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लन्दन में हिमपात हुए तो एक
अर्सा बीत चुका है। लन्दनवासी अब बर्फ़ देखने के लिए
स्कॉटलैंड या अन्य उत्तरी शहरों की ओर जाते हैं। सफेद
क्रिसमस तो अब किताबों, कार्डों, या लोगों की यादों में ही
दिखाई देता है। किन्तु जया और दिलीप के रिश्तो में जो
ठण्डापन पैठ गया है, वह जमीं हुई बर्फ़ से कहीं अधिक सर्द और
भयावह है!
आज लगभग दो वर्ष होने जा
रहे हैं। दिलीप ने काम धाम छोड़ रखा है। घर में भी शराब और
शाम को 'पब' मे भी शराब। नाश्ते और भोजन मे केवल शराब ही
शराब। ऐसा क्या दुख है दिलीप को? वह क्यों नहीं समझ पा रहा
है कि उसके इस व्यवहार से जया को कितना दुख पहुँच रहा है? वह
बेचारी दिन भर नौकरी करती है, घर आ कर अपनी बेटी पलक की
पढ़ाई में सहायता करती है, और रात को भोजन बना कर दिलीप की
प्रतीक्षा करती है। अब तो प्रतीक्षा करना भी बन्द कर दिया
है।
"मोह माया को त्याग दो!
जीवन का एक ध्येय बना लो, कि जानते बूझते किसी भी प्राणी का
दिल नहीं दुखाओगे। बस सत्कर्म करते रहो। फल की चिन्ता मे समय
व्यर्थ ना करो। काम और वासना के पीछे भागना छोड़ दो। यह शरीर
गन्दगी का बक्सा है।
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