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चौथा भाग

राजन अपने ही घर का दरवाज़ा खोलने से पहले ठिठकते हैं, जैसे मुआइना कर रहे हो कि इनकी ग़ैरमौजूदगी में कुछ टूटा-फूटा तो नहीं। और शान्तनु जब जल्दी में होता है ताकि दरवाज़ा खुलने और भीतर आने में कम से कम वक्त लगे। आज भी शान्तनु ही था। टी.वी. रूम से किचन की तीन सीढ़ियों को डेढ़ फर्लांग में फाँद कर "हा डेड, हा मोम!'' कहता हुआ मेरे पास आकर रुका।
''मौम! इफ यू पुट डाउन दैट नाइफ! अगर आप वह छूरी नीचे रख दें तो आपको कुछ बताना है।"
सब्ज़ी-तरकारी काटने वाली छुरी को वहीं रख कर मैं वाश-बेसिन की तरफ़ हाथ धोने को मुड़ी ही थी कि शान्तनु ने मेरी पीठ को कहाः
"मैंने लीला से सगाई कर ली है।"
"कब, कहाँ, कैसे?" कहते हुए मेरी आवाज़ की उत्तेजना उतनी ही स्वाभाविक थी जितना बेसा रुँधता मेरा गला।
"बैठेंगी आप?"
लिविंग रूम के सोफे पर बैठते ही उसने ऐसे इत्मिनान से बताया जैसे कि मौसम का हाल।
"कल शाम काम से लौट कर मैंने अपने अपार्टमेंट के कोने वाली मेज़ के उपर रखा जंक एक तरफ़ सरका कर थोड़ी-सी जगह बनाई और वहाँ अंगूठी वाली डिबिया रख दी। थोड़ी देर बाद लीला ने दरवाज़ा खोला और मेज़ को देखते ही कहा, लगता है अब यहाँ और जंक रखने की जगह बना रहे हो।"
मेरी मुस्कुराहट फैल कर अब कानों तक जा पहुँची थी।
"मैंने उससे कहा कि मेज़ पर तुम्हारे लिए कुछ है। उसने डिबिया उठा कर खोल ली।"
"फिर?"
"फिर क्या?"
"क्या कहा उसने?"
"शी डिड नाट से दैट शी डज़ नाट वान्ट इट। उसने नहीं कहा कि उसको नहीं चाहिए।"
"यह तो बहुत बड़ी खुशख़बरी है, बेटे। इसे सुनकर एकदम मुँह मीठा करना चाहिए। तुम बैठो, मैं देखती हूँ कि फ्रिज में किया है?"
किचन में बैठे राजन ने अपना चेहरा हटा लिया।
"मुबारक हो। शान्तनु ने सगाई कर ली है, उठो, वहाँ चल कर उसकी गप्पें सुनते हैं।" मैंने चहलते हुए कहा।

राजन के निर्विकार उदासीन चेहरे सो मैं अच्छी तरह वाकिफ़ हूँ और उसके शब्दहीन उपालम्म वाली मुद्रा से भी। लेकिन आज जो उसने कहा, वो कुछ और ही था,
"हमको पहले से बताने पर क्या रोकने वाले थे उसे जो करने के बाद बताया है।"
" छोड़ो भीः तुमने तो शादी के बाद बताया था उसने तो अभी सगाई की है।"

फ्रिज से चाकलेट आइसक्रीम का कार्टन लेकर जब वापस लिविंग रूम में आई तो शान्तनु के पास ही सोफे पर बैठ कर उसका मुँह मीठा कराया।
"बेटे, पहले क्यों नहीं बताया?"
खुद को "टेफ्लान किड" कहता है शान्तनु। तेल हो या पानी उसकी सतह पर देर तक नहीं टिकता। आज लगा कि उबल तो सकता है!
"यू वांट मी टू गो डाउन दैट रोड? आप सचमुच चाहती हैं कि मैं उस रास्ते पर वापस चल कर दिखाऊँ आपको?" उसका स्वर तीखा हो आया था,
"छः महीने पहले मैंने नया मोटर साईकल लेने के लिए डाउन पेमैंट कर दी थी। तब आप लोगों ने कहा कि आपको ऐतराज़ है मेरे मोटरबाईक चलाने पर!"

