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साहित्य संगम

साहित्य संगम के इस अंक में प्रस्तुत है सत्यजित राय की बांग्ला कहानी सहपाठी का हिन्दी रूपांतर। रूपांतरकार हैं डॉ रंजीत साहा


अभी सुबह के सवा नौ बजे हैं।
मोहित सरकार ने गले में टाई का फंदा डाला ही था कि उस की पत्नी अरुणा कमरे में आई और बोली, 'तुम्हारा फोन।'
'अब अभी कौन फोन कर सकता है भला! '
मोहित का ठीक साढ़े नौ बज़े दफ़्तर जाने का नियम रहा है। अब घर से दफ़्तर को निकलते वक्त 'तुम्हारा फोन' सुन कर स्वभावत: मोहित की त्यौरियां चढ़ गई।
अरुणा ने बताया, 'वह कभी तुम्हारे साथ स्कूल में पढ़ता था।'
'स्कूल में। अच्छा नाम बताया?'
'उस ने कहा कि जय नाम बताने पर ही वह समझ जाएगा।
मोहित सरकार ने कोई तीस साल पहले स्कूल छोड़ा होगा। उस की क्लास में चालीस लड़के रहे होंगे। अगर वह बड़े ध्यान से सोचे भी तो ज़्यादा-से-ज़्यादा बीस साथियों के नाम याद कर सकता है और इस के साथ उनका चेहरा भी। सौभाग्य से जय या जयदेव के नाम और चेहरे की याद अब भी उसे है लेकिन वह क्लास के सब से अच्छे लड़कों में एक था। गोरा, सुंदर-सा चेहरा, पढ़ने-लिखने में होशियार, खेल-कूद में भी आगे, हाई जंप में अव्वल। कभी-कभी वह ताश के खेल भी दिखाया करता और हाँ, कैसेबियांका की आवृत्ति में उस ने कोई पदक भी जीता था। स्कूल से निकलने के बाद मोहित ने उसके बारे में कभी कोई खोज-ख़बर नहीं ली।

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