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					 जब 
					उसने मुझे यह फोटो दिखाया था तो कुछ कहा भी था, 'जब मैंने 
					तुम्हें इस पोज में देखा तो मेरा कैमरा मुझसे भी ज्यादा आतुर 
					था तुम्हारा फोटो लेने के लिए। इसमें तुम्हारी आँखें जो कहना 
					चाह रही हैं उसे तुम्हारा चेहरा कहने नहीं दे रहा क्योंकि उस 
					पर निर्विकारता है। इस फोटो में मुझे जिसने सबसे ज्यादा 
					एक्साइटेड किया वह है तुम्हारी मुड़ी हुई गर्दन का खम और पर्ल 
					इयररिंग जो उस समय हौले-हौले हिल रहा था।` 
					 
					मैं देख कुछ रही हूँ, सुन कुछ रही हूँ और सोच कुछ रही हूँ।  
					मैं देख रही हूँ सिक्योरिटी गार्ड मेरे पति को बाहर ले जा रहे 
					थे जिसने यहाँ आकर हंगामा कर दिया था। उसने यहाँ 
					चीखते-चिल्लाते हुए कहा था, 'ये औरत जो दुल्हन के लिबास में 
					फुदकती फिर रही है लेकिन जिसे दुल्हन के मायने नहीं पता हैं, 
					मेरी पत्नी है, कानूनन पत्नी जिस पर मेरा पूरा-पूरा हक है और 
					मैं इसे अपने साथ ले जाने आया हूँ।` 
					 
					और उसने मुझे तुरन्त चलने के लिए कहा था। यह जानते हुए कहा था 
					कि हम पिछले दो सालों से साथ नहीं रह रहे हैं, यह जानते हुए 
					कहा था कि उसने शादी से पहले भी और शादी के बाद मेरी जिन्दगी 
					नर्क बना दी थी, यह जानते हुए कहा था कि मैं उसके साथ बिल्कुल 
					नहीं रहना चाहती, यह जानते हुए कहा था कि वह मेरे घरवालों को 
					धमकाता है कि वह मुझे मार डालेगा और मुझे धमकाता है कि वह मेरे 
					घरवालों का अहित कर देगा। 
					उसके चिल्लाने से हमारे आसपास यूनिट के लोग जमा हो गये थे और 
					सिक्योरिटी वाले भी किसी भी एक्शन के लिए तैयार खड़े थे। मेरा 
					अच्छा खासा ड्रामा बन रहा था।  
					'चल, सोच क्या रही है? ये लिबास बदल। जल्दी कर।`, उसने बेशर्मी 
					से कहा था। 
					'देखो, मुझे बहुत मुश्किल से काम मिला है, मुझे करने दो। प्लीज 
					लीव मी अलोन............` 
					'अलोन छोड़कर ही तो तेरी ये हालत हो गयी है। अब मेरे साथ रह, 
					तू बिल्कुल ठीक हो जायेगी।`,  
					उसने कुटिलता से कहा था। 
					 
					जो मैंने कहा, इसके अलावा भी मैं उससे बहुत कुछ कहना चाह रही 
					थी मगर मुझसे इतना ही कहा गया। मेरा पूरा शरीर पसीने से गीला 
					हो गया था, मेरा गला सूख गया था, दिल बैठ गया था। बहुत ही अजीब 
					सी स्थिति हो रही थी जो मेरे नियन्त्रण से बाहर थी। आज ही क्या 
					स्थिति तो मेरी हमेशा से नियन्त्रण से बाहर थीं। पर जल्द ही 
					स्थिति संभल गयी। हमारे फ्लोर मैनेजर मेरे लिए श्रीकृष्ण बन कर 
					आ गये। उनके पूछने पर मैंने सिर्फ इतना कहा, 'आई डोन्ट वान्ट 
					टू सी दिस मैन हेयर।` 
					उसके बाद यही वो क्षण था जिसे विलास ने क्लिक किया।  
					 
					कोई भी व्यक्ति विवाह क्यों करता है? अपने जीवन को नये सिरे से 
					आरम्भ करने के लिए, उसे व्यवस्थित करने के लिए, अपने साथी के 
					साथ चलने के लिए, उसके सुख दुख को अपना सुख दुख बनाने के लिए, 
					किसी का जीवन भर साथ निभाने के लिए। मगर सभी के लिए और सभी के 
					साथ ऐसा नहीं होता। मेरे विवाह की तो नींव ही समझौते और शर्तों 
					पर रखी गयी थी। वास्तव में, मैं श्रीनिवास से विवाह ही नहीं 
					करना चाहती थी। उससे मेरी दोस्ती तो हो गयी थी लेकिन 
					विवाह.....उसके बारे में तो बिल्कुल भी नहीं सोचा था और यह 
					मैंने उसे बता भी दिया था मगर उसने धमकी दी थी कि वह पहले मुझे 
					नहीं मेरी छोटी बहन की जिन्दगी बरबाद करेगा ताकि मुझे  
					हमेशा एहसास होता रहे कि इसका जिम्मेदार कौन है। मैं उसकी धमकी 
					में नहीं आई थी लेकिन एक दिन किसी ने मेरी बहन पर हमला कर 
					दिया। कॉलेज से घर आते हुए रास्ते में एक मोटरसाइकिल वाले ने 
					उसे रोका और उसका नाम लेकर पूछा और उसके 'हाँ क्यों` कहते ही 
					उसने उसे मोटर साइकिल से टक्कर मार दी जिससे उसे चोटें आई।  
					 
