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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
यू.के. से तेजेन्द्र शर्मा की कहानी- सपने मरते नहीं


डिलीवरी की दर्द सहते हुए भी इला बस एक आवाज़ सुनना चाहती थी – अपने पहले बच्चे के रोने की आवाज़ !

लगभग अर्धमूर्छित इला ने ध्यान लगा कर सुनने का प्रयास भी किया। उसकी चेतना उसका साथ छोड़ती महसूस हो रही थी। कमरे में रौशनी थी मगर उसके लिये बस अंधेरा ही अंधेरा था।... आवाज़ हलक़ से बाहर नहीं आ पा रही थी। पहले से जानती थी कि पुत्र ही होने वाला है... अल्ट्रासाउण्ड करते हुए डॉक्टर ने बता
दिया था। आमतौर पर लंदन के डॉक्टर पैदा होने वाले शिशु का सेक्स बताते नहीं हैं। इस समय इला के मन में बस एक ही कामना थी कि वह अपने पुत्र के रोने की आवाज़ सुन सके। अपनी पहली संतान की आवाज़ सुनने की चाह कैसी हो सकती है... !

उसके हाथ का दबाव नीलेश के हाथ पर ढीला होता जा रहा है। प्रसव की पीड़ा के समय उसने नीलेश के हाथ को कस कर पकड़ लिया था। उसके नाख़ून लगभग नीलेश की हथेली के पिछले भाग में धंस गये थे। नीलेश अपनी इला के दर्द को समझ रहा था। इंतज़ार उसे भी वही था जो कि इला को था।

इला का दिल बैठा जा रहा था। उसका बच्चा रो क्यों नहीं रहा ?... उसकी आवाज़ क्यों उसका साथ नहीं दे रही ? वह उठ कर पूछ क्यों नहीं पा रही ?

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