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                     एक 
                    मुसलमान पागल जो बारह बरस से, हर रोज़, बाक़ायदगी के साथ 
                    'ज़मींदार' पढ़ता था, उससे जब उसके एक दोस्त ने पूछा, "मौलवी 
                    साब, यह पाकिस्तान क्या होता है?" तो उसने बड़े गौरो-फ़िक्र के 
                    बाद जवाब दिया, "हिंदुस्तान में एक ऐसी जगह है जहाँ उस्तरे 
                    बनते हैं!" यह जवाब सुनकर उसका दोस्त संतुष्ट हो गया। इसी तरह एक 
                    सिख पागल ने एक दूसरे सिख पागल से पूछा, "सरदार जी, हमें 
                    हिंदुस्तान क्यों भेजा जा रहा है, हमें तो वहाँ की बोली नहीं 
                    आती।" दूसरा मुस्कराया, "मुझे तो हिंदुस्तोड़ों की बोली आती 
                    है, हिंदुस्तानी बड़े शैतानी आकड़ आकड़ फिरते हैं।" एक दिन, 
                    नहाते-नहाते, एक मुसलमान पागल ने 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' का 
                    नारा इस ज़ोर से बुलंद किया कि फ़र्श पर फिसलकर गिरा और बेहोश 
                    हो गया। बाज़ पागल 
                    ऐसे भी थे जो पागल नहीं थे, उनमें बहुतायत ऐसे क़ातिलों की थी 
                    जिनके रिश्तेदारों ने अफ़सरों को कुछ दे दिलाकर पागलख़ाने 
                    भिजवा दिया था कि वह फाँसी के फंदे से बच जाएँ, यह पागल 
                    कुछ-कुछ समझते थे कि हिंदुस्तान क्यों तक़्सीम हुआ है और यह 
                    पाकिस्तान क्या है, लेकिन सही वाक़िआत से वह भी बेख़बर थे, 
                    अख़बारों से उन्हें कुछ पता नहीं चलता था और पहरेदार सिपाही 
                    अनपढ़ और जाहिल थे, जिनकी गुफ़्तगू से भी वह कोई नतीजा बरामद 
                    नहीं कर सकते थे। उनको सिर्फ़ इतना मालूम था कि एक आदमी 
                    मुहम्मद अली जिन्नाह है जिसको क़ायदे-आज़म कहते हैं, उसने 
                    मुसलमानी के लिए एक अलहदा मुल्क बनाया है जिसका नाम पाकिस्तान 
                    है, यह कहाँ हैं, इसकी भौगोलिक स्थिति क्या है, इसके 
                    मुताल्लिक़ वह कुछ नहीं जानते थे - यही वजह है कि वह सब पागल 
                    जिनका दिमाग पूरी तरह बिगड़ा हुआ नहीं हुआ था, इस मखमसे में 
                    गिरफ़्तार थे कि वह पाकिस्तान में हैं या हिंदुस्तान में, अगर 
                    हिंदुस्तान में हैं तो पाकिस्तान कहाँ हैं, अगर वह पाकिस्तान 
                    में हैं तो यह कैसे हो सकता है कि वह कुछ अर्से पहले यहीं रहते 
                    हुए हिंदुस्तान में थे। एक पागल तो 
                    हिंदुस्तान और पाकिस्तान, पाकिस्तान, पाकिस्तान और हिंदुस्तान 
                    के चक्कर में कुछ ऐसा गिरफ़्तार हुआ कि और ज़्यादा पागल हो 
                    गया। झाडू देते-देते वह एक दिन दरख्त़ पर चढ़ गया और टहने पर 
                    बैठकर दो घंटे मुसलसल तक़रीर करता रहा, जो पाकिस्तान और 
                    हिंदुस्तान के नाज़ुक मसले पर थी, सिपाहियों ने जब उसे नीचे 
                    उतरने को कहा तो वह और ऊपर चढ़ गया। जब उसे डराया-धमकाया गया 
                    तो उसने कहा, "मैं हिंदुस्तान में रहना चाहता हूँ न पाकिस्तान 
                    में, मैं इस दरख़्त पर रहूँगा।" बड़ी देर के बाद जब उसका दौरा 
                    सर्द पड़ा तो वह नीचे उतरा और अपने हिंदू-सिख दोस्तों से गले 
                    मिल-मिलकर रोने लगा - इस ख़याल से उसका दिल भर आया था कि वह 
                    उसे छोड़कर हिंदुस्तान चले जाएँगे।  एक एम.एस-सी. 
