इस
सप्ताह-
समकालीन कहानियों में
अरुण प्रकाश की कहानी
नहान
मैं
जब उस मकान में नया पड़ोसी बना तो मकान मालिक ने हिदायत दी थी - ''बस
तुम नहान से बच कर रहना। उसके मुँह नहीं लगना। कुछ भी बोले तो ज़ुबान
मत खोलना। नहान ज़ुबान की तेज़ है। इस मकान में कोई १८ सालों से रहती
है। उसे नहाने की बीमारी है। सवेरे, दोपहर, शाम, रात। चार बार नहाती
है। बाथरूम एक है। इसलिए बाकी पाँच किरायेदार उससे चिढ़ते हैं। उसे
नहान कह कर बुलाते हैं। वैसे वह अच्छी है। बहुत साफ़ सफ़ाई से रहती
है। मैंने मकान मालिक की बात गाँठ बाँध ली। मैंने सोचा मुझे नहान से
क्या लेना देना! मुझे कितनी देर कमरे पर रहना है? दस बजे ट्रांसपोर्ट
कंपनी के दफ्तर जाऊँगा फिर दस बजे रात में उधर ही से खाना खाकर लौटा
करूँगा। मेरा परिवार गाँव में रहता है। वहाँ मेरे माता पिता, पत्नी
और दो बच्चे हैं।
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हास्य-व्यंग्य में
वीरेन्द्र जैन लिख रहे हैं
गरमी के खिलाफ़ मौसम मंत्री का बयान
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सामयिकी में मनोहर पुरी का आलेख
बुद्ध पूर्णिमा
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डॉ अश्विनी केशरवानी का अमरकंटक यात्रा संस्मरण
चरो रे भैया, चलिहें
नरबदा के तीर
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पूर्णिमा वर्मन का धारावाहिक
अंतरजाल पर
लेखन की लगाम
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हास्य व्यंग्य में गुरमीत बेदी की
गुहार
ये टैक्स भी लगाओ
ना
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पर्व परिचय में दीपिका जोशी संध्या का
आलेख
अक्षय तृतीया
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बच्चों की फुलवारी में नई खोज कथा
अफ्रीका की खोज
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मातृ-दिवस के अवसर पर शुभकामना संदेश
नमन में मन
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समकालीन कहानियों में
तेजेंद्र शर्मा की कहानी
मलबे की मालकिन
समीर
ने यह क्या कह दिया!
एक ज़लज़ला, एक तूफ़ान मेरे दिलो-दिमाग़ को
लस्त-पस्त कर गया है। मेरे पूरे जीवन की तपस्या जैसे एक क्षण में भंग
हो गई है। एक सूखे पत्ते की तरह धराशाई होकर बिखर गई हूँ मैं। क्या
समीर मेरे जीवन के लिए इतना महत्वपूर्ण हो गया है कि उसके एक वाक्य
ने मेरे पूरे जीवन को खंडित कर दिया है? फिर मेरा जीवन सिर्फ़ मेरा तो नहीं है। नीलिमा, मेरे जीवन का एक
महत्वपूर्ण हिस्सा है। नीलिमा को अलग करके, मैं अपने जीवन के बारे
में सोच भी कैसे सकती हूँ? नीलिमा का जन्म ही तो मेरे वर्तमान का
सबसे अहम कारण है। उससे पहले तो मैं अत्याचार सहने की आदी-सी हो गई
थी। नीलिमा ने ही तो मुझे एक नई शक्ति दी थी। मुझे अहसास करवाया था
कि मैं भी एक जीती जागती औरत हूँ, कोई राह में पड़ा पत्थर नहीं कि
इधर से उधर ठोकरें खाती फिरूँ। |
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अनुभूति में-
प्रो. आदेश हरिशंकर, रति
सक्सेना, ब्रजकिशोर शर्मा
शैदी, डॉ. दुष्यंत और
राजीव रंजन प्रसाद की नई
रचनाएँ |
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कलम
गही नहिं हाथ
शावरमा अरब दुनिया का समोसा है। हर
सड़क पर इसकी एक दूकान ज़रूर होगी। मज़ेदार नाश्ता तो यह है ही,
जल्दी हो तो सुबह या शाम का खाना भी इससे निबटाया जा सकता है। शावरमा दो चीज़ें
मिलाकर तैयार होता हैं। खमीरी रोटी जिसे खबूस कहते हैं और मसाला जो
खबूस में भरा जाता है। खबूस कुछ कुछ भटूरे जैसी होती है
लेकिन यह तली नहीं जाती भट्ठी में सेंकी जाती है। भरावन आमतौर पर ३
तरह की होती है मुर्गे, मीट या फ़िलाफ़िल की। फिलाफिल दाल के पकौड़े
होते हैं जो तल कर बनाए जाते हैं और तोड़कर खबूस में भरे जाते हैं।
मुर्ग या मीट को मसाले के साथ एक घूमती हुई स्वचालित छड़ी में बिजली
के हीटर के सामने रोस्ट किया जाता है। जब बाहरी परत नर्म और सुनहरी
हो जाती है तब तलवार जैसी बड़ी छुरी से उसको फ्रेंच फ्राई जैसा काट
देते हैं और खबूस की दो परतों के बीच सलाद, तुर्श, ताहिनी और
फ्रेंच फ्राई के साथ भर कर रोल बना देते हैं। लहसुन की हल्की गंध
वाला ताहिनी, रायते जैसा होता है। तुर्श के नाम से ही जान सकते हैं
कि यह तीखा और खट्टा होता है जिसे गाजर, हरी मिर्च और चुकंदर में
सिरके के साथ नमक और कुटी मिर्च डालकर तैयार किया जाता है। गरम गरम
शावरमा के साथ पिया जाता है ठंडा लबान, पर उस विषय में फिर कभी।
--पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)
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क्या
आप जानते हैं?
कर्नाटक
के हरिहर नगर स्थित हरिहरेश्वर मंदिर की प्रतिमा आधी विष्णु और आधी
शिव के रूप में हैं। |
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