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                     ''तेरे को 
                    मेइच मिली थी मिस कॉल छोड़ने कू?'' साड़ी, मोबाइल, छाता, पर्स 
                    और खुद को भीड़ में सँभालती हुई वह बोली, जिसका नाम सेहर है। ''अरे पइसा किदर इदर? साला इदर बैलेन्स डालो उदर फुर्र।''
 ''फालतू सयानपन्ती नईं समझा न और मेरा बैलेन्स काये कू 
                    बिगाड़ने का? किस वास्ते मिलाया जल्दी बोल।''
 ''कायकू चिनता करती, तू तो पइसे वाली है न, क्या?''
 ''तेरे को मालूम न, मालूम न मैं कइसे कमाती। काम बोलने का या 
                    मैं काटती।''
 ''तेरे वास्ते गुड न्यूज है तबीच मिलाया मैं फोन।''
 ''तो टाइम क्यों खोटी करने का। दे गुड न्यूज।''
 ''तेरा चाचा अक्खा फैमली के साथ हाजी अली चौराहे पर है आजकल।''
 ''पण मेरे कू तो खबर लगा था कि वो भाण्डुप में कहीं है और किसी 
                    नशेपानी के धन्धे में है।''
 ''इसका मेरे कू मालम नेई पण हाजी अली का खबर बरोबर है। वो 
                    भाण्डुप में हो या अक्खा मुम्बई में पण वो हाजी अली जरूर 
                    मिलेंगा, क्या?''
 ''सालिड खबर है न या तेरी खाली पीली की भंकस?'' सेहर उत्तेजित 
                    स्वर में बोली।
 ''बरोबर सालिड। बोले तो सलमान खान का बाडी जैसा सालिड।'' उधर 
                    से हँसते हुए कहा गया।
 ''अगर खबर बरोबर होयेंगा न तो तेरा बैलेन्स पक्का।'' उसने कहा 
                    और फोन काट दिया।
 ''आज का प्रोग्राम खल्लास करना पडेंग़ा।'' वह बड़बड़ाई।
 स्टेशन से 
                    बाहर निकलते ही उसने छाता खोल लिया। चेहरे पर उसके ऐसे भाव थे 
                    कि साफ पता चलता था कि आज उसके चाचा की खैर नहीं। और विदित का 
                    क्या होगा? केशव राव 
                    खड्ये मार्गविदित ने अपनी कलाई घड़ी में समय देखा। सवा चार हो रहे थे। 
                    उसकी कार का चेहरा स्टेशन वाली सड़क की ओर था। सेहर यहीं से 
                    आने वाली थी। पाँच मिनट पहले ही वह यहाँ पहुँचा है। बारिश अभी 
                    हल्की थी मगर अब तेज हो गई थी। उसका नाम विदित राय है और वह 
                    दादर स्थित एक एक्सपोर्ट हाउस में ऊँचे पद पर काम करता है। 
                    इसके अलावा वह शेयर बाजार में भी अपनी किस्मत आजमाता है। वह 
                    सिवरी में पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता है।
 सेहर से उसकी 
                    पहली मुलाकात करीब आठ महीने पहले एक बार में हुई थी जहाँ उसका 
                    एक दोस्त उसे लेकर आया था और तभी उसे मालूम हुआ था वह धन्धे 
                    वाली है, सस्ती धन्धे वाली है। मगर उसमें एक कशिश थी, कातिल 
                    कशिश, और, और भी कुछ था जिसकी वजह से वह उस पर मोहित हो गया 
                    था। अगले ही दिन उसने सेहर को बुक कर लिया था। उसने पत्नी के 
                    अलावा बहुत-सी औरतों के साथ रात गुजारी है मगर पैसा देकर औरत 
                    का साथ उसने उस दिन पहली बार हासिल किया था। पहला साथ उसे बेहद 
                    पसन्द आया था क्योंकि वह उसके टेस्ट की लड़की थी। फिर वह अक्सर 
                    उसे बुलाने लगा था। ऐसा नहीं था कि उसे अपनी पत्नी अच्छी नहीं 
                    लगती थी या वह उसकी शारीरिक पूर्ति नहीं कर पाती थी, बस उसे 