राजन की इकलौती फूफी के स्वस्थ पति और युवा बेटा बरसों पहले एक ही वक्त मोटरबाईक से घर लौटते हुए एक ऐक्सीडेंट में चल बसे थे। पिछले साल भी उनके गाँव से दिल्ली जाते हुए एक किशोर युवक की मोटरसाइकल ट्रक से टकराकर अपने सवार सहित टुकड़े-टुकड़े हो गई थी।
"पिछले एक साल से मैं अपना मैनहैटन वाला अपार्टमैंट बेचना चाहता हूँ। और आप लोगों को यह पसंद नहीं।"
राजन और मैं चाहते थे कि यूनाइटड नेशन्ज़ है डल्बारटर की अड़तीस मंज़िला इमारत वाली सैक्रेटेरियट से पाँच मिनट पैदल चल कर पहुँचने वाला शान्तनु का यह छोटा-सा अपार्टमैंट हम रख लें ताकि जब कभी मुझे रात बे रात घर लौटना हो तो लांग आइलैंड रेलरोड-सा घंटे-भर का सफ़र करना ज़रूरी न पड़े। शान्तनु हमारे हाथ बेचकर हमसे पैसे नहीं लेना चाहता, यह जानते हुए भी कि ऐसा करने में कोई हर्ज़ नहीं है।
"क्या आप चाहती हैं कि मैं और कुछ पीछे जाकर बताऊँ कि कितने एतराज़ होते हाँ आपको?" शान्तनु पूछ रहा था ऐर मुझे लगा कि वह बिना अपनी जगह से सरके सोफ़े पर बैठे-बैठे मुझसे दूर खिसक गया है। मैंने सोफ़े से उठ कर कुछ दूर पड़ी सोफ़ा कुर्सी पर ही आलथी-पालथी मार ली क्योंकि अचानक मुझे अपनी दोनों टाँगे कमज़ोर लग रहीं थीं।

जिस रास्ते पर शान्तनु पीछे पलट कर देखना चाहता है, वहाँ तो कई रोड़े-पत्थरों की छोटी-बड़ी चट्टाने हैं। उनसे एकबार फिर ठोकर खाने का न तो यह वक्त है, न मौका। फिर भी न जाने उनमें से किस किस का ज़िक्र उसने लीना से किया हो? क्या वह भी शान्तनु की तरह टकरा कर ऐसे ही धूल पोंछती उठ खड़ी होगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं? शान्तनु की जोखमाना शरारतों और तुरंत संतुष्टि की चाह को लेकर मैं काफ़ी झल्लाती थी- एक बार नहीं कई बार। एक बार तो खाना-पीना छोड़ दिया था मैंने, अनशन ही समझो मेरा। हर बार वो ही सहज हो जाने की कोई करतूत निकाल लेता था। एक मौका ऐसा भी आया कि मैंने ही कह डाला,
"यू आर ड्राइविंग मी नट्स शान्तनु। तुम तो मेरा भेजा बिल्कुल घुमा कर दम लोगे।"
"आफ कोर्स, मौम!" वह खिलखिला कर हँसा था।
"आपको तो पता होना चाहिए कि पागलपना लोगों को विरासत में मिलता है। इन्सैनिटी इस हिरेडिटेरी! माँ-बाप के लिए बच्चों की तरफ़ से विरासत होती है। पेरैन्ट्स गैट इट फ्राम देयर किड्स।"
राजन को लिविंग रूम में आते देखकर मैंने आलथी-पालथी छोड़ी और उठ खड़ी हुई।
"कोई चाय पीएगा?" पूछा और बिना किसी के जवाब का इंतज़ार किए किचन की ओर चल दी। लेकिन पाया कि मेरे कदम टी.वी रूम की तरफ़ मुड़ गए हैं और पीछे वाला दरवाज़ा खोलकर बैकयार्ड का रुख किए हैं। मैं रुकी तो अपने आप को किचन की सीढ़ियों के साथ दीवार पर टँगी राजन की माँ की तस्वीर के सामने खड़ा पाया। उनका खूबसूरत, बेरौब चेहरा एक बार फिर से देखकर उनका उँचा-लंबा कद, गोरी-चिकनी त्वचा और तन चढ़ कर चलना सजीव हो उठा। फिर न जाने कहाँ से बरसों पहले सुनी एक बात ज़ेहन में कौंध गई। राजन की छोटी बहन प्रेम ने बताई थी।

"भाई की शादी का सुनकर माँ ने दो दिन खाना नहीं खाया था। उठते-बैठते कहती थीं-चार बोटियाँ ब्याह दी मन्ने। इब बेटा ब्याया गया तो मन्ने बेरा बी न पाट्टा! न म्हारे घरां भाती आए। न आड़े ते बरत्ती गए। हमारे गाँव में कई कई शादियों में बाकि रिश्तेदारों के साथ गीत गाती हुई माँ ने पूरी बरादरी में मिठाइयाँ बाँटी थी। अपनी बारी आई तो कुछ न कर पाई बेचारी।"