					इस घटना से वह बुरी तरह डर गयी और उसके डरने से मैं भी। मेरी 
					किसी से कहने या बताने की हिम्मत नहीं हुई कि इस हमले के पीछे 
					श्रीनिवास हो सकता है। इसके बाद भी उसने मुझे कई बार मानसिक 
					रूप से प्रताड़ित किया और अन्तत: मैंने हथियार डाल दिये। सोचा 
					था कि यह उसका जुनून है जो शादी के बाद और करीब आने से प्यार 
					में बदल जायेगा लेकिन नहीं, वह प्यार तो कभी था ही नहीं, वह तो 
					सिर्फ वहशत भरा जुनून था बल्कि किसी चीज को पाने की एक नाजायज 
					हठ थी, उसका अधिकार, उसका हक था।  
					 
					मैंने उसके लिए हर किसी का विरोध सहा लेकिन मैंने जो सहा उसे 
					कोई नहीं जान पाया। मैं उसके साथ तीन महीने रही और इन तीन 
					महीनों में मैं तीन सौ बार मर गयी। और अपने मरने की मैंने कहीं 
					भी शिकायत नहीं की, न अपने घरवालों को, न उसके, न पुलिस में और 
					न किसी और को। सब कुछ अकेले ही भोगती रही। भोगना भी मुझे ही था 
					क्योंकि धमकी या समझौता ही सही, निर्णय तो मेरा ही था। 
					 
					उससे अलग होने के बाद मैं दिल्ली आ गई, अपने जीवन को नई दिशा 
					देने के लिए। शुरू में, बतौर मॉडल पैर जमाने के जब मैंने 
					प्रयास किये थे तो श्रीनिवास मेरे जीवन में आ गया था जिससे 
					मेरा कैरियर, मेरा सुकून सब तहस-नहस हो गया था। मैंने फिर वहीं 
					से आरम्भ किया जहाँ से मैंने छोड़ दिया था लेकिन दिल्ली जैसे 
					शहर में ये इतना आसान नहीं था। फिर भी संघर्ष चलता रहा।  
					 
					इस बीच श्रीनिवास ने कहीं से मेरा मोबाइल नम्बर हासिल कर लिया। 
					लेकिन उसने मुझे धमकी नहीं दी। वह सिर्फ एसएमएस भेजने लगा - 
					प्रेम भरे, समझाने वाले। मैं समझ गयी थी कि वह जानबूझ कर ऐसा 
					कर रहा है ताकि मैं कहीं उसकी शिकायत न करूँ। जब मैंने उसे फोन 
					करके मैसेज बन्द करने के लिए कहा तो उसने मुझे धमकाया कि वह 
					मुझे जीने नहीं देगा। क्या कहा था उसने? 
					 
					'मेरे प्यार से भरे ये मैसेज तुझे हमेशा कचोटते रहेंगे, डिलीट 
					करने के बाद भी। इनसे यहीं समझा जायेगा कि तेरा पति तुझे 
					दीवानावार चाहता है और अगर कोई कमी है तो तुझमें है, मुझमें 
					नहीं। तू चाहकर भी किसी को शिकायत नहीं कर पायेगी। तुझे ऐसे ही 
					प्रेम में डुबो-डुबोकर मारूँगा, तेरे मन में मेरे प्रति भरी 
					नफरत के साथ जीने नहीं दूँगा।` 
					और आज तो हद ही हो गयी। मानो वह इसी मौके की ताक में था। 
					मैं देख कुछ रही हूँ, सुन कुछ रही हूँ और सोच कुछ रही हूँ।  
					 
					मैं सुन रही हूँ, रैम्प के दूसरी ओर बॉस फ्लोर मैनेजर को 
					डाँटते हुए कह रहा था, 'कैसी लड़की अरेंज की है, तुम्हें कोई 
					और नहीं मिली? ये लफड़े वाला सामान मुझे नहीं चाहिए। अगर वो 
					आदमी बाद में आता तो सारे शो की माँ बहन एक हो जाती। और इसकी 
					परफारमेंस भी ठीक नहीं है। देखो जरा, ब्राइडलवियर में उसके 
					चेहरे का फ्यूज उड़ा हुआ हैं। कोई खुशी ही नहीं है। ब्राइड तो 
					शीशे की तरह दमदमाती है। और हाँ, सिक्योरिटी को बोल दिया है न 
					कि वो आदमी आसपास भी न दिखाई दे, मैं शो में कोई बखेड़ा नहीं 
					चाहता। और एक बात और इस शो के बाद इस लड़की को भी चलता करना। 
					एक सेकेण्ड भी नहीं देखना चाहूँगा इसे मैं।` 
					 
