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                     सेहर कुछ 
                    कहने ही लगी थी कि मवाली बोला, ''तुझे जगदीश का पता चाहिए? पण 
                    वो तो इधर ही रहता है, इसी तिरपाल के नीचे।'' ''वो अब्बी किदर है?'' सेहर ने पूछा।
 मवाली और चाची की नजरें आपस में मिलीं। भगवान जाने क्या इशारा 
                    हुआ। क्या साली सैफ करीना की जोड़ी है। सेहर ने सोचा।
 ''वो भुसावल गया है।'' फिर वह बोला।
 ''ये किदर है?'' उसने पूछा।
 ''बहुत दूर है। चार-छह घण्टे लगते हैं वहाँ पहुँचने में।''
 ''मेरे को अलीबाग से आई समझ रेला है तू।'' वह रोड्ढपूर्ण स्वर 
                    में बोली और चाची से बोली, ''ये तेरा भौंपू करके है क्या? मेरे 
                    कू मेरा पइसा चाहिए। कबी आयेगा वो हरामी।''
 ''अपने चाचा कू हरामी बोली तू?'' चाची बोली।
 ''बरोबर बोली। वो हरामिच ही है। मेरे कू रण्डी बनाने वाला 
                    वोइच, मेरी कमाई खाने वाला वोइच और मेरा सारा पइसा डकारने वाला 
                    वोइच।'' उसका चेहरा तमतमा गया था।
 चाची का 
                    चेहरा स्याह पड़ गया था। उससे कुछ कहते नहीं बन रहा था। मवाली 
                    लगातार उसे घूर रहा था जैसे नजरों में ही हजम कर जाएगा।''मेरे कू नई बतायेगी तू उसका पता?'' सेहर बोली।
 ''मेरे कू मालमइच नेइ है और मालम बी हो तोबीच नेइ बताती।'' 
                    चाची रूखे स्वर में बोली, ''अब इदर से खिसकने का। धन्दे का टैम 
                    है, टैम खोटी नेइ करने का।''
 ''आज मय फैसला करके जाएगी।''
 ''तेरी मर्जी।''
 सेहर की कुछ 
                    समझ नहीं आ रहा था। उसने फिलहाल इन्तजार करने का फैसला किया। 
                    कम से कम तब तक, जब तक विदित का फोन नहीं आ जाता।बारिश फिर से तेज हो गई थी। वह जूस वाले की तिरपाल के नीचे 
                    जाने के लिए उस ओर बढ़ी।
 मिकास 
                    रेस्टोरेंट, भूला भाई देसाई रोड़अजीत अभी भी चुप था और विदित को देख रहा था। विदित कहीं नहीं 
                    देख रहा था। वह सोच रहा था। इरा उसकी उम्मीद से कहीं अधिक 
                    होशियार निकली थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था वह ऐसा भी कर 
                    सकती है लेकिन उसने गलत क्या किया, इरा ने वही तो किया जो वह 
                    कर रहा था।
 विदित ने अपना बीयर का गिलास उठाया और एक बार में खाली कर 
                    दिया। अजीत ने गहरी सांस छोड़ी। प्रतिक्रिया सामने आ गई थी।
 ''आगे?'' विदित ने पूछा।
 ''और बीयर मँगाता हूँ।'' अजीत ने कहा।
 ''यार, मसखरी मत करो। तुमने मेरी जासूसी की?''
 ''वो मेरा धन्धा है, मुझे करना ही था और उस समय मुझे पता भी 
                    नहीं था कि वो भाभी जी हैं। लेकिन मैं सिर्फ इतना कहना चाह रहा 
                    हूँ कि इस सारे खेल में आपको जो नुकसान हुआ है...।''
 ''मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। मेरे साथ ठीक नहीं किया 
                    तुमने।'' विदित ने उसकी बात काटते हुए कहा।
 ''...उसकी भरपाई हो सकती है।
 वह अपने 
                    चेहरे पर प्रश्नचिन्ह लिए अजीत को देख रहा था।''जी हाँ।'' अजीत ने वेटर को और बीयर लाने का इशारा करते हुए 
                    कहा।
 ''मेरा जितना नफा नुकसान करना था वो आपने कर दिया है।'' वह 
                    तनिक निराशापूर्ण स्वर में बोला और लिफाफा खोलने लगा।
 ''देखिये सर, अगर मैं आपको नहीं बताता तो आपको कभी मालूम नहीं 
                    होता। आपको बताने का मेरा सिर्फ यही मकसद है कि आपसे मेरे बहुत 
                    अच्छे सम्बन्ध हैं और उन्हें मैं हमेशा बनाये रखना चाहता हू। 
                    दरअसल, मैं नहीं चाहता कि आपके वैवाहिक सम्बन्धों को कोई 
                    नुकसान पहुँचे इसलिए यह बात मैं आपको बता रहा हूँ।
 ''तो मुझे पहले क्यों नहीं बताया? और आज क्यों बता रहे हो?''
