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चलती सड़क के किनारे एक विशेष
प्रकार का जो एकांत होता है, उसमें मैंने एक लड़की को किसी की
प्रतीक्षा करते पाया। उसकी आँखें सड़क के पार किसी की गतिविधि
को पिछुआ रही थीं और आँखों के साथ, कसे हुए ओठों और नुकीली
ठुड्डीवाला उसका छोटा-सा साँवला चेहरा भी इधर से उधर डोलता था।
पहले तो मुझे यह बड़ा मज़ेदार लगा, पर अचानक मुझे उसके हाथ में
एक छोटा-सा लाल सेब दिखाई पड़ गया और मैं एकदम हकसे वहीं खड़ा
रह गया। वह एक
टूटी-फूटी परेंबुलेटर में सीधी बैठी हुई थी, जैसे कुर्सी में
बैठते हैं, और उसके पतले-पतले दोनों हाथ घुटनों पर रक्खे हुए
थे। वह कमीज़-पैजामा पहने थी, कुछ ऐसा छरहरा उसका शरीर था और
कुछ ऐसी लड़कौंधी उसकी उम्र थी कि मैं सोच में पड़ गया कि यह
लड़का है या लड़की। लड़की होती तो उस पर दो पतली-पतली चो़टियाँ
बहुत खिलतीं, यहाँ वह झबरी थी। पर तुरंत ही मेरे मन ने मुझे
टोका-भला यह भी कोई सोचने की बात है, क्यों कि उस बच्ची में
कहीं कोई ऐसा दर्द था जो मुझे फालतू बातें सोचने से रोकता था।
यह बिलकुल स्वाभाविक था कि
मैं पास जाकर बड़ी शराफत से पूछता, ''क्या बात है बेटी, तू
इतनी घबराई हुई क्यों है? तुझे यहाँ कौन छोड़कर चला गया है?''
पर वह न उतनी घबराई हुई थी और न उसे वहाँ कोई छोड़कर चला गया
था। |