                    बाहरी औरतों का शौक लगा हुआ था। अपने आफिस की भी कई महिलाओं के 
                    साथ वह सम्बन्ध बना चुका था। लेकिन पिछले एक महीने से वह परेशान था। पिछले महीने वह एक 
                    लड़की के साथ डॉ. एनी बेसेन्ट रोड़ स्थित अतरिया मॉल में था। 
                    जहाँ वह लड़की तीसरे लेवल के एक शोरूम से कुछ खरीदारी कर रही 
                    थी। वह उसकी खरीदारी से बोर होता हुआ बाहर आ गया था और रेलिंग 
                    के किनारे पर खड़ा होकर नीचे झाँक रहा था। नीचे जो उसने देखा 
                    तो उसके होश उड़ गए। उसने देखा पहले लेवल पर उसकी पत्नी इरा 
                    किसी गैर मर्द की बाहों में बाहें पिरोये घूम रही है। वह हैरान 
                    रह गया कि उसकी मासूम-सी दिखने वाली बीवी किसी के साथ मौज मार 
                    रही थी। अपने खौलते खून को काबू करता हुआ वह तुरन्त उस लड़की 
                    के पास पहुँचा और जरूरी काम का हवाला देकर वहाँ से विदा हो 
                    गया। उस दिन वह समय से जल्दी घर पहुँचा था तो इरा खाना बना रही 
                    थी। बच्चों की स्कूल की छुट्टी थी तो वे अपनी नानी के यहाँ गए 
                    हुऐ थे। उसने इरा से पूछा था।
 ''आज क्या 
                    किया दिन भर?''''आज तो दिन भर लेटी रही, सरदर्द था।'' उसने मासूमियत से कहा।
 ''अब कैसा है?'' उसने भी मासूमियत भरे स्वर में पूछा।
 ''ठीक है अब।'' इरा ने जवाब दिया और उसके लिए चाय का पानी 
                    चढ़ाने लगी।
 ठीक तो होगा 
                    ही, यार के साथ मॉल की हवा जो खाकर आई है। उसने मन ही मन सोचा।उसकी विचारधारा टूटी। उसका मोबाइल बज रहा था। नम्बर अजीत का 
                    था। अजीत प्राइवेट जासूस है। उसने इरा के आशिक के बारे में 
                    मालूमात करवाने के लिए अजीत की सेवाएँ ली थी।
 ''हाय अजीत, 
                    हाउ आर यू?'' विदित ने फोन ऑन करते ही कहा।''फाइन। रिपोर्ट तैयार है। कहाँ दूँ, सर?''
 ''मैं आपके आफिस से कल क्लैक्ट कर लेता हूँ।'' वह सेहर के शरीर 
                    की कल्पना करता हुआ बोला।
 ''एक्चुली, मैं आज ही देना चाहता हूँ। कल मैं फुल वीक के लिए 
                    पुणे जा रहा हूँ। और...कुछ खास बात भी है।'' अजीत की गम्भीर 
                    आवाज उसके कानों के रास्ते भीतर उतर गई।
 ''क्या खास बात?'' वह भी गम्भीर हो गया।
 ''ये बात तो मिलकर ही बतायी जायेगी। आप कहाँ पर हो?''
 ''रेसकोर्स।''
 ''क्या घोड़ों का शौक भी रखते हैं? और हमें मालूम भी नहीं।''
 ''अरे नहीं। रेसकोर्स के बाहर हूँ, वेटिंग फॉर समबॉडी। और फिर 
                    ऐसी बरसात में कहाँ घोड़े दौड़ रहे होंगे?''
 ''तो आप तो पास ही हो। मैं यहाँ पेडर रोड़ पर हूँ। ऐसा करते 
                    हैं महालक्ष्मी मन्दिर के पास एक रेस्तरां है मिकास। वहाँ 
                    मिलते हैं। अभी चार पैंतीस हुए हैं। पाँच बजे ठीक रहेगा?''
 विदित सोचने 
                    लगा। सेहर का क्या होगा? कुछ देर वेट कर लेगी गाड़ी में।''रिपोर्ट क्या है?'' उसने अजीत के सवाल पर अपना सवाल लाद 
                    दिया।
 ''रिपोर्ट तो ओके है, सर। मगर उससे जुड़ी कोई बात बहुत सीरियस 
                    है।''
 ''कोई लफड़ा है क्या?''
 ''ऐसा ही समझो।''
 ''अच्छा! तो ठीक है, पाँच बजे मिकास में मिलते हैं। ये मिकास, 
                    मन्दिर के पास ही है न?''
