रास्ते भर
मैं उन चटक रंगों के फूलों की झाड़ियाँ निहारती आई थी और सोचती
रही थी कि ये कौन से फूल है द़ूर से देखने पर बोगनवेलिया की
झाड़ियों का भ्रम दे देते हैं और पास आओ तो उनसे कहीं ज़्यादा
खूबसूरत। उनसे कहीं ज़्यादा रंगों का खिलाव। आकार भी मोहक और
खूब घने गुच्छे। जब कालेज के कैम्पस में पहुँचे तो वहाँ भी दूर
तक फैली हरियाली के बीच-बीच गुलदस्तों की तरह सजे हुए। मुझसे
रहा नहीं गया। ख़ास तौर से प्रिंसिपल की पत्नी के साथ उसके घर
की ओर जाते हुए जब उनके घर के बाहर भी वैसी ही झाड़ी दिखी तो
मैंने पूछ ही डाला, ''फूलों की ऐसी झाड़ियाँ मैंने पहले कभी
नहीं देखी ऩ ही ऐसे चटकीले नीले, नारंगी, गुलाबी और सफेद रंग!
कौन से फूल हैं ये?''
मिसेज़ मिलर
ने बड़ी सहजता से कहा, ''अजेलिया। बसंत में खूब फूटते हैं और
बिना ख़ास मेहनत के, इसलिए आपको हर कहीं दिखाई दे रहे हैं।''
''दूर से देखने पर मैं इन्हें बोगिनवेलिया ही समझती रही।''
''हाँ बहुतों को हो जाता है यह भ्रम, ख़ासकर हिन्दुस्तानियों
को।'' वे मुस्कराई।
तो इस इलाके
का बड़ा आम फूल है यह। लेकिन फिर भी उनके ज्ञान से प्रभावित थी
मैं। अपने माहौल के साथ कितनी रची-बसी है। शायद वे खुद भी तो
इस अजेलिया फूल की तरह है, इस भूमि पर, इस माहौल पर पूरे
अधिकार से जमी हुई।
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