 ''पहले शायद इसलिए नहीं बताया कि मैं सोचता था रिजल्ट नेगेटिव 
                    आएगा। और अब इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि पहले ही बहुत देर हो 
                    चुकी है।''
 ''हाँ, साला प्रेगनेंसी टैस्ट है जो नेगेटिव आएगा क्योंकि 
                    मैंने तो कंडोम यूज किया था। क्यों?'' विदित ने खिन्न स्वर में 
                    कहा।
 तभी वेटर बीयर ले आया। अजीत कुछ कहना चाहकर भी नहीं बोला।
 वेटर के जाने 
                    के बाद विदित ने लिफाफा खोला। लिफाफे में चार तस्वीरें थीं 
                    जिनमें उसकी पत्नी इरा किसी अजनबी के साथ थी। जो डिटेल उनके 
                    साथ थी उसके अनुसार इरा चार बार इस व्यक्ति से मिली थी। उसने 
                    गौर से उस अजनबी को देखा। अजनबी वही था जिसे उसने मॉल में इरा 
                    के साथ बाँहों में बाँहें पिरोये देखा था। रिपोर्ट में उसका 
                    नाम अलंकार नैमा लिखा था जो ठाणे के एक इंजीनियरिंग कॉलेज का 
                    छात्र था। उसे नाम से कुछ याद आने लगा। उसे याद आया इरा ने ही 
                    उसे बताया था कि उसके किसी रिश्तेदार का लड़का उज्जैन से यहाँ 
                    पढ़ाई के लिए आया है और जिसका नाम उसने अलंकार नैमा बताया था। 
                    तो इससे मोहब्बत की पींगे बढ़ाई जा रही हैं। ''हाँ तो मैं कह रहा था सर कि अगर आप ये सब बाहर के धन्धे बन्द 
                    कर दें तो सब ठीक हो जाएगा।''
 विदित ने अजीत को जलते हुए नेत्रों से देखा।
 ''अपनी फीस बताओ?'' उसने कठोर शब्दों में कहा।
 ''आप मेरे साथ बीयर पी रहे हैं, यही मेरी फीस है।'' अजीत ने 
                    धीरे से कहा।
 विदित गुस्से 
                    में और कुछ कहना चाह रहा था लेकिन गुस्से की अधिकता से ही उससे 
                    बोला नहीं गया। ''रिलैक्स सर, जिन्दगी हमें सबक सिखा रही है। इसे बुरा वक्त 
                    समझ कर भूल जाने की कोशिश कीजिए और अपने घर परिवार में ध्यान 
                    दीजिए।''
 विदित शून्य में कहीं देख रहा था। अजीत का उपदेश वह समझ नहीं 
                    पा रहा था।
 हाजी अली 
                    चौराहासेहर अनिश्चित-सी फुटपाथ पर छाता ताने खड़ी थी। अभी वह जूस 
                    वाले की ओर पलटी ही थी कि...
 ''ऐ छोकरी'' मवाली गुस्से से बोला, ''मेरे को भौंपू बोली तू?'' 
                    भौंपू बोली मेरे को?''
 ''सुनाईच तो दिया न तेरे कू। फिर कायकू पूछता है?'' वह भी उसी 
                    स्वर में बोली।
 ''साली कुतरी, मेरे साथ ज्यासती अड़ी की न मैं फाड़ के डाल 
                    देंगा तेरे कू।'' कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ।
 ''साले, हलकट, मवाली मेरे कू कुतरी बोला तू।'' सेहर फिर उबल 
                    पड़ी, ''अपनी माँ को खुला छोड़ कू आया या बाँध कू आया। साला 
                    मेरे कू कुतरी बोलता है...''
