों को भगा कर उदयन वत्स का 
						राजा बना।
 
 नारी ही नहीं - कुछ 
					पुरुष भी सुंदर एवं आकर्षक होते 
						हैं। उदयन सुदर्शन व्यक्तित्व के स्वामी तो थे ही वे एक 
						महान कालाकार, कला-साहित्य मर्मज्ञ और शौर्य के भी धनी थे। 
						वीणा वादन कला में उन्हें अखिल भारतीय कीर्ति प्राप्त थी। 
						समकालीन शासकों की ईर्ष्या-द्वेष के वे केन्द्र बन गए। 
						इनमें अवांति नरेश चंड प्रद्योत भी थे। पाली साहित्य में 
						उन्हें अवंतिपुत्र चंड पज्जोति कहा गया है। बड़ी सेना के 
						स्वामी होने से वे 'महासेन' भी कहालाए। उनके साम्राज्य की 
						सीमाएँ वत्स, काशी से लेकर दक्षिण में ताप्ती नदी तक फैली 
						थीं। अवांति की दो राजधानियाँ उज्जयिनी और महिष्मती थी। 
						रूपसी वासवदत्ता इन्हीं की राजकुमारी थी।
 
 एक परंपरानुसार प्रद्योत अपनी दुहिता वासवदत्ता अथवा 
						वासुला का विवाह उच्चकुलशील के पांडव वंशी उदयन से करना 
						चाहते थे। परंतु उदयन की प्रगल्भ उदासीनता के कारण यह संभव 
						नहीं हो रहा था। उदयन के हाथी प्रेम से परिचित प्रद्योत ने 
						षडयंत्र रचा। बाणभट्ट के हर्ष चरित के अनुसार उसने नागवन 
						में यंत्र चालित हाथी रखवा दिया। प्रचारित किया कि 
						विंध्याचल के नर्मदा कछार के नागवन के विशाल उग्र हाथी को 
						पकड़ना असंभव है। चुनौतियों को स्वीकरने वाले उदयन के 
						महामात्य यौगंधरायण और सेनापति रुम्णवान के विरोध के 
						बावजूद हस्तिवीणा के सहारे हाथी को पकड़ने कुछ अंगरक्षको 
						ले जा पहुँचे।
 
 हाथी के पेट व पाँवों में अवंति के सैनिक छुपे हुए थे। 
						यंत्रचालित हाथी चिंघाड़ता चलता-फिरता सूँड व पूँछ हिलाता 
						था। वीणा वादन में तन्मय उदयन को श्री हेमचंद्र सूरी कृत 
						'त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित' के अनुसार प्रद्योत के 
					सैनिकों ने हाथी की देह से निकल कर घेर लिया। वह दिनभर युद्ध 
					करने के बाद थके घायल उदयन को बंदी बना उज्जयिनी ले आए। महाकवि 
					भास अपने नाटक प्रतिज्ञायौगंधरायण में लिखते हैं कि पद्योत के 
					आदेश पर पराजित घायल वत्सराज की राजोचित 
					व्यवस्था ससम्मान मणिभूमिका प्रासाद में की गयी।
 
					गांधर्व विद्या सिखाने के बहाने उदयन - वासवदत्ता को 
						मिलाने की योजना प्रद्योत ने बनाई। प्रद्योत के दबाव डालने 
						पर वासवदत्ता को वीणा सिखाने की स्वीकृति उदयन ने दे दी। 
						यहाँ भी प्रद्योत ने कपट चाल चली। कथा सरित्सागर लिखता है 
						कि, उदयन को बताया गया था कि उसकी शिष्या कुबड़ी है और 
						वासवदत्ता से कहा गया कि उसका वीणावादक गुरू कोढ़ी है। 
						श्री हेमचंद्र सूरी त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित' में 
						लिखते हैं कि वत्सराज से कहा गया कि शिष्या एक चक्षु 
						अर्थात कानी होने से सम्मुख आने में लज्जित होगी अत: पर्दा 
						लगा कर शिक्षण प्रारंभ हुआ।
 जिस समय प्रद्योत गर्व और गौरव का अनुभव कर रहा था, उस समय 
					कौशांबी के प्रासाद और नगर दु:ख सागर में डूब गया था। तब 
					महामात्य यौगंधरायण ने अपने स्वामी को छुड़ाने की योजना बनाई। 
					उज्जयिनी में कौशांबी के गुप्तचर छा गए। एक पागल के वेश में 
					यौगंधरायण ने महाकाल मंदिर में शरण ली।
 