 ''जी हाँ। मेन रोड़ पर ही है, भूला भाई देसाई रोड़ पर। हीरा 
                    पन्ना टि्वन बिल्डिंग्स के सामने।''
 ''ओके दैन। सी यू।''
 ''बाय सर।'' अजीत ने दूसरी ओर से कहा और फोन काट दिया।
 क्या बात हो 
                    सकती है जो वह फौरन मिलना चाहता है? इसके साथ-साथ वह सोच रहा 
                    था कि सेहर का प्रोग्राम कैन्सल करना पड़ेगा। ऐन वही बात जो 
                    स्टेशन से बाहर निकलती हुई सेहर सोच रही थी। जिस बारिश के कारण 
                    उसने सेहर को बुलवाया था और जो उसे रोमान्चित, आनन्दित कर रही 
                    थी वही अब परेशान करने लगी। फिर उसने दिल को तसल्ली दी कि सेहर 
                    तो हमेशा उपलब्ध है, फिर बन जाएगा प्रोग्राम।तभी किसी ने उसकी कार का शीशा खटखटाया।
 सेहर थी। 
                    सेहर ने उसकी बगल में बैठने के बाद छाता बाहर की बाहर बन्द 
                    किया और उसे कार के फर्श पर डाल दिया और दरवाजा बन्द किया। 
                    उसके बाद वह मुस्कराहट भरे चेहरे के साथ उसकी ओर पलटी और बोली, 
                    ''कइसा है मेरा सेठ?''बौछारों से भीगा उसका साँवला मुस्कराता चेहरा देख विदित खुश हो 
                    गया। एक पल को वह सब कुछ भूल गया। उसने उसे अपनी ओर खींचा और 
                    उसके गाल को चूमा और छोड़ दिया।
 ''मालूम हो 
                    गया कैसा हूँ मैं?'' वह शरारतपूर्ण स्वर में बोला।''सेठ, तू कभीच नईं बदलेंगा।'' सेहर भी उसी स्वर में बोली।
 ''मैं बदलने के लिए नहीं बना हूँ, डियर। और तुम साड़ी में बहुत 
                    हसीन लगती हो। मेरे लिए ही पहनी है न?''
 ''तुम्हेरे वास्ते सेठ, सिर्फ तुम्हेरे वास्ते।'' उसने सहमति 
                    में सिर हिलाते हुए मुदित स्वर में कहा, ''मेरे कू तेरी भोत 
                    सारी बातें अच्छी लगती हैं। तू औरों की माफिक नोंच खसोच नेई 
                    करता, तू औरों की माफिक रकम की पाई पाई वसूल नेई करता।''
 ''साली, मेरे को चलाती है। बहुत चालू आइटम है तू।'' विदित ने 
                    हँसते हुए कहा।
 ''मैं बरोबर सच्ची बोलती रे, आई शपथ।'' उसने गले की घण्टी को 
                    ऐसे छुआ जैसे उसकी माँ वहीं बैठी हो।
 विदित ने कार 
                    स्टार्ट की।''सेठ, एक बात पूछने का था अपुन को।'' उसकी मुस्कराहट का स्विच 
                    ऑफ हो गया और स्वर भी बुझ सा गया, ''मेरे को हाजी अली चौराहे 
                    पर कुछ काम... अगर टैम का तोड़ा न हो तो मेरे को कुछ देर वहाँ 
                    रुकना माँगता?''
 ''क्या काम है?'' उसने पूछा। उसे भी तो वहीं काम था। दोनों की 
                    मन्जिल आसपास ही थी।
 ''परसनल करके थोड़ा।'' सेहर ने हल्के से हिचकते हुए कहा। 
                    ग्राहक है, बल्कि प्रिय ग्राहक है, बिदकना भी तो नहीं चाहिए।
 ''ज्यादा टाइम तो नहीं लगेगा।''
 ''ज्यासती कमती तो उदरिच मालूम होयेंगा। पण तुम इदर से हिलेगा 
                    तबी तो।'' वह बोली, ''अगर कोई लफड़ा न हुआ तो... वरना तो 
                    प्रोग्राम खोटा होयेंगा।''
 विदित कुछ 
                    नहीं बोला। उसने कार स्टार्ट की और कार आगे रोड़ पर डाल दी। 
                    रोड़ सीधा हाजी अली चौराहे पर जा रहा था। क्या संयोग था? इसका 
                    भी कोई लफड़ा और उसका भी कोई लफड़ा।सेहर ने भी उससे नहीं पूछा कि प्रोग्राम खोटा होने के बारे में 
                    उसने कोई सवाल नहीं किया। आज सेठ का मूड कुछ खराब लग रहा है। 
                    दोनों चुपचाप रहे। दोनों की खामोशी को रेडियो मिर्ची तोड़ रहा 
                    था। अभिनव बिन्द्रा ने ओलम्पिक में गोल्ड मैडल जीता है, उसकी 
                    चर्चा हो रही थी। विदित ने कार आगे रोड़ पर बढ़ा दी।
 बरसात की वजह 
                    से सड़क पर ट्रैफिक धीमा चल रहा था। ''क्या हुआ सेठ?'' उसने उसकी ओर देखते हुए पूछा, ''कोई लोचा?''
