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शमशाद से मैंने वादा कर रखा था कि
अपनी दो महीने की छुट्टियों पर जाते हुए अपना टी.वी. और
वी.सी.आर. उसे देता जाऊँगा। वैसे भी वह दो महीने बंद ही पड़ा
रहता। मगर छुट्टियों से पहले एक मित्र ने मुझसे कहा कि उसके
माता–पिता विजिट पर आ रहे हैं, उन्हें आराम से रखने के लिए
सुविधापूर्ण जगह चाहिए।
यदि मैं अपना फ्लैट उसे
दो महीने के लिए दे दूँ तो उसकी परेशानी खत्म हो जाएगी। जो
किराया वह किसी अनजाने व्यक्ति को देगा वह बेहतर होगा कि मुझे
मिले। मित्र का सोचना अपनी जगह सही था। वह आबूधाबी में अकेले
किसी दूसरे बैचलर के साथ एक कमरे में साझा करते हुए रह रहा था।
उसी कमरे में माता–पिता को रखना संभव नहीं था। उनके लिए उसे
अस्थाई तौर पर कमरा लेना ही पड़ता।
चूँकि, वे विजिट पर आ रहे थे अतः कम से कम दो महीना तो रहते
ही। ऐसे में अलग बाथरूम और किचेन सुविधा भी चाहिए थी। रोज–रोज
होटल से खाना असंभव तो नहीं था परन्तु उसमें कठिनाइयाँ जरूर
थीं। मित्र यह भी चाहता था कि यदि मैं उसे अपना फ्लैट दे दूँ
तो वह अपने माता–पिता के साथ रहते हुए उन्हें अधिक समय दे
सकेगा। मुझे मित्र का सुझाव सही लगा। मैं सपरिवार दो महीने के
लिए जा रहा था। उस अवधि का किराया मुझे देना ही था। दो महीने
के किराए की रकम भी कम नहीं थी। लगभग चालीस हजार रुपए होते थे।
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