अपना एक कोना जहाँ मेज़
कुर्सी और कंप्यूटर हो वहीं एक छोटी अलमारी ज़रूरी
किताबों के लिए और एक फ़ाइल कैबिनेट की ज़रूरत होती है,
जिसमें फ़ाइलें ठीक से रखी जा सकें। फ़ाइल कैबिनेट महँगी
हो यह ज़रूरी नहीं फ़ाइलों को अलमारी में भी रखा जा सकता
है पर ऐसे रखा जाए कि ठीक से निकाला जा सके और आराम से
काम किया जा सके। अब सवाल यह उठता है कि इन फ़ाइलों में
आखिर होगा क्या और अलमारी में कौन कौन सी किताबें रखी
जाएँगी।
किताबों की सूची
हर व्यक्ति के लिए किताबों की सूची अलग हो सकती है पर
शब्दकोश हर किसी के पास होना ज़रूरी है। आप हिन्दी के
कितने भी बड़े विद्वान हों शब्दों के सही प्रयोग और उनके
अर्थ देखने की ज़रूरत हमेशा बनी रहती है। सच पूछें तो
शब्दकोश सामान्य लोगों के ज़रूरत की चीज़ नहीं है। उनका
काम तो कुल जमा एक हज़ार शब्दों से आराम से चल रहा है।
उन्हें अपना बात को और बेहतर कहने की ज़रूरत नहीं। यह
ज़रूरत लेखक या पत्रकार की होती है इसलिए एक अच्छा
हिन्दी से हिन्दी शब्दकोश हर किसी के पास ज़रूर होना
चाहिए।
इसके अतिरिक्त एक अच्छा
अंग्रेज़ी से हिन्दी शब्दकोश भी ज़रूरी है। आज के समय
में जब हम बहाव में लिख रहे होते हैं अक्सर कोई
अंग्रेज़ी शब्द हमारे दिमाग में आ उलझता है और उसका उतना
ही जोरदार हिन्दी शब्द याद नहीं आता। पुराने ज़माने के
बहुत से लेखक जैसे निर्मल वर्मा और धर्मवीर भारती ने
अपनी डायरियों और पत्रों में इन्हें ऐसा ही रहने दिया है
पर उनका युग बीत गया है। वे हमारे सामने एक ठोस आधार रख
गए हैं। पहली सीढ़ी का निर्माण कर गए हैं। हमें वहीं
खड़े नहीं रहना है। हमें उनसे एक कदम आगे बढ़ाना है।
हमें दूसरी सीढ़ी का निर्माण शुरू करना है। इसलिए यह समय
विदेशी शब्दों के हिन्दीकरण और बेहतर हिन्दी शब्दों की
पुनर्स्थापना का है। आपकी तारीफ़ इसमें है कि क्या
विदेशी शब्द को हिन्दी जामा पहना सकते हैं या उसके
समांतर कोई बढ़िया देसी शब्द ढूँढ सकते हैं। शब्दकोश इसमें
हमारी मदद करता है साथ ही अपनी आँचलिक भाषा के शब्दों पर
ध्यान से हमारी भाषा और लेखनी समृद्ध होती है इसलिए आपकी
आंचलिक भाषा का कोई शब्दकोश बाज़ार में है तो ख़रीदकर
रखें। यह आपके शब्द भंडार को समृद्ध करेंगे।
हिन्दी में अंग्रेज़ी
के अतिरिक्त अरबी और फारसी के शब्द बहुतायत से हैं तो एक
उर्दू शब्दकोश भी अपने पास रखें। आजकल ऐसे उर्दू शब्दकोश
बाज़ार में हैं जिनकी लिपि नागरी है। ऐसा शब्दकोश उनके
लिए बहुत ही फ़ायदे का है जिनको उर्दू पढ़ना लिखना नहीं
आता है। संस्कृत तो हिन्दी की माता ही है सो अनेक शब्दों
के उद्गम और विकास की जानकारी के लिए संस्कृत शब्दकोश
होना भी ज़रूरी है। शब्दकोश कौन सा अच्छा है और कौन सा
कम अच्छा है वह कहना काफ़ी कठिन है क्यों कि हर रोज़
बाज़ार में नए शब्दकोश आते हैं और नए शब्दकोश अक्सर
पुरानों से बेहतर होते हैं। शब्दकोश रोज रोज ख़रीदे और
फेंके नहीं जाते तो ख़रीदते समय जो भी अच्छे से अच्छा
खरीद सकें ख़रीदें। ये चार शब्दकोश लगभग 2000 रूपए के हो
सकते हैं और एक साथ खरीदने पर दूकानदार दस प्रतिशत की
छूट भी दे सकते हैं।
इसके अतिरिक्त हर लेखक
को अपने रुझान के अनुसार अपने विषय से संबंधित मूलभूत