 उदयन को पहले साधारण वीणा देने पर उसके तार टूट गए। तब 
						उन्हें उनकी हस्तिदंत वाली घोषवती वीणा दी गयी। प्रशिक्षण 
						के दौरान जब एक दिन कठिन बोलों को दोहराने में वासवदत्ता 
						असफल रही तो क्रोधित उदयन ने डाँटा, "अरी कुब्जे! तेरी 
						बुद्धि तो जड़ दिखाई देती है।" अपमानित राजकुमारी ने तैश 
						में उत्तर दिया, "हे कोढ़ी! राजकुमारी को कुब्जा कहते हुए 
						तुझे लज्जा नहीं आती?"
 
 रोष में भरे उदयन ने जब पर्दा खींच दिया तो आमने सामने 
						अनिंद्य सुंदरी राजकुमारी और सुदर्शन राजपुरुष थे। पहली ही 
					दृष्टि में वे एकदूसरे को दिल दे बैठे। बंदीगृह में गुरू 
					शिष्या की पहली ऐतिहासिक प्रणय गाथा घटने लगी। शिष्या प्रेयसी 
					बन गयी। वासवदत्ता की सहमति से षडयंत्र का उत्तर षडयंत्र से 
					दिया गया। यौगंधरायण भी अपने नरेश से सम्पर्क साधने में सफल 
					हुआ। तब एक राजकुमारी साधारण प्रेमिका के समान भद्रवती नामक 
					हथिनी पर बैठ अपने प्रेमी उदयन के साथ कौशांबी के लिये भाग 
					निकली। उनके पीछे नलगिरि हाथी पर स्वर्णमुद्राएँ लिये महामात्य 
					यौगंधरायण और अंगरक्षक थे।
 
 अवंति के युवराज पालक के नेतृत्व में सैनिकों ने उनका पीछा 
						किया। तब यौगंधरायण के स्वर्णमुद्राएँ फेकने पर अवांति के 
						सैनिक पीछा करने के बजाय उन्हें लूटने में व्यस्त हो गए। 
						कथासरित्सागर के अनुसार युवराज गोपालक ने पिता का आदेश 
						बताकर पालक को पीछा करने से रोक दिया।
						उदयन अपनी प्रेमिका के साथ सकुशल कौशांबी पहुँच गये। 
						सुमधुर वाद्यसंगीत और आनंदोत्सव के मध्य इतिहास के पहले 
						प्रेमी उदयन और प्रेमिका वासवदत्ता का प्रेम विवाह संपन्न 
						हुआ।
 
 ईसापूर्व की छठी शताब्दी की यह प्रणय कथा इतनी लोकप्रिय 
						हुई कि सदियों तक साहित्यिक कृतियों, लोकगीतों, लोक-कथाओं 
						और चौपालों की चर्चा में गरम रही। महाकवि भास ने इस पर 
						प्रतिज्ञा यौगंधरायण नाटक लिखा। स्वप्न वासवदत्ता नामक 
						नाटक भी लिखा गया। एक हज़ार वर्ष बाद कवि कालिदास ने 
						मेघदूत में इसका उल्लेख करते हुए लिखा है कि उज्जयिनी के 
						गाँव की चौपालों पर ग्रामीण जन आज भी वासवदत्ता उदयन की 
						प्रेमकथा रस ले लेकर गाते हैं।
 
 ईसा के बाद की छठी सदी में बाणभट्ट ने हर्ष चरित में भी 
						इसका उल्लेख किया है। ग्यारहवीं सदी के आचार्य हेमचंद्र 
						सूरी ने भी इसे अपनी रचना का विषय बनाया। विष्णु पुराण, 
						ललित विस्तार, कथा सरित्सागर, वृहत्कथा मंजरी, नेपाली 
						वृहत्कथा, लोक भाषा पाली के 'उदेनवत्थु' एवं तित्थोगलि 
						पन्नई भी इससे अछूते नहीं रहे। वासवदत्ता उदयन के पलायन 
						दृष्य को एक कलाकार ने नागार्जुन कोंडा के एक गुफा मंदिर 
						में उत्कीर्ण कर अमर कर दिया है।
 
 इस प्रकार पहली सत्य प्रेमकथा इतिहास, साहित्य और कला की 
						धरोहर बन गयी।
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