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घर-परिवार बचपन की आहट


शिशु का बीसवाँ सप्ताह
इला गौतम


ठोस भोजन का प्रारंभ

शिशु अब पहले से अधिक इशारे दे रहा है कि वह ठोस खाने के लिए तैयार है - उसका कमज़ोर वह अब कुछ भी मुँह में देने पर बाहर नहीं निकाल देता बल्कि उसको चखकर और चूसकर परखता है। वह अपनी माँ या दूसरों के खाने में ज़्यादा रूचि दिखाता है। लेकिन शिशु को ठोस आहार देने में जल्दी न करें। उसके स्वास्थ विशेषज्ञ से चर्चा करने के बाद ही ठोस आहार शुरू करें।

हो सकता है कि शिशु का पाचन तंत्र अभी ठोस आहार के लिए तैयार न हो और वह अपनी चबाने और निगलने वाली मासपेशियों को नियंत्रित ना कर पाए। (चिन्ता ना करें, यह थोड़े हफ़्तो में आ जाएगा)। शिशु को जल्दी ठोस आहार देने से उसे खाने की एलर्जी का खतरा भी बढ़ जाता है। आम एलर्जियों में शामिल हैं खट्टे फल, अंडे की सफ़ेदी, मूँगफली का मक्खन, कस्तूरा, गेहूँ, और गाय का दूध। परिवार के खाने के समय को शिशु के साथ सामूहीकरण करने के लिए इस्तेमाल करें। शिशु को आपको खाता देख मज़ा आएगा और इसी बहाने वह भी ज़्यादा खाएगा। लगभग एक और महीने में वह अपने आप बैठ पाएगा और छोटी चीज़ें उठा पाएगा, जो उसके खाने की मेज़ में जुड़ जाएँगी।

बिना सहारे

शिशु अब अपने आप बैठने की अवस्था में आ सकता है - पेट के बल लेटने की अवस्था से हाथ से शरीर को उठाते हुए बैटने की अवस्था में आ जाना। यदि वह बिना किसी सहारे के बैठा है तो उसके पास ही रहें - उसके आस पास तकिये लगे हों तब भी। हो सकता है कि शिशु बैठने के कौशल में माहिर हो गया हो लेकिन हो सकता है कि वह सीधा बैठने में अपनी रूचि खो दे और लुढ़क जाए।

भावुकता का प्रारंभ

शिशु अपनी भावनाओं को प्रकट करने योग्य हो गया है। वह नए लोगों (और परिचित भी) को देख कर माँ से चिपक जाएगा या चिन्तित हो जाएगा। हो सकता है कि शिशु अपरिचित व्यक्ति को अपनी तरफ़ बढ़ता देख रोने भी लगे।
जब आप नए लोगों के बीच हो तो इस बात का ध्यान रखें और जब शिशु दूसरे की गोद में जाकर रोने लगे तो शर्मिन्दा ना हों - उसे अपनी गोद में लेकर प्यार से शान्त कर लें। अपने दोस्तों और परिवार वालों से कहें कि वह शिशु के पास धीरे-धीरे आएँ।

अपरिचितों से घबराने का मतलब यह नही कि आप नए लोगों से मिलना ही बंद कर दें। शिशु को माता-पिता के अलावा नए लोगों से मिलने में फ़ायदा होगा। बस यह याद रखें कि शिशु को विकास के इस पड़ाव को पार करने के लिए आपके धैर्य और समझ की आवश्यकता है।

आँखों ही आँखों में-

शिशु की आँखे और दृष्टि इस समय तक पूर्ण रूप से विकसित हो जाती है। इस महीने जब आप डॉक्टर के पास जाएँगे तब वह शिशु की आँखों की संरचना और संरेखन, आँख चलाने की क्षमता, पैदाइशी आँख की बीमारियों और दूसरी आँख से संबंधित अन्य सभी परीक्षण करेगा।

खेल खेल खेल-

  • इस खेल से शिशु का हाथ और आँख का समन्वय कौशल विकसित होता है। इस खेल के लिए हमें चाहिए एक बुलबुले बनाने वाला यंत्र। एक हल्के उछाल वाली कुर्सी में शिशु को बिठा दें। शुरुआत में थोड़े से बुलबुले शिशु की तरफ़ बनाएँ और उसको उन्हें पकड़ने या फोड़ने दें (ध्यान रखें की साबुन का पानी शिशु की आँखों में न जाए)। थोड़ी देर में शिशु बुलबुलों के व्यवहार को समझने लगेगा। अब वह शरीर के अंगो वाला खेल खेलने के लिए तैयार है। शिशु के हाथ की तरफ़ निशाना लगाकर बुलबुला बनाएँ और कहें "मुन्ने के हाथ पे बुलबुला" फिर पैर पर बुलबुला बनाएँ और कहें "मुन्ने के पैर पर बुलबुला"। थोड़े महीनों बाद यक खेल शिशु को नहाते समय खेलने में बहुत मज़ा आएगा। साबुन के बुलबुलों का एक गुण यह होता है कि वह गीली त्वचा पर जल्दी नही फूटते। इस कारण शिशु को बुलबुलों को पकड़ने का, देखने का और फोड़ने का समय मिल जाता है। यदि बुलबुले बनाने के लिए बड़ी रिंग का इस्तेमाल किया जाए तो बड़े बुलबुलों को फोड़ने में शिशु को और भी ज़्यादा मज़ा आएगा।
     

याद रखें, हर बच्चा अलग होता है

सभी बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध करने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी र्कियाएँ करने में ज़्यादा वक्त लेते हैं। यदि माँ को बच्चे के स्वास्थ सम्बन्धित कोई भी प्रश्न हो तो उसे अपने स्वास्थ्य केंद्र की सहायता लेनी चाहिए।

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