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पर्व पंचांग १०. ३. २००८

इस प्ताह 
समकालीन कहानी के अंतर्गत भारत से
प्रत्यक्षा की कहानी मछलीमार
मैंने धूप से बचने के लिए टोपी आँखों पर आगे कर ली थी। कोई टिटिहरी रह-रह कर दरख़्तों के बीच कहीं गुम बोल उठती थी। डीजे चित्त लेटा सो गया था। मैंने उसकी सोला हैट उसके चेहरे पर टिका दी। बंसी को बाजरे के पटरे पर टिका मैं भी शांत टिक कर बैठ गया। धूप की गर्मी, शांत नीरव जल, हल्के-हल्के पोखर के थपेड़ों पर हिलता बाजरा। मेरी आत्मा शरीर से निकल गई थी, उस ड्रैगनफ्लाई की तरह जो पानी पर तैरते पत्तों और कीड़ों मकोड़ों के ऊपर अनवरत उड़ रही थी। हम हमेशा की तरह पोखरे के उस भाग पर थे जहाँ से किनारे का विशाल पेड अपने छतनार शाखों और पत्तों के सहारे पानी के सतह को चूमता था। रह-रह कर पत्तों का एक-एक कर के नीचे गिरना।

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सप्ताह का विचार
प्रतिभा महान कार्यों का आरंभ करती है किंतु पूरा उनको परिश्रम ही करता है।
-- मुक्ता

 

संजय ग्रोवर का व्यंग्य
एक कॉलम व्यंग्य

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भावना कुंअर का आलेख
इत्र में अवसाद

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क्या आप जानते हैं? सापों की कोई २९०० प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से ७२५ के पास विषदंत होते हैं तथा २५० प्रजातियाँ ऐसी हैं जो एक ही दंश में मनुष्यों को मार देने की क्षमता रखती हैं। --अमित प्रभाकर

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रसोईघर में
होली के पकवानों की तैयारी

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खोज-यात्राओं की कहानियों में बच्चों के लिए जानकारी- अमेरिका की खोज

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अनुभूति में-
हरि ठाकुर,  श्यामसखा श्याम,  नवराही, सुशील कुमार और डॉ. जगदीश व्योम  की नई रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ
दुनिया में नाक ऊँची रखना सबसे मुश्किल काम है ठीक नाक के सामने, अपनी ही नाक कब कट जाए समझ पाना मुश्किल है। खुद को कुछ पता नहीं चलता, दूसरे कहते हैं तो विश्वास नहीं होता, अहसास तो तब जाकर होता है जब ज़माना कटी नाक को देख नाक-भौं सिकोड़ने लगता है।
किया भी क्या जाए, किसी की नाक में नकेल तो डाली नहीं जा सकती। समय स्वतंत्रता का है हर किसी को, हर किसी काम में अपनी नाक घुसेड़ने की पूरी आज़ादी है। आप चाहें उनकी नाक में दम कर दें, वे सुधरने वाले नहीं, नाक नीची किए चुपचाप बैठे रहेंगे और मौका पड़ते ही आपकी नाक ले उड़ेंगे। फिर अपनी नाक बचाने के लिए आप उनको नाकों चने चबवा पाते हैं, या खुद अपनी नाक रगड़ते हैं ये सब कूटनीति की बातें है, जिसका हिसाब कोई मामूली व्यक्ति नहीं दे सकता। इसके लिए तो कोई नाक वाला चाहिए और नाक वाला भी ऐसा जो नाक पर मक्खी न बैठने दे, वर्ना लोग कहने लगेंगे कि नाक कटी पर हठ न हटी। सो दुआ यही है कि सबकी बुरी हठ हटे पर नाक न कटे। 
-पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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