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घर-परिवार बचपन की आहट


शिशु का २२वाँ सप्ताह
इला गौतम


हाथों की खोज

जब तक शीशु ६ महीने का होगा (कभी-कभी इससे ज़्यादा समय भी लगता है) तब तक उसके हाथों का नियंत्रण इतना विकसित हो चुका होगा कि वह किसी भी छोटी वस्तु को अपनी ओर ढकेल लेगा। वह उसे अपने हाथों में पकड़ नही सकता है लेकिन अपने पास ला सकता है।
आप शिशु को यह अभ्यास करने में मदद कर सकते हैं - शिशु की पहुँच के अंदर एक खिलौना रखें फिर देखें वह कैसे उसे अपने पास लाता है। लगभग अगले महीने तक शिशु थोड़े बड़े खिलौने पकड़ने लगेगा और एक हाथ से दूसरे हाथ में चीज़ें लेने लगेगा।
शिशु को इस कौशल का अभ्यास एक खिलौना या झुनझुना पकड़कर करने दें। पहले उसे एक हाथ में पकड़ाएँ। फिर उसको दूसरे हाथ में पकड़ने में मदद करें। फिर से उसे पहले हाथ में पकड़ाएँ और दोहराएँ। जब वह वस्तुएँ एक हाथ से दूसरे हाथ में लेना सीख जाएगा तब उसके लिए एक नई दुनिया खुलेगी - उसके पास खेलने के लिए दो हाथ होंगे!

बातूनी आवाजों का सौंदर्य

अब शिशु लगभग आपकी तरह देख और सुन सकता है। उसका संचार कौशल भी बहुत जल्दी बढ़ रहा है जैसा कि आप उसकी चीख में, बड़बड़ाने में, और औपेरा जैसी बदलती आवाज़ में सुन सकते हैं। शिशु की आवाज़ उसका वस्तुओं के प्रति रवैया या प्रतिक्रिया दर्शाती हैं - जैसे खुशी, उत्सुक्ता, या संतोश - एक समस्या सुलझने पर। इस उम्र में, लगभग आधे बच्चे बड़बच़ाते हैं, एक शब्दांश को बार-बार दोहराते हैं - जैसे बा, मा, गा या दूसरे स्वर-व्यंजन के संयोग। कुछ बच्चे एक
या दो और शब्दांश जोड़कर एक मिश्रित आवाज़ भी निकाल सकते हैं।
 
आप शिशु की बातों का जवाब उसी की भाषा में देकर या उसका एक खेल बनाकर उसको प्रोतसाहित कर सकते हैं (भेड़ बोले बा, बकरी बोले मा)। या फिर जब आप कोई ऐसा शब्दान्श सुनें जो आप पहचान न पाएँ तो भी उत्साह से उसका उत्तर दें "हाँ, ये गाड़ी है! देखो कितनी सुन्दर है।" शिशु आपकी सराहना करेगा कि आप उसकी बातचीत जारी रखे हुए हैं।
शिशु इस बात की भी सराहना करेगा कि आप सब कुछ एसे सुन रहे हैं जैसे आपको सब समझ आ रहा है और आपको सब बहुत रोचक लग रहा है। एक सम्वाद अनुकरण करने की कोशिश करें - शिशु जब बात कर रहा हो तब आप सुनें, फिर उससे एक प्रश्न पूछें और उसके उत्तर का इन्तेजार करें।

खेल-खेल-खेल-

  • जिस पल पहली बार शिशु अपनी आवाज सुनता है वह पल स्वयं उसके लिये और उसके माता पिता के लिये अविस्मरणीय होता है। एक बार तो उसे ही विश्वास नहीं होता कि वह अपनी आवाज सुन रहा है और उसे इस बात को समझते-बूझते देखना अपूर्व आनंद दे सकता है। इस खेल के लिये कोई पुराना टेपरेकार्डर, आधुनिक आईपौड या कंप्यूटर किसी भी चीज़ का प्रयोग किया जा सकता है। यों तो रेकार्डिंग शिशु के उत्साह को देखते हुए कभी भी की जा सकती है लेकिन रात को सोने से पहले का समय अधिक उपयुक्त रहता है। अपने उपकरण ठीक से तैयार कर लें और शिशु को बात चीत के लिये उत्साहित करें। उसके पैरों को गुदगुदाएँ या उसे एक चित्र दिखाएँ ऐसा खेल हो जिसमें शिशु की आवाज के साथ दूसरी आवाजें न हों। या कम से कम हों। तभी रेकार्डिंग का आनंद मिलता है। जब रेकार्डिंग का एक अच्छा टुकड़ा तैयार हो जाए (इसमें एक दिन से अधिक समय लग सकता है।) जब तैयार हो जाए तो उसके सामने इसे शुरू कर दें और शिशु का चकित होना देखें। उसकी सहायता करें, कहें- हाँ ये तुम्हीं हो, बार बार, जब तक उसे विश्वास न हो जाए।

याद रखें, हर बच्चा अलग होता है

सभी बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध करने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी र्कियाएँ करने में ज़्यादा वक्त लेते हैं। यदि माँ को बच्चे के स्वास्थ सम्बन्धित कोई भी प्रश्न हो तो उसे अपने स्वास्थ्य केंद्र की सहायता लेनी चाहिए।

२१वाँ सप्ताह

३० मई २०११

 
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