 अब मवाली के 
                    हाथ में चाकू लहरा रहा था और वह तिरपाल से बाहर निकल आया। चाकू देखते ही सेहर की बोलती बन्द हो गई। क्या वह इतने भीड़ 
                    भरे चौराहे पर चाकू मारने की हिम्मत कर सकता है। उसने आसपास 
                    देखा। सैकड़ों लोग थे पर उसे नहीं पता चल रहा था कि कौन उसे या 
                    उस मवाली को देख रहा है और कौन नहीं।
 ''क्यों, कांटी देखते ही जबान सूख गया। निकाल, निकाल दो हाथ 
                    की।'' मवाली क्रूर स्वर में बोला।
 ''देख'' वह हिम्मत करके बोली, ''मेरा तेरे से कोई लफड़ा नेई, 
                    कोई लेन-देन नेई। पण मेरे को मेरा पइसा तो मँगता न। तेरे को 
                    बीच में नेई पड़ने का। बरोबर।''
 ''पण बीच में तो अब कांटी है, वोईच बरोबर करेगी जो बरोबर 
                    होयेंगा, क्या?'' मवाली पूर्ववत खूँखार स्वर में बोला।
 सेहर ने चाची 
                    को देखा। वह उसे नहीं देख रही थी, वह तो गुलाब के गुच्छे तैयार 
                    करने लग गई थी। अब जो कुछ करना था, सेहर ने करना था। मवाली उसकी ओर बढ़ा।
 ''देख अपुन का तेरे से कोई लफड़ा नेई, अपुन...''
 मवाली ने उस पर चाकू से वार किया। सेहर ने अपनी छतरी चाकू के 
                    आगे कर दी। चाकू छतरी को चीरता हुआ निकल गया। सेहर छाता छोड़कर 
                    सड़क की ओर भागी। मवाली उसके पीछे। साड़ी का लहराता आँचल उसके 
                    हाथ में आ गया। सेहर ने पलटकर अपने पर्स से उस पर वार किया।
 वहाँ मौजूद लोग उन्हें देख रहे थे, वाहन वाले उन्हें देख रहे 
                    थे लेकिन सब लोग सिर्फ देख रहे थे।
 मवाली ने 
                    पर्स के वार को बचाते हुए चाकू से सेहर पर वार किया पर पर्स से 
                    बचते हुए उसका पैर पानी भरी सड़क पर फिसल गया लेकिन उसके चाकू 
                    ने अपना काम कर दिया। चाकू सेहर की कमर के पिछले हिस्से पर तेज 
                    घाव बनाता हुआ मवाली के हाथ से फिसल कर सड़क पर गिर गया। सेहर ''हाय'' करती हुई चिल्लायी और भूला भाई देसाई रोड़ की ओर 
                    से आने वाली एक कार के बोनट से टकराई। घाव से खून बहता हुआ 
                    उसकी साड़ी पर गिर रहा था। सेहर ने हिम्मत करते हुए कार का 
                    दरवाजा खोलने की कोशिश की। दरवाजा खुल गया। वह तेजी से भीतर 
                    घुस गई। ड्राइवर की सीट पर एक स्त्री बैठी हुई थी। जो भी हुआ 
                    था इतने अप्रत्याशित ढंग से हुआ था कि वह स्त्री हड़बड़ा गई 
                    थी। उसे एकाएक समझ नहीं आया कि क्या करे? क्या बोले?
 सेहर ने शीशे से बाहर मवाली को देखा। मवाली के पैर में मोच आ 
                    गई थी। उठने की कोशिश करता हुआ वह कार में बैठी सेहर को घूर 
                    रहा था। सेहर उस महिला की ओर पलटी।
 ''ऐ बाई'' 
                    सेहर पीड़ा भरे स्वर में बोली, ''गाड़ी भगा न इदर से।''महिला को स्थिति समझ आने लगी।
 ''क्या...क्या प्राब्लम है? नीचे उतरो फौरन। जल्दी करो।'' 
                    महिला बोली।
 ''बाई मैं तुम्हेरे हाथ जोड़ती मेरे कू यां से ले चल बाई। वो 
                    मेरे कू मार डालेंगा।'' सेहर भर्राये स्वर मे बोली। उसे बहुत 
                    दर्द हो रहा था।
 ''मैं कुछ नहीं जानती, तुम उतरो जल्दी...ओ माई गॉड।'' उसने 
                    सेहर की कमर से बहता खून देख लिया जो कार की सीट खराब कर रहा 
                    था, ''जल्दी उतरो, मेरी सीट भी खराब कर दी।'' स्त्री तमतमा गई।
 पीछे से 
                    वाहनों के हॉर्न बज रहे थे। स्थिति बड़ी विकट थी। न चाहते हुए 
                    भी महिला को कार आगे बढ़ानी पड़ी। वह पहले से ही दुखी थी और एक 
                    और दुखी महिला ने उसके दुख को और बढ़ा दिया था। वह इरा थी। वह 