 ''नहीं...। शायद...।'' वह अनिश्चय स्वर में बोला।
 सेहर ने जिद नहीं की। उसे मालूम है कि कब क्या करना चाहिए। कब 
                    क्या कहना चाहिए।
 हाजी अली 
                    चौराहा''इण्डिया को गोल्ड! इण्डिया को गोल्ड!!''
 एक दस-ग्यारह साल की लड़की चौराहे पर लाल बत्ती पर रुके वाहनों 
                    के बीच बारिश में भीगती हुई, पॉलीथिन में शाम के अखबारों का 
                    पुलन्दा लिए चिल्लाती घूम रही थी। अभिनव बिन्द्रा ने चीन 
                    ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता है, लड़की उसी खबर को कैश करती 
                    हुई अखबार बेचने का प्रयास कर रही थी।
 ''इण्डिया को 
                    गोल्ड! इण्डिया को गोल्ड!!''बारिश अब फिर से हल्की हो गई थी। विदित की कार भी उसी जगह रुकी 
                    थी जिस ओर वह लड़की अखबार बेच रही थी।
 ''वो सामने चौराहा है, तुम्हें यहाँ उतरना है क्या?'' उसने 
                    सेहर से पूछा।
 ''बरोबर सेठ, बिना उतरे तो कामिच नई होना।'' उसने दरवाजा खोलने 
                    के लिए हाथ बढ़ाया, ''तुम मेरे को बाजू वाली सड़क के किनारे पर 
                    मिलने का। बरोबर?''
 ''सुनो।'' विदित बोला, ''मुझे भी महालक्ष्मी मन्दिर के पास कुछ 
                    काम है, तो जो पहले फ्री होगा वो दूसरे को कॉल कर लेगा। ठीक 
                    है?''
 सेहर ने 
                    सहमति में सिर हिलाया और उतर गई। उसकी कार ट्रैफिक में खड़ी 
                    रही। रश अधिक था, चौराहा पार करते-करते ही पाँच बज जाने थे। 
                    तभी उसका मोबाइल फोन बजा। इरा का फोन था।सेहर ने सीधे अखबार बेचने वाली लड़की की ओर रुख किया। लड़की 
                    एक-एक कार का दरवाजा खटखटाकर अखबार बेचने की कोशिश कर रही थी।
 ''ऐ इदर आ।'' 
                    सेहर चिल्लाई, ''ऐ...  ये बाजू।''लड़की ने आवाज की दिशा में देखा। नीले छाते के नीचे मौजूद सेहर 
                    को देखते ही उसके चेहरे पर हैरानी के भाव आए। लड़की के देखते 
                    ही सेहर ने उसे अपनी ओर आने का इशारा किया। लड़की ने उसके पास 
                    आने की कोई कोशिश नहीं की।
 ''इण्डिया को गोल्ड! इण्डिया को गोल्ड!! इण्डिया को गोल्ड!!!'' 
                    लड़की ने अपनी आवाज तेज कर दी और सेहर से विपरीत दिशा में जाने 
                    लगी।
 सेहर के चेहरे के भाव बदले और वह उसके पीछे लपकी। जल्द ही उसने 
                    उसे पकड़ लिया।
 ''इण्डिया को तो वो छोकरा गोल्ड दे दिया पण तेरे को क्या 
                    मंगता? कायकू गला फाड़ के चिल्लाती? तेरे कू क्या मिल रेला है 
                    ये भीगेले पेपर की बदली? साला, मुम्बई का अक्खा लोक मैडल मैडल 
                    ही चिल्ला रेला है।'' सेहर उस लड़की से बोली।
 ''छोड़ मेरे कू अबी। मेरे को पेपर बेचने का है।'' लड़की उससे 
                    छूटने का प्रयास करती हुई बोली।
 ''अबी तो तू पेपर बेच रेली है पण बाद में क्या बेचगी? मेरे 
                    माफिक अपना तन?'' सेहर कह रही थी, ''वो तेरे कू भी वोइच 
                    बनायेंगा जो मेरे कू बनाया। क्या?''
 लड़की उसकी 
                    पकड़ से छूटने को कसमसा रही थी। ''मैं भी तेरी माफिक पिछली बार येइच चार साल पेले इण्डिया को 
                    सिलवर-इण्डिया को सिलवर गल्ले को निकाल-निकाल कर पेपर बेची थी 
                    पण मिला क्या? कुछ नई। ये दुनिया बड़ी हरामी साली। क्या?''
 ''मेरे को नई जमती तेरी बात। छोड़ मेरे कू।'' लड़की छोड़ने की 
                    रट लगा रही थी।
 ''छोड़ तो मैं देगी, मेरे कू बता, तेरा बाप किदर है?''
