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|   जिंघम की रंग-उड़ी नीली 
                      फ्राक में लिपटी ममा किसी प्रागैतिहासिक फासिल की तरह 
                      आरामकुर्सी पर उकडू बैठी थी दृष्टिहीन सलेटी आँखें दरवाज़े 
                      की ओर मुड़ी -  मारिया ने गले के पास घृणा का ठण्डा-हरा स्वाद महसूस किया- "तेरा ब्रेकफास्ट मँगा दूँ ममा?" बूढ़ी की अंधी आँखों में एक लोलुप चमक गहराई - "पुकारना तो जरा कम्बख्त को बेटा, मेरी तो सुनता ही नहीं मैं तो कहती हूँ मेरी मारिया न हो तो " मारिया ने क्रूरता से ठोकर मारकर दरवाज़ा खोल दिया और बाहर आ गई हँह यह घर। - "अरे सैम्युअल! अभी तक तेरा ब्रेकफास्ट नहीं बना क्या?" बाहर बारिश यकायक और तेज़ 
                      हो गई तूफ़ान की साँय-साँय में पूरा घर हिल-सा रहा था - "सैम्युअल!" 
                      वह फिर चीखी। सैम्युअल चुपचाप ट्रे रख कर, बाहर निकल गया। पुतली-सी बैठी ममा यकायक चैतन्य हो आई - "टोस्ट गरम तो हैं ना मारी?" मारी नि:शब्द टोस्ट पर मक्खन लगाती रही। बस, खाने की गंध मिली नहीं कि बुढ्ढी की पाँचों इन्द्रियाँ जाग पड़ती है! ममा जबाब न पाकर भी चहके जा रही थी - "सैकरीन की तीन गोली डालना मेरी चाय में! एक-दो गोली से तो मिठास ही नहीं आती " मारिया ने टोस्ट बढ़ा दिया - "ले!" एक घृणास्पद उत्सुकता से 
                      झुर्रीदार हाथ प्लेंट तलाशने लगे। टोस्ट पर हाथ पड़ते ही एक 
                      बेताबी से ममा ने दबोच लिया और पोपले मसूढ़े परम तृप्ति से 
                      उसे चुभाने लगे - "मक्खन कम लगाया है मारी बेटा, ज़रा और दे 
                      देना!" एक क्षण को मारिया का मन हुआ कि बुढ़िया की गर्दन के पीछे की झुर्रीदार खाल चुटकी में पकड़ कर उसे ऊपर उठा ले, जैसे कुत्ते के पिल्लों को उठाया जाता है, और फिर झकझोर-झकझोर कर मक्खन की तश्तरी में उसकी नाक रगड़ डाले - 'जा किसी होटल में और दो आउंस की टिकिया को हफ्ते-भर चला ले!' अपने ही गुस्से के उफान से पस्त वह बाहर निकल आई - "सैम्युअल! पानी गर्म हो गया हो तो रख देना बाथरूम में!" सैम्युअल ने पता नहीं सुना 
                      भी या नहीं मारिया चुपचाप बाहर ताकने लगी, बरसात निढाल होकर 
                      थम गई थी। बस, एक हल्की बौछार-सी पड़ रही थी। झीने पड़ते 
                      बादलों के पीछे से कहीं-कहीं आसमान की सलेटी झाँई भी नज़र 
                      आने लगी थी ! चले, गीला तौलिया तो बाहर डाल दे कम से कम। थके 
                      पैरों मारी कमरे में घुस गई! सोनिया ने हाथ-मुँह धोकर कपड़े 
                      बदल लिए थे और गुनगुनाती हुई बाल ब्रश कर रही थी। मूड शायद 
                      कुछ बेहतर था, मारिया ने हल्के से खँखारा - "कहीं बाहर जा 
                      रही है क्या?" सोनिया बाहर चली गई तो चादर 
                      बिछाते-बिछाते उसने सिर को झटका - हँह , बेकार ही वह भी इन 
                      लोगों को लेकर पागल होती हैं। चलें, नहा लें! अल्मारी से 
                      कपड़े निकालती, वह चौंक पड़ी - सड़ाक्! सड़ाक् - बाहर से ऐसी 
                      आवाज आ रही थी, जैसे कोई बेरहमी से पेड़ों को झकझोर रहा हो 
                      उसने दौड़ कर खिड़की खोल दी, और झाँकने लगी। अन्दाज़ ठीक ही 
                      था, फिर वही स्कूली छोकरे लग्गी लेकर फल झड़ा रहे थे - "सैम्युअल!" 
                      उसकी तीखी आवाज़ कोड़े-सी लपलपाई - "ज़रा देखना इन कम्बख्तों 
                      को!" बच्चों ने अचकचा कर ऊपर ताका। खिड़की पर मारिया का 
                      विराट आकार काले हाउसकोट में लिपटा टँका था  टप्! - वह चौंक कर पीछे हटी 
                      , एक कंकड़ी ठीक उसी के पैरों के पास, आकर गिरी - 'चिमगादड़! 
                      चिमगादड़!" छ़ोकरों का झुण्ड अब सड़क को खुली सुरक्षा में 
                      घिरा खड़ा था उनके अगुआ ने बाँहें फटफटाते चिमगादड़ का आकार 
                      बनाया - "वो देखो, काली चिमगादड़!"  हवा का एक भटका झोंका आकर खिड़की को फिर खोल गया। बाहर आसमान बच्चे की पहली रूलाई-सा नंगा और तीखा हो आया था... | |
| २८ जुलाई २००८ | |