                    महालक्ष्मी रेसकोर्स की तरफ मुड़ना चाह रही थी लेकिन 
                    हड़बड़ाहट, पीछे के वाहनों के दबाव और कार में बैठी घायल 
                    स्त्री के कारण वह सीधे लाला लाजपत राय मार्ग पर आ गई। ''मेरे कू भोत दरद हो रहा है, कोई आजू बाजू असपताल हो तो मेरे 
                    कू उदर छोड़ दे बाई।'' सेहर अपनी साड़ी के पल्लू को कमर के 
                    गिर्द लपेटती हुई इरा से बोली।
 इरा को सेहर का चेहरा कुछ पहचाना लग रहा था लेकिन परेशानी, 
                    मुसीबत और बारिश में कार ड्राइव करने की मशक्कत में उसे याद 
                    नहीं आ रहा था कि यह वही बाजारू औरत है जिसका कुछ देर पहले 
                    उसने अपने पति के साथ फोटो देखा था।
 इरा कार 
                    किनारे रोककर इस मुसीबत से छुटकारा पाना चाह रही थी लेकिन उसकी 
                    पीड़ा और खून देखकर उससे कुछ कहते नहीं बना। वह कार किनारे 
                    करने ही लगी थी कि सेहर विनती करने लगी, ''ऐ बाई, कार इदर मत 
                    रोकने का, वो मवाली फिर इदर आ जाएगा।''इरा ने एक गहरी साँस छोड़ी और कार की गति बनाए रखी। सड़क पार 
                    दूसरी ओर इरा को एक साइन बोर्ड दिखाई दिया जिसे देखते ही उसके 
                    चेहरे पर सन्तोष की आभा फैल गई। साइन बोर्ड एआईआईपीएमआर 
                    अस्पताल का था जो कुछ ही मीटर दूर था। थोड़ा आगे जाने पर 
                    अस्पताल की इमारत भी दिखाई दे गई। वह सोच रही थी कि अस्पताल भी 
                    पास ही मिल गया, अब जल्द ही इस मुसीबत से छुट्टी मिल जाएगी। 
                    उसने सेहर को देखा। सेहर किसी को फोन मिला रही थी।
 ''अस्पताल आ गया।'' इरा बोली।
 सेहर ने भी 
                    अस्पताल की इमारत को देखा। मोबाइल फोन कान पर लगा था। अभी कॉल 
                    लगी नहीं थी। दर्द की अधिकता से उसका चेहरा विकृत होने लगा था 
                    और सिर घूमने लगा था। 
 मिकास रेस्टोरेंट, भूला भाई देसाई रोड़
 ''शायद आप समझ रहे होंगे सर कि मैं आपका गुनहगार हूँ।'' अजीत 
                    कह रहा था, ''लेकिन मुझे जो ठीक लगा मैंने किया और अब भी मुझे 
                    जो ठीक लग रहा है वही कर रहा हूँ।''
 विदित खामोशी से उसे देख रहा था। एकाएक उसे याद आया।
 ''रिपोर्ट...रिपोर्ट कहाँ है? अभी तो उसे नहीं दी न?'' उसने 
                    उत्तेजित स्वर में पूछा।
 अजीत ने प्रतिक्रियास्वरूप अपना बीयर का गिलास उठाया और एक 
                    बड़ा-सा घूँट लिया।
 उसकी प्रतिक्रिया से विदित ने जो अनुमान लगाया वह निराश करने 
                    वाला था।
 ''मेरी पीठ में छुरा घोंपने वाले जरा अपना मेहनताना भी बता 
                    दो।'' वह गुस्से से बोला।
 ''मैंने ये काम फीस के लिए नहीं किया।'' अजीत अभी भी बीयर चुसक 
                    रहा था।
 ''मेरी बीवी से तो ली होगी?'' विदित ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में 
                    कहा।
 ''उनसे भी नहीं।'' अजीत ने धीरे से कहा, ''मेरा मकसद है दोनों 
                    को सच बताकर उसका समाधान करना। मैं किसी को अन्धेरे में नहीं 
                    रखना चाहता था। मैं आपको दिल से अपना दोस्त मानता हूँ और बहुत 
                    इज्जत करता हूँ। मैंने पहले भी कहा, मुझे जो ठीक लगा मैंने 
                    किया।''
 ''अच्छा! सच में ही बहुत...'' वह रुक गया। उसका मोबाइल बज रहा 
                    था।
 स्क्रीन पर 
                    सेहर का नाम और नम्बर चमक रहा था। विदित ने अजीत को देखा। वह 
                    बीयर का अन्तिम घूँट ले रहा था। उसने मोबाइल का हरा बटन दबाया 
                    और कान से लगाया।''हाँ?''