 ''वो सामने जूस वाले की बाजू में आई बैठेली है, उसको पूछ।''
 सेहर ने लड़की की बताई दिशा में देखा। उसे सिर्फ चलते हुए, 
                    रुके हुए वाहन ही वाहन दिखाई दे रहे थे, उनके पीछे किस्तों में 
                    जूस वाला तो दिख जाता था पर उस लड़की की मां नहीं।
 ''मेरे कू छोड़ न।'' लड़की फिर उसकी पकड़ में छटपटाई। सेहर ने 
                    अपनी पकड़ ढीली कर दी। लड़की छूटी और इण्डिया को गोल्ड का नारा 
                    बुलन्द करती रुके हुए वाहनों के बीच गुम हो गई। लाल बत्ती के 
                    हरा होने के बीच का ही अल्प समय उसकी दुकानदारी का समय है। इस 
                    अल्प समय में अधिक से अधिक अखबार या अन्य वस्तुएं बेचना ही 
                    उसकी काबलियत होगी, उसकी सेल्समेनशिप होगी।
 सेहर लाला लाजपत राय पार्क के सिरे से गुजरती हुई जूस वाले की 
                    ओर चल पड़ी जिसके पहलू से हाजी अली दरगाह को रास्ता जाता है।
 कॉफी कैफे 
                    डे, पेडर रोड़प्राइवेट जासूस को गए दस मिनट हो गए थे मगर वह अभी भी वहीं 
                    बैठी हुई थी। टेबल पर दो बड़े लिफाफे रखे थे जिनके एक कोने में 
                    ''स्पाई आई'' और उसके नीचे वर्ली का एक पता और फोन नम्बर लिखे 
                    थे। वे दो लिफाफे नहीं, पलीते में आग लगे बम थे।
 वह उदास है। उसका नाम इरा है। टेबल पर प्राइवेट जासूस अजीत की 
                    जो रिपोर्ट पड़ी थी, देख चुकी थी। एक लिफाफे में उसके प्रिय और 
                    वफादार पति विदित की करतूतों का चिट्ठा था। उसमें विदित के 
                    विभिन्न फोटो थे जिसमें वह तीन लड़कियों के साथ था। उसमें से 
                    एक लड़की तो साफ-साफ बाजारू लग रही थी, लग क्या रही थी, थी। 
                    लड़की की डिटेल में उसका नाम सेहर था और धन्धा वेश्यावृत्ति 
                    लिखा था। उसे समझ नहीं आ रहा था उसमें ऐसी क्या कमी आ गई थी 
                    जिससे वह बाजारू औरतों के पास भी जाने लगा था। पता नहीं ये 
                    एडवेन्चर था या मौज-मस्ती, सोच-सोचकर उसका दिमाग भन्ना गया था। 
                    और दूसरे लिफाफे में...
 कॉफी बहुत 
                    पहले खत्म हो चुकी थी। अपने भन्नाये हुए दिमाग को काबू करने के 
                    लिए उसने एक कॉफी का और ऑर्डर दिया।अपने पति के पीछे जासूस उसने कोई एकाएक नहीं लगाया था। उसके 
                    बहुत से कारण थे, जैसे विदित का लगातार झूठ बोलना, होना कहीं 
                    और पर बताना कहीं और, एक की जगह तीन मोबाइल फोन रखना, उनकी कॉल 
                    लॉग्स, एसएमएस वगैरह वगैरह। कोई पन्द्रह-बीस दिन पहले उसने 
                    अखबार में से देख अजीत नाम के प्राइवेट जासूस को हायर किया था। 
                    उसकी रिपोर्ट उसे सन्तोषजनक लगी थी लेकिन उसने अभी यह नहीं 
                    सोचा था कि इस रिपोर्ट का वह क्या और कैसे इस्तेमाल करेगी? 