					'सब हो जायेगा, सर। डोन्ट वरी, सर। अभी देखना सर कैसी दमदमाती 
					है।`, फ्लोर मैनेजर आश्वासन दे रहा था। 
					मैं देख कुछ रही हूँ, सुन कुछ रही हूँ और सोच कुछ रही हूँ। 
					मैं सोच रही हूँ, विवाह के अवसर पर हमारे धर्म में क्या हम 
					सफेद कपड़े पहनने की कल्पना भी कर सकते हैं? नहीं न। लेकिन इस 
					समय मैं ब्राइडलवियर में हूँ, विदेशी ब्राइडलवियर में, झक सफेद 
					परिधान, जो हमारे यहाँ शोक का प्रतीक है। हिन्दू धर्म में सफेद 
					परिधान को मृत्युशोक पर पहना जाता है। इस परिधान में मैं खुश 
					कैसे हो सकती हूँ? जैसा कि बॉस ने कहा, दमदमा कैसे सकती हूँ? 
					अभी जो मेरे साथ हुआ, उस परिस्थिति में मैं कैसे प्रसन्न हो 
					सकती हूँ? 
					 
					खैर! जब हमारे साथ और चीजें जुड़ने लगती हैं तो हमारा व्यवहार 
					भी उनके अनुसार बदलता रहता है। मेरे फ्लोर मैनेजर ने बॉस को जो 
					आश्वासन दिया है उसे पूरा करने की सबसे अहम जिम्मेदारी तो मेरी 
					है। इसी बहाने खुश हो लिया जाये क्योंकि मुझे काम करना है, 
					पैसे कमाने है, अपना पेट पालना है।  
					 
					इस श्रीनिवास नाम के जानवर के साथ बाद में निपटूँगी। सिर्फ 
					किस्मत के सहारे नहीं, अपने आत्मबल के साथ उससे निपटना होगा और 
					बिना देर किये निपटना होगा। अब मुझे इसके लिए भी तैयार रहना 
					है। 
					 
					जिनके मकान में मैं किराये का कमरा लेकर रहती हूँ, उनके बड़े 
					भाई कभी थियेटर में काम करते थे। एक अरसा हो गया उन्हें थियेटर 
					छोडे हुए लेकिन अक्सर वे नाटकों के डायलॉग बोलते सुनाई देते 
					हैं। उनका एक डायलॉग मुझे बहुत अच्छा लगता है जो अक्सर मुझे 
					उनके कमरे से सुनाई पड़ जाता है और मुझे याद भी हो गया है। 
					मुझे ऐसा महसूस होता है कि ये डायलॉग मेरे लिए ही है - 'ओ काली 
					रात! आ, और दयनीय अवस्था में तड़पते इस दिन की आँखें बन्द कर 
					ले। अपने काले, उस खून से सने हुए हाथों से, मेरी सारी चिन्ता 
					और दुख को मसलकर चूर कर दे।` 
					लो, सीटी बज गयी। चलती हूँ, मेरा शो आरम्भ होने वाला है।  
					 
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					रौनक लाल 
					 
					ये तस्वीर किसने खींच ली, मुझे मालूम ही नहीं हुआ। लेकिन 
					तस्वीर में मैं आश्चर्य से अपने चेहरे पर हाथ रखे एक नुक्कड़ 
					नाटक देख रहा हूँ। समाज में फैली कुरीतियों और अंधविश्वासों को 
					व्यंग्यपूर्ण ढंग से नाटक के माध्यम से दिखाना ही नुक्कड़ नाटक 
					का उद्देश्य होता है। कॉलेज के लड़के लड़कियाँ कर रहे है ये 
					नाटक। कितना जोश है इन बच्चों में मगर क्या इनमें ये जोश अन्त 
					तक रहेगा? 
					 
					हाँ, मुझे नाटकों से प्रेम है, बहुत प्रेम है पर उम्र बढ़ने के 
					साथ-साथ बहुत सी चीजों की तरह प्रेम भी मरने लगता है। एक समय 
					ऐसा था कि मैंने इसके लिए सब कुछ छोड़ दिया था मगर सब कुछ 
					छोड़ने पर भी मुझे कुछ नहीं मिला। 'कुछ भी हो, एक दिन वह नियत 
					समय अवश्य आयेगा। उस बीच में जो भी कठिन से कठिन दिन हैं वे भी 
					किसी तरह निकल ही जायेंगे।` , मैकबेथ के इस संवाद ने मुझे कभी 
					भी तसल्ली नहीं दी।  |