                    पास रेडियो इंजीनियर में जो मुसलमान था और दूसरे पागलों से 
                    बिलकुल अलग-थलग बाग की एक खास पगडंडी पर सारा दिन ख़ामोश टहलता 
                    रहता था, यह तब्दीली ज़ाहिर हुई कि उसने अपने तमाम कपड़े 
                    उतारकर दफादार के हवाले कर दिए और नंग-धड़ंग सारे बाग में 
                    चलना-फिरना शुरू कर दिया। चियौट के एक 
                    मोटे मुसलमान ने, जो मुस्लिम लीग का सरगर्म कारकुन रह चुका था 
                    और दिन में पंद्रह-सोलह मर्तबा नहाया करता था, एकदम यह आदत 
                    तर्क कर दी - उसका नाम मुहम्मद अली था, चुनांचे उसने एक दिन 
                    अपने जंगले में एलान कर दिया कि वह क़ायदे-आज़म मुहम्मद अली 
                    जिन्नाह है, उसकी देखा-देखी एक सिख पागल मास्टर तारा सिंह बन 
                    गया - इससे पहले कि खून-ख़राबा हो जाए, दोनों को ख़तरनाक पागल 
                    क़रार देकर अलहदा-अलहदा बंद कर दिया गया। लाहौर का एक 
                    नौजवान हिंदू वकील मुहब्बत में नाकाम होकर पागल हो गया था, जब 
                    उसने सुना कि अमृतसर हिंदुस्तान में चला गया है तो उसे बहुत 
                    दुख हुआ। अमृतसर की एक हिंदू लड़की से उसे मुहब्बत थी जिसने 
                    उसे ठुकरा दिया था मगर दीवानगी की हालत में भी वह उस लड़की को 
                    नहीं भूला था - वह उन तमाम हिंदू और मुसलमान लीडरों को गालियाँ 
                    देने लगा जिन्होंने मिल-मिलाकर हिंदुस्तान के दो टुकडे कर दिए 
                    हैं, और उसकी महबूबा हिंदुस्तानी बन गई है और वह पाकिस्तानी। 
                    जब तबादले की बात शुरू हुई तो उस वकील को कई पागलों ने समझाया 
                    कि वह दिल बुरा न करे, उसे हिंदुस्तान भेज दिया जाएगा, उसी 
                    हिंदुस्तान में जहाँ उसकी महबूबा रहती है - मगर वह लाहौर 
                    छोड़ना नहीं चाहता था, उसका ख़याल था कि अमृतसर में उसकी 
                    प्रैक्टिस नहीं चलेगी। युरोपियन 
                    वार्ड में दो एंग्लो इंडियन पागल थे। उनको जब मालूम हुआ कि 
                    हिंदुस्तान को आज़ाद करके अंग्रेज़ चले गए हैं तो उनको बहुत 
                    सदमा हुआ, वह छुप-छुपकर घंटों आपस में इस अहम मसले पर गुफ़्तगू 
                    करते रहते कि पागलख़ाने में अब उनकी हैसियत किस किस्म की होगी, 
                    योरोपियन वार्ड रहेगा या उड़ा दिया जाएगा, ब्रेक-फास्ट मिला 
                    करेगा या नहीं, क्या उन्हें डबल रोटी के बजाय ब्लडी इंडियन 
                    चपाटी तो ज़बरदस्ती नहीं खानी पड़ेगी? एक सिख था, 
                    जिसे पागलख़ाने में दाखिल हुए पंद्रह बरस हो चुके थे। हर वक्त 
                    उसकी जुबान से यह अजीबो-गरीब अल्फ़ाज़ सुनने में आते थे, "औपड़ 
                    दि गड़ दि अनैक्स दि बेध्यानां दि मूँग दि दाल ऑफ दी लालटेन!" 
                    वह दिन को सोता था न रात को। पहरेदारों का यह कहना था कि 
                    पंद्रह बरस के तबील अर्से में वह एक लहज़े के लिए भी नहीं सोया 
                    था, वह लेटता भी नहीं था, अलबत्ता कभी-कभी किसी दीवार के साथ 
                    टेक लगा लेता था - हर वक्त खड़ा रहने से उसके पाँव सूज गए थे 
                    और पिंडलियाँ भी फूल गई थीं, मगर जिस्मानी तकलीफ़ के बावजूद वह 
                    लेटकर आराम नहीं करता था। हिंदुस्तान, 
                    पाकिस्तान और पागलों के तबादले के मुताल्लिक़ जब कभी 
                    पागलख़ानों में गुफ़्तगू होती थी तो वह गौर से सुनता था, कोई 
                    उससे पूछता कि उसका क्या ख़याल है तो वह बड़ी संजीदगी से जवाब 
                    देता, "औपड़ दि गड़ गड़ दि अनैक्स दि बेध्यानां दि मुँग दि दाल 
                    आफ दी पाकिस्तान गवर्नमेंट!" लेकिन बाद में 'आफ दि पाकिस्तान 
                    गवर्नमेंट' की जगह 'आफ दि टोबा टेक सिंह गवर्नमेंट' ने ले ली, 
                    और उसने दूसरे पागलों से पूछना शुरू कर दिया कि टोबा टेक सिंह 
                    कहाँ हैं, जहाँ का वह रहनेवाला है। किसी को भी मालूम नहीं था 
                    कि टोबा टेक सिंह पाकिस्तान में हैं या हिंदुस्तान में, जो 
                    बताने की कोशिश करते थे वह खुद इस उलझाव में गिरफ़्तार हो जाते 
                    थे कि सियालकोट पहले हिंदुस्तान में होता था, पर अब सुना है कि 
                    पाकिस्तान में हैं, क्या पता है कि लाहौर जो आज पकिस्तान में 
                    हैं, कल हिंदुस्तान में चला जाए या सारा हिंदुस्तान ही 
                    पाकिस्तान बन जाए और यह भी कौन सीने पर हाथ रखकर कह सकता है कि 
                    हिंदुस्तान और पाकिस्तान, दोनों किसी दिन सिरे से गायब ही हो 
                    जाएँ! |