आज मैंने हाथ जोड़ कर मन से प्रणाम किया, एक तस्वीर को। इकलौते बेटे की माँ होना उनके लिए उसी मौके पर पशेमानी की वजह बना जिसका उन्होंने बरसों इंतज़ार किया था। वह पसेमानी, वह पछतावा कितना हिला देने वाला रहा होगा, उनके सशक्त व्यक्तित्व के लिए, इसकी थोड़ी सी समझ मुझे आज आई जब उनको देखना तो क्या उनसे बात करना भी मुमकिन नहीं था। हिंदुस्तान में रहते हुए मेरी माँ की अर्थी को मेरे पापा के साथ मिल कर कांधा देने वाले राजन जब अपनी माँ की बीमारी की ख़बर सुनते ही पहली फ्लाइट लेकर न्यूयार्क से दिल्ली पहुँचे तो उनका अंतिम संस्कार हो चुका था। पहले राजन को फ्लाइट लंदन में टेक्निकल मुश्किल की वजह से वक्त से ज़्यादा रुकी। फिर दिल्ली से गाँव तक पहुँचने में वो ट्रैफिक में घंटों तक निकलने के लिए लाचार बैठे रहे।

"क्यों भई! तुम तो चाय लेने गई थीं न? आसाम के चाय बागान में चली गईं क्या?" राजन लिविंग रूम से ऊँचे स्वर में पूछ रहे थे।
रिश्ते जब तस्वीर बनकर दीवार पर टंग जाते हैं तो उनको निबाहने के लिए ताज़ातरी ख्वाहिश शायद कहीं हमारे लिए पश्चाताप बन कर उमड़ती है। मैंने भी ऐसा ही करना चाहा लेकिन उस में भी राजन की माँ की तरह आहत होने से बचने की मेरी इच्छा, मेरे पश्चाताप की भावना से कहीं ज़्यादा थी।
"हो सके तो आप मुझे माफ़ कर दीजिए, प्लीज।" मैंने हाथ जोड़ कर माथे से लगाए और आँखें मूँद कर बुदबुदा दिया। लगता है कि उन्होंने सुना भी और मेरी अर्ज़ी मान भी ली।
लिविंग रूम में राजन और शान्तनु मज़े में बातें कर रहे थे।
"शान्तनु ने तो अच्छी खासी प्लानिंग कर रखी है।" राजन ने चाय का मग थामते हुए कहा।
"ओ येस! मैं पापा को बता रहा था न अगले हफ्ते शनिवार को मैं लीना को साथ लेकर यहाँ आऊँगा। फिर हम दोनों उसके पेरैंट्स को मिलने जाएँगे। उसके बाद आप और पापा उसके पेरैंट्स से मिल कर एक दूसरे के रस्म रिवाज़ पूछेंगे। फिर हम सब यहाँ पर अपने घर में पारिवारिक गोष्ठी करेंगे। लीसा, मनु और लीना की बहिन का परिवार भी होगा। और न्यूयार्क में रहने वाला, हमारा परिवार भी। बस सिर्फ़ वही सदस्य होंगे जिनका हमारे साथ खून का रिश्ती है, उसके बाद..."

शान्तनु बिना कौमा, फुलस्टाप के अपना ब्लू प्रिंट फैलाता उसकी हाईलाईट्स बयान कर रहा था। और मैं महसूस कर रही थी – उसकी प्लानिंग के हर पहलू में राजन और मैं शामिल थे। खूब गहमा-गहमी रहेगी। सारा घर सजाऊँगी। भांजे, भतीजे, भाई, बहनें, मामा, फूफा सब आएँगे। नाच-गाना होगा।
"मौम, आप सुन रही हैं न कि मैं क्या कह रहा हूँ?"
"बिल्कुल।"
"बस आपको एक ही इंतज़ाम करना है।"
"क्या?"
"बारात के आगे ढोलक बजाने वाले का। आई वान्ट ए जेन्युइन गाई। मुझे एक शुद्ध ढोलक वाला चाहिए जो सबको नचा सके।"
राजन और मैं शान्तनु को बाहर छोड़ने आए तो उससे पूछा,
"यू वांट टू गो कार ए राईड विद मी, मौम। मेरे साथ ड्राईव पर चलेंगी, थोड़ी देर के लिए।" मुझे गाड़ी चलाना नहीं आता न। कभी सीख ही नहीं पाई।

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