जानकारी की पुस्तकों को अपने पास रखना चाहिए। जैसे
साहित्य लेखकों को साहित्य का इतिहास और भाषा विज्ञान की
प्रारंभिक पुस्तक, कवियों को तुक संग्रह, इतिहास
लेखकों को भारत का इतिहास इत्यादि।
अपने संदर्भ-
बाज़ार से खरीदी गई किताबों के साथ ही लेखक का अपना
संदर्भ कोश होना भी ज़रूरी है। इसको बनाने के लिए हमें
अपने क्षेत्र के एक अच्छे समाचार पत्र की खोज करनी
होगी। इसे ख़रीदें रोज़ ठीक से पढ़ें और इसमें दिए गए
आँकड़ों, संदर्भों और महत्वपूर्ण लेखों को काटकर अलग अलग
फ़ाइलों में रखें। हर कटिंग पर अखबार का नाम और दिनांक
होना ज़रूरी है ताकि आपको पता चल सके कि यह संदर्भ कितना
पुराना है और कहाँ से लिया गया है। इसका उल्लेख लेखों
में अक्सर ज़रूरी रहता है। इन्हें विषयानुसार अलग अलग
फ़ाइलों में सहेजें। फ़ाइलों को नाम दें- जैसे साहित्य, विज्ञान, समाज, बाल
लेखन इत्यादि। जब भी कुछ पढ़ें यह ध्यान दें कि क्या इस
जानकारी का उपयोग आगे चलकर किसी लेख में हो सकता है। अगर
हो सकता है तो उसको सहेजें।
एक साल के अंदर आपका
अपना संदर्भ बैंक तैयार हो जाएगा। छोटी छोटी बातों के
लिए पूरा वेब खंगालने में समय बरबाद नहीं होगा और पढ़ने
की आदत बनेगी जो आगे चलकर बहुत काम आएगी। ये कतरनें किसी
भी लेख के लिए महत्वपूर्ण सामग्री प्रदान कर सकती हैं। इनमें से ज़रूरी आँकड़े, सुंदर शब्द और
संदर्भों का उपयोग कर अपने लेख को स्तरीय और प्रमाणिक
बनाया जा सकता है।
समाचार पत्र के
अतिरिक्त वेब से भी संदर्भ जमा किए जा सकते हैं। वेब पर
सर्च करते समय या यों ही घूमते हुए बहुत से लिंक रोचक
प्रतीत होते हैं और लगता है कि इस जानकारी का उपयोग किसी
लेख में किया जा सकता है। ऐसे पृष्ठों को फ़ेवरेट में
अलग अलग फ़ोल्डर बनाकर उसी प्रकार सहेजना चाहिए जैसे
अख़बार की कटिंग को फ़ाइल में। बिना फ़ोल्डरों के सहेजने
से फ़ेवरेट की सूची इतनी लंबी हो जाएगी कि उसको ऊपर से
नीचे तक देखना और ज़रूरी लिंक को इस भीड़ में ढूँढ
निकालना मुश्किल हो जाएगा। फ़ेवरेट्स (favorites) में ऐड टू फेवरेट्स
(add to favorites) क्लिक करने पर एक छोटी विंडो खुलती है। इसमें न्यू
फ़ोल्डर पर क्लिक कर के नया फ़ोल्डर बनाया जा सकता है।
क्रियेट इन (create in) के
सामने ध्यान से देखें आप जिस फ़ोल्डर
में लिंक सहेजना चाहते हैं उसका नाम वहाँ है या नहीं।
अगर नहीं है तो वहाँ दिए गए तीर पर क्लिक कर के मनचाहे
फ़ोल्डर का चुनाव करें। नेम के सामने लिंक को अपनी पसंद
का नाम दिया जा सकता है। इससे लिंक को खोजने में आसानी
होगी। इसके बाद ऐड (add) क्लिक कर दें।
अंत में-
संदर्भ लेख में जान डालते हैं वे लेखक का ख़ज़ाना हैं पर
संदर्भ भाषा से ही जोड़े जाते है। अपनी भाषा पर मेहनत
करें। अच्छी हिन्दी लिखना गौरव की बात है। सब लोग ऐसा
नहीं कर सकते। अगर ईश्वर ने आपको इसकी क्षमता और अवसर
दिए हैं तो भरपूर लाभ उठाएँ। हिन्दी को इतना समृद्ध
बनाएँ कि लोग कहें यह बात तो हिन्दी के सिवा किसी अन्य
भाषा में कही ही नहीं जा सकती। भाषा की शक्ति उसका
प्रयोग करने वालों के निरंतर प्रयास और कठिन परिश्रम पर
निर्भर करती है। और यह परिश्रम आज हमें ही करना है। |