 ''सेठ...सेठ?'' सेहर की डूबी-सी आवाज उसके कानों में पहुँची।
 ''क्या हुआ? बोलो सेहर, क्या हुआ?'' विदित का स्वर थोड़ा तेज 
                    हो गया।
 सेहर का नाम सुनते ही अजीत ने उसे देखा और असहाय भाव से गर्दन 
                    हिलाई।
 ''सेठ, मेरे कू...चाकू मारा किसी ने। भोत खून बहता है सेठ। एक 
                    बाई मेरे कू हस्पताल लेकू आई। अपुन की मदद कर न सेठ। सेठ 
                    सुन...रहा...है।''
 ''सेहर! सेहर! कौन से अस्पताल में है? बताओ मुझे।'' वह अधीरता 
                    से बोला।
 अजीत उलझनतापूर्वक उसे देख रहा था लेकिन विदित उसे नहीं देख 
                    रहा था।
 ''हस्पताल का नाम... बता न... बाई।'' उसे सेहर अस्पष्ट-सी आवाज 
                    आई। शायद उसे ज्यादा चोट आई है। उसे कौन चाकू मार सकता है? वह 
                    अभी सोच ही रहा था कि नई आवाज उसके कानों में पड़ी।
 ''एआईआईपीएमआर अस्पताल है, हाजी अली के सामने। मैं इन्हें 
                    एमरजेन्सी में ले जा रही हूँ, आप इनके जो भी हैं, जल्दी आ 
                    जाइये।'' और फोन कट गया।
 फोन कटने के 
                    बाद भी विदित उसे कान से लगाये रहा। वह असमंजस में था। फोन पर 
                    जो दूसरी आवाज उसने सुनी थी वह इरा की आवाज जैसी थी। पूछना 
                    चाहकर भी वह पूछ नहीं पाया। वह अस्पताल का नाम भी पूरी तरह 
                    नहीं सुन पाया।''क्या हुआ, सर?'' अजीत भी परेशान हो गया।
 ''हाजी अली के पास कौन-सा हॉस्पिटल है?'' मोबाइल को मेज पर 
                    रखते हुए उसने पूछा।
 ''वहाँ तो एआईआईपीएमआर है, क्या हुआ?''
 ''कुछ नहीं। मुझे वहाँ जाना है।'' वह उठ खड़ा हुआ, ''बिल मेरे 
                    आफिस भेज देना।''
 ''सर, आप अभी भी नाराज हैं। आप बाद में सोचेंगे तो शायद आपको 
                    लगेगा कि मैंने जो किया, ठीक किया। मुझ पर भरोसा रखो, सर।'' 
                    अजीत गम्भीरतापूर्वक बोला।
 ''ओके।'' विदित ने अपना मोबाइल फोन उठाया और मुड़ गया।
 ''आपने सेहर का नाम लिया था, कोई प्राब्लम खड़ी हो गई क्या? 
                    मैं साथ आ सकता हूँ अगर कोई दिक्कत न हो तो?''
 विदित ठिठक 
                    गया। फिर पलटकर बोला, ''थैंक्यू।'' और तेजी से बाहर निकल गया।
 एआईआईपीएमआर अस्पताल, लाला लाजपत राय मार्ग
 इरा सेहर को एमरजेन्सी वार्ड में ले गई।
 फोन पर बात करते समय सेहर को चक्कर आ गए थे जिसके कारण इरा ने 
                    फोन पर किसी को अस्पताल के बारे में बताया था। फोन काटकर उसने 
                    उसे डैशबोर्ड पर रख दिया था। सेहर को पकड़कर वार्ड में ले जाने 
                    के कारण वह उसका फोन वहीं भूल गई।
 घाव वास्तव में गहरा था। डाक्टर ने इसे पुलिस केस बताया था। 
                    सेहर ने जब डाक्टर को अपना नाम बताया तो इरा को उसका फोटो वाला 
                    चेहरा याद आ गया। यह वही बाजारू औरत थी जिसके चक्कर में आजकल 
                    उसका पति है। उसने एक आह भरी। क्या अजीब संयोग हुआ है? उसे आज 
                    ही उसके बारे में मालूम हुआ था और आज ही उससे मुलाकात भी हो 
                    गई। जब उसने सेहर और विदित का फोटो देखा था तभी उसके भीतर सेहर 
                    के प्रति नफरत भर गई थी और अब हालात ऐसे हो गए कि वह उसकी जान 
                    बचाने में सहायता कर रही है।
 अब एक मुसीबत 
                    और खड़ी हो गई थी। सेहर का पुलिस केस बन गया था और उसे पुलिस 
                    के आने तक रुकने के लिए कहा गया था। उसने समय देखा। छह बजने वाले थे। उसने पर्स में से मोबाइल 
                    निकाल कर अपने घर फोन लगाया। उसके बच्चे घर में नौकरानी के साथ 
                    थे। उसने बच्चों को कहा भी था कि वह छह बजे तक आ जाएगी। फोन 
                    करने के बाद वह वाहर बिछी बैन्च पर बैठ गई। वह सोच रही थी, 
                    ''अभी तक मैंने खुद को विदित से बात करने के लिए भी तैयार नहीं 
                    किया है। अगर वह मेरा सच जानता है तो मैं भी उसका सच जानती 
                    हूँ। नुकसान दोनों को ही होगा। क्या हमारे बीच इस बारे में बात 
                    हो पाएगी? या हम दोनों ही खामोश रहेंगे?''
