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कहानियाँ

समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस माह प्रस्तुत है,
कैनेडा से अश्विन गांधी की कहानी-"पिजा की पुकार"।


इतना बड़ा क्लास? इतने सारे विद्यार्थी एक ही क्लास में? शायद कॉलेज के इतिहास में पहली दफा? लगता है ये कॉलेज सचमुच में युनीवर्सिटी बनता जा रहा है!
 
कॉलेज का जवानी में पदार्पण! कोई अस्सी विद्यार्थी दिखते हैं और सुना हैं और भी कुछ आनेवाले हैं। छोटे शहर के कॉलेज में अब तक कोई इतना बड़ा क्लास नहीं जहाँ इतने सारे विद्यार्थी एक साथ समा सके! शायद इसीलिये थिएटर में क्लास रखी गई है!
 
थिएटर! कॉलेज के केम्पस में बना हुआ एक भव्य थिएटर! मनोरंजन के लिये जहाँ फिल्में दिखायी जाती हैं। गद्दी भरी कुर्सियाँ, एक दूसरे के करीब। साथ आए हुए, साथ बैठे हुए, तमाशा देखते हुए लोग नज़दीकी महसूस कर सकें। कुर्सियों के हार के हार, हर कुर्सी के साथ जुड़ी हुई फोल्डिंग ट्रे! किस लिये? कुछ लिख सकते हैं या फिर मनोरंजन बढ़ाती हुई कुछ खाद्य-सामग्री भी रख सकते हैं!
 
थिएटर जहाँ लेक्चर देना होगा - सप्ताह में तीन दफे। पहली बार अशोक ने थियेटर में कदम रखा। बहुत साल से अशोक इस कॉलेज में प्रोफेसर है मगर अब तक थिएटर में लेक्चर देने की बारी नहीं आई। चकित हो गया थियेटर की भव्यता देखकर। सोचने लगा, 'इतने सालों के बाद मेहरबानी है ऊपरवाले की, मेरी आवाज

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