                    फिलहाल उसे ये तसल्ली थी कि उसका शक सही निकला था लेकिन तसल्ली 
                    ही काफी नहीं थी, उस पर पलट वार हो गया था।
 शीशे के पार 
                    उसे पेडर रोड़ और बरसती हुई बरसात दिखाई दे रही थी। बरसात उसे 
                    सदा से रोमांचित करती है। शादी से पहले वह उज्जैन रहती थी, 
                    बरसात के मौसम का जैसे वह इन्तजार करती थी। मगर मुम्बई की 
                    बरसात अच्छी तो है लेकिन खतरनाक भी है। उसे जुलाई दो हजार पाँच 
                    की बरसात याद है जिसमें न जाने कितने लोग मारे गए थे। उसकी याद 
                    आते ही शरीर में झुरझुरी आ गई। लेकिन मुम्बई की बरसात उसे 
                    रोमांचित नहीं करती और आज की बरसात तो उसे मानसिक रूप से भी 
                    परेशान कर रही है।  उसने एक आह 
                    भरी। मेज पर पड़े दोनों लिफाफे उठाकर उसने अपने पर्स में रखे। 
                    दूसरा लिफाफा अधिक खतरनाक था। लिफाफे रखते समय उसे मोबाइल 
                    दिखाई दिया। उसने मोबाइल निकाला और विदित को फोन लगाया। तभी 
                    वेटर कॉफी रख गया।''हाँ जी?'' दूसरी ओर से विदित ने कहा। वह उसके फोन के जवाब 
                    में हमेशा ''हाँ जी'' कहता है।
 ''क्या कर रहे हो?'' उसने पूछा।
 ''ट्रैफिक जाम में फँसा हूँ, उससे निकलने की कोशिश कर रहा 
                    हूँ।'' उसने जवाब दिया, ''बोल?''
 ''बाजू में कौन है?''
 ''बाजू में कौन है? मतलब?'' विदित का उलझा स्वर उसके कानों में 
                    पड़ा।
 ''वैसे ही पूछा। अकेले जा रहे हो?'' वह अपने स्वर को सन्तुलित 
                    करने का भरसक प्रयास कर रही थी।
 ''मैं अकेले जा रहा हूँ। आफिस के काम से जा रहा हूँ। मीटिंग के 
                    लिए जा रहा हूँ। और? विदित झल्ला गया, ''वैसे, क्या हुआ तुझे? 
                    तू कहाँ है?'' उसे अजीब लगा कि इरा बड़ा अटपटा सवाल कर रही थी।
 ''मैं...मैं मार्किट में हूँ। तुम्हारी याद आई तो फोन किया।''
 ''बारिश में कहाँ मार्किट घूम रही है? अच्छा..., ठीक है मैं 
                    काटता हूँ। ट्रैफिक खुल रहा है। ठीक है?''
 ''हूँ।'' इरा धीरे से बोली और फोन काट दिया और कॉफी की ओर 
                    आकडि्र्ढत हुई। विदित से हुई बातों से तो लग रहा था जैसे उसे 
                    कुछ मालूम ही न हो।
 ''यह बात मेरे धन्धे से मेल नहीं खाती फिर भी मैं आपको एक राज 
                    की बात बताता हूँ।'' अजीत ने चलते समय दूसरा लिफाफा निकालकर 
                    मेज पर रखते हुए रहस्यमय स्वर में कहा था, ''आपके हसबैण्ड को 
                    मैं पहले से जानता हूँ क्योंकि उनसे मेरे अच्छे बिजनेस टर्म्स 
                    हैं लेकिन जो रिपोर्ट आपको दी है उसके बारे में मैं भी नहीं 
                    जानता था...''
 वह समझ नहीं 
                    पा रही थी कि अजीत क्या कहना चाह रहा है।''...मैं आपको इन्कार भी कर सकता था लेकिन धन्धा धन्धा है और 
                    ग्राहक ग्राहक। इस बात का मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस 
                    रिपोर्ट में मैंने उनका कोई फेवर नहीं लिया। रिपोर्ट उतनी ही 
                    सच्ची है जितनी धरती और आकाश।''
 इरा के चेहरे पर अभी भी उलझन के भाव थे।
 ''जिस समय विदित की जासूसी की जा रही थी, उसी समय आपकी भी 
                    जासूसी हो रही थी जो विदित करवा रहे थे।'' कहते समय अजीत का 
                    स्वर सामान्य से और धीरे हो गया था।
 ''क्या?'' इरा को जबरदस्त झटका लगा था।
 ''जी हाँ।'' उसने दूसरे लिफाफे की ओर इशारा करते हुए अर्थपूर्ण 
                    स्वर में कहा, ''इसमें आपकी रिपोर्ट है।''
 वह हैरानी से उस लिफाफे को देख रही थी जिसका ''स्पाई आई'' का 