 हम दोनों का सच!
 जैसे कुछ चीजें आपके चाहने भर से ही नहीं होने लगती, ऐसे ही 
                    कुछ चीजें न चाहते हुए भी अपने आप होती चली जाती हैं। ऐसा इरा 
                    के साथ हुआ था। अलंकार उसके दूर के रिश्ते में कुछ लगता था जो 
                    उज्जैन के पास देवास में रहता था। पहली बार उसका फोन आया था जो 
                    उसे उज्जैन में इरा की भाभी ने दिया था। उसने बताया था कि वह 
                    ठाणे के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने आया था। और एक बार वह 
                    उससे मिलने चली गई थी, एक औपचारिक रिश्तेदारी निभाने वाली 
                    मुलाकात। उसे अलंकार अच्छा लड़का लगा। उसने अलंकार के बारे में 
                    विदित को भी बताया था जिसे विदित ने भावहीन तरीके से लिया था। 
                    फिर, जो होता गया उसमें गलती किसी की नहीं थी, स्थितियाँ वैसी 
                    बनती गईं।
 अब क्या-क्या 
                    हो सकता है उसमें इरा का दिमाग उलझने लगा। उसे महसूस हुआ जैसे 
                    वह पहेलियों में घुस गई है जहाँ सारे रास्ते एक जैसे लग रहे 
                    हैं। फिर उसे सेहर का खयाल आया। उसके प्रति जो शुरू की नफरत थी 
                    वह सामने हो रही बारिश के पानी की तरह ही बह गई थी। वह तो 
                    लड़की है, वेश्या है, उसका तो काम ही यही है। उसकी कोई गलती 
                    नहीं है, गलती विदित की है जो शादीशुदा और बाल बच्चे वाला होते 
                    हुए भी ऐसे काम कर रहा है। जैसे हवा से बरसते पानी की दिशा बदल 
                    जाती है वैसे ही उसकी नफरत सेहर से शुरू होकर विदित पर आकर रुक 
                    गई।  तभी उसे अपनी 
                    कार का ध्यान आया जिसे सेहर को उतारने के कारण वह गलत पार्क कर 
                    आई थी। वह बैन्च पर से उठी और तेज कदमों से कार की दिशा में चल 
                    दी। कम्पाउण्ड पार कर वह अपनी कार की ओर जाने ही लगी थी कि 
                    तेजी से चलती हुई एक लाल रंग की वैगन आर कार कम्पाउण्ड में 
                    दाखिल हुई। गाड़ी पहचानी हुई सी लगी, नहीं, पहचानी सी नहीं, 
                    पहचानी ही थी। यह विदित की वैगन आर थी। पार्किंग के लिए उसे 
                    आगे से घूम कर आना था इसलिए कार आगे निकल गई। बारिश और काले 
                    शीशे होने के कारण वह विदित को नहीं देख पाई। अभी वह कम्पाउण्ड 
                    के साये में ही थी। उसने पर्स में से मोबाइल निकाला और विदित 
                    का नम्बर मिलाया। वह पशोपेश में थी कि विदित यहाँ कैसे? कहीं 
                    सेहर ने उसे ही तो फोन नहीं लगाया था? कहीं उस बाजारू औरत का 
                    सेठ विदित ही तो नहीं?  ''हाँ, मैं 
                    अभी बिजी हूँ'' फोन उठाते ही विदित की आवाज उसके कानों में 
                    पड़ी, ''थोड़ी देर में करता हूँ। तू पहुँच गई घर?''''मैं रास्ते में हूँ।'' इरा ने धीरे से कहा।
 ''ठीक है।'' उसने फोन काट दिया।
 आज विदित ने फोन उठाते ही ''हाँ जी'' नहीं कहा, अगर कोई और समय 
                    होता तो उसे बहुत अजीब लगता।
 वह अपनी कार के पास पहुँची। सबसे पहले उसने कार मुनासिब जगह 
                    लगाई फिर डैशबोर्ड से सेहर का फोन उठाया।
 ग्यारह मिस कॉल!
