मीतू ने
एक मजेदार सपना देखा।
सपना था गाँव की सैर का। गाँव में एक बड़ा सा खेत था। खेत
में उगे थे गुब्बारे ही गुब्बारे। ढेर सी पत्तियाँ और
पत्तियों के बीच गुब्बारे। पत्तियाँ पीली थीं और गुब्बारे
नारंगी। वे पान के आकार के थे।
गुब्बारे
छोटे छोटे थे लेकिन तोड़ने से बड़े हो जाते थे। मीतू ने एक
गुब्बारा तोड़ा और उससे खेलने लगी। धूप तेज थी और आसमान
में बादल कम थे। धूप से गुब्बारा फूट गया। लेकिन दुख की
कोई बात नहीं। मीतू ने दूसरा गुब्बारा तोड़ लिया और खेल
जारी रखा।
जब वह
खेलते खेलते थक गई तो एक पेड़ की छाँह में जाकर बैठ गई।
बैठते ही उसे गीतू की याद आई- अरे गीतू कहाँ है?
फिर उसे भूख लगी- अरे माँ कहाँ हैं?
फिर मीतू
की नींद खुल गई। यह तो बस सपना था। मीतू तो अपने कमरे में
ही सो रही थी।
- पूर्णिमा वर्मन |