                    लोगो उसे घूर रहा था।
 ''क्या... इस...इसके...'' इरा से बोला नहीं गया।
 ''कुछ मत कहिए। कोई जरूरत भी नहीं है। सिर्फ सोचिए।''
 इरा खाली निगाहों से लिफाफों को देखती रही।
 ''यह मेरे धन्धे के खिलाफ है लेकिन मेरा आपको बताने का मकसद 
                    सिर्फ यही है कि विदित से मेरे बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं और मैं 
                    नहीं चाहता कि उनके वैवाहिक सम्बन्धों को कोई नुकसान पहुँचे। 
                    आप दोनों एक दूसरे का सच जान गए है, अगर हो सके तो एक बुरा 
                    सपना या बुरा दौर समझ कर इसे भुला दीजिएगा, बाकी आप समझदार 
                    हैं। गुडबाय भाभी जी।'' पहली बार अजीत के मुँह से ''भाभी'' 
                    शब्द बहुत अजीब लगा।
 ''और हाँ 
                    भाभी जी, जो आपने मुझे एडवान्स दिया था वो रकम लिफाफे में रखी 
                    है। फीस के बदले में मैं आपके घर में सुख और शान्ति चाहूँगा। 
                    गुडनाइट।''कॉफी खत्म हो चुकी थी। उसने वेटर को इशारा किया।
 अनिश्चय से घिरी कुछ देर बाद वह उठ खड़ी हुई। उसकी कार सामने 
                    ही खड़ी थी।
 मिकास 
                    रेस्टोरेंट, भूला भाई देसाई रोड़ विदित जब वहाँ पहुँचा तो अजीत 
                    को उसने कोने की मेज पर विराजमान पाया। उसके सामने बीयर भरा 
                    आधा गिलास, किंगफिशर की बोतल और मूँगफली की कटोरी थी। अजीत का 
                    ध्यान अपने मोबाइल फोन पर था। विदित उसकी ओर न जाकर टॉयलेट की 
                    ओर चला गया। कुछ देर बाद वह लौटा। बीयर की मात्रा में कोई अन्तर नहीं आया 
                    था। इस समय अजीत फोन पर किसी से बात कर रहा था।
 ''हैलो।'' विदित ने उसके पास पहुँचकर अपना हाथ आगे बढ़ाया। 
                    अजीत ने उसे देखा, मुस्कराया और हाथ मिलाने के लिए खड़ा हुआ। 
                    हाथ मिलाते हुए फोन काटा और बोला, ''कैसे हैं सर?''
 ''फाइन।'' वह उसके सामने बैठते हुए बोला, ''आप तो शायद यहीं 
                    बैठे हुए थे।'' बीयर पर निगाहें डालते हुए उसने अर्थपूर्ण स्वर 
                    में कहा।
 ''अरे नहीं सर। मैं बस थोड़ी ही देर पहले ही पहुँचा हूँ।'' वह 
                    हँसते हुए बोला, ''अभी तो दो घूँट ही लगाये हैं। आप?''
 ''बिल्कुल। नेकी और पूछ-पूछ। पूरी मुम्बई में झमाझम पानी बरस 
                    रहा है मगर यहाँ गले सूखे पड़े हैं।''
 दोनों हँसे। अजीत ने वेटर को गिलास लाने का इशारा किया।
 विदित गम्भीर 
                    हुआ। ''क्या समस्या है, अजीत साहब।''
 ''पहले गला तो गीला करो, सर। फिर बात करके हैं।''
 गिलास आने, बीयर गिलास में डलने और उसका तृप्तिपूर्ण ढ़ंग से 
                    विदित का घूंट लगाने तक दोनों में से कोई नहीं बोला।
 ''प्रोसीड।'' विदित ने अधीरता से कहा।
 अजीत तैयार 
                    था। बिना कोई भूमिका बनाये उसने कहना आरम्भ किया।''सर, रिपोर्ट तैयार है जो मेरे बैग में पड़ी है।'' कहते हुए 
                    उसने अपने पैरों के पास रखा एक्सीक्यूटिव बैग उठाया और उसमें 
                    से एक वैसा ही लिफाफा निकालकर मेज पर रख दिया जैसा वह अभी 
                    थोड़ी देर पहले इरा को देकर आया था, ''पहले आप रिपोर्ट देखेंगे 
                    या...'' अजीत ने धीरे से वाक्य को रहस्य में लपेट पर अधूरा 
                    छोड़ दिया।
 विदित का हाथ लिफाफे पर पहुँच चुका था पर वह लिफाफे पर ही रुक 
                    गया।
 ''यार, क्या 
                    सस्पैंस है?'' उसने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।''सस्पैंस कुछ नहीं, संयोग है। ये संयोग भी बड़ी अजीब चीज होती 
                    है, सुख और दुख दोनों उससे जुड़े होते हैं पर किसके हिस्से में 