 
                    उसने नम्बर देखा। नम्बर विदित का 
                    था जो ''साड़ी वाला सेठ'' के नाम से उसमें फीड था। इरा ने सेहर 
                    के मोबाइल से ही कॉल बैक की। जब कॉल विदित तक पहुँची, वह 
                    एमरजेन्सी वार्ड में दाखिल हो रहा था। उसने फौरन फोन का हरा 
                    बटन दबाया।''कहाँ हो तुम?'' वह अधीरता से बोला।
 ''इरा बोल रही हूँ।''
 ''कौन?'' वह असमंजस स्वर में बोला।
 ''इरा, इरा। अपनी पत्नी की आवाज नहीं पहचान रहे।'' इरा भरसक 
                    अपने स्वर को शान्त करने का प्रयास कर रही थी।
 ''तू!! तेरे पास ये फोन कहाँ से आया? और तू है कहाँ? अस्पताल 
                    में?'' विदित ने उलझे-सुलझे स्वर में कई प्रश्न पूछ लिए।
 ''हाँ, मैं अस्पताल में हूँ। आपकी बाजारू औरत को मैं ही यहाँ 
                    लेकर आई हूँ। बेचारी बहुत घायल है, दीदार कर लो, सहला लो, 
                    कन्सोल कर लो। तुम्हारे इन्तजार में उसकी आँखें पथरा गई हैं।'' 
                    इरा जो दिल में आ रहा था बोले जा रही थी, ''आप सामने दिखाई 
                    दोगे तो उसके दिल को तसल्ली मिलेगी। आखिर आप डेढ़ करोड़ की 
                    आबादी में अकेले जो हो जिसको उसने मुसीबत के समय फोन लगाया। 
                    जाओ, पहुँचों उसके पास...।''
 ''इरा, इरा। मेरी बात सुन। कोई दौरा पड़ गया है? क्या हो गया 
                    तुझे?'' विदित लगभग चिल्लाते हुए बोला।
 ''...उसके दर्द में कमी आएगी, बहता हुआ खून रुक जाएगा। मेरा 
                    यार आ गया है। मेरा साड़ी वाला सेठ आ गया है। फिर आप उस मवाली 
                    को मारने की कसम खाओगे और आँधी-तूफान की परवाह करे बगैर उसे 
                    तलाश करने चल दोगे। जाओ, तुम्हारी सेहर प्रतीक्षा कर रही है। 
                    जाओ...जाओ...।'' उसकी रुलाई फूट पड़ी।
 ''इरा, कहाँ है तू? बता मुझे।''
 इरा नहीं सुन 
                    रही थी। वह सिर्फ रो रही थी। कुछ पल तक विदित को उसके रोने की 
                    आवाज सुनाई देती रही फिर फोन कट गया।विदित ने कॉल बैक की। घण्टी बजती रही...बजती रही।
 विदित सेहर को भूल चुका था। उसे इरा की चिन्ता हो रही थी। इस 
                    अजीत के बच्चे ने कैसी मुसीबत खड़ी कर दी थी। वह बारिश में 
                    भीगता हुआ इरा की सफेद आल्टो खोजने लगा। जल्दी ही उसने कार 
                    ढूँढ ली। इरा ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई थी। उसने शीशा 
                    खटखटाया। इरा ने सिर उठाया और शीशा नीचे किया।
 ''इरा, घर चलो।'' विदित बोला।
 इरा अब तक शान्त हो चुकी थी। रोेने से जी हल्का हो गया था। वह 
                    बिना कुछ कहे बाहर निकली। अब दोनों बारिश में भीग रहे थे।
 ''जो भी कुछ हुआ है उस बारे में हमें जो भी बात करनी है, घर पर 
                    करते हैं। ठीक है?'' विदित बोला।
 इरा ने कोई उत्तर नहीं दिया।
 ''तू घर चल। मैं अपनी गाड़ी लेकर आता हूँ।''
 ''नहीं जा सकती। उस लड़की का पुलिस केस बन गया है, पुलिस के 
                    आने तक रुकना पड़ेगा।'' उसने धीरे से कहा और बारिश से बचने के 
                    लिए कम्पाउण्ड की ओर चल दी।
 ''पुलिस से मैं निपट लूँगा, तू जा।'' विदित भी पीछे लपका।
 ''पुलिस से मैं निपट लूँगी, आप जाओ।'' कम्पाउण्ड में आने के 
                    बाद उसने कहा, ''मैंने कुछ नहीं किया। मैं सिर्फ उसे लेकर आयी 
                    हूँ। मुझे पुलिस से बचने की जरूरत नहीं है।''
 विदित 
                    निरुत्तर हो गया। ''मैं साथ रहूँगा।'' फिर उसने कहा।
 ''लेकिन मैं नहीं चाहती कि आप मेरे साथ रहें।'' उसने स्प 
                    शब्दों में कहा और आगे बढ़ गई।
 विदित पशोपेश में वहीं खड़ा रहा और इरा को जाते देखता रहा। कुछ 
                    देर में वह नजरों से ओझल हो गई। वह खाली नजरों से अस्पताल की 
                    इमारत, उसमें घूमते अस्पतालकर्मी, डॉक्टर और लोगों को देखता 
                    रहा।
 कुछ बातों का 
                    छिपा रहना ही हमारे लिए अच्छा होता है, जो खामोश कहीं दबी रहती 
                    है लेकिन उनके सामने आते ही समस्यायें शुरू हो जाती हैं। जो हो 
                    रहा था उसकी शुरुआत उसने की थी और अन्त? और अन्त कौन करेगा? या 
                    भीतर ही कहीं अटक जाएगा जो एहसास दिलाता रहेगा कि गलतियों का 
                    परिणाम भुगतना ही पड़ता है चाहे वह किसी रूप में हो। इरा सेहर के 
                    पास पहुँची। उसके जख्म पर पट्टी बँध चुकी थी और उसे दो-तीन 
                    इन्जेक्शन दिये जा चुके थे। उसका चेहरा नुचड़ा हुआ लग रहा था। 
                    वह बैड पर करवट लेकर लेटी हुई थी। इरा को देख वह हल्का-सा 
                    मुस्कराई। ''अब कैसी तबीयत है?'' इरा ने आत्मीयता से पूछा।
 ''मैं ठीक है, मेडम। अब बरोबर है बस थोड़ा दुखता है।'' सेहर 
                    क्षीण स्वर में बोली।
 ''लगा है तो दुखेगा भी। तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगी।'' इरा ने 
                    पर्स खोलकर सेहर का मोबाइल फोन निकाला और उसकी ओर बढ़ाया, 
                    ''तुम्हारा सेठ तो अभी आया नहीं।''
 ''बारिश में... कहीं अटक गया होयेंगा।'' सेहर ने मोबाइल ले 
                    लिया और हिचकते हुए कहा।
 ''सेठ तुमको कितने पैसे देता है?'' इरा ने उसकी आँखों में 
                    झाँकते हुए पूछा।
 ''बोले तो?...क्या?'' सेहर समझ नहीं पाई कि ये अजनबी महिला 
                    क्या कहना चाह रही है।
 ''मैं पूछ रही हूँ तुम्हारा ये वाला सेठ तुम्हें कितने पैसे 
                    देता है, एक बार में।'' इरा ने एक-एक शब्द को साफ-साफ और जोर 
                    देते हुए कहा।
 ''तुम्हेरे को मालम मय क्या करती?'' वह हैरानी से बोली।
 इरा ने सहमति में सिर हिलाया।
 ''कायकू 
                    पूछती? और अपुन नेई बोले तो?''''कोई जरूरी नहीं।'' इरा ने दृढ़तापूर्वक कहा, ''मुझे नहीं पता 
                    वो सेठ तुमको क्या देता था पण मेरे पास तीन हजार रुपये हैं। 
                    सेठ की तरफ से आज की तुम्हारी फीस मैं भरूँगी।'' कहते हुए उसने 
                    पर्स खोला और उसमें से पाँच सौ के कुछ नोट सेहर के हाथ में 
                    जबरदस्ती ठूँस दिए। सेहर की आँखों में आश्चर्य ठहर गया था।
 ''आज के बाद वो सेठ तुम्हारे पास नहीं आयेगा।'' इरा बोली, 
                    मुड़ी और बाहर की ओर चल पड़ी।
 सेहर से कुछ कहते नहीं बना। वह जड़ अवस्था में उस अजनबी महिला 
                    को जाते देखती रही।
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