                    क्या आता है यह वही जानता है, जो इस संयोग से गुजरता है।''
 ''आप क्या कहना चाह रहे हैं?'' विदित ने उलझनपूर्ण स्वर में 
                    कहा।
 ''इन शॉर्ट सर, मैं बताना तो नहीं चाहता क्योंकि ये मेरे धन्धे 
                    के खिलाफ है लेकिन बताये बिना भी मुझसे रहा नहीं जायेगा 
                    क्योंकि आप मेरे अजीज है, आपकी कम्पनी से मुझे बल्कि यों कहा 
                    जाए आपसे मुझे बहुत काम मिलता है तो मेरा फर्ज बनता है कि कम 
                    से कम ये बात मैं आपसे शेयर करूँ।'' अजीत रुका, बीयर का घूँट 
                    लिया और आगे कहना शुरू किया। इस दौरान धैर्य की प्रतिमूर्ति 
                    बना विदित उसे देख और सुन रहा था।
 ''जब आपने मुझे अपनी पत्नी को वॉच करने का काम दिया था तो उसी 
                    दौरान आपकी पत्नी ने भी मुझे आपको वॉच करने के लिए हायर किया 
                    था...।'' अजीत प्रतिक्रिया देखने के लिए रुका।
 ''अच्छा!'' विदित के मुँह से सिर्फ इतना निकला लेकिन भीतर ही 
                    भीतर वह जड़ हो गया था।
 हाजी अली 
                    चौराहासेहर को वह दिखाई दे गई। दीवार के सहारे एक तिरपाल टँगा हुआ था 
                    जिसके नीचे उसकी चाची बैठी हुई थी। उसकी गोद में एक एक-डेढ़ 
                    साल का बच्चा था। उसके सामने गुलाब के फूलों का ढेर था और कुछ 
                    गुच्छे तैयार किए हुए बगल में रखे थे। उसकी बगल में मवाली सा 
                    एक आदमी बैठा हुआ था। सेहर उसके सामने जा खड़ी हुई। सेहर ने 
                    उड़ती हुई निगाह उस आदमी पर डाली और अपनी चाची को देखा और उसकी 
                    चाची ने उसे।
 ''तू! किदरीच है तू? आजकल तो दिखतीच नई तू?'' उसकी चाची ने उसे 
                    देखते ही कहा।
 ''जिदरीच हूँ, बरोबर हूँ।'' सेहर बोली, ''चाचा किदर है?''
 ''बारिश में कायकू भीग रेली है, भीतर आजा। चा मँगाऊँ तेरे 
                    वास्ते?''
 ''मेरे को नई मँगता तेरी चाय। मय पूछ रेली हूँ किदर में है 
                    वो?'' उसने अभी भी छाता ताना हुआ था।
 ''मेरे कू क्या मालम, इसकू पूछ'' चाची ने बगल में बैठे आदमी की 
                    ओर इशारा किया, ''आजकल इसकेइच साथ रैता है।''
 ''तेरे से जी भर गया क्या?''
 ''हैं!! क्या बोली छोकरी तू?'' चाची चौंकती हुई बोली।
 लेकिन सेहर नए सिरे से उस अजनबी आदमी को देख रही थी। वह आदमी 
                    उसे घूर रहा था।
 ''मय इसकू नई पिछानती, तू बता मेरे को, किदर है वो?'' सेहर फिर 
                    चाची की ओर आकर्षित हुई।
 ''पहचान बनाने में क्या देर लगती है, बाई।'' वह आदमी बोला। वह 
                    अभी भी उसे घूर रहा था।
 ''ऐ, ज्यासती नेई। क्या?'' सेहर उबल पड़ी।
 ''मैं कहाँ ज्यासती किया?'' वह बेशर्मी से हँसा, ''किया 
                    क्या?'' उसने चाची को देखा, ''किया क्या मैं ज्यासती।''
 ''जरा बी नई।'' वह उसकी हाँ में हाँ मिलाती हुई हँसती हुई 
                    बोली, ''तू तो कमती भी नई किया, ज्यासती कायकू करेंगा।''
 सेहर अपमान से जल उठी।
 ''मेरे कू मेरा पइसा चाइये।'' वह चाची से बोली। उसे लगा बात 
                    बढ़ाने से कोई फायदा नहीं होगा। फिर उसका चाचा भी गायब था।
 ''कइसा पइसा?'' वह नकली आश्चर्य का प्रदर्शन करती हुई बोली, 
                    ''मेरे कू दी तू। जिसकू दी उससे लेने का, क्या? और पइसा होता 
                    तो क्या मैं चौराहे पर पड़ी होती। मेरे पास तेरा पइसा नई क्या? 
                    और अपुन के ऊपर नई खड़े होने का। अब फूट इदर से।''
 ''तो चाचा का पता बोल। मुझे बरोबर खबर लगेला है वो नशेपानी के 
                    धन्धे में है और भोत पइसा बना रेला है। तू बता मेरे कू।''
 ''तेर कू सुनताच नई क्या? मेरे कू नई मालम।''
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